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“अच्छा घर है।” जय ने काव्या के घर में कदम रखते हुए कहा।
“धन्यवाद। तुम्हें मेरा टेरेस गार्डन बहुत पसंद आएगा, आम श्योर...” काव्या ने फ्रिज से पानी की बोतल निकालते हुए कहा।
“देखते हैं...” जय ने उसके हाथ से गिलास लेते हुए कहा।
“मैंने अपने खूबसूरत गार्डन को पार्टी के लिए चूना है। चलो, दिखाती हूँ।” वह उसे बालकनी की ओर ले गई।
जय उसके पीछे-पीछे उसके घर के बाहर की ओर बढ़ा। काव्या के पेंटहाउस के बाहर एक बड़ा सा बगीचा था, जहाँ चारों पेंटहाउस से सीधी एंट्री थी। पहल।से प्लानिंग करके उनके लिए बनाया हो। यह उन सब दोस्तो का एक साझा टैरेस गार्डन था,जिसके पास ही स्विमिंग पूल था।
“श्रेया, तू?” जय ने उसे वहाँ देखते ही कहा।
“हाँ, डेकोरेशन का आधा क्रेडिट मेरा जो है।”
“बिलकुल, डॉक्टर श्रेया।” काव्या मुस्कराई।
“मुझे इस बारे में कुछ क्यों नहीं पता?” जय ने काव्या की ओर देखते हुए शिकायत की।
“किस बारे में?” काव्या ने अनजान बनते हुए कहा और पास रखी कुर्सी पर जाकर बैठ गई।
“श्रेया के बारे में...!”
जय को जवाब देते हुए काव्या बोली, “आपकी दोस्त है... आपको पता होना चाहिए। और वैसे भी मैंने तो बताया था।”
“आपने तो रोनित और आदित्य की बात की थी, miss sehghal।”
काव्या ने उसे नज़रअंदाज़ किया.
श्रेया ने भी काव्या की तरह ही मजाक में जय को पुकारा, “वैसे आप लेट हैं, डॉक्टर राजशेखर।”
“डॉक्टर अवस्थी...” जय समझ चुका था कि श्रेया क्या कह रही है।
“वो क्या है न, डॉक्टर अवस्थी... मेरे क्रश का बर्थ-डे नहीं है, तो मैं ज़्यादा एक्साइटेड नहीं हूँ। मेरी एक्साइटमेंट बस दोस्त वाली है।”
“जय...” श्रेया ने चिढ़ते हुए उसका नाम लिया और पास पड़े सोफे से तकिया उठाकर उस पर फेंक मारा।
“क्या हुआ श्रेया?” जय उसे और परेशान करने लगा।
“डॉक्टर जय, बस... अब ज़्यादा हो रहा है...”
काव्या ने श्रेया की ओर मुड़कर कहा, “वैसे तुम और अक्की ऑफिशियल क्यों नहीं हो जाते?”
“तुम दोनों एक जैसे ही हो।” श्रेया उन्हें वहीं अकेला छोड़कर बाहर चली गई।
“वैसे एक करेक्शन है...!” जय ने काव्या की आँखों में गहराई से देखते हुए कहा।
काव्या ने हल्की हम्म की आवाज़ में जवाब दिया। वह उसकी आँखों में खो चुकी थी।
“मेरा नाम, जय है। डॉक्टर राजशेखर नहीं। बिलकुल वैसे ही जैसे तुम्हारा नाम काव्या है। समझीं?”
काव्या ने फिर से हम्म किया।
“बोलो...”
“क्या...?” काव्या ने धीरे से पूछा।
“मेरा नाम।” जय ने धीरे से कहा और उसकी ओर एक कदम और बढ़ाया।
“जा... जय।”
“इट्स जय।”
“मैंने तो वही कहा।” काव्या ने खुद को संभालते हुए कहा।
अचानक जय ने उसके पीठ पर हाथ रख दिया,
“गिर जाओगी। और... तुम्हारा गिरना बहुत दर्द दे सकता है... तुम्हें।”
काव्या ने उसे हल्का सा पीछे धकेला, “आकाश आता ही होगा।”
तभी काव्या का फोन बजा। उसने कॉल उठाया और स्पीकर पर डाल दिया।
“प्रिंसेस... कहाँ हो तुम?” यह आकाश था।
“क्या हुआ?”
“मॉम का कॉल था और मुझे पता चला कि...”
“कि व्हाट ब्रो?” काव्या गंभीर हो गई।
“उम्म... तू आज अपनी किसी फ्रेंड के घर रुकने वाली है...”
“हाँ...”
“कौन सी दोस्त?”
“क्यों,मेरी कोई और फ्रेंड नहीं हो सकती?”
“मैंने कब मना किया। मैं तो बस पूछ रहा हूँ। कौन?”
“राखी। हम अभी-अभी फ्रेंड्स बने हैं।”
“ओह... पर जहाँ तक मुझे पता है... राखी आज ही पंजाब चली गई है। असल में मैं और रोनित अभी-अभी उसे एयरपोर्ट छोड़कर आए हैं।”
वह थोड़ी घबरा गई और जो दिमाग में आया, बोल दिया,
“उम्म... मुझे पता है। उसी ने कहा था कि एक दिन उसके घर पे रह जाऊँ क्योंकि उसके घर एक पार्सल आने वाला था। फिर सोचा रुक जाती हूँ, क्या रात को घर जाऊँ।”
“ठीक है।”
“वैसे तूने मुझे कॉल क्यों किया?”
“बस जानना था कि तू कहाँ है। उस गधे आदित्य ने मेरे मुँह पे कॉल काट दिया। और रोनित बोल रहा था वो चंडीगढ़ जा रहा है तीन दिन बाद किसी की शादी में। तो वो शॉपिंग पर जाना चाहता है।”
“तो?”
“मैं बस ये जानना चाहता था कि तेरे पास भी कोई अजीब सा काम तो नहीं है... और देख... तेरे पास भी है। पार्सल्स रिसीव कर ले तू। बाय।”
“बाय।”
“आपको बहाना बनाना भी नहीं आता।” जैसे ही काव्या ने फोन रखा, जय ने कहा।
“मुझे कुछ सुझा ही नहीं... और वैसे भी वो मेरा झूठ तुरंत पकड़ लेता है। उसे पता है मैं वहाँ नहीं हूँ। उसे ये भी पता है हम तीनों उसके बर्थडे की प्लानिंग कर रहे हैं।”
“तो छुपा क्यों रही है आप फिर?”
“क्योंकि असली सरप्राइज़ तो आप और श्रेया हो।” अपनी बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ काव्या ने कहा। इस उम्मीद के साथ कि उसके दोस्त की ज़िंदगी अब फिर से पहले जैसी हो जाए।
“आप भी ना...” जय ने उसे अनदेखा करने की कोशिश की।
“एक मिनट... ये क्या आप भी ना'? हम फ्रेंड्स हैं, राइट? और ऊपर से मैं तुमसे छोटी हूँ, फिर भी... तुम मुझे 'आप' बुलाते हो। बस अब से 'तुम'। कोई फॉर्मेलिटी नहीं।”
उसने धीरे से आगे कहा, “अपनी उस पुरानी फ्रेंड से तो कितना चिपक रहे थे।”
“मुझे सुनाई दे रहा है।”
“सुनाने के लिए ही बोला है...”
“ओह रियली... तो बताइए, मैं कैसे चिपक रहा था...।”
“आप चिपक रहे थे, आप को पता।”
“रूल्स के अनुसार आपको भी मुझे 'तुम'...”
काव्या ने घूर कर देखा। उसी पल जय ने अपना विधान सुधारा,
“मेरा मतलब... तुम्हें भी मुझे 'तुम' कहना चाहिए।”
“यू आर ओल्डर धान मी।”
“श्रेया, आकाश और आदित्य सब मेरी ही उम्र के हैं।”
“मुझे लगा आप थोड़े ज़्यादा बूढ़े होंगे।”
“क्या कहा? बूढ़ा और मैं? एक मिनट रुको तुम्हें दिखाता हूँ मैं...”
जय ने उसे अपनी बाहों में उठा लिया, उसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हुए।
“नीचे उतारो मुझे... मैं गिर जाऊँगी। मुझे नहीं रहना आपके अस्पताल में.., फिर से”
“पहले बोलो... क्या पुकारोगी मुझे?”
वह उसे लेकर गार्डन की ओर बढ़ा।
“जय... प्लीज़, क्या तुम मुझे नीचे उतारोगे..? डर लग रहा है मुझे”
काव्या ने उसे कंधे से और कसकर पकड़ते हुए कहा।
“गुड गर्ल।” इतना कहकर उसने उसे गार्डन में रखे सोफे पर बैठा दिया। उसके चेहरे पर एक जीत की मुस्कुराहट थी, आखिर उसने काव्या से वो बुलवा लिया था जो वो चाहता था।
दोनों के बीच एक नए रिश्ते ने पूरी तरह से जन्म ले लिया था। और वह था दोस्ती का।
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Continues in the next episode.....