हाय दोस्तों!!!!
थैंक यू सो मच। मुझे इतना सारा सपोर्ट करने के लिए। इस पार्ट में 2000+ वर्ड काउंट है। तो इंजॉय रीडिंग!
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काव्या हॉस्पिटल से बाहर निकल रही थी जब उसकी नजर एक अनचाही दृश्य पर पड़ी। आकाश, आदित्य और श्रेया कुछ कदम आगे खड़े थे—और उनके साथ थी वो जिसे देखकर काव्या चौंक गई: मायरा खन्ना। उसकी मौजूदगी असहज कर देने वाली थी।
आकाश के साथ मायरा को देखना आम बात थी, उनके प्रोफेशनल रिलेशन को देखते हुए। लेकिन आदित्य के साथ? यह दूसरी बार था जब काव्या ने उन्हें साथ देखा था, और यह सवाल उठाने लगा जिन्हें वह खुद से भी पूछने को तैयार नहीं थी। 'क्या यह सब डॉ. जय से जुड़ा हुआ है? क्या वे निजी बातचीतें उतनी ही महत्वपूर्ण थीं जितनी वो दिखती थीं?'
तभी, लॉबी का माहौल अचानक बदल गया।
एक आदमी अंदर आया, और उसकी मौजूदगी ने हर किसी का ध्यान खींच लिया। उसकी निगाहें झुकी हुई थीं, चाल सामान्य, लेकिन उसका आना नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।
वो कोई और नहीं, बल्कि डॉ. जय राजशेखर थे—वो नाम जो इन दिनों हॉस्पिटल में गूंज रहा था। एक ऐसा नाम जिसे लोग सराहते थे, पर आज धीरे से सवाल भी उठा रहे थे।।
जैसे ही जय ने अंदर कदम रखा, उसकी नजर सीधी काव्या पर पड़ी—जो बाकी सबसे थोड़ा अलग खड़ी थी, जैसे वो किसी और का हिस्सा हो।
उनकी नजरें मिलीं।
ना वो हिली, ना कुछ बोली। बस देखती रही, गहरी चुप्पी से — जैसे किसी जवाब का इंतज़ार कर रही हो। लेकिन... जय ने कुछ नहीं कहा।
जय थका हुआ लग रहा था। केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि अंदर तक थका हुआ। जैसे कई रातों से नींद नहीं ली हो। उसकी आंखों में गिल्ट नहीं था, लेकिन फिर भी कुछ खालीपन था। अकेलापन भी शायद।
काव्या ने वो देखा। उसने महसूस किया।
कुछ पल तक उसकी नजरें थामे रखने के बाद, जय ने नजर फेर ली। बिना कुछ कहे वो उसके पास से गुजर गया और बाकी लोगों में शामिल हो गया—जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
लेकिन कुछ हुआ था।
और दोनों को पता था।
काव्या कमरे में बिना शोर किए, शांत आत्मविश्वास के साथ दाखिल हुई।
उसने दरवाज़ा नहीं पटका, ना ही आवाज़ ऊँची की। लेकिन उसकी मौजूदगी से हवा में हलचल सी हुई — इतनी कि उसके दोस्तों ने तुरंत महसूस कर लिया।
आकाश की बात बीच में रुक गई। आदित्य ने नजरें फेर लीं। और श्रेया, जो अक्सर सबसे पहले बोलती थी, अचानक चुप हो गई।
उन्हें पता था। उन्हें पता था कि उसे सब पता चल चुका है।
लेकिन काव्या ने कोई आरोप नहीं लगाए। उसने कोई सवाल नहीं किए । वह बस खामोशी से उनके सामने खड़ी रही, चेहरा भावहीन, आवाज़ सख्त। "मैंने काफ़ी कुछ सुना है, क्या मुझसे पूरी बात नहीं गई..? ओह्ह.. असल में तो मुझे बताया ही नहीं गया।" उसकी आवाज़ में व्यंग्य था।
कुछ पल खामोशी भरे थे।।
उसने आकाश की ओर देखा। “क्या ये सच है?”
आकाश कुछ कहने ही वाला था कि कोई और बोल पड़ा — ठंडी, सधी हुई आवाज़ में, जो बिल्कुल भी स्वागत योग्य नहीं थी। “हाँ,” मायरा ने आगे बढ़ते हुए कहा। “और...दिस इज़ नन ऑफ योर बिज़नेस।”
काव्या का जबड़ा कस गया। उसने मायरा से कुछ नहीं पूछा था। उसने तो अपने दोस्तों से पूछा था।
“आइ’म नॉट टॉकिन्ग टू यू,” उसने बिना आवाज़ ऊँची किए कहा, लेकिन उसकी बात ने कमरे में छाई चुप्पी को चीर दिया।
मायरा ने भौंहें उठाईं, लेकिन कोई बहस नहीं की। बस अपनी बाहें मोड़ लीं और पीछे हट गई, लेकिन उसके होठों पर जो हल्की सी मुस्कान थी, वह काव्या को बिल्कुल नहीं भाई।
काव्या फिर दोस्तों की ओर मुड़ी। “तो? अब कोई बोलेगा? या फिर मैं जाकर नर्सों से पूछूं?”
श्रेया ने नजरें झुका लीं, उसके चेहरे पर गिल्ट साफ था। आदित्य ने एक लंबी सांस ली, और अंततः आकाश बोला, उसकी आवाज़ धीमी थी, “हम तुम्हें बताना चाहते थे, प्रिंसेस। बस... समझ नहीं पा रहे थे कैसे बताएं।”
“हम नहीं चाहते थे कि तुम्हें और टेंशन हो...” आदित्य ने सफ़ाई दी।
“हूं,” उसने एक थकी हुई सांस छोड़ी, जो उसे खुद भी पता नहीं था कि वो रोके बैठी थी। “बाद में बात करेंगे।” उसने मायरा की तरफ एक नज़र डाली। और... आदित्य समझ गया।
“डॉ. श्रेया, क्या आप मुझे बताएंगी कि असल में हो क्या रहा है? क्योंकि मुझे नहीं लगता कि आपका या मेरे दोस्त कुछ बताने वाले हैं।”
“काव्या, असल में... हम यहाँ हैं... क्योंकि...” श्रेया की बात पूरी होने से पहले ही जय ने उसे रोक दिया।
वो काव्या के पास आया और सीधे - सपाट लहजे में बोला, “बोर्ड मेंबर्स ने मुझे बुलाया है।”
“वो लड़की कौन है? सुना है तुम्हारी क्लासमेट थी।” काव्या ने पूछा।
“हमें देर हो रही है, चलें?” मायरा ने टोकते हुए कहा, और सब मीटिंग रूम की तरफ बढ़ गए।
आकाश ने कहा, “श्रेया दोस्त ऑर कलीग के तौर पर जा रही है, गवाही के लिए। और आदित्य वो डिटेक्टिव है जिसे मिस खन्ना ने हायर किया है।”
“तो मैं भी पेशेंट के तौर पर साथ चलती हूँ,” उसने सीधे कहा।
सभी मीटिंग रूम की ओर बढ़े, लेकिन आकाश एक फोन कॉल के कारण बाहर ही रह गया।
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हॉस्पिटल का बोर्डरूम
बोर्डरूम में गहरी खामोशी थी, लेकिन वातावरण में तनाव ऐसे था जैसे किसी ने तार में करंट भर दिया हो। मेज के उस पार छह वरिष्ठ बोर्ड सदस्य गंभीर चेहरों के साथ बैठे थे, जैसे पहले से ही फैसला सुना चुके हों। उनके बीच बैठी थी मायरा खन्ना, अपने पिता की खाली कुर्सी के पास—ऐसे जैसे उसकी जगह बोलने का पूरा अधिकार उसी को हो।
दूसरी तरफ बैठे थे डॉ. जय राजशेखर, पीठ सीधी, चेहरा संयमित लेकिन सतर्क। श्रेया, अपने सफेद कोट में, उसकी बाईं ओर बैठी थी। आदित्य, कुर्सी से टेक लगाकर, बाँहें मोड़े, चुपचाप हर एक को देख रहा था। आकाश, काव्या की कुर्सी की पीठ पर हाथ रखे हुए था। और काव्या, आगे झुकी हुई, शांत लेकिन अंदर ही अंदर धधकती हुई बैठी थी—जैसे एक जलता हुआ फ्यूज़।
डॉ. कामिनी राव, समिति की अध्यक्ष, ने एक फाइल खोली।
“डॉ. राजशेखर। यह दूसरी बार है जब आपको इस बोर्ड के सामने पेश होना पड़ रहा है, उस शिकायत के संबंध में जो डॉ. रिया नायर ने दर्ज कराई है—आपकी पुरानी क्लासमेट और अब जूनियर रेज़िडेंट।”
जय चुप रहा।
डॉ. राव ने आगे कहा, आवाज़ बर्फ सी ठंडी— “उनका आरोप है कि पिछले कुछ हफ्तों में आपने कई बार उनके साथ अनुचित व्यवहार किया। ख़ासकर तब से जबसे उनका ट्रांसफर इस अस्पताल में हुआ। वे कहती हैं कि आपने उन्हें असहज महसूस कराया — चाहे वह राउंड्स के दौरान हो या निजी बातचीतों में।”
जय की आवाज़ स्थिर थी, “यह सच नहीं है।”
एक और बोर्ड सदस्य आगे झुका — “तो आप यह मानने से इनकार करते हैं कि आपने उन्हें ऑफिस टाइम के बाद अपने केबिन में बुलाया था?”
“मैंने उन्हें एक बार बुलाया था,” जय बोला। “एक केस फाइल पर चर्चा करनी थी जिसे उन्होंने गलत हैंडल किया था। दरवाज़ा खुला था। बातचीत दस मिनट से भी कम चली।”
“और क्या आपका उनके साथ कोई व्यक्तिगत रिश्ता था?”
जय थोड़ा रुका। “हम क्लासमेट थे। बस।”
“लेकिन उनके अनुसार, वो रिश्ता इससे कहीं ज़्यादा था।”
इससे पहले कि जय कुछ कहता, आदित्य आगे बढ़ा, उसकी आवाज़ सख्त लेकिन नियंत्रण में थी। “इस केस के लिए मुझे इन्वेस्टिगेटर के तौर पर नियुक्त किया गया है। मैं साफ़ करना चाहता हूँ: डॉ. रिया के आरोप के समर्थन में कोई सीसीटीवी फुटेज या ठोस सबूत नहीं है। केवल उनका व्यक्तिगत बयान है, जिसमें कई विरोधाभास हैं। मैंने उनसे इंटरव्यू के लिए अनुरोध किया, लेकिन वो हर बार टालती रहीं—सीधा संपर्क और आधिकारिक पूछताछ दोनों से बचती रहीं।”
यह सुनकर एक बोर्ड सदस्य असहज हो गया। लेकिन मायरा, अब भी संयमित और ठंडी, बीच में बोली — “मिस्टर वर्मा, आप अस्पताल स्टाफ नहीं हैं। आपकी भूमिका अनौपचारिक है। सिर्फ फैक्ट्स तक सीमित रहें, कल्पना से नहीं।”
काव्या की नजरें उस पर तीर सी गईं। “वो खुद यहां मौजूद भी नहीं है!” काव्या अचानक उठ खड़ी हुई। “जिस लड़की ने ये इल्ज़ाम लगाया—वो खुद सुनवाई में नहीं आई। तो फिर जय को इस तरह सबके सामने क्यों खड़ा किया जा रहा है जैसे वो पहले से दोषी हो, जब विक्टिम में इतनी भी हिम्मत नहीं कि वो सामने आकर कुछ कह सके?”
मायरा की आवाज़ तीखी हो गई। “मिस सेहगल—”
“नहीं, डोंट ‘मिस सेहगल’ मी।” काव्या ने गुस्से में रोकते हुए कहा। “आइ’म नॉट हियर टू बी पॉलाइट। मैंने चार महीने इस डॉक्टर के अंडर थेरेपी ली है। इन्होंने मुझे दोबारा चलने लायक बनाया—वो भी सच में। एक बार भी मुझे इससे कोई असहजता नहीं हुई। एक बार भी नहीं।”
एक उम्रदराज सदस्य ने भौंहें सिकोड़ते हुए कहा— “मिस सेहगल, भावनात्मक लगाव निष्पक्षता को प्रभावित करता है।”
“और क्लिनिकल डिटैचमेंट इंसानियत को मारता है,” उसने तुरंत पलटकर कहा। “क्या यही है इस हॉस्पिटल की वैल्यू? कानाफूसी के आधार पर सुनवाई?”
कमरा एक बार फिर ठंडे सन्नाटे में डूब गया।
अब बारी थी श्रेया की। वह धीरे से खड़ी हुई। उसकी आवाज़ डॉक्टर जैसी थी—स्थिर, संवेदनशील, लेकिन स्पष्ट।
“एक सहकर्मी के रूप में मैंने डॉ. जय के साथ इंटर्नशिप के दौरान और यहां दो महीने से ज़्यादा समय तक काम किया है। हम क्लासमेट भी रह चुके हैं। वो सख्त हैं, अनुशासित हैं, लेकिन अनुचित? कभी नहीं। अगर कोई आरोप है, तो उसे उचित प्रक्रिया के तहत जांचना चाहिए — लेकिन ये जो हो रहा है…” उसने हाथ से कमरे की ओर इशारा किया, “...ये सुनवाई कम और सज़ा पहले जैसा ज़्यादा लग रहा है।”
मायरा ने गला साफ़ किया, अब थोड़ी असहज दिख रही थी।
“मैं मानती हूँ कि निर्णय देना जल्दबाज़ी होगी। लेकिन हम हॉस्पिटल की प्रतिष्ठा को नजरअंदाज़ नहीं कर सकते। अगर प्रेस को जरा भी भनक लगी—”
आदित्य बीच में बोल पड़ा। “प्रेस को सिर्फ वही बातें मिलती हैं जो तुम्हारे पिता उन्हें खुद बताना चाहते हैं, मायरा। प्रतिष्ठा की आड़ में छुपो मत, जब खुद जानते हो कि ये प्रोसेस ही फ्लॉड है।”
मायरा के होठों की रेखा सख्त हो गई, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया।
जय ने पहली बार नजर उठाई, सीधा काव्या की ओर देखा—जो अब भी खड़ी थी, गुस्से से कांपती हुई, सांसें तेज़।
“बस,” उसने धीमे स्वर में कहा। “काव्या। बैठ जाओ।”
उसने उसे देखा। “मुझे चुप मत कराओ।”
“मैं चुप नहीं करा रहा,” उसने नर्मी से जवाब दिया। “लेकिन अब इन्होंने तुम्हारी बात सुन ली है।”
और उन्होंने सुनी थी।
बोर्ड के सदस्य एक-दूसरे को देखने लगे। यहां तक कि मायरा भी अब चुप थी।
डॉ. राव ने फाइल बंद की।
“चूंकि विक्टिम मौजूद नहीं हैं, और कोई ठोस प्रमाण भी नहीं है, यह बोर्ड औपचारिक निर्णय को स्थगित करता है जब तक और जांच पूरी न हो। डॉ. राजशेखर, तब तक आप एडमिनिस्ट्रेटिव लीव पर रहेंगे।”
जय ने चुपचाप सिर हिलाया।
मीटिंग खत्म होने के साथ ही कमरा धीरे-धीरे खाली होने लगा। मायरा पीछे रह गई, कुछ सदस्यों से धीमे सुर में बात करती रही।
काव्या, जय के साथ बाहर निकले।
“तुम्हें ये सब सहना नहीं चाहिए था,” उसने बुदबुदाकर कहा।
वो कुछ पल चुप रहा, फिर बोला, “मुझे नहीं लगता कि तुम्हें मेरे लिए बोलना चाहिए था।”
वो रुकी। उसके भीतर अब भी ग़ुस्सा था, लेकिन आँखों में नर्मी झलकने लगी। “अफसोस। अब तुम्हें दोनों मिला—इल्ज़ाम भी, और मेरी आवाज़ भी।”
जय ने हल्की सी मुस्कान दी, फिर आगे बढ़ गया।
और पहली बार, उस ख़ामोशी में कोई अजनबीपन नहीं था। बस एक अजीब सा सुकून था।
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हॉस्पिटल के बाहर – दोपहर
सुनवाई खत्म हो चुकी थी, लेकिन तनाव अब भी हवा में जड़ की तरह जमा हुआ था।
जय पूरे रास्ते खामोश रहा, हाथ कोट की जेब में, निगाहें सामने, कदम संतुलित लेकिन थके हुए। बाकी सब उसके पीछे धीमे-धीमे चल रहे थे — आदित्य फोन पर बात कर रहा था, श्रेया एचआर से कुछ कह रही थी, और आकाश चुपचाप सिक्योरिटी डेस्क की ओर देखता हुआ चल रहा था।
सबसे पहले जय के पास काव्या पहुँची।
“तुम अपनी कार से नहीं जा रहे हो, है ना?” उसने हल्के अंदाज़ में चलते-चलते पूछा।
जय ने एक थकी - सी, बिना हँसी वाली साँस छोड़ी। “कोर्ट जैसी सुनवाई के बाद खुद गाड़ी चलाना ठीक नहीं लगेगा। कैब बुक कर लूँगा।”
काव्या ने आंखें घुमाईं और कहाँ, “गुड थिंग। यू आर कमिंग विद मी।”
जय कुछ कहने ही वाला था, लेकिन तब तक वह आगे बढ़ चुकी थी।
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काव्या की कार में – 10 मिनट बाद
उनके बीच की चुप्पी अजीब नहीं थी। बस भारी थी।
जय खिड़की से बाहर देखता रहा — हॉस्पिटल की इमारतों के बीच से छनती धूप को जैसे निगलने की कोशिश कर रहा हो। सीट के ऊपर हाथ रखे शांति से बैठी थी, बीच-बीच में एक नज़र उसकी तरफ डाल लेती—लेकिन जब से दोनों सीट बेल्ट लगाए थे, जय ने एक शब्द भी नहीं कहा था।
फिर फोन बजा।
स्क्रीन पर आदित्य का नाम चमका।
काव्या ने नजरें घुमाई। इग्नोर कर दिया।
फिर फोन फिर से बजा।
इस बार आकाश का कॉल था।
उसने फोन उठाया और स्पीकर ऑन किया।
आकाश की आवाज़ में बेचैनी थी—“काव्या, तुम कहाँ हो?”
काव्या: “जय को छोड़ने जा रही हूँ। क्यों?”
आकाश: “रेडियो ऑन करो। या अपने सोशल्स देखो। खबर लीक हो गई है।”
जय ने तुरंत उसकी तरफ देखा, भौंहें सिकुड़ गईं। “कौन सी खबर?”
काव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। बस हाथ बढ़ाया और कार का वॉल्यूम बढ़ाया।
कार में सन्नाटा टूटा—एक तेज़, साफ़ आवाज़ गूँजने लगी:
रेडियो होस्ट: “…ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही है शहर के सबसे बड़े निजी हॉस्पिटल से। एक सीनियर डॉक्टर पर आंतरिक जांच चल रही है, उनके खिलाफ एक जूनियर महिला डॉक्टर द्वारा अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया गया है। अभी तक हॉस्पिटल की ओर से नाम जारी नहीं किया गया है, लेकिन सूत्रों की मानें तो आरोपी डॉक्टर का नाम जय राजशेखर है…”
जय की साँसें थम गईं। काव्या की पकड़ स्टीयरिंग पर कस गई।
फोन पर – आकाश: “अब मीडिया की गाड़ियाँ हॉस्पिटल के बाहर इकट्ठा होने लगी हैं।”
श्रेया की आवाज़ बैकग्राउंड में सुनाई दी, तेज़ और घबराई हुई—“हमें इन्हें जल्दी निकालना होगा। अभी।”
ड्राइवर ने तुरंत गाड़ी बाईं लेन में मोड़ी। “बेसमेंट पार्किंग खुली है?”
मायरा (फोन पर): “ब्लॉक B के पास एमरजेंसी एग्जिट खुलवाने के लिए सिक्योरिटी को बोल दिया है। वहाँ से पुराने स्टाफ गेट तक पहुंच सकते हो। उसी रास्ते से निकलो। अब।”
काव्या ने एक सेकंड की भी देरी किए बिना कहा— “अब मुझे इसके सुझाव माँगने पड़ रहे हैं. ड्राइवर… बेसमेंट इमरजेंसी एग्जिट। अभी।”
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हॉस्पिटल बेसमेंट – इमरजेंसी एग्जिट
बेसमेंट की हवा ठंडी थी, दूर कहीं कदमों की गूंज और टायरों की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं।
काव्या की कार धीरे-धीरे रैंप से नीचे उतरी, हेडलाइट्स पुराने पेंट और कंक्रीट की दीवारों पर चमकती हुई। उसने कार एक दूर के गेट के पास रोकी, जहाँ श्रेया और आकाश पहले से अपने वाहन में सिक्योरिटी गार्ड के पास खड़े थे।
जय चुपचाप उतरा, कोट की हुड सिर पर डालते हुए। पहली बार पूरे दिन में उसका हावभाव अनिश्चित सा लगा।
श्रेया (जय से): “मायरा प्रेस स्टेटमेंट दे रही है। हमें कुछ समय मिल जाएगा। लेकिन तुम अपने घर नहीं जा रहे हो। आंटी ने मुझसे साफ कह दिया है—अभी घर मत आना। तुम मेरे साथ चलोगे।”
जय: “तो बेसिकली, मैं छिप रहा हूँ।”
आकाश: “नहीं। तुम उन्हें हेडलाइन नहीं बनने दे रहे। यही बचाव है।”
काव्या (धीरे से): “और तुम अकेले नहीं हो।”
जय ने उसकी ओर देखा — पहली बार पूरे दिन में... ठीक से देखा।
ना पेशेंट।
ना दोस्त।
बस एक इंसान, जो ऐसे वक्त में साथ खड़ी थी जब दुनिया से कतराना आसान होता।
जय: “थैंक यू।”
काव्या ने हल्की - सी मुस्कान दी। “इमोशनल मत हो जाना। मैं पहले ही पछता रही हूँ तुम्हें लिफ्ट देने के लिए।”
वो मुस्कुराया। बस थोड़ा। ऑलमोस्ट।
लोहे और चेन की किरकिराती आवाज़ के साथ, सिक्योरिटी गेट ऊपर उठने लगा। एक-एक कर गाड़ियाँ गली में निकल गईं — कैमरों की चमक और अधूरी कहानियों से दूर।
पीछे रह गया हॉस्पिटल—बाहर से शांत, लेकिन अंदर एक तूफान उठ चुका था।
कुछ देर की चुप्पी के बाद, जय ने गाड़ी में हल्के स्वर में कहा— “ये सब तुमसे छुपाने का आइडिया मेरा था। मैं नहीं चाहता था कि तुम मेरे बारे में ऐसा कुछ सोचो। मैंने सोचा था, सब निपट जाएगा तो खुद बता दूँगा।”
काव्या का जवाब ठंडा और साफ था— “डॉ. राजशेखर, सच कहूँ तो इस वक्त मुझे आपसे बात करने की कोई इच्छा नहीं है… और मत कीजिए, वरना शायद ये इच्छा कभी लौटे ही नहीं।”
कार, सीधी सेहगल हाउस की ओर बढ़ चली।
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