चोरी तो हो चुकी थी,कोई एक लाख का सोने का हार ऐसे ही कहीं रख के भूल नहीं जाता,और चोरी हुई भी तो मायके में। उर्मिला बहुत परेशान थी,ससुराल से मिला सोने का हार शादी के दो साल बाद ही गायब हो गया था। कहीं ससुराल वाले उसे ही दोषी न बना दें।वो तो इल्जाम एक बार बर्दाश्त कर भी लेगी मगर बाबूजी बेटी की बदनामी शायद ही सह पाएं ।भले ही बाबूजी की आर्थिक स्थिति अभी उतनी ठीक नहीं थी लेकिन थे तो बलरामपुर गाँव के जमींदार। नाम भले ही गोपाल सिंह था लेकिन पूरा क्षेत्र उन्हें बाबूजी के नाम से जानता था।अभी भी गाँव में उनकी बहुत इज्ज़त थी।माँ कौशल्या का तो रो रो कर बुरा हाल हो रहा था।वो आसपास पूजे जाने वाले सभी देवी-देवताओं को नारियल का लालच दे चुकी थी।मगर एक देवी अभी बाकि थी कांता देवी।चालीस वर्ष की कांता बड़े मन्नतों के बाद मिले एक साल के बेटे गुड्डू एवं पति राधेश्याम के साथ बाबूजी के घर के पास ही एक मिट्टी के घर में रहती थी जो बाबूजी ने ही उन्हें दिया था। राधेश्याम गाँव की चौकीदारी करता और कांता गाँव वालों के घरेलू काम करके कुछ आमदनी कर लेती इस तरह दोनों गुड्डू के लिये अच्छे सपने देखते हुए अपनी जिंदगी ईमानदारी से गुजार रहे थे मगर आज उनकी ईमानदारी काली पड़ने वाली थी। भरी पंचायत में कांता और उसके परिवार को अपराधी की तरह खड़ा किया गया था।एक तरफ बैठे थे पंच परमेश्वर जिनमें स्वयं बाबूजी भी सम्मिलित थे,एक तरफ बाकि गाँव वाले और बीच में हाथ जोड़े खड़ा था कांता का परिवार। गाँव वालों के साथ बैठी कौशल्या आज का वाकिया बता रही थी कि कैसे सुबह कांता घर में झाड़ू लगा रही थी और बेटी उर्मिला ससुराल किशनपुर वापस जाने की तैयारी कर रही थी।सोने का हार निकालने के लिये अलमारी खोली ही थी कि बेटे राजू के रोने की आवाज सुन कर बिना अलमारी बंद किये गली की ओर दौड़ी, राजू बीच गली में खड़ा जोर जोर से रो रहा था,उसके हाथ से खून बह रहा था और पास ही खून लगा एक ब्लेड गिरा हुआ था।उर्मिला चिल्लाई-" माँ..बाबूजी..जल्दी आओ..मेरे बेटे के हाथ से खून बह रहा है। हे भगवान!थोड़ा सा ना देखो तो ये लड़का कोई न कोई कांड कर देता है।"बाबूजी और कौशल्या दौड़कर घर से बाहर आ गये और बच्चे के हाथ से बहते खून को देखकर घबरा गये।आवाज सुनकर कांता भी बाहर आ गई थी।फिर बाबूजी और उर्मिला राजू को लेकर डाक्टर साहब के पास चले गये,और कौशल्या कांता को ब्लेड और उस जगह को दिखा कर घटनाक्रम बताने लगी।थोड़ी देर कौशल्या से बातें करने के बाद कांता अपने घर चली गई और कौशल्या घर के दरवाजे के पास बैठी राह तकने लगी। एक घंटे बाद स्थिति सामान्य हो चुकी थी। बाबूजी राजू को अपनी मोटर सायकल के आगे बिठाए उर्मिला को आवाज लगा रहे थे- चलो बेटा, तुमको ससुराल छोड़ के मुझे वापस भी आना है।बस बाबूजी, अपना हार बस पहन लूँ - उर्मिला की आवाज आई,मगर दस मिनट तक उर्मिला बाहर नहीं आई तो बाबूजी राजू को गोद में उठाये अन्दर आ गये "क्या कर रही हो बेटा ऐसे भी बहुत देर हो चुकी है" बाबूजी शिकायती लहजे में बोले मगर अन्दर की वस्तु स्थिति कुछ अलग ही थी उर्मिला और कौशल्या अलमारी का कोना कोना छान चुके थे मगर सोने का हार मिल ही नहीं रहा था।घटना क्रम सुनाने के बाद कौशल्या बोली - "पंच परमेश्वर आप ही बतायें चोरी कांता के अलावा और कौन कर सकता है ,इस बीच कांता के अलावा कोई हमारे घर आया भी नहीं है। आप न्याय कर के मेरी बेटी का हार दिला दीजिये वरना हम उसके ससुराल वालों को क्या मुँह दिखाएंगे। इतना कहकर कौशल्या रोने लगी और उर्मिला अपनी माँ को चुप कराने लगी। पंच परमेश्वर के रूप में बैठे बाबूजी के माथे पर भी चिंता की लकीरें स्पष्ट दिखाई दे रहीं थीं। अब बाबूजी का दुःख गाँव वालों का दुःख था, पंचों ने बिना कांता का पक्ष सुने उसे उसे चोर करार देते हुए सोने का हार तुरंत वापस करने का आदेश दिया। बिलख पड़ी कांता, गुड्डू के सिर पर हाथ रख कर कसम खाने लगी- मुझे अपने बच्चे की कसम है अगर मैंने चोरी की हो तो, मैं तो बस झाड़ू लगाने गई थी बाबूजी के घर में वहाँ राजू के साथ दुर्घटना होने के बाद में वहाँ से लौट आई थी ना मैनें उनका हार देखा और ना ही लिया.. तो मैं कहाँ से लाकर दूँ। पंचों की बातें और कांता का विलाप सुन कर राधेश्याम स्तब्ध था। भरी हुई आँखों के साथ राधेश्याम बोला-मालिक मैं पिछले बीस वर्षों से इस गाँव की चौकीदारी कर रहा हूँ और इतने ही समय से मेरी कांता भी मेरे साथ ही है। मैंने आज तक कभी कांता को लालच करते नहीं देखा मेरी कांता चोर नहीं हो सकती मालिक जरूर वह हार कहीं ना कहीं रह गया होगा जहाँ पर बाबूजी के परिवार की नजर नहीं गई होगी।एक बार फिर से ढूंढ के देखिए मालिक हार जरूर मिल जायेगा ! इतका कहकर राधेश्याम रोने लगा ।पंच गरजे - हार तो हम ढूंढेंगे जरूर मगर अब बाबूजी के घर में नहीं तुम्हारे घर में राधेश्याम। तुम्हारे ये मगरमच्छी आँसू तुम्हें आज बचा नहीं पायेंगे। चलो साथियो इसके घर की तलाशी लेते हैं, इतना कहकर पंच गण ग्रामीणों को साथ लेकर राधेश्याम के घर चले गये । राधेश्याम, कांता गुड्डू बाबूजी का परिवार औरकुछ ग्रामीण वहीं रह गये । कांता और राधेश्याम बाबूजी के पैरों में गिरकर अपनी बेगुनाही बयान करते रहे मगर बाबूजी ने उनकी ओर से नजरें फेर ली थीं। बीस मिनट बाद पंच गण पंचायत स्थल पर वापस आ चुके थे, कांता के उस एक कमरे के घर को पिछले कुछ मिनटों में उन्होंने पूरा उलट पुलट कर देख लिया था मगर नतीजा शून्य था। कुछ भी हाथ नहीं लगा था। पंचों ने फैसला सुनाया - कांता ही चोर है लेकिन हार उसने कहीं बाहर ही छुपा रखा है। अगर कल सुबह तक हार लाकर नहीं देगी तो उसके परिवार का दाना पानी इस गाँव में तो क्या आस पास के सभी गाँवों में बंद करवा दिया जायेगा। और उसे पुलिस के हवाले कर दिया जायेगा। कांता और राधेश्याम रोते बिलखते रहे और पंच गण, बाबूजी का परिवार और समस्त ग्रामीण एक-एक कर वहाँ से चले गये।अपने घर में कांता और राधेश्याम दुःखी बैठे थे, उनके आँसू सूख चुके थे।राधेश्याम बोल रहा था - कांता!मैंनें बीस साल इस गाँव की ईमानदारी से सेवा की है मगर आज यही गाँव मुझे चोर साबित करने पर तुला है।कांता दु:ख भरे स्वर में बोली- "अब ये लोग हमें चोर मान ही चुके हैं और हार हमारे पास है नहीं तो हम देंगें कहाँ से। कल सुबह ये हमें पुलिस के हवाले कर देंगे फिर भगवान जाने क्या होगा।" फिर दोनों ने आपस में कुछ बातें की और रोते रहे। रात के दो बज चुके थे बाबूजी के परिवार की आँखों से नींद गायब थी आज नहीं तो कल उर्मिला को ससुराल तो जाना ही था। अगर कल कांता हार नहीं लौटाती है तो उसे जेल में जितनी भी तकलीफ हो उससे ज्यादा तकलीफ तो उर्मिला को अपने ससुराल में होनी तय थी।सबेरा हुआ, बाबूजी ने दरवाजा खोला और एक नजर कांता के घर की ओर देखा । दरवाजे पर ताला पड़ा था, बाबूजी की धड़कनें तेज हो गयीं।कौशल्या रो रही थी- अब मेरी बेटी का क्या होगा ? चोर तो चोरी कर के भाग गये। सजा तो अब मेरी बेटी भोगेगी, ससुराल ना होगा नरक हो जायेगा। उर्मिला आँसू भरे आँखों के साथ तैयार हो चुकी थी ससुराल का नरक भोगने के लिये,हिम्मत भरे स्वर में बोली- बाबूजी अगर किस्मत में यही लिखा है तो यही सही आप चलिये मोटर सायकल निकालिए और मुझे मेरे ससुराल छोड़ दीजिए, मैं सह लूंगी बाबूजी अपने ऊपर लगे हर इल्जाम को मैं सह लूंगी।बाबूजी समझाते हुए बोले- "ऐसा क्यूँ सोचती है पगली तेरे ससुराल वाले शिक्षित लोग हैं। दामाद जी का व्यापार भी काफी अच्छा चल रहा है। मुझे नहीं लगता की एक सोने के हार के लिये वो तुझ पर कोई इल्जाम लगाएंगे। वो समझदार हैं परिस्थिति को जरूर समझेंगे। पहले नहा धो कर तैयार हो जा आराम से चलेंगे नाश्ता पानी कर के,जाते-जाते थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाते जाएंगे।"बाबूजी ने उर्मिला को सांत्वना तो दे दी थी मगर उनकी खुद की धड़कनें काबू में नहीं आ पा रहीं थीसुबह के ग्यारह बज रहे थे,थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाकर बाबूजी और उर्मिला राजू को लेकर किशनपुर पहुंच चुके थे। बाबूजी ने मोटर सायकल दामाद जी के किराने की दुकान के सामने रोकी दामाद राहुल ससुर जी को देखते ही दुकान से बाहर आ गये और पैर छूते हुये बोले-आइये बाबूजी, हम कल से आपका इंतजार कर रहे हैं अंदर चलिए। उर्मिला मोटर सायकल से उतर कर राहुल के पैर छूकर अन्दर चली गयी और राहुल राजू को गोद में लेकर बाबूजी के साथ बैठक में बतियाने लगा।आप तो कल आने वाले थे बाबूजी क्या हुआ जो नहीं आए । राहुल ने प्यार से पूछा था। राहुल का इतना अच्छा व्यवहार देख बाबूजी को हिम्मत आई और सारी सच्चाई उन्होंने एक ही साँस में बयान कर दी।सारी बातें सुनकर राहुल बोल बोला- "देखिये बाबूजी पैसों की जरूरत सभी को पड़ती है अगर आप को भी पड़ गयी और आपने हार कहीं गिरवी रख दिया तो कौन सी बड़ी बात हो गयी। जब पैसे हो जायेंगे तो छुड़वा कर ले आइयेगा।" बाबूजी को काटो तो खून नहीं, अपने ऊपर हुये इस आकस्मिक हमले की बाबूजी को कोई आशंका नहीं थी। बाबूजी के मुँह से बड़ी मुश्किल से निकला - नहीं बेटा, हार चोरी हो गया। मैं कहीं न कहीं से व्यवस्था कर के एक नया हार ले आऊँगा।आप चिंता ना करें आपका नुकसान नहीं होने दूँगा ।तभी उर्मिला तेज कदमों से बैठक में आ गई और पीछे पीछे ही राहुल के माता पिता माला एवं जयदेव भी बैठक में पहुँच चुके थे। बाबूजी समधी जी को देखते ही हाथ जोड़ कर खड़े हो गये। मगर समधन माला ने आग उगलना शुरु किया-" समधी जी, बेटी को झूठ बोलना तो कम से कम ठीक से सीखा देते, बोल रही है नौकरानी हार चुरा ले गयी। बताओ भला तुम नौकरों की हैसियत वाले कब से नौकरानी रखने लग गये।" बाबूजी का चेहरा शर्म से लाल हो गया था और उर्मिला राहुल की ओर इस उम्मीद से देख रही थी कि शायद राहुल स्थिति को संभाल लेंगे। मगर राहुल की जुबान भी नहीं खुल पा रही थी माँ बाप के सामने।तभी ससुर जयदेव ने भी गोले दाग दिये- नहीं माला ये लोग नौकर नहीं राजा हैं, सोने के हार तो ये लोग अलमारी में नहीं खूंटी में टांग के रखते हैं। एक हजार की औकात नहीं है और एक लाख का हार गटक गये बेशरम चोर कहीं के।उर्मिला की दुनिया उजड़ चुकी थी जो तीर स्वयं सहने के लिये हिम्मत कर के आई थी वही तीर उसके बाबूजी का सीना छलनी कर रहे थे। बाबूजी घुटने पे आ गये थे और हाथ जोड़कर रोते हुये सफाई पेश कर रहे थे मगर शब्दों के तीर कम नहीं हो रहे थे। पिता का दुःख सह न पाई उर्मिला और चीख पड़ी- ये क्या तरीका है आप लोगों का मेरे बाबूजी से बात करने का?मैं अपनी बेइज्जती बर्दाश्त कर सकती हूँ लेकिन अपने बाबूजी की ओर उठी एक ऊँगली बर्दाश्त नहीं है मुझे।जयदेव बड़े प्यार से बोले-अगर बर्दाश्त नहीं है बहुरानी तो सोने का हार वापस ले आओ वरना अपनी इज्जत की पोटली बनाओ और निकलो यहाँ से। ये पोटली खुलेगी सीधा हमारी पंचायत में।जब भी पंचायत का बुलावा हो आ जाना पोटली उठा के। इस तरह दोनों बाप बेटी को बच्चे के साथ बेइज्जत कर के घर से निकाल दिया गया।राहुल नम आँखों से राजू को देखे जा रहा था जो मोटर सायकल में पीछे बैठी उर्मिला की गोद में था।बाबूजी की आँखों से आँसू निकल कर उर्मिला के चेहरे में महसूस हो रहे थे और उर्मिला के आँसू राजू के बालों में गिर रहे थे।और एक नये सफर की शुरुआत हो रही थी। बलराम पुर से एक सौ सत्तर किलोमीटर दूर राजगढ नामक शहर के शहरी बसाहट से दस किलोमीटर दूर सावनी नदी के किनारे एक पोल्ट्री फार्म में कांता और राधेश्याम मासिक पगार में काम कर रहे थे। काम था साफ सफाई ओर मुर्गों को दाना डालना। पोल्टी फार्म के पास ही एक कमरा बना हुआ था जहाँ दोनो अपने बेटे गुड्डू के साथ रहते थे। अभी एक ही हफ्ता हुआ था काम करते और राधेश्याम पोल्ट्री फार्म के मालिक राणा से कुछ रुपये मांग रहा था - "मालिक पाँच सौ रुपये की जरुरत आन पड़ी है। मेरे पगार में से काट लीजियेगा।" तभी एक आवाज आई क्यों सोने के हार के पैसे खतम हो गये क्या? "पोल्ट्री फार्म के बाहर ही हवलदार साहब खड़े थे दो सिपाहीयों के साथ और पास ही खड़ी थी उनकी जीप।फिर शुरु हुई पुलिस की कार्यवाही मगर लाख जतन करने के बाद भी चोरी का आरोप सिद्ध नहीं हो पाया और कांता और राधेश्याम को बरी कर दिया गया। मगर पोल्ट्री फार्म के मालिक राणा की नजर में दोनों दोषी हो चुके थे, गाँव छोड़ के भाग के जो आये थे और राणा था बड़ा ही मतलबी।अब वह दोनों की मजबूरी का फायदा उठाकर कम पैसों में काम करवाता और समय-समय पर ताने भी कसता । मरते क्या न करते, और कहीं उनके पास दूसरा कोई आश्रय भी नहीं था। वहीं काम करते और वहीं रहते। इसी तरह तानों के घूंट पी कर जिंदगी गुजरने लगी और गुड्डू बड़ा होने लगा। गुड्डू अब दस साल का हो चुका था। कांता का रंग काला पड़ चुका था और राधेश्याम के बाल सफेद हो चुके थे और एक अंतर और आ चुका थाराधेश्याम की जिंदगी में ,अपमान के घूँटों की जगह शराब के घूँटों ने ले ली थी। जिम्मेदार राधेश्याम अब शराबी राधेश्याम में बदल चुका था। रोज शाम को पोल्ट्री फार्म का काम खतम करने के बाद शराब के ठेके में जाता और लड़खड़ाते कदमों से रात आठ बजे वापस घर पहुंचता।कांता चार बातें सुनाती जरुर मगर वह बुरा नहीं मानता, कभी हँसता कभी रोता, कभी खाना खा लेता तो कभी भूखा सो जाता मगर लड़खड़ाते मुँह से हमेशा एक ही बात निकलती-"मेरी कांता... चोर नहीं है"। रात के आठ बजे थे, दस साल का गुड्डू दर्द से तड़प रहा था,उसके हर अंग में दर्द हो रहा था आँखों का रंग पीला पड़ रहा था। माँ कांता लाचारी से तेल मालिश करते हुये बोल रही थी-"बस थोड़ा सा सह ले बेटा, पापा आते ही होंगे आते ही तुझे डॉक्टर के पास ले जाएंगे ।" गुड्डू रोते हुये बोला " नहीं हो रहा है माँ बहुत दर्द हो रहा है सब तरफ, तुम ही ले चलो न माँ "। रो पड़ी कांता बोली-" बेटा मैं कभी यहाँ से बाहर निकली ही नहीं। मुझे नहीं पता डाक्टर साहब कहाँ रहते हैं, बस बेटा, पापा आते ही होंगे। " तभी दरवाजा खुला और राधेश्याम लड़खड़ाते कदमों से अंदर दाखिल होते ही जमीन पे गिर गया। और लड़खड़ाती जुबान में बोलने लगा - "कांता क्या हो गया क्यों रोना धोना लगा है दोनों का । कांता राधेश्याम को झकझोरते हुए बोली-" ए जी !हमारा गुड्डू दर्द से तड़प रहा है चलो इसे लेकर डॉक्टर के पास चलते हैं बहुत तकलीफ में है मेरा बच्चा। जल्दी उठिये जल्दी चलिये ना ।" राधेश्याम उठने की कोशिश करते हुये बोल रहा था - अरे कुछ नहीं होगा हमारे गुड्डू को अभी डॉक्टर के पास ले जाऊँगा पूरा ठीक हो जाएगा।" मगर राधेश्याम उठ कर बैठ भी नहीं पा रहा था। एक तरफ बच्चा दर्द से तड़प रहा था दूसरी ओर पति दारु के नशे में धुत्त था और कांता के बूते कुछ हो नहीं रहा था सिवाय मालिश करने और रोने के। राधेश्याम बोल रहा था- बस बेटा थोड़ी देर रुक जा मेरा नशा थोड़ा कम होने दे मैं तुझे ले चलूंगा, ठीक हो जायेगा तू । आधे घंटे तक राधेश्याम इसी तरह बड़बड़ाता रहा,कांता मालिश करते हुए रोती रही और गुड्डू दर्द से चीखता रहा अचानक गुड्डू की चीखे बंद हो गयीं और शरीर शांत हो गया। उसकी साँसे शरीर का साथ छोड़ चुकी थी कांता उसे सीने से लगाकर दहाड़ें मार मार कर रोने लगी और जमीन पे पड़ा राधेश्याम बेटे की लाश तक भी नहीं पहुंच पा रहा था बस लोट लोट के रोये जा रहा था।
सुबह के सात बजे थे घर से थोड़ी दूर राणा के बताए हुए जमीन पर राधेश्याम एक बड़ा सा गड्ढा खोद रहा था और कांता पास ही में बेटे की लाश के पास बैठी उसके सिर पे हाथ फेर रही थी मगर दोनों में समानता यह थी कि दोनों की आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे। गड्ढा खुद चुका था दोनों ने गुड्डू के मृत शरीर को उठाकर गड्ढे में रखा और ऊपर से मिट्टी डालने लगे, जिस बच्चे के लिये उन्होंने एक आरामदायक जिंदगी के सपने देखे थे आज उसी बच्चे का चेहरा आखिरी बार देख रहे थे। धीरे धीरे गड्ढा भरने लगा और गुड्डू उनकी यादों में ही रह गया।" गुड्डू की मौत के लिए खुद को दोषी मानते हुए राधेश्याम पागल सा हो गया। पोल्ट्री फार्म में अब सिर्फ कांता ही काम कर रही थी ,राधेश्याम पागल होकर बस घूमता रहता।कभी घर आता तो कभी आता भी नहीं।
इस तरह पन्द्रह साल गुजर गए ,एक दिन पता चला कि राधेश्याम सावनी नदी में बह गया, दो चार लोगों ने बचाने की कोशिश की मगर बचा नहीं पाये। कांता उस दिन आखिरी बार रोई। अब वह पोल्ट्री फार्म में अकेले काम कर अपनी मौत का इंतजार करने लगी मगर भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था। कांता की अंधेरी जिंदगी में एक नई किरण आने वाली थी। रात के करीब साढे नौ बजे कड़ाके की ठंड में अपने घर के बाहर ठिठुरती पैंसठ साल की कांता कुछ लकड़ियों का एक गट्ठा बना रही थी कि पीछे से आती तेज रोशनी से नहा उठी। कांता अपनी आखें बंद किये वहीं खड़ी रही और तंबाकू के धुएँ से महकते दो युवा अपनी बाइक से शोर मचाते हुए गुजर गये।कांता बड़बड़ाने लगी- इन मुओं को रात को भी चैन नहीं है, सारी रात अपनी फटफटी गरजाते घूमते रहते हैं नासपिटे, भगवान करे इनकी फटफटी खराब हो जाये। हम गरीब रात को सो तो पायें।शायद भगवान ने कांता की सुन ली थी वही दोनों लड़के अपनी बाइक को ढुलाते हुए कांता के घर की ओर आ रहे थे और कांता अपनी ही धुन में बड़बड़ाते हुए लकड़ी के गट्ठे को घसीटते हुए अपने घर के बरामदे पर चढ़ा रही थी।दोनों लड़के कांता के पास पहुँच चुके थे एक लड़का दोनों हाथों से हैण्डल पकड़कर बाइक ढुला रहा था और दूसरा लड़का बायें हाथ से सिगरेट के कश लेता हुआ दायें हाथ से बाइक को धक्का लगा रहा था।सिगरेट के कश लेता हुआ पच्चीस छब्बीस साल का लड़का बोला-आंटी लगता है हमारी बाइक खराब हो गयी है। और अभी रात के वक्त में मिस्त्रि भी नहीं मिल पायेगा इसलिए ये बाइक आपके घर छोड़ के जा रहे हैं। सुबह मिस्त्रि लेकर आयेंगे और गाड़ी ले जायेंगे। कांता बोली-"ना बाबा मैं तो तुम्हारे फटफटी की जिम्मेदारी नहीं ले सकती। मैं अकेली जान घर के अंदर सो रही होऊँगी और कोई इसे चुराके ले गया तो ।मुझसे ना हो पायेगी ये चौकीदारी।" आगे वाला लड़का गाडी को स्टैंड लगाकर दूसरे लड़के से सिगरेट लेता हुआ बोला -"आंटी ये बुलेट है इसे हम दो लोग बड़ी मुश्किल से ढुलाते आये हैं तो एक अकेला चोर कैसे ले कर जायेगा। आप चिंता मत कीजिये इसे कोई नहीं लो जायेगा। आप बेफिकर अंदर सो जाइये।""ना ना ना ना," कांता जोर से बोली "तुम्हारा क्या है अभी ऐसे बोल के चले जाओगे और कोई चुरा के ले गया फटफटी तो बदनामी मेरी ही होगी।" अरे कुछ नहीं होगा आंटी कहते हुए बाइक वहीं छोड़ सिगरेट के कश लगाते दोनों लड़के वहाँ से चलते बने और कांता चिल्लाती रही - कपूतो,नशा करके अपने माँ बाप का नाम तो बदनाम कर चुके हो अब मुझ गरीब को बदनाम करने के लिये इसे यहाँ छोड़कर जा रहे हो। भगवान बेऔलाद रखे मगर किसी को तुम्हारे जैसे कपूत ना दे।बड़बड़ाते हुए कांता लकड़ी का गट्ठा घसीटते हुए घर के अंदर ले गयी और जोर से दरवाजा बंद कर दिया। सुबह कांता ने दरवाजा खोला मोटर सायकल खड़ी थी।उसने चैन की साँस ली और झाड़ू लगाने लगी,तभी एक मोटर सायकल में तीन लड़के आते दिखे।लड़कों ने कांता के घर के पास गाड़ी रोकी और उतर कर बुलेट की ओर बढ़े।कांता ने उन्हें करीब से देखा तो दो लड़के कल वाले थे,और एक लड़का मिस्त्री था।मिस्त्री ने गाड़ी रिपेयर किया और स्टार्ट कर के बोला ले भाई राज तेरी बुलेट तैयार हो गई।पच्चीस छब्बीस साल का वह लड़का राज था और उसके साथ था बाइस साल का चिंटू।राज ने मिस्त्री को सौ-सौ के चार नोट दिये और मिस्त्री अपनी बाइक लेकर चलता बना।अब बचे राज और चिंटू वहीं बरामदे में बैठ कर सिगरेट पीते हुए बातें करने लगे। कांता पोल्ट्री फार्म जाने के लिए निकलने लगी तभी राज बोला-"कहाँ जा रही हैं आंटी? आप कहें तो बाइक में छोड़ दूँ।कांता बोली-"कोई जरूरत नहीं है तुम जैसे कपूत के मदद की।" राज हँस दिया और कांता दरवाजे में ताला लगाकर चली गई। इसके बाद रोज राज और चिंटू आते कांता के घर के बरामदे में बैठकर सिगरेट पीते ,कांता के ताने सुनते मगर बुरा कभी न मानते। अगर किसी दिन नहीं आते तो कांता को एक खालीपन का एहसास होता मगर अगले दिन फिर आने पर तानों में कोई कमी ना करती। सुबह के सात बज रहे थे राज और चिंटू कांता के बरामदे में पहुँच चुके थे मगर अभी तक दरवाजा अंदर से ही बंद था। उन्होंने सोचा शायद अभी तक उठी नहीं होंगी आंटी।राज बोला-"ला भई चिंटू!आज खाली सिगरेट से ही काम चलाना पड़ेगा,ताने शायद नसीब में नहीं हैं।" मगर तभी अंदर से कांता के दर्द से कराहने की आवाज आने लगीं।दोनों दरवाजे की ओर बढ़े।राज दरवाजा पीटते हुए बोला-"आंटी!क्या हुआ?दरवाजा खोलिए,मगर अंदर से सिर्फ कराहने की आवाज आ रही थी।राज थोड़ा सा पीछे हटा और दरवाजे पर एक लात मारी अंदर वाली कुंडी टूट गई और राज अंदर घुसा चिंटू भी साथ ही था।कांता खटिया पे लेटी दर्द से कराह रही थी।राज माथे पर हाथ रखते हुये बोला-"क्या हुआ आंटी?"कांता के सिर में दर्द हो रहा था वह कुछ बोल नहीं पा रही थी न ही उसकी आंखें खुल रहीं थीं,उन्होंने इशारे से बताया।राज कांता के सिरहाने जमीन पर उकड़ूँ बैठकर सिर दबाते हुये बोला-"चिंटू!जा भाई जल्दी से डॉक्टर साहब को ले आ।"चिंटू ने बुलेट की चाबी ली और निकल गया। राज सिर दबाता रहा और कांता कराहती रही,थोड़ी देर बाद चिंटू डॉक्टर को लेकर आ गया।डॉक्टर ने कांता का चेकअप किया और कुछ दवाइयाँ दीं और कहा- "आप ठीक हो जाएंगी मगर दवाइयाँ लंबी चलेंगी और हाँ आराम जरूरी है।बाकि मैं आता रहूँगा।"इसके बाद राज ने डॉक्टर को कुछ पैसे दिये और चिंटू को डॉक्टर साहब को वापस छोड़ने भेज दिया।आधे घंटे बाद कांता का सिर दर्द ठीक हो चुका था।वह रो रो कर राज से माफी मांग रही थी -" बेटा मैं तुम्हें रोज ताने मारती रही जबकि तुमने मेरा कुछ बुरा भी नहीं किया था, फिर भी तुमने मेरी जान बचाई।मैं तुम्हारे इस एहसान का बदला कभी न चुका पाऊँगी बेटा ।" राज बोला - "एहसान कैसा आंटी? क्या एक बेटा अपनी माँ का ख्याल नहीं रख सकता। वैसे भी आंटी आपके ताने मेरी भलाई के लिये ही तो होते हैं जब आप मेरी भलाई सोच सकती हैं ,तो क्या मैं आपकी सेवा नहीं कर सकता।कांता बोली - "कुछ भी हो बेटा, तुम भगवान बन करआये हो आज मेरे लिये।मौत का डर नहीं है बेटा मगर जो दर्द मेरे सिर में हो रहा था वो मौत से भी दुखदाई था। मैं कळ ही पोल्ट्री फार्म मालिक से कुछ पैसे उधार लाकर तुम्हारे सारे पैसे चुका दूंगी। फिर काम कर के उसका भी कर्जा उतार दूंगी। राज बोला कैसी बातें करती हो आंटी बेटा भी बोल रही हो और पैसे चुकाने की भी बात कर रही हो। कोई जरूरत नहीं है आपको कहीं से उधार लाने की और हाँ डाक्टर साहब ने आपको आराम करने के लिये कहा है तो खबरदार कहीं काम करने गयी तो आज से आपकी सारी जरुरतों का खयाल आपका ये बेटा रखेगा।कांता की आँखों में आँसू भर आये उसे राज में अपना बेटा गुड्डू दिखाई देने लगा।अब रोज सुबह-शाम राज कांता के पास आता उस के खाने पीने दवा पानी का पूरा ख्याल रखता। कांता भी राज को अपने बेटे की तरह प्यार देती मगर कांता की खुशी शायद भगवान को मंजूर ना थी।पिछले चार दिनों से राज कांता के पास नहीं आ रहा था। कांता पहले से राज द्वारा दिये गये खाने के सामान से अपना पेट भर रही थी। जब भी किसी मोटर सायकल की आवाज आती तो कांता बाहर आकर देखती कि शायद राज आया है मगर राज को न देख उसका चेहरा उतर जाता। पाँचवें दिन सुबह कांता बरामदे में बैठी आते जाते लोगों को देख रही थी कि तभी उसे एक मोटर सायकल में किसी अजनबी व्यक्ति के साथ राज आता दिखाई दिया। मोटर सायकल आकर कांता के पास ही रुकी। पीछे सवार राज उतर कर कांता के पास पहुँचा और कांता राज से लिपट कर रोने लगी- " कहाँ चला गया था मेरे बच्चे?पिछले पांच दिन पता नहीं मैंनें कैसे काटे हैं? क्यूँ नहीं आ रहा था अपनी माँ के पास ?कांता का चेहरा अपनी हथेलियों में भर के राज बोला - "अब तो आ गया ना माँ "। पांच दिन की जुदाई ने दोनों को माँ बेटा बना दिया था। दोनों बरामदे में ही खड़े थोड़ी देर तक रोते रहे। राज बोला- "तुझे पता माँ तेरे बेटे ने नशा करना छोड़ दिया है। कांता की खुशी उसके चेहरे पे चमकने लगी,बोली- मुझे पता था मेरा बेटा मेरी बात जरूर मानेगा फिर कभी नशा नहीं करेगा मेरा गुड्डू कह कर कांता ने राज को गले लगाते हुए पूछा-मेरे बच्चे तू था कहाँ इतने दिन? राज ने थोड़ी दूरी बनाते हुए कहा - कुछ नहीं माँ बस ऐसे ही ।मगर उसका चेहरा उसका साथ नही दे रहा था। कांता बोली- " अपनी माँ से झूठ नहीं बोलते बेटा, जो भी हुआ है बता दे अपनी माँ को ।" राज एक गहरी साँस लेते हुए बोला-"चार दिन पहले मेरी बाइक से एक्सीडेंट हो गया मुझे तो कुछ नहीं हुआ मगर सामने वाला लड़का बुरी तरह से घायल हो गया और मेरी बाइक भी चलने लायक नहीं रही।" कांता राज के हाथों कंधों को छूकर देखने लगी कि कहीं चोट तो नहीं लगी है। राज बोला- "अरे मुझे कुछ भी नहीं हुआ है माँ, उस बेचारे की हालत खराब है, गरीब घर का लड़का है किसी की बाइक मांग कर लाया था बेचारा। मेरे नशा करने के कारण आज जिंदगी और मौत के बीच पड़ा हुआ है। उसके इलाज के लिये दो लाख रुपये चाहिये और... और इतने पैसे मेरे पास हैं नहीं।अगर उसे कुछ हो गया ना माँ तो मैं कभी खुद को माफ नहीं कर पाउँगा।" बोलते हुए राज रोने लगा। कांता उसे गले लगाकर सांत्वना देते हुए बोली-"हिम्मत रख बेटा, उसे कुछ नहीं होगा।"अपने साथ आये व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए राज बोला- "माँ। ये जो अंकल हैं ये अपने गाँव में एक किराने की दुकान चलाते हैं तो अक्सर शहर आते रहते हैं, इन्हें पिछले पाँच सालों से जानता हूँ।"मैं इन्हें अपने गाँव का घर दिखाने ले जा रहा था तो रास्ते में तुमसे मिलने आ गया। बस माँ अब निकलता हूँ वरना वापस आने में अंधेरा हो जायेगा। कांता बोली- "मगर बेटा गाँव का घर क्यूंँ दिखाने ले जा रहा है?" राज दुखी होते हुए बोला- बस वही संपत्ति तो बची है माँ ! जहाँ मेरी माँ अकेली रहती है। मैं तो यहाँ शहर में किराये के घर में रहते हुए दो चार दुकानों की उधारी वसूली का काम करके अपनी सारी कमाई नशे में उड़ाता रहा हूँ। अब वो घर इन अंकल को बेच दूंँगा तो दो लाख रुपये मिल जायेंगे तो उस लड़के का इलाज हो जायेगा और शायद इससे मेरे मन का बोझ कम हो जायेगा। कांता ने बीच में टोका - "कोई जरूरत नहीं है घर बेचने की।घर बेच देगा तो तेरी माँ कहाँ रहेगी? सोच बेटा वो अगर अपने बेटे को छोड़कर गाँव में अकेली रह रही है तो उसे घर से कितका प्रेम होगा ? उसे लाकर राजमहल में भी रखेगा ना बेटे तो वो जी नहीं पाएगी। बुजुर्गों के लिये एक कहावत है बेटा- स्थान छोड़ना मतलब प्राण छोड़ना।" घर छोड़ने का दुःख मुझसे पूछ बेटे जिसके बाद मैं कभी सुखी नहीं रह पाई। तुझे पैसों के लिये घर नहीं बेचने दूंगी तू यहीं रूक मैं कुछ लेकर आती हूँ इतना कहकर कांता अंदर गई और एक गंदा सा स्टील का डब्बा उठाकर ले आयी। जैसे ही कांता ने ढक्कन खोला देशी घी की गंध सब तरफ फैल गयी। कांता ने डब्बे के अंदर हाथ डाला और घी से सराबोर कोई चीज निकालकर अपने पल्लू से साफ करने लगी। अगले ही पल कांता के हाथ में एक सोने का हार था।सोने का हार देखकर अंकल की आँखें फटी की फटी रह गयीं और राज के चेहरे पर संतोष के भाव नजर आने लगे। कांता सोने का हार राज के हाथों में देते हुए बोली- "ले बेटा इसे अपने अंकल को देकर पैसे ले ले। घर मत बेच । राज ने हार को अपनी आँखों से लगाया और अंकल की ओर बढ़ाते हुए बोला - ये लीजिये पापा! आपके सोने का हार । आप भले ही अपने राजू को नहीं पहचान पाए मगर इस सोने के हार को जरूर पहचान लिये होंगे। जो आपके लिये मुझसे और मेरी माँ से बढ़कर था।वो अंकल कोई और नहीं उर्मिला के पति राहुल थे और राज था उनका बेटा राजू । राहुल ने आगे बढ़कर राजू को गले से लगा लिया और रोने लगे। राज ने उन्हें खुद से दूर करते हुए हाथ जोड़ लिये और आँसू भरी आँखों के साथ पीछे हटते हुए बोला - सोने का हार मुबारक हो पापा! और बरामदे से उतर गया,बुलेट लेकर चिंटू पहुँच चुका था,अगले पल राज आँखों से ओझल हो चुका था।अवाक् खड़ी कांता की जिंदगी फिर से सूनी हो चुकी थी और राहुल के हाथों में लाखों का हार उन्हें गरीबी का अहसास करा रहा था। --------------------०---------------