"सौंदर्य एक अभिशाप!"
(भाग-4)
अभिमान करना अच्छी बात नहीं है।
अपने सौंदर्य पर गर्व करने वाली राजकुमारी का आगे क्या होगा?
विक्रम नगर की राजकुमारी चित्रा की सहेली लता जब बगीचे में अकेली होती है, तो एक युवक आता है। और लता की सुन्दरता की तारीफ करता है। लगता है कि वह लता पर मोहित हो गया है और उसे राजकुमारी मानता है।
युवक..
तुम राजकुमारी जैसी दिखती हो। तुम्हारी सुन्दरता तुम्हारे मन में चल रहे विचारों के कारण चमकती है। तुम्हारी सोच अच्छी है।लेकिन तुमने अभी तक अपना नाम नहीं बताया है।
लता..
मैंने वह प्रश्न पहले भी पूछा था, लेकिन तुमने उत्तर नहीं दिया। लेकिन मैं स्वभाव से विनम्र हूँ। मैं किसी को भी अँधेरे में नहीं रखती। लो मैं अपना नाम बता देती हूं।
मेरा नाम लता है। और मेरे पिता राज दरबार में दरबारी हैं। हम राजकुमारी के साथ इस राज्य के बगीचे में आए थे, लेकिन अब सभी जा चुके हैं। जब तुम आये तो मैं एक गाना गुनगुना रही थी,और तुम्हें देखा इसलिए मुझे आश्चर्य हुआ।
अब मैं तुमसे अपना परिचय देने का अनुरोध करती हूँ। तुम राज्य के नियमों को नहीं जानते, इसलिए मैं तुम्हें चेतावनी देती हूँ कि अपना परिचय देने के बाद, तुरंत यहाँ से चले जाओ।
युवक..
ओह.. लता..नाम सुन्दर है।
वृक्षों को प्रेम से लपेट जाती है लता
और यह लता वाकई में सुंदर है
मैं सुंदरता का पता ढूँढते आ गया
मेरे सामने ही खड़ी है सुंदरता
मैं सुंदरता के कितने करीब आ गया!
छूने का मन नहीं करता
बस देखता रहूं सौंदर्य लता
ऐसी सुंदरता देखी नहीं
सूरज भी तुम्हारे सौंदर्य से शर्मा जायेगा
यह सुनकर लता लज्जित हुई।
वह सोचने लगी कि यह युवक चतुर है। इसने इसमें मेरा नाम भी लिया है और सुंदरता की भी प्रशंसा की है। यह सुंदरता बगीचे की है, फूलों की है या मेरी? लेकिन मैं उतनी सुंदर नहीं हूँ।
लता..
तुम सुंदरता की प्रशंसा कर रहे हो
सभी फूल सुंदर लग रहे हैं..
मुझे लगता है कि तुम इस प्रकृति की सुंदरता की प्रशंसा कर रहे हो। इसके साथ ही तुमने अपना नाम भी लिया है। तुम बहुत चतुर लग रहे हो। लेकिन मैं तुम्हारा पूरा परिचय लेना चाहूँगी।
युवक..
मैंने तुम्हें अच्छा दिखने के लिए नहीं कहा। वास्तव में, जितना सुंदर बगीचा है, तुम दिखने में भी उतने ही सुंदर हो। मेरी दृष्टि में तुम्हारा स्वभाव भी सभी को प्रिय होना चाहिए। ऐसा ही है। मेरा नाम सूरज सिंह है। मैं तुम्हारे पड़ोसी राज्य में रहता हूँ। मैं अपने गुरु से शिक्षा प्राप्त करके अपने राज्य जा रहा था, तभी मुझे अपने एक मित्र की याद आई। जो इसी राज्य में रहता है।
मैं यहाँ आया हूँ सौन्दर्य का पता ढूँढ़ो,
वह सुन्दर लता जो सौन्दर्य में प्रकट होती है।
विभिन्न लताएँ आपस में गुंथी हुई हैं,
और प्रकृति के दृश्य को सजाती हैं।
उस लता की सुगंध मेरे मन को मोह लेती है,
सौन्दर्य की आभा मेरे हृदय से पूछती है।
दुनिया की सुन्दरता मेरी आँखों के सामने खिलती है,
मेरी आँखें सौन्दर्य पर पड़ती हैं।
मैं सौन्दर्य से परिचित होने आया हूँ,
मैं सौन्दर्य के कितने करीब आ गया हूँ!
सुन्दर लता इस तरह मन में गुंथी हुई है,
सौन्दर्य का मंत्र मेरे मन में बसता है।
(नवीनतम भाग में क्या युवक ने अपना पूर्ण परिचय दिया है? नवयुवक कौन है और क्यूं आया हुआ है?)
- कौशिक दवे