(एक रोमांटिक कहानी जो दिल को भीगा देती है)प्रस्तावना:
बारिश हर किसी के लिए कुछ न कुछ खास लेकर आती है। किसी के लिए यादें, किसी के लिए सुकून... और किसी के लिए — पहला प्यार।कहानी शुरू होती है...
नाम: अवनि, एक सीधी-सादी कॉलेज की छात्रा।नाम: आरव, कॉलेज का सबसे शांत लेकिन सबसे होशियार लड़का।
अवनि को बारिश से बेहद प्यार था। हर बार जब बादल घिरते, वो छत पर जाकर भीगने लगती। लेकिन एक याद उसके दिल में छुपी थी — एक अधूरी मुलाकात, एक अनकहा अहसास।
कॉलेज के पहले दिन, जब पहली बारिश हुई — अवनि अपने छाते के बिना भीगती हुई क्लास की ओर भाग रही थी। तभी पीछे से एक आवाज आई —
"छाता ले लो, वरना बीमार पड़ जाओगी।"
पीछे मुड़ी तो देखा — आरव खड़ा था, हल्की मुस्कान लिए।
अवनि ने पहली बार उसे इतने ध्यान से देखा — भिगा हुआ चेहरा, गीले बाल और आंखों में एक गहराई। उस पल में जैसे सब कुछ थम गया।धीरे-धीरे बढ़ती नज़दीकियाँ
वो पहली बारिश जैसे दोनों के दिलों को जोड़ गई। अब हर बार बारिश होती, दोनों एक साथ लाइब्रेरी की खिड़की के पास बैठते — चाय पीते, किताबें पढ़ते और बिना कहे बहुत कुछ कह जाते।
आरव शांत था, लेकिन उसकी आँखों में जो बात थी, उसे अवनि पढ़ने लगी थी।पहली मोहब्बत का इज़हार
एक दिन बारिश बहुत तेज़ हो रही थी। कॉलेज की छुट्टी हो गई। बाकी सब जा चुके थे, लेकिन अवनि और आरव लाइब्रेरी में ही थे।
अवनि बाहर देखने लगी — आसमान में बिजली चमक रही थी।
आरव ने धीरे से उसका हाथ पकड़ कर कहा:
"अवनि, तुम्हें पता है, मुझे बारिश से डर लगता था… लेकिन अब जब तुम साथ होती हो, तो लगता है ये डर भी प्यारा है।"
अवनि मुस्कुरा दी, और पहली बार उसके कंधे पर सिर रख दिया।
वो पल, वही बारिश — और उनका पहला प्यार — हमेशा के लिए एक मीठी याद बन गया।समाप्ति:
कभी-कभी एक मुलाकात, एक मौसम और एक नज़र ही काफी होती है किसी को हमेशा के लिए अपना बनाने के लिए।बारिश सिर्फ भीगने के लिए नहीं होती… कभी-कभी ये दिलों को भी करीब लाने का ज़रिया बन जाती है।
यह रहा "बारिश का पहला प्यार" कहानी का दूसरा भाग। यह भाग पहले भाग की भावनाओं को आगे बढ़ाते हुए कहानी को और भी रोमांचक, भावुक और दिल को छू जाने वाला बनाता है।
बारिश का पहला प्यार – भाग 2: अधूरी मुलाकात
बारिश के बाद की वो पहली शाम थी। मौसम में नमी थी, लेकिन दिल में जैसे कोई मीठी सी चुभन। आरव अब भी उस पहली बारिश की मुलाकात को भूला नहीं था। उसे वो लड़की, अन्वी, अब हर बारिश में याद आती थी।
वो बस एक मुलाकात थी, लेकिन उसके असर ने आरव की ज़िंदगी को पूरी तरह बदल दिया था।कुछ हफ्ते बाद...
कॉलेज की लाइब्रेरी में बैठा आरव, पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी नजरें दरवाज़े की ओर बार-बार उठ रही थीं। उसे उम्मीद थी कि शायद अन्वी फिर कहीं मिल जाए। लेकिन वो तो जैसे किसी बारिश के साथ आई थी और बादलों के साथ चली भी गई थी।
फिर एक दिन...
कॉलेज के कॉरिडोर में किसी लड़की की हँसी गूंजी। आरव का दिल धड़क उठा। उसने मुड़कर देखा — वही आँखें, वही मुस्कान... अन्वी!
पर उसके साथ एक लड़का था। बहुत करीब। आरव ने कदम पीछे खींच लिए।दिल की उलझन
आरव उस दिन चुप रहा, लेकिन उसकी आँखें अन्वी को हर जगह ढूंढ़ती रहीं। उसने मन ही मन फैसला किया — चाहे कुछ भी हो, वो अन्वी से बात करेगा। जानना चाहेगा कि वो एक मुलाकात उसके लिए क्या थी। क्या सिर्फ एक पल की कहानी थी या कुछ और?बारिश फिर लौटी...
कुछ हफ्तों बाद मौसम ने करवट ली। फिर वही बादल, वही हवाएं, और वही बारिश।
आरव दौड़ते हुए उसी जगह पहुंचा — जहां वो पहली बार मिले थे। भीगते हुए, ठिठुरते हुए, वो वहां खड़ा रहा... घंटों।
और फिर, कोई पीछे से आकर बोली —"इतनी भीगोगे तो बीमार हो जाओगे..."
आरव ने मुड़कर देखा — अन्वी!उसकी आंखों में वही चमक थी, लेकिन इस बार कुछ और भी था — जवाब।अधूरी बातों की पूरी शुरुआत
अन्वी धीरे से मुस्कुराई —"तुम हर बारिश में यहां आते हो?"आरव ने जवाब दिया —"हर बारिश में तुमसे मिलने की उम्मीद रहती है।"
अन्वी की आंखें भर आईं।"मैं तुम्हें ढूंढ़ती रही... लेकिन किस नाम से?"आरव हँस पड़ा —"बारिश वाला लड़का कह देती, शायद मिल जाता।"
दोनों हँस पड़े... और पहली बार सिर्फ भीगे नहीं, बल्कि एक-दूसरे के दिल की आवाज़ में भी डूब गए।
यह रहा "बारिश का पहला प्यार" कहानी का तीसरा भाग — जिसमें अब आरव और अन्वी की कहानी एक खूबसूरत मोड़ पर पहुँचती है, लेकिन साथ ही कुछ भावुक और गंभीर उतार-चढ़ाव भी सामने आते हैं।बारिश का पहला प्यार – भाग 3: वो आख़िरी बारिशअब रिश्ता नाम पा चुका था...
अन्वी और आरव अब दोस्त से कहीं ज़्यादा थे। उनका रिश्ता अब सिर्फ "बारिश की मुलाकात" तक सीमित नहीं रहा था — अब हर मौसम में एक-दूसरे की जरूरत बन चुके थे।
कॉलेज का आख़िरी साल था। कैंटीन की कॉफी, लाइब्रेरी की खामोशी, और हर शाम की बातें... सब कुछ जैसे अधूरा होता अगर एक-दूसरे की मौजूदगी न होती।लेकिन ज़िंदगी की राहें हमेशा आसान नहीं होतीं...
एक दिन अन्वी बहुत शांत थी। उसकी आँखों में कोई उदासी थी, जो आरव को बेचैन कर गई।आरव ने पूछा —"क्या हुआ?"
अन्वी ने मुस्कराने की कोशिश की, लेकिन उसकी आँखें छलक पड़ीं।"मुझे कहीं दूर जाना है, आरव... हमेशा के लिए।"
आरव चौंक गया —"क्यों? क्या हुआ है?"
कुछ देर चुप रहने के बाद अन्वी बोली —"मेरे पापा का ट्रांसफर लंदन हो गया है। और वो चाहते हैं कि मैं वहीं जाकर पढ़ाई पूरी करूं... और शायद शादी भी।""शादी?"रिश्ता जो बारिश से जुड़ा था, अब आँसुओं से भीग रहा था।
आरव चुप रहा, लेकिन उसकी आँखों में तूफान था। उसने कहा —"तुम चली गईं, तो ये बारिशें भी सूनी लगेंगी..."
अन्वी रो पड़ी —"मैं भी नहीं चाहती जाना... लेकिन कभी-कभी दिल की नहीं, दुनिया की सुननी पड़ती है।"वो आख़िरी मुलाकात...
रविवार की शाम थी। मौसम फिर से भीगा हुआ था।अन्वी और आरव उसी पुराने बस स्टॉप पर मिले, जहां पहली बार मिले थे।दोनों भीगते रहे, चुपचाप।
अन्वी ने कांपते हुए कहा —"अगर कभी ज़िंदगी दोबारा मौका दे... तो फिर इसी बारिश में मिलेंगे, ठीक?"
आरव ने बस इतना कहा —"मैं हर बारिश में यहीं रहूंगा... तुम्हारा इंतज़ार करता हुआ।"
अन्वी चली गई... लेकिन आरव की यादों में वो हमेशा के लिए बस गई।समाप्त? नहीं... एक उम्मीद बाकी है।
क्या अन्वी कभी लौटेगी?क्या आरव की हर बारिश की दुआ रंग लाएगी?या ये प्यार सिर्फ बारिश की एक अधूरी कहानी बनकर रह जाएगा
बहुत ख़ूब!तो आइए पढ़ते हैं — उस अधूरी मोहब्बत की अगली और सबसे भावुक किस्त...बारिश का पहला प्यार – भाग 4: फिर से... उसी मोड़ पर5 साल बाद...
शहर बदल चुका था। रास्ते नए थे, लेकिन कुछ जगहें अब भी वैसी ही थीं — जैसे वक़्त वहाँ थम गया हो।और उन्हीं में से एक जगह थी — वो पुराना बस स्टॉप, जहाँ पहली बार आरव और अन्वी मिले थे।
आरव अब एक आर्किटेक्ट बन चुका था। ज़िंदगी में बहुत कुछ हासिल कर लिया था — नाम, काम, पहचान...पर जिसे सबसे ज़्यादा चाहा था, वो अब भी अधूरी थी।
हर साल की पहली बारिश में, वो उसी बस स्टॉप पर आता था... बस एक उम्मीद के साथ।और फिर...
इस साल की बारिश कुछ अलग थी। आसमान में गहराई ज़्यादा थी, हवा में भी कोई पुराना एहसास।
आरव जैसे ही पहुँचा, उसे वहाँ एक लड़की बैठी दिखी — भीगी हुई, छतरी के बिना... बस जैसे कोई इंतज़ार कर रहा हो।
वो करीब गया, धड़कनों के साथ... और वो चेहरा देखा...
"अन्वी?"
वो मुड़ी। उसकी आँखों में आंसू और मुस्कान साथ-साथ थे।
"तुम अब भी आते हो?"आरव की आँखें भर आईं —"मैं तो कभी गया ही नहीं..."सच सामने आया
अन्वी ने बताया —"शादी तय थी, लेकिन मैं कभी तैयार नहीं हुई। पापा को समझाने में वक्त लग गया... लेकिन मैंने हार नहीं मानी। पढ़ाई पूरी की और आज लौट आई, तुम्हें ढूँढ़ने।"
आरव ने पूछा —"और अगर मैं ना होता?"
अन्वी मुस्कुराई —"तो हर बारिश आती रहती... और मैं यहीं बैठती रहती... जैसे तुम बैठे थे।"एक नया आग़ाज़
आरव ने उसका हाथ थामा —"अब बारिशें अकेली नहीं होंगी।"अन्वी ने कहा —"क्योंकि अब हम साथ भीगेंगे... हर मौसम में।"
फिर बारिश तेज़ हो गई... और उसके साथ दोनों के प्यार की कहानी भी पूरी हो गई।अंत नहीं... एक नई शुरुआत
"बारिश का पहला प्यार" अब बस एक याद नहीं था —वो एक अमर रिश्ता बन गया था,जो हर पहली बारिश में भीगता रहा... खिलता रहा।