फिर मेरे टॉमी का बिस्किट छीन के भाग गया गली का कुत्ता! एक बार हाथ लग जाए तो उसके हाथ-पैर तोड़ दूंगा|।
सुबह आठ बजे गार्डन में चहलकदमी करते तीस वर्षीय कुँवर विजय सिंह चिल्ला रहे थे —
"चोरनी का बच्चा, चोर ही बनेगा! पकड़ के लाओ हरामखोर को!"
कुँवर साहब के एक आदेश पर चार नौकर गार्डन में फैल गए। उन्हें अंदाजा था कि चोर बाउंड्री के अंदर ही होगा — और उनका अंदाजा एकदम सही था।
गुलाब की कांटेदार झाड़ियों के बीच छुपा बैठा था वह दस साल का गूंगा बच्चा। कंधों तक लटकते गंदे बाल, रंग इतना गहरा कि रात में दिखाई न दे, और कपड़ों के नाम पर शरीर पर एक धागा भी नहीं। आंखें दहशत से फटी जा रही थीं और हाथ बिस्किट के दो टुकड़ों को कसकर पकड़ रखे थे।
तभी कुँवर साहब ने टॉमी की जंजीर खोल दी। टॉमी भौंकते हुए गुलाब की झाड़ियों की ओर दौड़ा, लेकिन उसके पहुँचने से पहले ही वह तीन फीट का बच्चा गोली की रफ्तार से छह फीट ऊँची बाउंड्री फांदकर नजरों से गायब हो चुका था। टॉमी भौंकता ही रह गया और कुँवर साहब ने दाहिने हाथ का मुक्का बाईं हथेली पर मारते हुए कहा —"फिर बच गया हरामखोर... गली का कुत्ता!"
दो महीने पहले एक पैंतीस वर्षीय अजनबी महिला की रॉयल कॉलोनी में कुँवर साहब के बगीचे से आम चुराते वक्त पेड़ से गिर कर मौत हो गई थी। यह बच्चा उसी का था। न उसका कोई नाम जानता था, न ही किसी के दिल में उसके लिए कोई हमदर्दी थी — "चोरनी का बच्चा" जो था।बस एक ही पहचान थी उसकी — गली का कुत्ता।
गली के कुत्तों पर तो लोग तरस खा भी लेते हैं, मगर इस बच्चे के लिए पेट भर खाना भी नामुमकिन था। पर कहते हैं ना, जिंदगी रास्ता ढूंढ ही लेती है। यहाँ जिंदगी ने चोरी को चुना था।जिंदा रहने के लिए खाना जरूरी था — चाहे वह कुत्ते का ही क्यों न हो।हर चौबीस घंटे में एक बार उसे कॉलोनी में आना ही पड़ता था। बाकी समय वह कहाँ रहता, कोई नहीं जानता था।
आज कॉलोनी में गणपति विसर्जन था।लोग विसर्जन से लौट रहे थे और गली का कुत्ता चार कुत्तों का खाना लूट कर फरार हो चुका था। मगर इस बार उसने सिर्फ खाना नहीं, बल्कि बाहर सूख रहे कुछ कपड़ों पर भी हाथ साफ कर लिया था।
वर्मा जी बोले —"अगर आज इसे नहीं रोका गया, तो कल तिजोरी पर भी हाथ साफ कर देगा।"
"आप सही कह रहे हैं वर्मा जी, कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा," — नायर साहब ने हामी भरी — "मगर करें तो करें क्या? वो कब आता है, कब जाता है, पता भी नहीं चलता।
"कुँवर साहब बोले —"वक्त का इंतज़ार करते हैं। आज नहीं, तो कल हाथ आ ही जाएगा।"
कॉलोनी के लोग उसका इंतज़ार करते रहे, लेकिन सात दिनों तक कोई चोरी नहीं हुई। लोग भूलने लगे थे कि उसने फिर एन्ट्री मारी ....मगर इस बार वह नंगा नहीं था। किसी बच्चे की चुराई हुई काली पैंट और ढीली चेक शर्ट पहने, तूफान की तरह कुँवर साहब के बंगले में घुसता हुआ दिख गया।
आज उसकी खैर नहीं थी।कॉलोनी वालों ने बंगले को घेर लिया था। कुत्ते बाउंड्री के अंदर छोड़ दिए गए थे।
मगर फिर वही हुआ — आंखें चमकीं और गोली की रफ्तार से वह बच्चा छह फीट ऊँची बाउंड्री फांद गया।मगर इस बार बाउंड्री के बाहर लगे जाल में फंसकर नजरों की गिरफ्त में आ गया।नजरें हिकारत से भरी हुई थीं।उसे जाल सहित कुँवर साहब के आम के पेड़ की डाली से टांग दिया गया और कॉलोनी के सभ्य लोग — कोई चप्पल से, तो कोई डंडे से उस पर गुस्सा निकालने लगे।
तभी कुँवर साहब की पत्नी रमा की आवाज़ गूंजी —"ये दस साल का बच्चा है, जिसे सही-गलत का ज्ञान नहीं है, और आप लोग इसे सजा दिए जा रहे हैं! ये सजा का नहीं, सुधार का हकदार है!"
बात में दम था। उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया।जाते-जाते उसकी आंखें रमा को करूणा भरी दृष्टि से देख रही थीं।
अब रॉयल कॉलोनी में शांति थी।कोई चोरी नहीं, कोई छीना-झपटी नहीं।दिन बेफिक्री से गुजरने लगे।मगर यह शांति दो महीने से अधिक नहीं टिक पाई।माहौल फिर गर्म हो गया था।
"देखिए गुप्ता जी, हमने आपको रुपये दिये — वो भी बिना ब्याज के — सिर्फ इसलिये कि आप हमारी कॉलोनी के निवासी हैं और हम लोगों का सारा राशन आपकी दुकान से आता है," — कुँवर साहब बोल रहे थे —"मगर आपने तो हमारी मदद को दान समझ लिया। पूरे दो साल हो गए, आपने एक रुपया भी वापस नहीं किया।"
"छह लाख की रकम कोई छोटी-मोटी रकम नहीं होती गुप्ता जी," — नायर साहब बोले —"कुँवर साहब, वर्मा जी और मैंने दो-दो लाख रुपये आपको दुकान में लगाने के लिए दिये थे, घर बनाने के लिए नहीं ।"
वर्मा जी ने सुझाव दिया —"देखो भाई गुप्ता, आज हमें तुम्हारे घर तक आना पड़ा। ये बात हमें बिल्कुल पसंद नहीं आई। हम लोग इस कॉलोनी के प्रतिष्ठित लोग हैं, और तकायदा करने जाना हमारी शान के खिलाफ है। तुम एक काम करो — ये घर बेचकर हमारा हिसाब चुका दो।"
गुप्ता जी गिड़गिड़ा उठे —"थोड़ी मोहलत और दे दीजिए। घर बेचने की बात मत कीजिए। इसके सिवा मेरा कोई ठिकाना नहीं है। मेरे इस बच्चे पर तरस खाइए।"गुप्ता जी का दस साल का बेटा पप्पू सामने खड़ा था और पत्नी सुरभि परदे की ओट से सब सुन रही थी।मगर गुप्ता जी की विनती का कोई असर नहीं हुआ।आख़िरकार उन्हें घर बेचना ही पड़ा।
घर बेचने के बाद गुप्ता जी ने उसी पोर्च में फाँसी लगा ली।उनके ससुरालवालों ने उनका अंतिम संस्कार किया और पत्नी व बच्चे को अपने साथ ले गए।
अब वह घर कुँवर साहब के नाम हो चुका था, मगर उसे कॉलोनी में कोई खरीदना नहीं चाहता था।लोगों का मानना था कि गुप्ता जी की आत्मा वहीं भटकती है।
खैर, कुँवर साहब, वर्मा जी और नायर साहब के लिए दो-चार लाख रुपये कोई बड़ी रकम नहीं थी।घर जस का तस पड़ा रहा...और जिंदगियों ने फिर अपनी रफ्तार पकड़ ली।
समय का पहिया घूमता गया, कॉलोनी में चेहरे बदलते गये।कुँवर साहब पैंतालीस के हो चुके थे। अब बालों में रंग लगाना पड़ रहा था। रमा थोड़ी सी मोटी हो गई थी और उनके बच्चे दूर किसी बड़े शहर में पढ़ाई कर रहे थे। और हाँ, अब कुँवर साहब के घर में कोई कुत्ता नहीं था। टॉमी की मौत के दुःख ने उन्हें नया फैमिली मेंबर लाने से रोक दिया था।
कंधे तक लटकते बाल और उसी काले रंग के साथ पंद्रह साल बाद एक पच्चीस वर्षीय, पाँच फीट दस इंच का गूंगा युवक, ब्लू जींस और ग्रे टीशर्ट में नजर आने लगा था। गंदगी का आलम अब भी वही था।स्पष्ट था — गली का कुत्ता बड़ा हो चुका था और कॉलोनी वालों के कान खड़े हो चुके थे।
चोरियाँ हो रही थीं, मगर रूपयों की नहीं — सामानों की। किसी की चेयर, तो किसी का बल्ब, किसी की कार की बैटरी, तो किसी की बाइक का पेट्रोल। मगर चोर किसी की नजर में नहीं आ रहा था।
पंद्रह साल पहले जो बच्चा लोगों की नजरों से छिपकर रहता था, आज जवान होकर बिंदास गलियों में घूम रहा था। शक की सुई उसी पर अटकी हुई थी, मगर अंधे कानून को सबूत और गवाह चाहिए।
उन्हीं दिनों रॉयल कॉलोनी में एक पुलिसवाले ने एंट्री ली — सब इंस्पेक्टर प्रकाश नारायण।पच्चीस वर्षीय इंस्पेक्टर साहब सिंगल थे। उन्हें रहने के लिए किसी बड़े घर की आवश्यकता नहीं थी। वन बीएचके पर्याप्त था, जो कॉलोनी में आसानी से मिल गया। चूँकि यह कॉलोनी भी उन्हीं के थाने के अधीन आती थी, कॉलोनी वाले राहत की साँस लेने लगे
—"चलो अब जो भी होगा, इंस्पेक्टर साहब देख लेंगे।"मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था।
सुबह सात बजे, वर्मा जी के घर के सामने भीड़ लगी थी और अंदर पुलिसिया कार्रवाई चल रही थी।
वर्मा जी का खून हो चुका था, गोली सीधा दिल में लगी थी।सब इंस्पेक्टर प्रकाश नारायण, घर के पचपन वर्षीय नौकर से पूछताछ कर रहे थे —
"क्या नाम है तुम्हारा?"
"जी, लोकनाथ साहब।"
"क्या तुमने कत्ल होते देखा है?"
"नहीं साहब, मैं तो सर्वेंट क्वार्टर में सो रहा था।"
"घर के बाकी लोग कहाँ हैं?"
"मालकिन दो दिन से ज़रूरी काम से बाहर गई हैं और दोनों बच्चे विदेश में पढ़ाई करते हैं, साहब।"
"तुम्हें खून के बारे में कब पता चला?"
"रोज की भांति सुबह 6 बजे मैं मालिक के कमरे में चाय लेकर गया, तो देखा दरवाज़ा खुला था और मालिक खून से लथपथ फर्श पे गिरे थे, साहब।"
"क्या घर से कोई चीज़ गायब है?"
"नहीं साहब, वैसा कुछ तो नहीं दिख रहा है।"
"ठीक है, कुछ भी पता चले या याद आये तो बिना देरी किये थाने आ जाना।"
"जी साहब।
"फिर फॉरेंसिक टेस्ट के लिए सैम्पल लिए गए और लाश को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया।काला लड़का भी भीड़ में शामिल था और उसकी आँखें इंस्पेक्टर को घूर रहीं थीं।
कुँवर साहब, नायर और सब इंस्पेक्टर प्रकाश नारायण के साथ अपने गार्डन में बैठकर वर्मा मर्डर कांड पर चर्चा कर रहे थे —
"आपको क्या लगता है इंस्पेक्टर साहब, खून का मकसद क्या हो सकता है?"
इंस्पेक्टर बोले —"कुँवर साहब, मकसद तो चोरी ही लग रही है, क्योंकि वर्मा जी के हाथ से डायमंड रिंग गायब है — जिसके बारे में उनकी पत्नी के आने के बाद पता चला है।"
"हो ना हो, वही गली का कुत्ता ही होगा खूनी!" — नायर साहब की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था।
"हो सकता है," — इंस्पेक्टर बोले —"वैसे यह पता चला है कि जिस बच्चे को आप लोगों ने बाल सुधार गृह भेजा था, उसे नियमानुसार तीन वर्ष बाद छोड़ दिया गया था। मगर अगले ही दिन वह फिर चोरी करते हुए पकड़ा गया। इस तरह, सुधार ना हो पाने के कारण 18 साल की उम्र में उसे पाँच वर्ष की सजा हुई थी। सजा काटकर दो साल तक वह कहाँ था — किसी को पता नहीं। उसके बाद सीधा वह आपकी कॉलोनी में ही दिखा है।"
"तो क्या उसके पास गन भी है?" — नायर साहब ने चिंता व्यक्त की।"
लगता तो यही है," — कुँवर साहब बोले।"खैर, आप लोग चिंता न करें। जब तक खूनी पकड़ा नहीं जाता, आप सब मेरी जिम्मेदारी हैं। आपका बाल भी बाँका नहीं होने दूँगा — मेरा वादा है।"
गज़ब का कॉन्फिडेंस था सब इंस्पेक्टर प्रकाश नारायण की आवाज़ में। पच्चीस वर्षीय उस युवा इंस्पेक्टर के वादे ने कॉलोनी के लोगों की हिम्मत बढ़ा दी थी।लोग इंतजार करने लगे कि कब गली का कुत्ता हथकड़ी पहनकर कॉलोनी से विदाई लेगा।
मगर एक खून और हो गया!
नायर साहब को भी सीधा दिल में गोली मारी गई।उनके घर में भी नौकर के अलावा कोई और नहीं था।दोनों केस लगभग समान थे —अंतर बस इतना कि वर्मा जी की डायमंड रिंग तो नायर साहब की सोने की चैन गायब थी।जबकि दोनों की अलमारी में रखे लाखों रुपयों को हाथ भी नहीं लगाया गया था।
काला लड़का फिर भीड़ में दिखा— उसी अंदाज़ में।
इस बार इंस्पेक्टर साहब ने उसकी गिरेबान पकड़ ली और खींच कर पुलिस की गाड़ी में डाल दिया।मगर थोड़ा बहुत टॉर्चर सहने के बाद, शाम तक काला लड़का फिर आजाद घूम रहा था — और कॉलोनी वालों का खौफ बरकरार था।
रात के आठ बजे कॉलोनी में मीटिंग चल रही थी।मुद्दा था: सिक्योरिटी।इंस्पेक्टर साहब ने थाने फोन कर के दस सिपाही बुला लिये थे और खुद भी नाइट ड्यूटी के लिए तैयार थे।
कुँवर साहब की आवाज में डर था —"सिक्योरिटी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत मुझे है, क्योंकि ये कत्ल चोरी के लिए नहीं हो रहे हैं। मुझे शक है कि वो गली का कुत्ता हमसे बाल सुधार गृह भेजे जाने का बदला ले रहा है।"
"कुँवर साहब, आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। आपके बंगले की निगरानी मैं खुद करूँगा। जाइए, आप लोग बेफिक्र सो जाइए। मेरे सिपाही कॉलोनी के चप्पे-चप्पे पर नजर रखेंगे।" —इंस्पेक्टर साहब ने भरोसा दिलाया।
रात के दो बजे गूंगा लड़का गुप्ता जी के खाली पड़े घर से निकल रहा था।चूँकि वहाँ कोई रहता नहीं था, इसलिए सिपाही आसपास नहीं थे।लड़का अंधेरे का फायदा उठाते कुँवर साहब के घर की ओर बढ़ रहा था।
कुँवर साहब और रमा बेडरूम में बातें कर रहे थे —
"ऐ जी! अब सो भी जाइए, वो नहीं आने वाला है। और अगर आ भी गया तो इंस्पेक्टर साहब उसे गिरफ्तार कर लेंगे।"
"गिरफ्तारी नहीं होगी, आज तो वो जान से जाएगा, रमा।"
तभी दरवाज़े पर खट-खट हुई...
"क-क-कौन है?"
"बाहर आइए कुँवर साहब, खूनी मेरे कब्जे में आ चुका है!" — इंस्पेक्टर साहब की आवाज थी।
कुँवर साहब की जान में जान आई। हॉकी स्टिक हाथ में ली, दरवाज़ा खोला और हॉल में आ गए —
"कहाँ है वो गली का कुत्ता? आज मैं उसकी जान ले लूंगा!"
पीछे-पीछे रमा भी हॉल में आ गई थी।मगर काला लड़का नजर नहीं आ रहा था।
"गली के कुत्ते की जान क्यों लेंगे, कुँवर साहब? वो खूनी थोड़े है।"
—इंस्पेक्टर साहब ने कुँवर विजय सिंह को फिर चौंकाया —"अरे, वो तो एहसान चुकाना चाहता होगा आप लोगों का कि आप लोगों ने उसे बाल सुधार गृह भेजा, जहाँ उसे बिना छीना-झपटी के खाने को मिल जाता था।"
"तो फिर खूनी कौन है, इंस्पेक्टर साहब?""कृपया अब और सस्पेंस मत बढ़ाइए।" — रमा बोली।
इंस्पेक्टर साहब मुस्कुराए —"बताता हूँ, बताता हूँ... थोड़ा तो सब्र रखिए..."
"लीजिए पेश करते हैं — आपका अपना खूनी — सब इंस्पेक्टर प्रकाश नारायण गुप्ता उर्फ पप्पू!"
कहते हुए उन्होंने गन कुँवर साहब पर तान दी।
पहला इन्ट्रोडक्शन तेरे गली के कुत्ते से हुआ था साले ने वर्मा और नायर की हत्या करते हुए देख लिया था, चोरी करने के लिए भी साले को वही घर मिले थे। मगर गूंगा किसी को क्या बताएगा?"और बताएगा भी तो यकीन कौन करेगा?
कुँवर साहब की आंखें आश्चर्य और दहशत से फटी जा रही थीं, और जुबान को लकवा मार गया था।रमा भी पत्थर बनकर खड़ी थी।
तभी प्रकाश नारायण गुप्ता चीखा —"तुम साले रेप्युटेड लोग... मेरे पापा के हत्यारे... एक गोली की औकात नहीं है, तो काहे का रेप्युटेशन बे! छै लाख रुपये के लिए तुम लोगों ने मेरे बाप की जान ले ली! अब जान के बदले जान चाहिए!"
"तेरे दोस्तों को तो सस्पेंस में ही मार दिया, मगर तेरा सस्पेंस क्लियर कर दिया— क्योंकि तू मेरा आखिरी शिकार है। तेरी बीवी तो तुझसे पहले बोनस में मरेगी!"कहते हुए गन रमा पर तान दी और ट्रिगर दबा दिया।
गोली चली... खून का फव्वारा छूटा...मगर रमा सुरक्षित थी — क्योंकि गोली और रमा के बीच आ गया था...गली का कुत्ता!
गोली लगी थी... ठीक दिल में।
मगर गोली छूटने और लगने के बीच, गली का कुत्ता कुँवर साहब के हाथ से हॉकी स्टिक लेकर अपनी रफ्तार दिखा चुका था।
इंस्पेक्टर और गली का कुत्ता — बेजान होकर एक साथ गिरे इंस्पेक्टर जमीन पर गिरा मगर गली के कुत्ते को कुँवर साहब की बाँहों ने थाम लिया।
उसकी निगाहें रमा की ओर ऐसे देख रहीं थीं जैसे कह रहीं हों —"कर्ज चुका दिया..."
लाशों को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया।हॉल में लगे सीसीटीवी कैमरे से फुटेज लिए गए।
अगले दिन शाम पाँच बजे, रॉयल कॉलोनी के बच्चे से लेकर बूढ़े तक श्मशान में उपस्थित थे।सबकी आंखें नम थीं...
आज पहली बार... एक ‘गली के कुत्ते’ का दाह संस्कार हो रहा था।