Shrapit Haweli - 3 in Hindi Horror Stories by priyanshu kumar books and stories PDF | श्रापित हवेली - भाग 3

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श्रापित हवेली - भाग 3

👻 सारापित हवेली – भाग 3: "आईने के पीछे जो दिखा…"

मैं उस कमरे में घुसा जहाँ हवा भी अंदर जाने से डरती थी। दीवारों पर झाड़-झंखाड़ के निशान थे और एक कोने में टूटा हुआ आईना पड़ा था। उस आईने को देखकर मेरी रीढ़ में अजीब सी सनसनी दौड़ गई।

आईने की सतह धुंधली थी, लेकिन जैसे-जैसे मैं करीब गया, उसमें कुछ अजीब दिखने लगा।  
पहले तो अपना चेहरा दिखा…  
लेकिन अचानक, आईने में मेरे पीछे एक और चेहरा नज़र आया।

मैंने झट से पलटकर देखा — कोई नहीं था।

मैंने फिर से आईने में देखा — अब उस चेहरे की आंखों से खून बह रहा था, और उसके होंठ मुस्कुरा रहे थे… एक डरावनी मुस्कान।

"ये सब क्या है?" — मैंने कांपती आवाज़ में कहा।

तभी आईने की सतह पर एक हाथ उभरा, जैसे किसी ने अंदर से उस पर थपकी दी हो।

मैं पीछे हटने ही वाला था कि आईना खुद-ब-खुद फर्श से उठने लगा। हवा स्थिर थी, लेकिन वो आईना मेरे सामने तैर रहा था।

और फिर… आईना अचानक टुकड़ों में टूट गया, लेकिन कोई आवाज़ नहीं आई।

हर टुकड़ा हवा में थम गया… और उनमें से एक टुकड़े में मैंने देखा —  
एक लड़की छत से लटक रही थी।

वही लड़की… जिसे मैंने हवेली के बाहर देखा था।

"क्या तुम फँसी हुई हो?" — मैंने डरते हुए पूछा।

अचानक, फर्श पर खून की कुछ बूंदें गिरने लगीं। मैंने ऊपर देखा — छत से कुछ टपक रहा था।

आईने के टुकड़े ज़मीन पर गिरने लगे और उनमें से एक टुकड़ा सीधा मेरे पैर के पास गिरा… और उसमें मेरा चेहरा नहीं… मेरी बहन का चेहरा था, जो चुपचाप रो रही थी।

मैं घबरा गया, चिल्लाया — "कौन हो तुम लोग? मेरी बहन कहाँ है?"

एक धीमी सी फुसफुसाहट कानों में आई —  
"जो खोज रहे हो… वो अब सिर्फ़ इस हवेली का हिस्सा है…"

मैंने जैसे ही पीछे मुड़कर भागना चाहा, दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। कमरा अंधेरे में डूब गया।

अंधेरे में केवल एक आवाज़ गूंज रही थी…

"तुम भी अब यहीं रहोगे…"


जैसे ही अर्जुन ने हवेली के उस गुप्त कमरे का दरवाज़ा खोला, एक ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे से टकराया। कमरे के अंदर धुंधली रोशनी थी और दीवारों पर अजीबो-गरीब चित्र उकेरे गए थे। अर्जुन की नज़र एक पुराने लकड़ी के संदूक पर पड़ी, जिस पर ताले लगे थे और ऊपर किसी प्राचीन भाषा में कुछ लिखा था – "जो इसे खोलेगा, उसकी आत्मा मुक्त नहीं होगी।"

भयभीत होते हुए भी अर्जुन ने ताले को तोड़ डाला। संदूक खुलते ही एक तीखी चीख गूंजी, और कमरे का तापमान अचानक गिर गया। अंदर एक पुरानी डायरी रखी थी – वही डायरी जो कभी उसकी बहन ने पढ़ी थी और उसके बाद वो बदल गई थी। डायरी के पन्ने पलटते ही उसके हाथ कांपने लगे। उसमें हवेली की रानी "माधवी देवी" की कहानी थी – जिसे गाँव वालों ने डायन कहकर ज़िंदा जला दिया था। लेकिन उसकी आत्मा आज भी इस हवेली में कैद थी।

डायरी के आख़िरी पन्ने पर लिखा था:  
*"अगर किसी ने मुझे बिना अनुमति के छुआ, तो उसकी आत्मा मेरी होगी।"*

अर्जुन ने जैसे ही डायरी को बंद किया, कमरे की दीवारें काँपने लगीं। चारों ओर से तेज़ हवाएं चलने लगीं और उसे एक डरावनी आवाज़ सुनाई दी – “अब तुम भी वही झेलोगे जो मैंने झेला…” अर्जुन ने घबराकर कमरे से भागने की कोशिश की, लेकिन दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।

पीछे मुड़कर देखा तो उसकी बहन – लेकिन उसकी आंखें पूरी काली थीं, चेहरा बिना भाव का और शरीर हवा में तैरता हुआ लग रहा था। अर्जुन चीखा – “क्या तुम मेरी बहन हो?” लेकिन जवाब में बस एक डरावनी हँसी गूंजी।

फिर उसकी बहन ने धीरे से कहा – “अब तुम भी इस हवेली का हिस्सा बन जाओगे… हमेशा के लिए।” तभी बिजली कड़की और कमरे की छत फटने लगी। अर्जुन ने जैसे-तैसे अपनी मोबाइल की टॉर्च जलाकर रास्ता ढूंढा और नीचे भागा।

जब वो सीढ़ियाँ उतर रहा था, किसी अदृश्य शक्ति ने उसका पैर पकड़ लिया। वो गिर पड़ा, लेकिन किसी तरह खुद को छुड़ाकर हवेली के दरवाज़े तक पहुंचा। जैसे ही उसने बाहर कदम रखा, हवेली का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया… और उसके पीछे से फिर वही आवाज़ आई –  
**“अब अगला शिकार कौन?”**

🌑 **भाग 4 में जानिए:**  
अर्जुन की बहन के अंदर कौन सी आत्मा समा चुकी है? क्या अर्जुन बचा रहा… या वो अब किसी और शरीर में है?

(जारी रहेगा...)