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आकाश गाड़ी चला रहा था। काव्या बगल वाली सीट पर बैठी थी, और आकाश की माँ, रागिनी, पीछे की सीट पर आराम से बैठी थीं। काव्या ने फोन स्पीकर पर लगाया हुआ था।
हर्षवर्धन (फोन पर): "तो, पार्टी कैसी रही, नौजवान?"
आकाश: "हमेशा की तरह बेहतर।"
हर्षवर्धन: "और?"
आकाश: "और क्या?"
हर्षवर्धन: "हम्म… तुम्हारी गर्लफ्रेंड?"
आकाश (भौंहें उठाते हुए): "किसकी गर्लफ्रेंड?"
हर्षवर्धन: "अरे तुम्हारी ही।"
आकाश (सपाट लहजे में): "मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।"
हर्षवर्धन: "वो लड़की जो हमसे घर पर मिली थी। है ना, बच्चा?"
काव्या (मुस्कराते हुए): "हाँ डैड। इसकी सेटिंग कराने में कहीं मेरी ही सेटिंग ना हो जाए।"
आकाश (काव्या की ओर देखकर): "इसका मतलब क्या था?"
रागिनी (नरम लहजे में, बीच में बोलते हुए): "आकाश, श्रेया बहुत प्यारी लड़की है। और तुम दोनों तो पहले से दोस्त हो।"
आकाश (थोड़ी मुस्कान के साथ): "एवरीबॉडी, नोट नाऊ प्लीज ।"
रागिनी (जैसे मज़ाक में झुंझलाते हुए): "ठीक है! लेकिन अब तुम छोटे नहीं रहे। शादी की यह सही उमर है। इस तरह तो तू मुझे पोता-पोती देने से रहा। तुम तो मेरे साथ समय भी नहीं बिताते!"
आकाश: "माँ, आप बिल्कुल टीवी की टिपिकल ड्रामेटिक मम्मियों जैसी लग रही हो।"
कार में सभी ज़ोर से हँस पड़े।
हर्षवर्धन (हँसते हुए): "ठीक है फिर, शुभ रात्रि। दादाजी को अब नींद चाहिए।"
सभी ने मिलकर उन्हें अलविदा कहा और कॉल कट हो गया।
फोन पर हुई हँसी अब धीमी हो गई थी, और कुछ देर के लिए कार में केवल खिड़कियों से टकराती हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी।
काव्या ने अपनी कोहनी खिड़की के पास टिकाई और उसकी उंगलियाँ काँच पर हल्के से थिरकने लगीं। उसके चेहरे से मुस्कान जा चुकी थी।
आकाश ने एक नज़र उसकी ओर डाली, फिर वापस सड़क पर ध्यान दिया।
"तुम चुप क्यों हो गई हो?" उसने हल्के से पूछा। "अब क्या चल रहा है तुम्हारे उस ड्रामेबाज़ दिमाग में?"
वो मुस्कराई नहीं। "मैं बस सोच रही थी… रॉनित। वो आज रात अचानक चला गया।"
आकाश का लहजा थोड़ा नरम हो गया। "हाँ, देखा मैंने। उसने ठीक से बाय भी नहीं कहा।"
रागिनी पीछे से थोड़ा आगे झुकी। "क्या वो ठीक लग रहा था?"
काव्या ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन फिर रुक गई। "पता नहीं। वो... परेशान सा लग रहा था। या शायद कुछ सोच में डूबा हुआ।"
आकाश ने हल्की साँस छोड़ी। "काफ़ी समय से कुछ अलग ही है। ज़्यादा बात नहीं करता। या तो कुछ छिपा रहा है, या फिर बस अकेलापन चाहता है।"
काव्या ने तुरंत कुछ नहीं कहा। फिर, जैसे बात बदलने की कोशिश करते हुए बोली, "वैसे, तुम्हें पता है कि आदित्य… और तुम्हारी बॉस, आर काइंड आ फ्रेंड्स नाऊ ?"
आकाश ने उसकी ओर देखा, हैरानी से। "ये कैसा सवाल है?"
रागिनी तुरंत मज़ाक में बोल पड़ीं, "हम्म? तुम्हें अपनी बॉस पसंद है क्या?"
आकाश चौंक गया। "माँ! बिल्कुल नहीं। वो बस... तेज़ है। तेज़ बोलती है। और मेरी टाइप की तो बिल्कुल भी नहीं है।"
काव्या हल्के से मुस्कराई, सामने देखते हुए। "वो दोनों बात कर रहे थे, जानती हो? बाकी सब से दूर।"
"वो चाहती थी कि आदित्य से प्राइवेट में बात करे," उसने थोड़ी देर बाद जोड़ा।
आकाश का जबड़ा थोड़ा कस गया। जैसे कुछ अंदर चुभा हो। "अगर कुछ ऑफिस से जुड़ा होता, तो मुझे पता होता।"
"शायद ऑफिस से जुड़ा नहीं था," काव्या ने शांत स्वर में कहा। "बस… एक अजीब सा एहसास हो रहा है।"
आकाश ने कुछ नहीं कहा। कुछ पल बस गाड़ी चलाता रहा, सामने हेडलाइट्स लंबी परछाइयाँ बना रही थीं।
"क्यों लग रहा है कि ये दोनों कुछ छिपा रहे हैं?" काव्या बुदबुदाई, उसकी आवाज़ इंजन की गुनगुनाहट से भी धीमी थी। "कुछ ग़लत नहीं, लेकिन कुछ ऐसा जो हमें नहीं बताया जा रहा।"
आकाश ने गहरी साँस ली और धीरे से सिर हिलाया। "मैं भी यही सोच रहा था।"
उनकी नज़रें कुछ पल के लिए मिलीं, फिर दोनों ने नज़रें फेर लीं। जो सन्नाटा उनके बीच था, वो भारी नहीं था—पर सोच में डूबा हुआ ज़रूर था। पार्टी खत्म हो चुकी थी। लेकिन शायद कुछ और—कुछ ज़्यादा निजी—शुरू हो चुका था।
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काव्या
aacident को तीन महीने हो चुके हैं। तीन लंबे, धीमे, थकाऊ महीने।
फिजिकली मैं बेहतर हूँ। कम से कम यही मैं सबको—aur खुद को—कहती रहती हूँ। सच्चाई ये है कि मैं अभी भी गाड़ी नहीं चला सकती। ज़्यादा देर खड़ी नहीं रह सकती। लिविंग रूम पार करना भी कभी-कभी किसी मैराथन जैसा लगता है।
अभी भी हॉस्पिटल जाती हूँ, पर अब सर्जरी या स्कैन के लिए नहीं। सिर्फ़ चेक-अप के लिए। ऑब्जर्वेशन के लिए। ताकि डॉक्टर देख सकें कि शरीर कितना सुधर रहा है, और मैं दिखावा कर सकूँ कि सब ठीक है।
अब जय मेरा डाक्टर नहीं है।
में फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाती हु।
ये सोचना ही दिल में चुभता है।
डॉ. जय राजशेखर।
वो एक अजीब से संयम और चुनौती के मेल के साथ आता था—मुझे और ज़्यादा कोशिश करने, और चलने, और खिंचाव सहने के लिए प्रेरित करता था। अब वो बस एक नाम है, जिसे मैं अस्पताल के गलियारों में कभी-कभी सुन लेती हूँ। लेकिन अब उससे बात नहीं हो rahi।
मेरी गाड़ी अस्पताल के मुख्य गेट पर आकर रुकी। ड्राइवर ने दरवाज़ा खोला। मैंने गहरी साँस ली और धीरे-धीरे बाहर निकली, ध्यान से ताकि ज़्यादा वज़न बाएँ पैर पर न पड़े। पीठ की जकड़न ने फिर याद दिलाया कि मैं यहाँ क्यों आई हूँ।
एंट्रेंस से फिजियो डिपार्टमेंट तक की दूरी ज़्यादा नहीं थी—पर आज वो दूरी भारी लग रही थी। जैसे कुछ हवा में कुछ थम सा गया हो।
अंदर, फिजियोथेरेपिस्ट ने मुस्कराते हुए मेरा स्वागत किया, क्लिपबोर्ड हाथ में लिए।
"पिछली बार से बेहतर लग रहा है," उन्होंने कहा, मेरी एड़ी को धीरे-धीरे घुमाते हुए। "चलना अब कैसा हो रहा है?"
"काबू में है," मैंने जवाब दिया। "जब तक मॉल में न चलना हो या टैक्सी के पीछे भागना न पड़े।"
वो हल्का सा हँसे, लेकिन उनका ध्यान अब भी मेरे पैर पर था।
थोड़ी देर बाद वो रिकॉर्ड्स देखने लगे।
तभी मैंने सुना।
दो नर्सें दरवाज़े के पास खड़ी थीं, धीरे-धीरे बात कर रही थीं—पर इतनी भी धीमे नहीं कि सुना न जा सके।
"मैं कह रही हूँ, वो वैसे नहीं हैं," एक फुसफुसाई, लहजा रक्षात्मक।
"तू नहीं जानती ऐसे डॉक्टर कैसे होते हैं," दूसरी ने जवाब दिया। "हैंडसम है, हाँ। पर इसका मतलब ये नहीं कि वो मासूम है।"
"वो ऐसा कर ही नहीं सकते," पहली नर्स ने ज़ोर दिया। "तू जय सर को जानती है। सख्त हैं, हाँ, पर हमेशा इज़्ज़त से पेश आते हैं। ज़रूर कुछ गड़बड़ है।"
नाम सुनते ही मेरी साँस अटक गई।
जय। डॉ. जय राजशेखर।
मेरा डॉक्टर। मेरा...
मैंने पलकें झपकाईं, उन शब्दों के वज़न को समझने की कोशिश की। नर्सें धीरे-धीरे दूर जाती रहीं।
"कल तक ये सारी अस्पताल में फैल जाएगा..."
और फिर सन्नाटा।
कमरा अब ठंडा लगने लगा। फिजियोथेरेपिस्ट अब भी अपने डेटा में व्यस्त था, लेकिन मेरा मन वहाँ नहीं था।
क्या हुआ जय को? वो किस बारे में बात कर रही थीं?
और क्यों ये अजीब सी बेचैनी दिल में उठने लगी थी?
मैंने कोशिश की ध्यान देने की, लेकिन अब कुछ बदल चुका था। एंकल की स्ट्रेचिंग, क्वेश्चंस अबाउट पैन लेवल, पॉस्चर के रिमाइंडर—सब कुछ दूर लग रहा था। मैकेनिकली।
जय का नाम अब भी मेरे कानों में गूंज रहा था।
सेशन खत्म होने तक, मुझे याद भी नहीं रहा कि फिजियोथेरेपिस्ट ने क्या कहा। मैंने सिर हिलाया, जब उन्होंने पूछा कि अगली बार आऊँगी न, थैंक यू कहा और बाहर निकल गई।
लेकिन मैं सीधे बाहर नहीं गई।
मैं थोड़ा धीरे चली। बॉडी ने प्रोटेस्ट किया, लेकिन मैं चलती रही—बस कुछ क़दम और, जब तक नर्स स्टेशन पार न कर लूँ।
वहाँ अब वो नर्सें नहीं थीं। एक दूसरी नर्स मुस्कराई और कुछ लॉगबुक में लिखने लगी।
मैंने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ पूछा, "हाय। वो... डॉ. जय राजशेखर आज ड्यूटी पर हैं क्या?"
नर्स ने नज़र उठाई। "डॉ. जय? आज नहीं, मैडम। वो… छुट्टी पर हैं।"
"छुट्टी?" मैंने दोहराया।
वो सिर हिलाते हुए बोली, "हाँ। शायद कुछ दिन से नहीं आ रहे।"
मेरे सीने में कुछ कस सा गया।
मैंने हल्के से सिर हिलाया, शुक्रिया कहा और धीरे-धीरे वहाँ से चली गई, अपने दिमाग़ में उठते तूफ़ान को दबाने की कोशिश करती हुई।
जय। बिना बताए छुट्टी पर। कोई अपडेट नहीं। कोई मैसेज नहीं। नोट इवेन अ ड्राय वन-लाईनर लाईक ही यूज्ड टू सेंड व्हेन ही कैंसल्ड अ सेशन।
ईट कुड मीन नथिंग. बट इट डिडन्ट फील लाइक नथिंग.
काव्या फिजियोथेरेपिस्ट डिपार्टमेंट के ठीक बाहर खड़ी थी। उसके मन में अभी-अभी सुनी गई बातों की गूंज अब भी चल रही थी। वह कुछ पल रुकी, फिर वापस मुड़ी। दरवाज़ा आधा खुला था। andar उसका फिजियोथैरेपिस्ट अपनी मेज़ पर कुछ कागज़ भर रहा था। उसने काव्या को देखा, तो थोड़ी आश्चर्यचकित निगाहों से ऊपर देखा।
"आप कुछ भूल गईं क्या?" उसने पूछा।
काव्या धीरे-धीरे भीतर आई। "नहीं... बस एक question था।"
उसने उसे बैठने का संकेत दिया, पर काव्या खड़ी ही रही। "डॉ. जय राजशेखर के बारे में जानना था। क्या हुआ उन्हें?"
कुछ पल के लिए रूम में मौन छा गया। sawal जितनी देर तक टिका रहा, उत्तर उतना ही भारी होता चला गया।
डॉक्टर का भाव बदला — उसकी कैजुअल प्रोफेशनल मुस्कान धीरे-धीरे संकोच में बदल गई। उसने धीरे से फाइल बंद की और कुर्सी पर पीठ टिकाई।
"वो... यहाँ नहीं हैं," उसने अंततः कहा। "लीव पर हैं।"
"ये तो मुझे पता है," काव्या ने शांत परंतु सटीक स्वर में उत्तर दिया। "पर क्यों? मैंने उन्हें कई बार फ़ोन किया है। जवाब नहीं दे रहे।"
वह कुछ पल चुप रहा, फिर बोला, "आपको उनके पास नहीं जाना चाहिए।"
काव्या ने उसकी ओर एकटक देखा। "बस साफ़-साफ़ बताइए क्या हुआ है।"
वह नीचे देखने लगा, फिर अपने हाथों में पकड़े क़लम को धीरे-धीरे घुमाने लगा। उसकी दृष्टि दरवाज़े की ओर गई, मानो देखना चाहता हो कि कोई सुन तो नहीं रहा।
फिर वह धीमे स्वर में बोला, "उन पर आरोप लगा है।"
काव्या ने कुछ नहीं कहा। उसका हृदय जैसे एक बार धड़क कर ठहर गया हो, पर उसका चेहरा शांत रहा।
वह आगे बोला, शब्दों को सावधानी से चुनते हुए, "यह कुछ गंभीर है। दो दिन पहले एक महिला चिकित्सक — जो उनकी पुरानी साथी थीं, उन्हीं के साथ पड़ती थी — उन्होंने उन पर अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया है। मॉलेस्टेशन।"
एक पल का मौन छा गया।
"शी यूज्ड टू बी हिज क्लासमेट। सेम बैच?" काव्या की भौंहें संकुचित हुईं, उसके स्वर में विस्मय अधिक था, विश्वास की कमी नहीं।
"हां," उसने सिर हिलाया। "कहा जा रहा है कि हाल ही में फिर से संपर्क में आए थे। लेकिन असल में क्या हुआ, किसी को नहीं पता। केवल बातें हो रही हैं।"
उसने गहरी साँस ली और स्वर में कुछ दृढ़ता लाई, "अस्पताल ऐसे मामलों को हल्के में नहीं लेता। इसलिए स्थिति स्पष्ट होने तक उन्हें दूर रहने को कहा गया है।"
काव्या को लगा जैसे कमरे की हवा अब भारी हो गई है। श्वास लेना कठिन लगने लगा।
उसने हल्के से सिर हिलाया, मानो धन्यवाद कह रही हो, हालांकि उसका मन वहां नहीं था। उसके विचार उस कमरे से बहुत दूर भटक चुके थे।
वह बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकली। उसके क़दमों की आहट गलियारे में धीमे-धीमे गूंजती रही।
बाहर संसार वैसा ही था जैसा पहले था। लेकिन उसके भीतर, अब कुछ भी वैसा नहीं रहा।
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