"सौंदर्य एक अभिशाप !"
(भाग-2)
विक्रम नगर की राजकुमारी चित्रा बहुत सुंदर है।
उसे अपनी सुंदरता पर गर्व है। वह अपनी दो सहेलियों और दासियों के साथ नियमित रूप से राजकीय उद्यान में जाती है।
पड़ोसी राज्य के राजा जालिम सिंह चित्रा को देखने के लिए उत्सुक हैं..
अब आगे..
एक दिन राजा जालिम सिंह अपनी पत्नी मनोरमा देवी से कहते हैं कि अब तुम बूढ़ी हो गई हो। अब तुम्हें आराम से जीवन जीने की जरूरत है।
रानी मनोरमा देवी अपने पति की मंशा समझ जाती हैं।
राजा को लगता है कि उसने एक सुंदर राजकुमारी देखी है।
रानी राजा को समझाती हैं कि अब तुम बुढ़े होते जा रहे हो। हमारे दो बच्चे हैं। हमें अपनी बेटी मानसी के लिए एक उपयुक्त राजकुमार की तलाश करनी है। हमारा राजकुमार भी सही उम्र का है, लेकिन पहले हमें मानसी के लिए एक राजकुमार की तलाश करनी होगी।
राजा जालिम सिंह कहते हैं कि वे समय-समय पर काम करते रहेंगे। मेरे पिता ने भी चार बार शादी की थी। हमारी शादी के बाद भी उन्होंने शादी की।
मनोरमा देवी कहती हैं कि..उस समय हमारी शादी बचपन में ही हो गई थी। अब समय बदल गया है। राजकुमारी अठारह वर्ष की हो गई है इसलिए हमें जल्दी ही कोई राजकुमार ढूंढना होगा।
राजा जालिम सिंह रानी की बातें सुनना नहीं चाहते।
रानी को एक अन्य दरबारी के माध्यम से पता चलता है कि राजा जालिम सिंह को पड़ोसी राज्य विक्रम नगर की राजकुमारी चित्रा से मन ही मन प्रेम हो गया है इसलिए ऐसा लगता है कि वह उसे पाने के लिए षडयंत्र रचकर राजकुमारी चित्रा का अपहरण कर लेंगे। इसके लिए राजा जालिम सिंह एक तांत्रिक जादूगर से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं।
जब रानी को इस बारे में पता चलता है तो राजा जालिम सिंह उसे समझाते हैं लेकिन राजकुमारी चित्रा की खूबसूरती के कारण राजा सही गलत को भूल जाते हैं और रानी मनोरमा देवी को महल में कैद कर लेते हैं।
राज्य में यह बात फैल जाती है कि रानी मनोरमा देवी काशी की तीर्थ यात्रा पर गई हैं।
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दूसरी ओर राजकुमारी चित्रा की सहेली लता अक्सर राजकुमारी को समझाती रहती है कि हमें अपनी खूबसूरती पर घमंड नहीं करना चाहिए। खूबसूरती तभी तक रहती है जब तक हम जवान होते हैं।
लेकिन राजकुमारी चित्रा लता से कहती है कि मैं तुमसे ज्यादा सुंदर हूं, इसीलिए तुम्हें ईर्ष्या हो रही है। इसी ईर्ष्या के कारण तुम ऐसा कह रही हो। लेकिन तुम मेरी प्रिय सखी हो। मुझे जो राजकुमार पसंद आएगा, मैं उसी से विवाह करूंगी और उस समय तुम्हें भी अपने साथ ले जाऊंगी।
यह कहकर राजकुमारी अपनी दासियों के साथ बगीचे से चली जाती है।
राजकुमारी के जाने के बाद वह बगीचे में अकेली रह जाती है। उसकी सहेली सुवर्णा भी व्यस्त होने की बात कहकर चली जाती है।
लता सोचती है कि बगीचे में फूल सुंदर हैं, लेकिन अगले दिन वे भी मुरझा जाते हैं और फिर नए फूल उग आते हैं। मनुष्य का स्वभाव कैसा है? हमें प्रकृति ने जो दिया है, उसकी कद्र करते हुए जीना चाहिए। जो अभिमान करता है, उसका पतन हो जाता है।
एकाकी लता बड़बड़ाती है..
सुंदरता पर अभिमान मत करो,
अपने मन को हमेशा सुंदर रखो।
सुंदरता अगर प्रकृति ने दी है,
तो उसे समझकर जीवन जियो।
सुंदरता लाभदायक हो सकती है,
सुंदरता अभिशाप भी हो सकती है।
सुंदरता की सच्ची समझ विकसित करके,
जीवन को सार्थक बनाओ।
आंतरिक सुंदरता सबसे महान है,
बाहरी सुंदरता क्षणभंगुर है।
मन को सुंदर बनाकर,
जीवन को सफल बनाओ।
( अब क्या होगा? जानने के लिए पढ़िए पार्ट -३)
- कौशिक दवे