Pahli Dastak - 3 in Hindi Drama by Divya Shree books and stories PDF | पहली दस्तक - 2

Featured Books
  • अनजानी कहानी - 3

    विशाल और भव्य फर्नीचर से सजी हुई एक आलीशान हवेली की तरह दिखन...

  • Age Doesn't Matter in Love - 5

    घर पहुँचते ही आन्या का चेहरा बुझा हुआ था। ममता जी ने उसे देख...

  • लाल बैग - 3

    रात का समय था। चारों ओर खामोशी पसरी हुई थी। पुराने मकान की द...

  • You Are My Life - 3

    Happy Reading     उसने दरवाज़ा नहीं खटखटाया। बस सीधे अंदर आ...

  • MUZE जब तू मेरी कहानी बन गई - 13

    Chapter 12: रिश्तों की अग्निपरीक्षा   मुंबई की गर्मी इन दिनो...

Categories
Share

पहली दस्तक - 2

ज़िंदगी में जब भी हम किसी नई चीज़ की शुरुआत करते हैं, तो मन में कहीं न कहीं एक डर जरूर रहता है। जैसे बचपन में जब पहली बार स्कूल जाना होता था, तो एक अजीब सी घबराहट और डर का एहसास होता था। बड़े होकर जब नौकरी की शुरुआत करते हैं, तब भी वही सवाल उठते हैं —
“क्या मैं इसमें सफल हो पाऊंगा? कैसे लोग होंगे? किन मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा?”

ये सवाल और डर हर इंसान के मन में स्वाभाविक हैं।

नव्या भी ऐसे ही सवालों के घेरे में थी। वह चिंतित थी, खासकर तब जब कुछ टीचर्स अजीब और अनोखी बातें कर रहे थे। उसका दिल घबराया था — “अगर पहले दिन ऐसा ही है, तो आगे क्या होगा?”

इसी बीच, प्रिंसिपल मैडम ने नव्या को ऑफिस में बुलाया। नव्या थोड़ा घबराई, लेकिन अंदर गई। प्रिंसिपल ने मुस्कुराते हुए पूछा,
“नव्या, तुम्हें आज स्कूल कैसा लगा? पहला दिन कैसा रहा?”

नव्या ने जवाब दिया,
“अच्छा था।”

तभी प्रिंसिपल ने एक अन्य मैडम को अंदर बुलाया,
“यह विनीता मैडम हैं, हमारी स्कूल की कॉर्डिनेटर। ये तुम्हारी मदद करेंगी और तुम्हें हर चीज़ समझाएंगी। विनीता, नव्या को अपने साथ लेकर चलो और स्टाफ ग्रुप में उनका नंबर भी डाल देना।”

विनीता मैडम ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ नव्या की ओर देखा और बोली,
“चलो, मैं तुम्हें सब कुछ समझाती हूँ l




जब विनीता मैडम नव्या को अपने साथ लेकर जा रही थीं, तभी रास्ते में नव्या का भाई उनसे मिलने आ गया।
भाई ने हंसते हुए पूछा,
“नव्या, आज  दिन कैसा रहा? सबके साथ कैसा लगा?”

विनीता मैडम भी मुस्कुराते हुए बोलीं,
“नव्या, ये हमारे सर हैं, इन्हें तो आप अच्छे से जानती होंगी।”

नव्या मुस्कुराते हुए जवाब देती है,
“हाँ जी, बिलकुल! ये मेरे भाई हैं, इन्हें मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ।”

हँसते हुए विनीता मैडम और नव्या साथ-साथ स्टाफ रूम की ओर बढ़ीं। वहाँ कुछ टीचर्स पहले से मौजूद थे। नव्या का भाई भी अंदर गया और सबको बोला,
“ये मेरी छोटी बहन है, आज से हमारे साथ पढ़ाएगी।”

सभी ने नव्या का परिचय बड़े प्रेम से कराया। इसके बाद विनीता मैडम नव्या को उसी क्लासरूम में लेकर गईं जहाँ उनका अगला पीरियड था।

विनीता मैडम ने कहा,
“माम, आप मेरे साथ यहीं क्लास में बैठ जाइए। थोड़ी देर में छुट्टी होने वाली है। इस दौरान मैं आपसे स्कूल के नियम, बच्चों के बारे में और कुछ जरूरी बातें करना चाहती हूँ।”

नव्या ने हामी भरी,
“ठीक है, हम यहीं बात करते हैं।”

दोनों बैठकर चर्चा में लग गए। थोड़ी देर बाद विनीता मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा,
“मैं आपको और आपकी पूरी फैमिली को बहुत पहले से जानती हूँ।”

नव्या हैरानी से बोली,
“मैंने तो आपको आज पहली बार देखा है।”

विनीता ने जवाब दिया,
“हम कई बार आपके घर प्रमोशन के लिए गए हैं। मैं सर के चाचा की बेटी लगती हो, है ना?”

नव्या ने धीरे से कहा,
“हाँ जी।”

विनीता मुस्कुराई और बोली,
“शायद आपको मेरे बारे में पता नहीं होगा क्योंकि जब भी हम आपके घर आए, आप सारे बच्चे स्कूल चले जाते थे। लेकिन अब आप इतने बड़ी हो गई हो कि टीचर बनकर हमारे साथ हो, ये बहुत खुशी की बात है।”

नव्या थोड़ी नर्वस होकर पूछी,
“क्या आप सच में मेरी मम्मी को जानती हैं?”

विनीता ने प्यार से कहा,
“हाँ जी, बहुत अच्छे से।”

फिर विनीता ने पूछा,
“आपकी पढ़ाई पूरी हो गई है क्या?”

नव्या ने जवाब दिया,
“नहीं, मैं ग्रेजुएशन के दूसरे साल में हूँ।”



विनीता मैम और नव्या क्लासरूम में गहरी बातचीत में डूबी हुई थीं, तभी दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई।

एक सर अंदर आए—वही, जिन्हें नव्या ने सुबह देखा था। वही जो सुबह अटेंडेंस रजिस्टर थमा कर गए थे।

"मैम, may I come in?"
"हाँ जी, आइए सर," विनीता मैम मुस्कुराकर बोलीं।

सर बोले,
"बच्चों की छुट्टी होने वाली है। कृपया सभी बच्चों को आराम से लाइन बनवाकर भेजिएगा।"

विनीता मैम हल्के मज़ाक में मुस्कुराकर बोलीं,
"सर जी, ये काम तो आपका है।"

सर हँसते हुए बोले,
"है तो मेरा काम, लेकिन ज़िम्मेदारी तो सबकी है न।"

दोनों मुस्कुरा दिए। और सर अगली क्लास में वही सूचना देने के लिए चले गए।

विनीता मैम ने मुस्कुरा कर कहा,
"ये सर बहुत अच्छे हैं। अकेले ही तीन-चार टीचर्स की ज़िम्मेदारी निभाते हैं। वैसे तो ये कॉमर्स पढ़ाते हैं, लेकिन साथ में PTI और अन्य काम भी देख लेते हैं। कभी गुस्से में नहीं बोलते — नेचर बहुत ही अच्छा है।"

इतने में छुट्टी की घंटी बज गई। बच्चों को स्कूल बस में बैठा दिया गया। तभी स्टाफ़ को सूचना दी गई कि पाँच मिनट में सभी को मीटिंग के लिए प्रिंसिपल ऑफिस पहुँचना है।

नव्या, विनीता मैम और बाकी सभी टीचर्स प्रिंसिपल ऑफिस पहुँचे।

प्रिंसिपल मैडम ने कहा,
"सभी बच्चों से कॉलिंग करके स्कूल में उपस्थिति सुनिश्चित कराएं। किसी का सिलेबस पीछे नहीं रहना चाहिए। और सभी को अपने-अपने क्लासेज को प्रॉपरली Maintain रखना है।"

फिर मुस्कुराकर बोलीं,
"अब आप सब घर जा सकते हैं। मीटिंग समाप्त।"

सब धीरे-धीरे निकल गए। नव्या भी अपने घर लौटी।

घर पहुँचते ही उसने कहा,
"मम्मी, मैं आज बहुत थक गई हूँ।"

माँ ने प्यार से पूछा,
"पहला दिन कैसा रहा स्कूल का?"

नव्या बोली,
"बस ठीक ही था।"

माँ बोलीं,
"ठीक है, अब थोड़ा आराम कर ले। पहले दिन की थकान तो होगी ही।"

नव्या अपने कमरे में चली गई। लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी — हमेशा की तरह।

लेटते ही उसके मन में विचारों की भीड़ जमा हो गई। और वह सोचने लगी —
वो लंच टाइम की बातें... वो character judgement वाली बातें...

उसके मन में सवाल उठने लगे:
क्या मुझे इसी स्कूल में रहना चाहिए?
अगर आगे भी ऐसा ही होता रहा तो?
क्या मैंने गलती की उस मैडम को टोक कर?
क्या वाकई रीवान सर वैसे ही हैं जैसे सब कह रहे थे?

फिर वो खुद को जवाब देती है,
"मुझे किसी की बातें नहीं सुननी चाहिए। मुझे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
क्योंकि... Being a Human, हमें किसी के character को जज करने का हक़ नहीं है।"

सोचते-सोचते नव्या की आँखें भारी होने लगीं… और वह नींद में चली गई।