Towards the Light – Reminiscence in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार मित्रों को

ताज़ा व बरसों पुराने संस्मरण का मिलाप

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जुलाई 15ता. 25की बात है। आज 17 हो गई, दो दिनों से आप सबसे यह साझा करने की बस सोचती ही रह गई हूँ। आज मुहूर्त निकला।
अभिभूत हूँ अपने प्रति इतना प्यार व सम्मान देखकर अब इस उम्र में भला और क्या चाहिए??
     जीवन के ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलते हुए यदि रास्ते में एक हरियाली का, छाँव का, शीतल पवन का झौंका आ जाए तो कैसा महसूस होता है? एक ऐसी शीतलता जो शरीर को तो थकान से बचाकर एक प्यारा सा एहसास देती ही है, मन को कितना शीतल करती है, उसे तो वह समझ पाता है जो उस एहसास से ग़ुज़रता है। सच कहूँ तो आँखें नम हो जाती हैं।
   बीनू राव यानि तिलोत्तमा यानि मेहसाणा रोटरी क्ल्ब की प्रेज़िडेन्ट, पूरे साल से मुझे मेहसाणा बुलाने की कोशिश कर रही थी लेकिन मेरे स्वास्थ्य के कारण टलता ही जा रहा था। कई बार अहमदाबाद भी कार्यक्रम कर चुकी लेकिन मेरा जाना हो ही नहीं पाया।
   हुसैन साहब की ग़ुफ़ा में कला -साहित्य का कार्यक्रम करने के लिए आर्टिस्ट्स पँक्तिबद्ध रहते हैं। जब भी नं आता है, उसे लपक लिया जाता है। गुजरात यूनिवर्सिटी के ठीक सामने इस ग़ुफ़ा का निर्माण किया गया है।यह ग़ुफ़ा  हुसैन जोशी की ग़ुफ़ा के नाम से प्रसिद्ध है। ग़ुफ़ा के साथ बहुत सी कहानियाँ जुड़ी हैं।
    इत्तेफ़ाक़ की बात है जब हुसैन साहब माधुरी दीक्षित वाली फ़िल्म की स्क्रिप्ट तैयार कर रहे थे, वह पुस्तक रूप में अहमदाबाद में ही तैयार हो रही थी। प्रकाशक अहमदाबाद के ही थे, मुझे एडिटिंग के लिए कांटैक्ट किया। हुसैन साहब आने वाले थे, उनसे मेरी चर्चा का समय तय किया गया और कहा गया कि उनके पहुंच जाने के बाद गाड़ी भेज दी जाएगी।
   उस दिन उनको एयरपोर्ट से वापिस लौटना पड़ा क्योंकि अहमदाबाद की जनता उनसे नाराज़ थी। क्यों? का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है, लगभग सभी इस घटना से परिचित होंगे।
       ख़ैर, बीनू ने हर बार की भाँति मुझे आमंत्रित किया था और हर बार की भाँति मेरा वही बहाना था। सब मित्र जानते व समझते हैं और अपनी ओर से पूरा सहयोग देने का प्रयास करते हैं। कहीं बुलाते हैं तो अपनी स्थिति से अवगत करा देती हूँ कि अकेले नहीं आ पाऊँगी और वे सब इतने प्यार से लेने आ जाते हैं, छोड़ भी जाते हैं। और क्या चाहिए भई!
   इस बार तो कमाल ही हो गया। बीनू ने आमंत्रित किया मुझे उद्घाटन के दिन ' गैस्ट आफ़ आनर' के रूप में, मैंने पुराना राग अलाप दिया। उसने कहा कि वह करेंगी मेरा सारा इंतज़ाम!मेरे परिचित जानते हैं कि मैं कैब में भी कंफ़र्टेबल महसूस नहीं कर पाती। बीनू ने कहा कि इस बार 15 से 20 तारीख तक प्रदर्शनी है। उद्घाटन के दिन यानि 15को मुझे आमंत्रित किया गया।उनकी बिटिया मुझे लेने, छोड़ने आई, ड्राइवर के होते हुए वह स्वयं मेरे साथ बनी रही।
    उद्घाटन में बहुत नामी गिरामी कलाकारों से मिलना हुआ। उद्घाटन के बाद वहाँ पधारे आर्टिस्ट्स ने हुसैन साहब व ग़ुफ़ा के बनने के समय के अनुभव साझा किए, मुझे भी उनसे मुलाक़ात के बारे में सुनाने का अवसर मिला। यह संस्मरण मैं अपने संस्मरण की पुस्तक में भी लिख चुकी हूँ जो लगभग पूरी होने की कगार पर है।
    कमाल ही है कि बीनू मेरे लिए मेहसाणा से गाड़ी में व्हील चेयर लेकर आई जिससे मुझे प्रदर्शनी में चलना न पड़े।
     विज़िटर्स आ-जा रहे थे। मुझे लेकर बिटिया मालविका सामने ही एक सुंदर से काफ़ी हाऊस में चली गई जहाँ मेरी उससे ऐसै बातें हुईं मानो कब से परिचित हो।
    प्रदर्शनी में आर्टिस्ट से मिलना, उनकी पेंटिंग्स से पीछे की संवेदना को महसूस करना, एक प्यारा अनुभव रहा। थोड़ी बहुत मानसिक थकान हुई किंतु मन में एक सुंदर, प्यारी सी छुअन लेकर, अमीर होकर मैं लौटी।
   प्रिय बीनू धन्यवाद से अधिक स्नेह!कला जगत में खूब नाम पाओ और इसी प्रकार उन्नति करते हुए आनंदित रहो। मेहसाणा छोटा स्थान है लेकिन उसमें से छाँटकर हीरे तराश रही हो।
   इसमें एक बच्ची ऐसी भी है जो साधारण परिवार की होने के साथ न बोल सकती है, न ही सुन सकती है। मेरे पास पीले टौप में खड़ी है। ईश्वर संवेदनाएं सबके भीतर सहेजकर भेजते हैं। कहीं कुछ कमी रह जाती है तो किसी अन्य रूप में झोली में सिमटी ही रहती हैं।
    आज 17ता. है, प्रदर्शनी 20 तारीख़ तक है। अहमदाबाद में रहने वाले मित्र यदि विज़िट कर सकें तो आर्टिस्ट्स को तो उत्साह मिलेगा ही, आपको भी देखकर, उनसे बात करके अच्छा लगेगा, यह पक्का है।

अभी यह समय निकल गया तो क्या, कहीं भी जब अवसर मिले किसी भी कला के कार्यक्रमों में शिरक़त करने का, अवश्य जाना चाहिए, एक अलग ही ताज़गी से भरकर वापिस आएंगे।आख़िर सभी कलाएं एक दूसरे से जुड़ी ही तो हैं |

सस्नेह

आप सबकी मित्र

डा.प्रणव भारती