**शापित हवेली - भाग 2**
आर्यन की आंखों में पुरानी हवेली की छवि अब भी ताजा थी। दस साल पहले, जब वह वहां से भागा था, तब उसे उम्मीद नहीं थी कि कभी लौटेगा। लेकिन पिता की मृत्यु की खबर उसे खींच लाई। अंतिम संस्कार के बाद वह कुछ दिनों के लिए दुर्गापुर में ही रुका।
एक रात, जब पूरा गांव सो चुका था, हवेली से फिर वही अजीब सी चीखें सुनाई दीं। आर्यन को लगा कि शायद उसका वहम है, लेकिन अगली सुबह गांव के एक बुज़ुर्ग ने कहा, “वो फिर जाग गई है... वो हवेली अब भी शापित है।”
आर्यन ने निर्णय लिया कि वह इस रहस्य का सामना करेगा। वह शाम ढलते ही टॉर्च और पूजा की कुछ चीजें लेकर हवेली पहुंचा। अंदर घुसते ही सर्द हवा ने उसका स्वागत किया, और दीवारों पर लगे पुराने फोटो अब भी वहीं थे — धूल से ढके, लेकिन जैसे कुछ बोलने को तैयार हों।
हॉल के कोने में रखी पुरानी अलमारी खुद-ब-खुद खुल गई। उसके अंदर एक डायरी थी, जिस पर खून के धब्बे थे। आर्यन ने कांपते हाथों से पहला पन्ना खोला:
"जो भी इस रहस्य को जानता है, वो जिंदा नहीं रहता..."
आर्यन के पसीने छूटने लगे। तभी पीछे से किसी ने उसका नाम पुकारा — लेकिन कोई नहीं था। टॉर्च की रोशनी झिलमिलाई, और सामने वही परछाईं थी जो बचपन में उसे डराती थी। एक औरत, जिसकी आंखों से खून बह रहा था, बोली:
"तू लौट आया, आर्यन... अब तेरा अंत पास है..."
हवेली के अंदर घुसते ही अर्जुन और राधिका को एक अजीब सी ठंडी हवा ने घेर लिया। हवा में नमी और सड़ांध की गंध थी। जैसे ही उन्होंने पहला कमरा खोला, दीवारों पर खून के धब्बे दिखाई दिए, और एक कोने में पड़ी टूटी हुई झूला कुर्सी अपने आप हिल रही थी।
राधिका की सांसें तेज़ हो गईं। “अर्जुन... यही है वो जगह जो मेरे सपनों में आती थी,” उसने कांपती आवाज़ में कहा।
अर्जुन ने कमरे की दीवारों पर नजर डाली, जहां पुराने समय की तस्वीरें थीं — जिनमें एक औरत की तस्वीर खास थी, जो जैसे उन्हें घूर रही थी। अर्जुन ने धीरे से तस्वीर छुई, तभी अचानक बिजली कड़कने लगी और हवेली का दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद हो गया।
राधिका डर के मारे चीख पड़ी। तभी ऊपर की मंज़िल से किसी के चलने की आवाज़ आई — “ठक... ठक... ठक…”। अर्जुन ने राधिका का हाथ थामा और दोनों ने सीढ़ियां चढ़नी शुरू की।
जैसे ही वे ऊपर पहुँचे, उन्हें एक कमरा दिखा, जहां से बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही थी। लेकिन कमरा खाली था... सिर्फ एक झूला अपने आप हिल रहा था और पास में पड़ी एक गुड़िया की आंख से लाल तरल गिर रहा था — खून जैसा!
दीवार पर खून से लिखा था:
**"तुम वापस क्यों आए?"**
राधिका की चूड़ी अपने आप टूट गई और उसके हाथ से खून बहने लगा। अर्जुन ने तुरंत उसका हाथ पकड़कर रूमाल से बांधा। तभी, खिड़की के पास से एक सफेद साया उड़ता हुआ दिखा और अचानक गायब हो गया।
अब दोनों बुरी तरह डर चुके थे।
**लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती...**
जैसे ही अर्जुन ने पीछे मुड़कर देखा — राधिका वहां नहीं थी!
क्या वह हवेली के अंदर कहीं खो गई?
या फिर कुछ... उसे खींचकर ले गया?
**(अगले भाग में होगा इस रहस्य का खुलासा... “शापित हवेली - भाग 3”)**