Yashaswini - 5 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यशस्विनी - 5

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यशस्विनी - 5


योग साधना के ढीले ढाले वस्त्र पहनकर यशस्विनी साधना के हाल में पहुंची। यह एक बड़ा खुला स्थान था जहां एक साथ लगभग 100 लोग ध्यान और योग का अभ्यास कर सकते थे। मंच पर पब्लिक एड्रेस सिस्टम लगा हुआ था। ऊपर ग्रीन ट्रांसपेरेंट शीट लगी हुई थी, जिससे बारिश की स्थिति में भी साधकों के योगाभ्यास पर कोई असर न पड़े। मंच को इस तरह साइड मूविंग विंगों के साथ बनाया गया था कि अगर प्रोजेक्टर चालू कर सफेद पर्दे पर कोई दृश्य दिखाना पड़े या पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन की आवश्यकता हो तो तत्काल मंच पर रोशनी को एकदम हल्का किया जा सके और मंच पर काम लायक अंधेरा भी हो जाए।

इस बैच में 50 साधक थे और सब नियत समय प्रातः 6:30 बजे अपना-अपना आसन ग्रहण कर चुके थे। यशस्विनी को देखते ही उन लोगों ने राधे-राधे कह कर उनका अभिवादन किया। मंच पर योगगुरु के आसन पर यशस्विनी विराजमान हुई। आज योग शिविर का पहला दिन था इसीलिए यशस्विनी ने सभी से उनका परिचय प्राप्त किया। सभी के चेहरे पर ऊर्जा और उत्साह साफ झलकता था।

आसमान में सूर्यदेव अभी अपने रथ पर सवार होकर प्रकट नहीं हुए थे लेकिन उनके आने की सूचना लाल कणों के बिखरे रूप में सारे आकाश में दृष्टिगोचर थी। ऐसा कोई भी क्यों न? सूर्य हमारे सौरमंडल के राजा हैं। एक राजा के आगमन के पूर्व जिस तरह उनके अनुचर आने की पूर्व घोषणा करते हैं, उसी तरह उषा सुंदरी ने आकाश में बिखरे रंगों को और चटख करते हुए सूर्य देव का अभिनंदन किया। योग शिविर में प्रार्थना के बाद यशस्विनी का संबोधन प्रारंभ होते-होते क्षितिज के एक कोने में भगवान दिवाकर मुस्कुरा उठे। ठीक उसी समय रोहित भी आ पहुंचे और चेहरे पर किंचित ग्लानि भाव होने के कारण अपने निर्धारित आसन पर आकर बैठ गए।

       यशस्विनी के सामने इस बार नए साधकों का समूह है। ये किशोरों व युवाओं का समूह है। इसमें देश के विभिन्न भागों से इस विशेष योग सत्र के लिए एकत्र हुए साधक हैं। अनेक किशोर, किशोरियां व युवक-युवतियां इसी आश्रम के हैं। यशस्विनी मंच पर विराजमान है। यशस्विनी के योग वस्त्र पूरी तरह शालीन और गैरिक रंग के हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे योग साधना ने स्वयं महायोगिनी का एक साकार रूप धारण कर लिया हो। स्फूर्तिमान चेहरे पर दमकता ओज, आत्मविश्वास से परिपूर्ण, हंसमुख, गेहुआँ रंग, स्वस्थ शरीर, लगभग 23 वर्ष की युवती।

यशस्विनी ने सबसे पहले योग प्रशिक्षार्थियों को योग की मूल अवधारणा समझाई। यशस्विनी ने कहना शुरू किया-योग का अर्थ है, जोड़ना। स्वयं से स्वयं को जोड़ने, स्वयं को समाज के अन्य लोगों से जोड़ने.... से होते हुए यह जोड़ना और संयुक्त होना एक दिन परम पिता परमेश्वर से स्वयं को जोड़ने तक जा पहुंचता है। योग भारत की प्राचीन पद्धति है। जिसके प्रमुख सूत्र हमें पतंजलि ऋषि के योग दर्शन में मिलते हैं। महर्षि पतंजलि ने कहा है-योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः । वहीं महा ऋषि कपिल के अनुसार मन के निर्विषय होने का नाम ध्यान है-ध्यान निर्विषयं।

      एक अन्य साधक ने पूछाः योग की कौन-कौन सी प्रमुख विधियां हैं? यथास्विनी:- योग के प्रमुखतःचार पथ या मार्ग हैं।

राज योग, कर्म योग, भक्ति योग तथा ज्ञान योग।

प्रएा:-क्या में इन बीस दिनों में योग साधना सीख जाऊंगा?

यशास्विनीः- सीखना आपके ऊपर है। मैं इस बात को सुनिश्चित नहीं कर सकती, इसलिए कोई आश्वासन भी नहीं दे सकती कि आप 20 दिनों के इस योग शिविर में संपूर्ण योग सीख जाएंगे। मुख्य रूप से हम यहां राजयोग अर्थात अष्टांगिक योग और उसमें भी विशेष रूप से प्राणायाम, सूर्य नमस्कार व अन्य आसनों की विधियों को सीखने का प्रयास करेंगे।

भगवा रंग के योग पेंट्स और योग कुर्ते में सभी साधक एक साथ ज्ञान मुद्रा में बैठकर यशस्विनी और रोहित से संवाद कर रहे थे।

यशस्विनी ने कहा- सबसे पहले हम आंखें बंद कर चुपचाप बैठने और चित्त में निर्विकार होने का प्रयास करेंगे। मैं जानती हूं कि यह कठिन है लेकिन हमें शुरुआत तो करनी होगी।

पूर्व दिशा से सूर्य की प्रथम रश्मियों के योग सभागार में फैलने के साथ ही जैसे पूरा वातावरण स्वर्णिम आभा से दीप्त हो उठा। सूर्य का यह प्रकाश जैसे सारे साधकों को एक ही रंग से सराबोर कर रहा था और यही प्रकाश इस सभागार में क्या बल्कि पूरी दुनिया में समाया हुआ है। हम मनुष्य हैं कि इस ईश्वरीय प्रकाश की एकता को सभी जड़ चेतन प्राणियों में एक सा महसूस नहीं कर पाते और कई तरह के विभेद की रेखाएं खींच लेते हैं। इससे आधुनिक दुनिया की अनेक समस्याएं उठ खड़ी होती हैं।

जब साधक प्रार्थना में मग्न थे तो माइक से अनायास

यशस्विनी के मुख से एक सुंदर मंगल कामना के बोल झरने लगे:-

हे ईश्वर,

 प्रातः नयी सुबह लिए

 आभा स्वर्णिम बिखरी हैं 

किरणें सूर्य की कण-कण में।

तम दूर करो

 हमारे अंतस् से 

खुले ज्ञान चक्षु हमारे 

पहुँचें आप के भावलोक में।

एक तत्व है 

सारे जग में

 प्रेम हो कण-कण,

 जग बँधे इस डोर में।

जग यह, 

बने लोक आनंद का, 

पीड़ा रहित हों मानव, 

सब जीव हों नित सुख में।

सारे साधक आंखें बंद कर ध्यान लगाने का पहला प्रयास कर रहे थे लेकिन अनेक साधनों के शरीर हिल-डुल रहे थे। कुछ साधकों की आंखें बार-बार खुल और बंद हो रही थीं। यह देख कर मुस्कुराते हुए यशस्विनी ने माइक से कहा-होने दीजिए मन में जितने विचार आते हैं आने दीजिए.... आज हम प्रारंभ कर रहे हैं। एक दिन में चित्त शांत नहीं होगा। इसके लिए घंटों, महीनों और कभी-कभी सालों की साधना भी कम पड़ जाती है...........।

यशस्विनी ने मंच पर अपनी दाई और देखा... रोहित एक कोने पर हैं और बीच-बीच में अन्य साधकों के साथ-साथ योग व ध्यान करने का प्रयास भी करते हैं। रोहित टेक्निकल एक्सपर्ट हैं लेकिन अब वह समय मिलते ही ध्यान पर बैठ जाते हैं...... रोहित की आंखें बंद हैं....... और चेहरे पर संतुष्टि के भाव ..... जैसे योग और ध्यान को सीखने का पूरे मन से प्रयास कर रहे हैं. . वह सोचने लगी, हो सकता है रोहित जी योग में बहुत ऊपर उठ गए हों.........

(क्रमशः)

योगेंद्र