तभी बादल ने जाकर जेबा का रास्ता रोक लीया. वह बीच रास्ते में खड़े होकर बोला, " तो कहाँ से आ रही हो आप, मैं पूरी रात आपके आने का इंतजार करता रहा." तब ज़ेबा बोली, " क्यों किस लीये" तब बादल बोला, " ज़ेबा सिर्फ आपके लीये " फिर ज़ेबा बादल की आँखों में देखती रही और फिर बोली, " नहीं अब यह हो नहीं सकता, मै किसी और की हो गई हूँ: ज़ेबा जब यह बोल रही थी तब उसकी आँखे उसकी जुबान का साथ नहीं दे पा रही थी. ज़ेबा मुंह से कुछ बोल रही थी और उसकी ऑँखे कुछ और बयां कर रही थी. तभी बादल ने ज़ेबा का हाथ पकड़ लीया ओर वह उसके साथ ज़ेबा के कमरे में चलने की जिद करने लगा.
নभी जेबा ने कहा, " नहीं बादल, आप भीतर नहीं आ सकते." फिर बादल बोला, " क्यों, क्यों नहीं आ सकता." तब ज़ेबा की आँखों में आंसू आ गये और वह रोते हुए बोली, " नहीं बादल आप अंदर नहीं आ सकते और आपने अगर ऐसा किया तो उसे सब पता चल जाएगा." फिर बादल बोला, " ऐसे कैसे पता चल जायेगा, कौन बतायेगा, तुम." तब ज़ेबा बोली, " मै किसी भी हालात में नहीं बता सकती हूँ और आपको मुसीबत में नही डाल सकती हूँ." फिर बादल बोला, " तो फिर कौन बतायेगा बोलो." तब ज़ेबा बोली, " बादल आप क्यों नहीं समझ रहे हो, अंदर हर जगह कैमरा लगे है और कोई भी शख्स अंदर कमरे में दाखल हो गया तो उसे सबकुछ अभी के अभी पता चल जायेगा. "
फिर बादल बोला, " ठीक है पता चल जायेगा तो जायेगा लेकिन मै अंदर आकर आपसे बात कीये बगैर नहीं जाऊँगा." फिर ज़ेबा बोली, मैं आपसे वादा करती हूँ के जैसे ही मुझे मौका मीलेगा मै आपसे बात करुंगी." फिर बादल बोला, " कब होगी अपनी बात, या फिर उस रात की तरह मुझे तनहा छोड़कर चली जाओगी." इस बार बादल की ऑँखों में वह दर्द साफ़ छलक रहा था. तब ज़ेबा बोली, " ऐसा नहीं होगा, खुदा की कसम हमारी बात होगी और जल्द होगी." इस बार ज़ेबा की आवाज और उसकी औँखे सच बोल रही थी. बादल ने वह सच्चाई उन आँखों में पढली थी और उसने अपनी जीद छोड़कर अपने कमरे के तरफ लौटना बेहतर समझा. वापस लौटते वक्त उन दोनों ही की नजरें एक दुसरे से नहीं हट रही थी. जो ज़ेबा पहले बादल की तरफ देखने से भी कतराती थी आज वह उसे एकटक देख रही थी मानो वह कह रही थी की अभी न जाओ छोड़कर दिल अभी भरा नहीं. तभी एक गाड़ी फिर से वहाँ आकर रुकी तब ज़ेबा ने जल्दी में ताला खोला और वह कमरे के अंदर चली गयी. बादल ने खिड़की से झांककर देखा तो वह शख्स उस गाड़ी से उतरा था. उसने चारों तरफ मुडकर देखा और फिर वह अपने फ्लैट की ओर जाने लगा. वह शख्स अपने फोन पर किसी से बात करते हुये आगे आगे बढ़ रहा था के तभी वह एक जगह रुका और पहले उसने बादल के फ्लैट की तरफ देखा और बाद में अपने खुद के फ्लैट की तरफ देखा. कुछ पल वह यूँ ही देखता रहा और फिर फोन पर बात करते हुए सीढ़ियाँ चढ़ते हुए अपने फ्लैट में चला गया. बादल उस शख्स को और उसकी हर एक हरकत को बड़ी ही बारीकी देख रहा था. बाद में वह शख्स कमरे के अंदर गया और उसके बाद ज़ेबा के साथ किसी बात को लेकर बहस करने लगा. उसके बाद उसने ज़ेबा के ऊपर हात भी उठाया. ज़ेबा के कमरे के खिड़की का परदा जरा सा हट गया था इसलीये जो कुछ कमरे के अंदर हो रहा था वह बादल को सब दिखाई दे रहा था. जब उस शख्स ने ज़ेबा पर हात उठाया था तब बादल का खून खोल गया था ओर वह गुस्से में बाहर जाने के लीये नीकला था की उसे अहसास हुआ की यह गलत है. अगर वह वहाँ चला गया तो ज़ेबा के ऊपर और भी ज्यादा मुसीबत आ सकती है. इसलीये वह गुस्से को पी गया और वहीं अपने कमरे में बैठा वह सब चुपचाप देखता रहा. फिर थोड़ी देर में वह शख्स ज़ेबा के कमरे से बाहर चला गया और कमरे की बत्ती बुझ गयी. कमरे में अब सब तरफ अंधेरा होने के कारण बादल को कुछ दिख नहीं रहा था. इसलिए वह भी बत्ती बुझाकर अब सोने लगा के तभी उसे बाहर उजाला दिखने लगा. उसने देखा तो सवेरा होनेवाला था इसलीये अब सोने का कोई मतलब नहीं
रहा था. तो वह बीस्तर से उठा और नहाने चला गया. फिर तैयार होकर रोज की तरह वह ज़ेबा के प्लेट की तरफ देखने लगा.
कुछ देर देखने के बाद बादल ने अपना ल्यापटॉप नीकाला और कुछ काम करने लगा था. वह अपने काम में व्यस्त था और एक नजर ज़ेबा के कमरे की तरफ देखता रहा. तभी उसे जेबा बालकनी में खड़ी हुई दिखी. बादल ने सारे काम काज छोड़ दिए और वह बस ज़ेबा को एकटक देखने लगा. ज़ेबा को यूँ रूबरू देखकर बादल बहोत खुश हुए जा रहा था के तभी उसने देखा के ज़ेबा के चेहरे पर कुछ लगा है. उसने गौर से देखा तो ज़ेबा के होठों के ऊूपर लाल नीशान दिखाई दिया था. फिर अचानक बादल को याद आया की उस शख्स ने रात को ज़ेबा के ऊपर हात उठाया था, तो शायद उस दौरान ज़ेबा के होठों के ऊपर यह घाव लग गया होगा. बादल के चेहरे और दिल की खुशी अब कहीं गायब हो चुकी थी और उसकी जगह अब गुस्से ने ले ली थी. वह गुस्से से लाल होने लगा था. तभी ज़ेबा की नजर बादल पर पड़ी तो वह उसे देखकर मुस्कृराने लगी साथ साथ में यकायक उसके औखों से आंसू छलक आये. ज़ेबा का मुस्कुराता चेहरा देखकर बादल का गुस्सा शांत हो रहा था, इसके पहले ज़ेबा नजरे मिलने पर नजरे झुका लेती थी वह आज खुद होकर बादल की तरफ देखकर मुस्कूरा रही थी. तभी ज़ेबा के चेहरे की मुस्कराहट अचानक गायब हो गयी और उसके चहरे पर खौफ नजर आने लगा. बादल को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. तब तक ज़ेबा झट से कमरे के अंदर चली गई. फिर बादल ने देखा की वह शख्स सीढ़ियां उतरकरकहीं जा रहा है. फिर बादल ने अपना जरुरी सामान समेटा और वह उस शख्स के पीछे जाने के लीये नीकला, फिर यकायक वह शख्स पीछे मुड़ा और अपने फ्लैट की ओर वापस जाने लगा.