Pahli Raat ki Suhaagraat - 5 in Hindi Love Stories by Sujata Sood books and stories PDF | पहली रात की सुहागरात - भाग 5

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पहली रात की सुहागरात - भाग 5

अदित्य दरवाज़े के पास पहुँच चुका था, उसकी साँसें तेज़ थीं, और नज़रों में झलकता डर अब धीरे-धीरे गुस्से में बदल रहा था।

देहलीज़ पर फर्श पर वही लाइन चमक रही थी —
**"अब खेल शुरू होगा..."**

लेकिन उस रोशनी में एक और चीज़ दिखाई दी —
**एक सुर्ख लाल चूड़ी, टूटी हुई।**

वो चूड़ी किसी आम लड़की की नहीं लगती थी।
वो उसी लाल साड़ी वाली औरत की हो सकती थी... जिसे अदित्य अब तक सिर्फ छाया में देखता आया था।

भीतर से कोई भागकर आया —
“रामू! रामू को किसी ने खींच लिया… पीछे से!”

“किधर गया?” ठाकुर गरजा।

“हवेली के पीछे वाले कुएं की तरफ!”

सब लोग दौड़े। टॉर्च जलाए। लेकिन कुएं के पास सिर्फ रामू की चप्पल पड़ी थी… और दीवार पर पंजों के निशान।

लेकिन इंसानी नहीं थे।
अगले दिन गाँव में हंगामा मच चुका था।

“किसी को और कितने टुकड़ों में बंटते देखना होगा?”

“उस डायन को बाँधो! गाँव की औरतें डर से घर से बाहर नहीं निकल रहीं!”

“हमारी बेटियाँ, हमारी बीवियाँ… कौन सुरक्षित है अब?”

पंचायत में बैठक बुलाई गई।
ठाकुर चुप बैठा था, पर उसकी आँखों में चिंता अब डर में बदलने लगी थी।

उधर, रूहाना अपने कमरे में बैठी आईने के सामने बाल सुलझा रही थी।

आईना… धुंधला होने लगा।

उसमें धीरे-धीरे **कुएं का अक्स** उभरा।
और एक पल के लिए उसमें रामू की शक्ल दिखी… खून से लथपथ।

रूहाना ने आंखें बंद कीं।

“मुझे ये सब नहीं देखना चाहिए…”

उसने आईना ढंक दिया।

अदित्य छत पर खड़ा सोच रहा था —
"क्या ये सब सिर्फ इत्तेफाक है? या फिर कोई प्लान…?"

रूहाना को लेकर शक गहराता जा रहा था।
लेकिन सबसे बड़ी उलझन ये थी —
**हर घटना में उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था।**

फिर भी... कोई था जो गांव के हर शख्स को एक-एक कर निगल रहा था।

रात को अदित्य ने खुद रूहाना से मिलने का फैसला किया।

उसने हवेली की बत्तियाँ बंद कीं, और रसोई से सीधा रूहाना के कमरे की ओर बढ़ा।

कमरे के बाहर पहुंचकर देखा — दरवाज़ा आधा खुला था।

भीतर धीमी रोशनी में रूहाना बैठी थी, मगर इस बार... वो कुछ बड़बड़ा रही थी।

“...हर दिल की अपनी कीमत होती है…”

“...जो मोहब्बत से नहीं झुकते, उन्हें हवस से तोड़ो…”

अदित्य का पैर अचानक फर्श से टकराया, और हल्की सी आवाज़ हुई।

रूहाना चुप हो गई।

“कौन है?” उसकी आवाज़ अब सख्त थी।

अदित्य ने धीरे से दरवाज़ा पूरा खोला, “मैं…”

“तुम? आधी रात को?”
उसने अपनी साड़ी ठीक की और सीधे अदित्य की आँखों में देखा।

“मैं सिर्फ बात करने आया हूँ।”

“या झाँकने?” रूहाना की आवाज़ में काँपती हुई तंज की धार थी।

“मैं किसी सच्चाई को छूना चाहता हूँ। झाँकना मेरी आदत नहीं।”

रूहाना ने थोड़ी देर देखा, फिर मुस्कराई —
“सच बहुत दर्द देता है अदित्य… और कभी-कभी उसकी कीमत... जान से भी ज्यादा होती है।”

“मैं तैयार हूँ।”

“तो कल शाम… मेरी एक आखिरी शादी में शामिल हो जाना।”

“क्या?” अदित्य चौंका।

“हाँ,” वो धीरे से बोली, “कल मैं फिर से दुल्हन बनूँगी। शायद आखिरी बार।”

“किससे शादी कर रही हो?”

“जो सामने आएगा… वही दूल्हा बनेगा।”

“तुम खेल खेल रही हो?”

“या शायद… खेल में फँसी हूँ।”

अदित्य उसकी बातों को समझने की कोशिश करता रहा, लेकिन हर जवाब अपने साथ और सवाल खड़ा कर रहा था।

अगली सुबह गांव में ढिंढोरा पिट चुका था —
**“रूहाना आज फिर दुल्हन बनेगी।”**

गाँव वाले गुस्से में थे, लेकिन एक अजीब सा डर अब उनके गुस्से से भी बड़ा हो चुका था।

किसी ने पूछा — “कौन बनेगा दूल्हा?”

जवाब मिला — **“जिसे किस्मत चुनेगी…”**

और किस्मत… अक्सर मौत से हाथ मिलाकर फैसले करती है।
 कहानी में आगे क्या होगा जाने के लिए पढ़ते रहिए....
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