शीर्षक: श्रापित हवेली – भाग 1
"मैं उस जगह फिर कभी नहीं जाऊँगा, चाहे कुछ भी हो जाए..."
ये शब्द थे आर्यन के, जिसने अपने बचपन के पंद्रह साल दुर्गापुर की पुरानी हवेली में बिताए थे। अब दस साल बाद, पिता के देहांत की खबर सुनकर उसे वापस उसी हवेली लौटना पड़ा — अंतिम संस्कार के लिए।
गाँव वालों का मानना था कि वह हवेली श्रापित है। लोग कहते थे कि रात को वहाँ बिना किसी के मौजूद होने के, लाइट जलती-बुझती रहती है। कई लोगों ने कोशिश की जानने की, मगर जो गया... वापस नहीं आया।
आर्यन जब हवेली पहुँचा, तो सब कुछ वैसा ही था — टूटी हुई दीवारें, ज़ंग लगे दरवाज़े, और वो पुरानी घंटी जो बिना वजह अपने आप बज जाया करती थी।
उस रात आर्यन अकेला था। उसने एक पुरानी अलमारी से पिता की तस्वीर निकाली और दीपक जलाकर श्रद्धांजलि दी। लेकिन तभी —
एक ठंडी हवा का झोंका आया और दीपक बुझ गया।
आर्यन ने सोचा, “शायद खिड़की खुली रह गई होगी।” मगर खिड़की तो बंद थी।
टप... टप... टप...
सीढ़ियों से किसी के कदमों की आहट आई। वो आवाज़ धीरे-धीरे नीचे आती जा रही थी।
आर्यन ने टॉर्च उठाई, लेकिन बैटरी खत्म हो चुकी थी।
अब आवाज़ बिलकुल पास थी... और फिर एकदम से रुक गई।
आर्यन ने हिम्मत करके ऊपर की ओर देखा — सीढ़ियाँ खाली थीं। लेकिन तभी, उसके पैरों के पास कुछ गिरा —
एक जला हुआ पुराना फ़ोटो फ़्रेम।
उसने फ़्रेम उठाया — तस्वीर धुंधली थी, मगर उसमें एक अजनबी महिला थी, जिसकी आँखें ऐसी थीं जैसे वो आर्यन को घूर रही हों — सीधे उसकी आत्मा में झाँकते हुए।
फ़्रेम के पीछे कुछ लिखा था:
“मैं अब भी यहाँ हूँ... दोबारा मत आना।”
आर्यन का चेहरा पीला पड़ गया। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
क्या ये उसके पिता ने लिखा था?
क्या सच में उस हवेली में कोई और भी था?
आर्यन के हाथ काँपने लगे। उसने धीरे-धीरे वो फोटो फ्रेम टेबल पर रखा और कमरे से बाहर निकल आया।
पूरा घर सन्नाटे में डूबा हुआ था, जैसे दीवारें भी कुछ कहना चाह रही हों। उसने सोचा कि सुबह होते ही यह जगह छोड़ देगा, लेकिन दिल के किसी कोने में एक आवाज़ बार-बार गूंज रही थी — "सच जानो, आर्यन... अब पीछे मत हटो।"
आर्यन ने तहखाने की ओर देखा, जहाँ बचपन में कभी झाँकने की इजाज़त नहीं थी। हवेली के उस हिस्से को हमेशा बंद रखा जाता था। लेकिन आज, न जाने क्यों, तहखाने का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था... और अंदर से ठंडी सी हवा आ रही थी।
उसने हिम्मत करके दरवाज़ा पूरा खोला। सीढ़ियाँ नीचे उतर रही थीं, बिल्कुल अंधेरे में डूबी हुई। उसने मोबाइल की टॉर्च जलायी और धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा।
हर कदम के साथ माहौल और भारी होता जा रहा था, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसके चारों ओर लिपटती जा रही हो।
नीचे पहुंचते ही उसे एक पुराना संदूक दिखा — लोहे का, जंग खाया हुआ। उसने उसे खोलने की कोशिश की, लेकिन तभी पीछे से किसी ने उसका कंधा पकड़ लिया।
आर्यन ने झटके से पीछे मुड़कर देखा — वहाँ कोई नहीं था।
पर तभी... संदूक अपने आप खुल गया।
और उसमें से निकला — वही औरत, जो तस्वीर में थी।
उसके होंठ हिल रहे थे... पर कोई आवाज़ नहीं आ रही थी।
आर्यन की सांसें थम गईं।
**(जारी है – भाग 2 में जानिए उस औरत की सच्चाई और आर्यन की अगली रात का भयानक अनुभव…)**