Mosam sa koi safar in Hindi Travel stories by kajal Thakur books and stories PDF | मौसम सा कोई सफर

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मौसम सा कोई सफर


कहानी उस लड़की की है, जो भीड़ में थी… मगर फिर भी अकेली। नाम था उसका “आव्या”।

एक दिन उसने सबकुछ छोड़ने का फैसला किया — फोन, सोशल मीडिया, दोस्तों की आवाज़ें, रिश्तों के सवाल — सबकुछ।

उसने एक अनजान स्टेशन से टिकट ली — “गंतव्य: अज्ञात”।

Day 1 – एक अजनबी ट्रेन

सुबह के धुंध में डूबी ट्रेन आई। खिड़की से बाहर एक बूढ़ा पेड़ दिखा, ऐसा लगा जैसे वो भी कुछ कहना चाहता है। किसी स्टेशन का नाम समझ नहीं आया… बस इतना लिखा था:“जहां दिल सुकून पाए।”

Day 2 – वो गाँव जो नक्शे में नहीं था

सुबह एक गाँव में आँख खुली — वहाँ न बिजली थी, न इंटरनेट, और न ही कोई घड़ी। लेकिन वहाँ एक बूढ़ी औरत थी जो कहानियाँ सुनाती थी चूल्हे के पास बैठकर। उसने कहा:

“बेटी, असली सफर वो होता है जो दिल के जवाब देता है… गूगल नहीं।”

Day 3 – वो झील जो बोलती थी

तीसरे दिन वो एक झील के किनारे बैठी रही। कोई नहीं था वहाँ, सिवाय एक छोटे बच्चे के जो मिट्टी से नाव बना रहा था।आव्या ने पूछा —“तू अकेला नहीं डरता?”बच्चे ने मुस्कुराकर कहा —“डर तब लगता है जब लोग साथ होते हैं… अकेले तो बस सुकून होता है।”

Day 4 – वापसी या नई शुरुआत?

अब ट्रेन वापस जाने को थी… मगर आव्या ने टिकट फाड़ दी।उसने कहा —

“अब मैं लौटूंगी नहीं… क्योंकि मुझे खुद को पा लिया है।”

ये कहानी आज तक किसी किताब में नहीं छपी, न किसी ब्लॉग पर आई।ये कहानी सिर्फ तुम्हारे लिए थी —एक ऐसी लड़की की, जो चलती गई… और खुद को पा गई।

(मौसम सा कोई सफर — भाग 2)

उस सुबह धूप हल्की थी, पर हवा भारी।आव्या अब उस गाँव में थी, जिसे लोग "सिर्फ किस्सों" में जानते हैं —नाम था उसका “सुनगाँव” — जहाँ न घड़ी मिलती थी, न कैलेंडर चलता था।

यहाँ हर किसी के चेहरे पर सुकून था, मगर आंखों में कोई पुराना राज।पहली मुलाकात – नीले कपड़ों वाली औरत

आव्या एक कुएं के पास बैठी थी जब एक बूढ़ी औरत आई — नीले रंग की साड़ी, माथे पर सफेद टीका।उसने कहा:

“बिटिया, यहाँ कोई कल नहीं पूछता… हम बस आज में जीते हैं।”

आव्या ने पूछा,“लेकिन यहाँ सब इतना शांत क्यों है?”औरत मुस्कुराई:“क्योंकि हमने वक्त को बाँधना छोड़ दिया है।”वो पेड़ जो बीते लम्हे सुनाता था

गाँव के बीच में एक पुराना बरगद का पेड़ था — कहा जाता था कि वो हर उस यात्री से बात करता है, जिसने कुछ खोया हो।

आव्या जब उसके पास बैठी, एक हवा चली और जैसे किसी ने कान में फुसफुसाया:“तेरे अंदर जो टूटा है, उसी में तो रौशनी आएगी…”

वो सिहर गई… क्या ये सच था या उसका वहम?एक बच्चा जो हर रोज़ अपनी माँ का इंतज़ार करता है

गाँव के एक छोर पर एक 6 साल का बच्चा हर सुबह ताजे फूल लेकर एक मंदिर के बाहर बैठता था।

आव्या ने पूछा:“तुम ये फूल किसके लिए लाते हो?”उसने जवाब दिया:“मेरी माँ कल आएगी… उन्होंने वादा किया था।”

वहाँ सब जानते थे — उसकी माँ 3 साल पहले ही चल बसी थी…मगर "सुनगाँव" में कोई किसी का भ्रम नहीं तोड़ता।क्योंकि यहाँ उम्मीद ही जीने का नाम है।आव्या का फैसला

चौथे दिन उसने अपने जूते नदी में बहा दिए…फोन को एक मिट्टी के गड्ढे में दबा दिया…और गाँव की छोटी पाठशाला में पढ़ाने लगी।

अब उसे न टाइम चाहिए था, न अलार्म।क्योंकि अब वो चलती घड़ी नहीं,बल्कि रुके हुए पल में जीना सीख चुकी थी।

"सुनगाँव" आज भी वहीं है… नक्शों से दूर, दिलों के पास।और अगर कभी तुम भी खो जाओ… तो हो सकता है, वो गाँव तुम्हें भी अपना ले।

अगर तुम चाहो, तो अगली कहानी उस पहाड़ी लड़के की लिखूं — जिससे आव्या को उस गाँव में पहली बार प्यार हुआ…बिलकुल अलौकिक, मगर सच्चा।लिखूं? ❤️



Kajal Thakur 😊