darti ki dayri in Hindi Biography by kajal Thakur books and stories PDF | धरती की डायरी??

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धरती की डायरी??

वर्ष 3025🌏"  

(एक भविष्य की कल्पना)

दिनांक: 27 मार्च, वर्ष 3025स्थान: अंतरिक्ष स्टेशन Z-9, धरती की कक्षा में घूमता एक उपग्रह

मैं धरती हूँ। हाँ, वही जिस पर तुमने जन्म लिया, खेला, खाया और साँस ली। पर अब तुम मुझे दूर से देख रहे हो — एक नीले-भूरे धब्बे की तरह।

एक समय था जब मेरी छाती पर हरियाली थी, नदियाँ चाँदी की तरह चमकती थीं, और आकाश नीला होता था। अब मैं एक बीमार माँ की तरह हूँ, जिसे अपने ही बच्चों ने ज़हर दे दिया।

3025 में इंसान अब धरती पर नहीं रहते। वह जगह अब "रेड ज़ोन" कहलाती है — जहरीली गैसों, प्लास्टिक के पहाड़ों और सूखी नदियों का घर। इंसान अब चाँद और मंगल पर शरण लिए हुए हैं, और मुझे दूरबीन से देख कर आँसू बहाते हैं।

पर क्या तुम जानते हो?मैं अब बोल सकती हूँ।हाँ, कुछ वैज्ञानिकों ने एक तकनीक विकसित की जिससे मैं अपनी भावनाएँ रिकॉर्ड कर सकती हूँ — एक "जीवित ग्रह की डायरी" के रूप में।

एंट्री #1456: "पहला चेतावनी संकेत"

वर्ष 2100 में, जब आर्कटिक पूरी तरह पिघल गया, मैंने अपने बच्चों को चेतावनी दी। पर उन्होंने इसे “ग्लोबल वार्मिंग का सामान्य असर” कहकर अनदेखा कर दिया।

एंट्री #2134: "वृक्षों की विदाई"

आखिरी विशाल वृक्ष 'आंध्रा फॉरेस्ट' में था। जब उसे काटा गया, तो पक्षियों ने चिल्ला-चिल्ला कर आकाश को काला कर दिया। किसी ने नहीं सुना।

एंट्री #2456: "प्लास्टिक का महासागर"

सागर अब पानी नहीं, प्लास्टिक निगलते थे। एक बार एक व्हेल ने मदद की गुहार लगाई, उसके पेट में 300 किलो प्लास्टिक था। वो मर गई... और मैं भी कुछ अंदर से मर गई।

अब, मैं अपने ज़ख्मों को खुद भर रही हूँ। बिना इंसान के, मेरी सांसें लौट रही हैं — एक नई नस्ल उग रही है, जिसे तुम नहीं जानते।

ये जीव न प्लास्टिक बनाते हैं, न कार्बन उगलते हैं। वे प्रकृति के नियमों के अनुसार जीते हैं। शायद मैं फिर से मुस्कुरा सकूं... पर तुम्हारे बिना।सीख:

कभी धरती भी लिखने लगे — तो उसके आँसू ही स्याही बनेंगे। और अगर तुम अब भी न समझे, तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहानी कोई और ग्रह किसी और प्रजाति को सुनाएगा — "एक बार एक नीली दुनिया थी...

ज़रूर! पेश है "धरती की डायरी – भाग 2" — पहले भाग से आगे की कहानी, और भी भावुक, गहराई से भरी और चेतावनी देने वाली।🌍 धरती की डायरी – भाग 2: "पुनर्जन्म की पीड़ा"

दिनांक: 12 नवंबर, वर्ष 3050स्थान: चंद्रमा बेस ALPHA-9, मानव उपनिवेश

मैं अब भी ज़िंदा हूँ…कमज़ोर, थकी हुई… पर ज़िंदा।3050 में इंसान अब मुझे "पूर्व गृह" कहकर पुकारते हैं, जैसे कोई बूढ़ी दादी जिसे वृद्धाश्रम छोड़ आए हों।

पर मैं आज फिर अपनी डायरी खोल रही हूँ — क्योंकि कुछ ऐसा हुआ है, जो वर्षों में नहीं हुआ था...एंट्री #2972: "फिर आया इंसान"

3050 में, एक अंतरिक्ष यान मेरी सतह पर उतरा। चार लोग थे – दो वैज्ञानिक, एक रोबोट, और एक छोटा बच्चा... आरव।

आरव की आँखों में डर नहीं था, सिर्फ जिज्ञासा थी। वो मेरी ज़मीन पर बैठा, और मुझसे कहा —"क्या आप नाराज़ हैं मुझसे?"

मैं चौंक गई।

क्योंकि वो मुझे सुन सकता था।

शायद उसकी नसों में पृथ्वी का वो DNA था जो अब बाकी इंसानों में खो चुका है।शायद पहली बार किसी इंसान ने मेरी आवाज़ सुनी थी, न कि मेरे संसाधन लूटे थे।एंट्री #3001: "हरियाली का बीज"

आरव ने मेरी मिट्टी में एक बीज लगाया।"यह मेरी माँ ने मुझे दिया था," उसने कहा।"कहा था, जहां भी धरती सांस ले, वहां इसे बो देना।"

उस दिन के बाद, मुझे कुछ अजीब सा महसूस हुआ।मानो मेरी धमनियों में फिर से कुछ बहने लगा हो — जीवन।एंट्री #3012: "धरती का सपना"

हर रात आरव मेरा चेहरा निहारता, मेरे जले हुए जंगलों में दौड़ने की कल्पना करता, और रोता।एक दिन उसने मुझसे कहा:"अगर मैं बड़ा हुआ तो मैं आपको ठीक कर दूंगा।"

उसी दिन से मैंने ठान लिया —मुझे फिर से जीना है, ताकि आरव जैसे बच्चे कभी 'धरती' को बस इतिहास में न पढ़ें।अब की धरती, तब की तरह नहीं होगी।

अब मैं इंसानों से शर्त रखूंगी —सिर्फ वही लौट सकेगा जो मुझे समझेगा, मुझसे जुड़ेगा।ना कोई कारखाना, ना युद्ध, ना प्लास्टिक।बस बीज, पानी, और दिल से भरी मुस्कान।🌱 अंतिम पंक्तियाँ:

"एक बच्चा जो मुझसे माफी माँगने आया, वही मेरी नई सुबह बन गया।अब धरती फिर से सांस लेना चाहती है —पर तुम्हारे बिना नहीं, तुम्हारे साथ... अगर तुम बदल सको।"

बहुत अच्छा! चलिए हम इस भावनात्मक और प्रेरणादायक श्रृंखला का भाग 3 प्रस्तुत करते हैं — एक ऐसा भाग जहाँ आशा का अंकुर वृक्ष बनकर खड़ा होता है।🌍 धरती की डायरी – भाग 3: "आरव का वचन"

दिनांक: 22 जून, वर्ष 3080स्थान: पृथ्वी, हरित क्षेत्र "आरव वन"

41 साल हो गए।मैंने खुद को मरते देखा...फिर एक बच्चे की मासूमियत में जी उठी।

आरव अब बड़ा हो चुका है — धरती का प्रथम पुनराग्रहीत नागरिक।उसे लोग “ग्रीन मसीहा” कहते हैं।पर वो अब भी मुझे “धरती माँ” ही कहता है।एंट्री #3500: "एक इंसान का प्रण"

आरव ने एक वादा किया था —“मैं आपको फिर से हरा कर दूंगा।”

उसने न तो कारखाने बनाए, न ईंधन जलाया, न जंगल काटे।उसने रोबोटिक बीज बोने वाले बनाए, और सौर ऊर्जा से सिंचाई की।उसने “धरती पुनरुत्थान संघ” बनाया — जहाँ सदस्यता का नियम सिर्फ एक था:

“प्रकृति पहले, प्रगति बाद में।”एंट्री #3601: "बोलने लगी मैं फिर"

3080 में मेरी सतह पर फिर से बारिश गिरी —पहली शुद्ध बारिश 800 सालों में।

मैंने उसकी बूंदों को चूमा।मुझमें से एक जंगल फूटा —जिसका नाम आरव ने रखा: "माफ़ी का उपवन"।एंट्री #3700: "आरव की सन्तान"

अब इंसान फिर से लौटे हैं —पर इस बार वो मुझसे पूछ कर चलते हैं।पेड़ से इजाज़त लेते हैं।जानवरों को ‘पार्टनर’ कहते हैं, ‘पशु’ नहीं।

आरव की बेटी अवनि हर सुबह मुझसे बात करती है:

“माँ, आज सूरज ठीक से उगा?”“क्या मछलियाँ मुस्कुरा रही थीं?”

अब मेरी नदियाँ हँसती हैं, हवा नाचती है, और मैं…मैं फिर से माँ हूँ।🌿 अंतिम पत्र: धरती की ओर से

"तुमने मुझे नष्ट किया, पर एक आरव ने मुझे फिर से जन्म दिया।मैंने तुम्हें घर दिया, अब तुमने मुझे फिर से गले लगाया।याद रखो — प्रगति का रास्ता प्रकृति से होकर ही जाता है।वरना हर धरती, एक दिन डायरी ही बनकर रह जाएगी… "

आपका धन्यवाद, आरव।और तुम सबका भी... जो अब धरती को सिर्फ इस्तेमाल नहीं, बल्कि समझते भी हैं।