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"कहते हैं रात की ख़ामोशी सबसे गहरी तब होती है, जब किसी की चीख उस ख़ामोशी को चीरने लगे... और वो चीख... किसी इंसान की नहीं, किसी मरे हुए की हो..."
उत्तर भारत के एक छोटे, सुनसान गांव 'बेलाडा' में एक पुरानी, खंडहर हवेली थी — 'काली हवेली'। लोग कहते थे कि वहाँ अजीब सी बदबू आती थी, जैसे सड़ी हुई लाशें वहाँ अब भी साँस ले रही हों। शाम ढलते ही हवेली की तरफ कोई न जाता।
एक अंधेरी रात, जब पूरा गांव तेज़ आंधी और बिजली की गड़गड़ाहट में डूबा था, तभी गांव की सीमा के पास एक बच्चा गायब हो गया — सात साल का रोहित। उसकी माँ की चीखों से सारा गांव गूंज उठा। ढूंढने पर सिर्फ़ उसका फटा हुआ खिलौना और ज़मीन पर खून के धब्बे मिले।
गांव के बुज़ुर्ग पंडित विष्णुशरण ने धीमी आवाज़ में कहा — "वो लौट आया है... सामरी..."
कहानी सामने आई — सामरी, एक तांत्रिक था जिसने अमरता पाने के लिए तंत्र साधना की थी। उसे बच्चों के खून से तंत्र सिद्धि करनी थी। एक दिन गांववालों ने उसके काले कर्मों का भंडाफोड़ किया और उसे ज़िंदा जला दिया। लेकिन जब उसकी लाश जली, उसका सर धड़ से अलग हो गया... और उसने कसम खाई कि वो लौटेगा।
अब, वर्षों बाद, उसी सरकटे सामरी की वापसी हो गई थी।
रात होते ही अजीब घटनाएँ होने लगीं। लोगों को दीवारों से आवाज़ें, छतों पर दौड़ते पैरों की आवाज, और कभी-कभी अपने ही घरों में अपनी परछाई अलग से घूमती दिखाई देती थी।
गांव के 5 बच्चे एक-एक करके गायब होने लगे। हर बार, उनकी चीख़ हवेली की ओर जाती हवा में गुम हो जाती।
अर्जुन, गांव का एक पढ़ा-लिखा नौजवान, जो दिल्ली से रिसर्च के लिए आया था, इन घटनाओं में विज्ञान तलाश रहा था। लेकिन एक रात, उसे हवेली के पास एक अदृश्य बल ने ज़मीन पर गिरा दिया और उसके कानों में फुसफुसाया — "खून ताज़ा चाहिए... अब तू भी चलेगा..."
अर्जुन ने तय किया कि वो रात को हवेली जाएगा और सब जानकर रहेगा।
हवेली के अंदर सब कुछ उल्टा-पुल्टा था — घड़ियाँ उल्टा चल रही थीं, दीवारों से खून रिस रहा था, और हवेली के बीचों-बीच एक पुराना कुआँ, जहाँ से सड़ी हुई लाशों की बदबू आ रही थी।
अर्जुन ने वहां एक गुप्त तंत्र ग्रंथ पाया जिसमें लिखा था —
"सामरी तब तक मर नहीं सकता जब तक उसके सर और धड़ को अग्नि में मिलाया न जाए।"
लेकिन समस्या यह थी कि उसका सर कभी मिला ही नहीं था... क्योंकि वो आज भी चल रहा था... बिना धड़ के...
अचानक, अर्जुन के सामने एक बिना सिर का शरीर खड़ा हो गया। और उसकी पीठ पीछे, एक सर हवा में तैरता हुआ, मुस्करा रहा था।
अर्जुन को समझ नहीं आया कि वो जो देख रहा है, वो सच है या सिर्फ़ मानसिक भ्रम। हवेली के अंदर समय रुक चुका था — बाहर तो सुबह हो गई थी, लेकिन अंदर अब भी रात थी।
उसने देखा — हवेली की दीवारों पर उन सभी बच्चों के चेहरे उकेरे हुए थे, जो कभी गायब हुए थे। उनकी आँखें अब भी हिल रही थीं।
सामरी ने अर्जुन को मानसिक रूप से तोड़ना शुरू कर दिया — उसे अपनी मां की आवाज़ सुनाई दी, जो दरअसल मर चुकी थी। उसे ऐसा महसूस होने लगा कि वो भी मर चुका है... या शायद कभी जीवित था ही नहीं?
अर्जुन ने आख़िरी प्रयास किया — तंत्र ग्रंथ के अनुसार, उसने सामरी के धड़ और सर को अग्निकुंड में डालने की कोशिश की।
जैसे ही उसने दोनों को पास लाया, हवेली कांपने लगी, दीवारों से चिल्लाहटें गूंजने लगीं, और अचानक सब अंधेरा हो गया।
जब अर्जुन को होश आया, वो अपने ही गांव में था। दिन था, सब सामान्य लग रहा था।
लेकिन फिर उसने देखा — हर आदमी के गले पर एक कटा हुआ निशान था... जैसे सिर कभी किसी और के थे...
उसने आईने में देखा — उसके अपने चेहरे की जगह सामरी का चेहरा था।
"सामरी मरा नहीं... वो अब तेरे अंदर है..."
कहानी का अंत? नहीं... ये तो अभी शुरुआत है।