अब आगे.......
रांगा इशिता को लेकर अपने कबीले में पहुंचता है,, इशिता को देखकर सबको अजीब लगता है कि उनके कबीले में उनके सरदार ये किस बाहरी को ले आए लेकिन रांगा के डर की वजह से कोई कुछ नही बोला , रांगा इशिता को लेकर उपचार वाले कमरे में पहुंचता है... इशिता को वही लेटाकर अपने डॉक्टर को बुलाता है... " सुभार ..! वैद्य जी को बोल सरदार ने जल्दी आने के लिये कहा है.... " सुभार वहाँ से चला जाता है और रांगा इशिता के पास हीं था,.....इशिता बेहोश थी लेकिन रांगा ने उसे छुया तक नहीं, वो खुद भी जान पा रहा था की वो इशिता के पास क्यूँ नहीं जा पा रहा था.... उसने अधिकतर सभी लड़कियों के साथ बुरा हीं किया था.... रांगा अभी इशिता को देख कर कुछ कहता उससे पहले हीं ऊमी वैद्य को लेकर पहुंच चुकी थी...
" सरदार.. वैद्य जी... " ऊमी जोकि इशिता को देखकर मुँह बनाते हुए कहती है.... " सरदार आप इसे क्यूँ लाये.... " रांगा उसे घूरकर देखता है जिससे ऊमी चुप चाप साइड में जाकर खड़ी हो गई... डॉक्टर इशिता की नब्ज़ देखकर कहता है.... " रांगा इनकी सांसे धीमी चल रही है.. जल्द हीं किसी शहरी डॉक्टर को बुलाना होगा जोकि इनका इलाज कर सके... " रांगा कुछ सोचते हुए कहता है.." उसकी जरुरत नहीं है सिर्फ इतना बताओ की, गोली हाथ में है या नहीं... " डॉक्टर मना करते हुए कहता है.. " नहीं , गोली छुकर निकल गयी है... " रांगा मुस्कुराते हुए कहता है.... "तो फिर इन्हे वो घाव निरोधक के पत्ते उसका लेप लगा दो ठीक हो जाएंगी...." वो डॉक्टर याद करते हुए कहता है... " मुझे माफ़ करना में भूल गया था... आप भी तो औषधि की जानकारी रखते है, फिर आप हीं क्यूँ नहीं लगा देते... " रांगा उसे गुस्से में घूरते हुए कहता है... " तुम्हे वैद्य क्यूँ बनाया है यहां फिर... जल्दी वीरा को ठीक कर नहीं तो.. " रांगा की बात कटे हुए डॉक्टर कहता है.... " मुझे माफ़ करना... " इतना कहकर वो इशिता का ट्रीटमेंट करने में लग गया... रांगा वहाँ से बाहर चला गया ताकि डॉक्टर बिना डरे उसका इलाज कर सके.... लेकिन ऊमी वही खड़ी इशिता को देखते हुए बड़बड़ाते हुए कहती है..... " अब सरदार को ये क्यूँ पसंद आगई,, मै भी उनसे कितना प्यार करती हूँ , उन्हें दिखता नहीं है, पहले मालिनी और अब ये... " ऊमी को इशिता से काफी जलन महसूस हो रही थी और गुस्से में हीं कहती है... " नहीं सरदार इस बार नहीं, मै इसे जिन्दा नहीं बचने दूंगी.. " ऊमी गुस्से में वहाँ से चली जाती है...
और डॉक्टर भी इशिता का ट्रीटमेंट करके बाहर आता है.. जिसे देखकर रांगा पूछाता है... " वीरा ठीक है अब... "
" जी.. बस शाम तक होश आजायेगा... " रांगा मुस्कुराते हुए कहता है... " ठीक है जाओ , जब जरुरत होंगी बुला लूंगा... " इतना कहकर रांगा अपने चौपाल पर चला जाता है....
उधर गाँव में सभी उदासी से चौपाल पर बैठे बस कल हुई घटना के बारे में बाते कर रहे थे.... " ऐसा नहीं होना चाहिए था... अगर वीरा जी नहीं आयी तो हम कैसे रहेंगे... "
सोमेश समझाते हुए कहता है... " नहीं वीरा जी जरूर आएगी... " बरखा परेशानी भरी आवाज में कहती है... " वीरा घायल है , और हमें ये भी नहीं पता की वो ठीक भी है या नही... " सुमित बरखा की हा में हा मिलते हुए कहता है... " बरखा ठीक कह रही है , मुझे लगता है किसी को वहाँ जाकर देखना चाहिए... " सब सुमित की बात से सहमत थे... इसलिए सबने मिलकर निरुपम को भेजने का फैसला किया जोकि रांगा के लिये अफीम ले जाया करता था, इसलिए उसके जाने से कोई खतरा भी नहीं होगा यही सोचकर सबने हामी भर दी....निरुपम गाँव से सीधा रांगा के कबिले की तरफ चला जाता है...
इधर सबके जाने के बाद ऊमी हाथ में गिलास लिये इशिता के कमरे में पहुंच जाती है.... शातिराना अंदाज में कहती है... " वीरा, अब तुम ज्यादा समय तक सांसे नहीं ले पाओगी.. ये जहर तुम्हे हमेशा के लिये सुला देगा.... " ऊमी गिलास में भरे जहर वाले पानी को इशिता को पिलाने के लिये उस के पास जाती है...वो जहर इशिता के होठो तक पहुंच चुका था , वैसे हीं कोई उसके हाथ को पकड़ लेता है , ऊमी घबरा गई...
..... " तुम... "....
....... To be continued........