Humraz - 11 in Hindi Crime Stories by Gajendra Kudmate books and stories PDF | हमराज - 11

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हमराज - 11

फिर बादल ने लीखा, " सच में ज़ेबा वह शख्स आपका कोई नहीं है. तो फिर क्या ऐसी मज़बूरी आन पड़ी आप पर जो आपको इसके साथ रहना पड़ रहा है." ज़ेबा ने लीखा, " यह एक बड़ी लंबी दास्तान हैं हम धरे धीरे आपको सब बतायेंगे लेकीन आप यह बात याद रखना के आप हमें कभी भी फोन नहीं करेंगे. हम देनों को जब भी बात करनी होगी तब हम मेसेज के जरिये से बात करेंगे, अच्छा हम बाद में बात करेंगे उस शख्स के आने का वक्त हो गया है." फिर एकदूसरे ने बाय कहकर अपनी बाते बंद कर दी. अब बादल सोचने लगा के ज़ेबा की ऐसी क्या मज़बूरी होगी जो वह इस अपराधी के साथ रह रही है. मुझे इसका पता लगाना पड़ेगा, फिर कुछ दिन यूँ ही चलते रहे और दोनों की बातचीत उस फोन के जरीए होती रही. वह दोनों कहने को एकदूसरे से दूर थे लेकिन फोन के जरीए बात करते करते उनके दिल करीब आ गये थे. फिर कुछ दिनों से बादल की बेचैनी और बढ़ने लगी थी. उसे अब ज़ेबा से रूबरू होकर बात करनी थी. तो एक दिन उसने ज़ेबा को मेसेज किया और लीखा, " ज़ेबा हमें बहोत दिन हो गये है यूँ एकदूसरे से मेसेज के जरिए बात करते हुये. अब यह दिल मानता नहीं है, मुझे आपसे रूबरू होकर बात करनी है. मुझे आपकी आवाज सुने बहोत अरसा हो चूका है तो मुझे अब आपकी आवाज सुननी है."

   फिर ज़ेबा ने लीखा, " फिलहाल ऐसा नहीं हो सकता बादल," फिर बादल ने लीखा, " क्यों आप मुझसे बात क्यों नहीं कर सकती." फिर ज़ेबा ने लीखा, " मेरी मज़बूरी है." फिर बादल ने लीखा, " ऐसी क्या मज़बूरी है, आप हमसे क्यों नहीं कहती हो." फिर ज़ेबा ने लीखा, " हमारे बात करने से आप और मै दोनों ही बडी मुश्कील में आ सकते है. बादल हम जैसे मेसेज से बात कर रहे है, वैसे ही चलते रहने दिजीये और सब्र रखीये आपकी यह ख्वाहीश कभी ना कभी पूरी होगी." बादल का दिल मान तो नहीं रहा था लेकिन उसने जैसे तैसे उसे मना लीया. उसके बाद भी कुछ दिन यूँ ही बाते करते हुए बीत गये. फिर एक दिन ज़ेबा और बादल ने मेसेज में बात करना सुरु किया. तब ज़ेबा ने लीखा, " बादल कुछ बड़ा होनेवाला है." बादल ने लीखा, " क्या होनेवाला है." " बड़ा और खौफनाक होनेवाला है, ऐसा जेबा ने लीखा. बादल ने लीखा, " ज़ेबा आप किस बारे में बोल रही हो, जरा खुलकर बताइये." फिर ज़ेबा ने लीखा, " मैं आपको अभी कुछ नहीं बता सकती हूँ, हाँ लेकिन आपको आगाह कर रही हूँ. अभी मै जा रही हूँ हम कल बात करेंगे." ऐसा बोलकर ज़ेबा ने फोन बंद कर दिया. फिर बादल ने देखा के ज़ेबा और वह शख्स सीढ़ियों से उतरकर कहीं बाहर बड़ी सी गाड़ी में जा रहे है. बादल भी फटाफट उनका पीछा करने के लीये उनके पीछे हो लीया.

    फिर ज़ेबा और वह शख्स गाड़ी में बैठकर नीकले और उनकी गाड़ी आगे आगे बढ़ती हुई एक बड़े से मौल में जाकर रुकी. उनके पीछे पीछे बादल भी उस मौल के अंदर जाकर पहुँचा. वहाँ जाकर बादल ने देखा के वह शख्स एक जगह पर बैठकर फोन पर किसी से बात करने में मशगुल था. तब बादल की नीगाहें ज़ेबा को ढूंढने लगी थी. उसकी खोज ख़त्म हुई एक जगह जहाँ ज़ेबा रोजमर्रा की चीजे लेने में व्यस्त थी. फिर क्या बादल ने भी एक टोकरी उठाई और वह सामान लेने के बहाने ज़ेबा के सामने जाकर रुका. अब ज़ेबा की नजर उसपर पड़ी तो वह भी खुश हो गयी. तभी बादल ने उसे हाय कहा और उसके करीब आने लगा. तभी ज़ेबा को क्या हुआ जाने उसने अपने होंटो पर ऊँगली रखकर बादल से चुप रहने का इशारा किया. फिर उसने पास ही में पड़े एक कागज़ में कुछ लीखा और वहाँ पर रख दिया, फिर उसने बादल को इशारा कर के उस कागज़ को उठाने को कहा. फिर बादल ने भी वैसा ही किया और वह कागज उठा लीया और छिपा लीया. फिर ज़ेबा उसके करीब से गुजर कर उससे फासला रखकर सामान बटोरने में लग गयी. फिर बादल ने वह कागज़ खोला और उसने पढ़ा. उसमें ज़ेबा ने लीखा था, " प्लीज आपने मुंह से कुछ भी मत
बोलो उसे सब पता चल जायेगा. आप इशारों में बात कर सकते हो, हमें जीतना समझ पायेगा हम उतना समझ जायेंगे और आपको भी समझा पायेंगे. अगर कुछ समझ नहीं पाए तो आपको फिर मेसेज में लीख कर भेज देंगे. लेकिन आप खुदा के लीये मुंह से मेरा नाम ना ले और कुछ भी ना कहे. 

    ज़ेबा का लीखा पैगाम पढ़ने के बाद बादल ने देखा तो ज़ेबा और वह शख्स काउंटर पर पैसे देते हुए दिखाई दिये. बादल ने भी जल्दी में जो हाथ में मीला वह लीया और वह भी काउंटर की ओर भागा. उसने भी पैसे दिये और वह ज़ेबा को ढूंढते हये मौल के बाहर नीकला, उसने देखा के ज़ेबा और वह शख्स उनकी गाड़ी के करीब खड़े है और एक बंदा उनके गाड़ी में वह सामान रख रहा है. अब बादल भी अपने गाड़ी की ओर जाने के लीये नीकल पड़ा. वह फिर अपनी गाड़ी के करीब जाकर रुका, उसने जो सामान लीया था वह उसने अपने गाड़ी पर रखा और वह गाड़ी पर बैठ गया. गाड़ी पर बैठकर वह ज़ेबा की गाड़ी नीकलने का इंतजार करने लगा था. अभी दो मीनट हो गये थे और ज़ेबा की गाड़ी नहीं नीकली थी. तो फिर उसने यूँ ही ज़ेबा की गाड़ी की ओर देखा. तबी उसने देखा के वह शख्स उसकी ही और देख रहा है. तब बादल ने भी अनजान बनकर आपनी गाड़ी को किक मारना सुरु किया और उसे ऐसा दिखाने की कोशीश करने लगा के उसकी गाड़ी सुरु नहीं हो रही है. वह चाबी बीना लगाये गाड़ी को किक मारता रहा. तभी वह शख्स उसके पास आया और बोला, " भाई साहाब, पहले गाड़ी को चाबी तो लगाइये " फिर बादल ने उस शख्स के तरफ देखा और अपनी बेवकूफी पर हंसने का नाटक करने लगा. फिर उसने गाड़ी को चाबी लगाई और उसकी गाड़ी चालु कर दी. फिर वहाँ से नीकलने की कोशीश करते हुये कहा, " शुक्रिया जनाब " ऐसा कहते हुये बादल आखीर वहाँ से नीकल पड़ा. अब वह आगे नीकला लेकिन उसका सारा ध्यान पीछे उस शख्स और ज़ेबा की बड़ी सी गाड़ी की और था, जो अभी तक उसके पीछे नहीं नीकली थी.

        शेष अगले भाग में....