Swayamvadhu - 51 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 51

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स्वयंवधू - 51

इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता। 
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।

छापा
समीर को मनाने के बाद मीरा और राहुल के बीच नज़दीकी बढ़ने लगी। वे लगभग अविभाज्य थे। समीर भी खुश था।
वह अपनी बिगड़ती हुई सेहत को छुपाए अपना सामाजिक दायरा बढ़ा रही थी।
राहुल के माध्यम से उसकी मुलाकात अन्य व्यवसायी बच्चों से और मीडिया के छोटे लेकिन काम के लोगो से हुई जो उसकी उम्र के थे, कुछ बड़े थे तो कुछ छोटे। वह सबके साथ घुलमिल गई, बस एक मिनट के लिए, फिर उसकी वृषाली वाली साइड भारी पड़ जाती और वो चुप हो जाती। उनमें से अधिकांश ने उसके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया, लेकिन कुछ अमीर बिगड़ैलो ने उसके साथ खिलौने की तरह व्यवहार किया। उन बिगड़ैल बच्चों ने समीर की बातों को ले, वृषाली को मीरा की तरह इस्तेमाल करने कि कोशिश की। राहुल उसे हमेशा बचा लेता था और अधीर भी। अधीर उसके साथ चौबीस घंटे रहने लगा।
ऐसे ही अपनी पहचान बनाने के चक्कर में एक दिन एक इटालियन सात सितारा रेस्तरां में, हलदर फार्मास्युटिकल कंपनी के मालिक बिपिन हलदर के बेटे बिनॉय हलदर से मिलने जाना पड़ा। बिनॉय ने उसे रात के खाने पर आमंत्रित किया था। वह समीर के लिए एक विशेष व्यापारिक साझेदार थे, जिनके व्यवसाय में उसने निवेश किया था। इसलिए समीर से निमंत्रण मिलने के बाद, वह उनके अच्छे संबंधों के कारण अनिच्छा से जाने के लिए सहमत हो गई। बोनस, वह वृषा का पूर्व सहपाठी था। उसे लगा वो कुछ सबूत समीर के खिलाफ जुटा पाएगी।
समीर ने तो उसे छोड़ दिया, दबाव अधीर का था जो समीर को इतनी पसंद नहीं आई फिर भी सब अनदेखा किया।
बिनॉय ने अपने आदमियों के हाथ उसे एक खूबसूरत पन्ना हरा रंग की मखमली साड़ी, एक हीरे और सोने का हार का सेट और सोने की चमकदार वेजेस की एक जोड़ी भिजवाई।
वह हर चीज़ को लेकर संशय में थी, लेकिन उसने साड़ी पहन ली और तैयार हो गई, जैसे कि वह दूसरी शादी के लिए तैयार, एक सीरियल की बहू हो।
उसने अपनी गर्दन पर भूरे रंग के दर्दनाक पैच को ढकने के लिए विशेष रूप से मोटा मेकअप लगवाया था।
उसने उसे लेने के लिए अपना ड्राइवर भेजा। समीर ने उसे विदा किया।
सुरक्षित रहने के लिए उसने अपना स्थान राहुल और अधीर को भेज दिया। राहुल बिजनेस ट्रीप पर बाहर था।
अधीर उसके पीछे अपनी मर्ज़ी से गया बिना समीर को बोले।
वह बिनॉय के निजी सचिव के साथ रेस्ट्रां में दाखिल हुई। उसने औपचारिक रूप से हाथ मिलाकर विनय का अभिवादन किया, उसके सचिव को धन्यवाद दिया और उसके सामने बैठ गयी।
बिनय पाँच फुट ग्यारह इंच लंबा, साँवला आदमी था। उसने पूरा बिजनेस नेवी ब्लू सूट पहने हुए था। उसके बाल लहरा रहे थे, उसकी आँखें तेज़ थीं जैसे वह उसे तौल रहा हो।
उसने उससे पूछा, "सब कुछ कैसा चल रहा है?",
उसके सवाल से उलझन में पड़कर उसने पूछा, "ठीक है लेकिन क्यों?",
"कुछ नहीं, बस जाँच कर रहा हूँ। मैंने तुम्हारे अतीत के बारे में सुना है।", उसने रूखेपन से कहा, "तुम क्या चाहती थी?",
"हाँ?", उसने कंफ्यूजन में पूछा,
"ऑर्डर? वॉट डू यू वांट टू ईट?", वह चिढ़ से दबी साँस में बोला,
वह अचंभित थी, अगर वह उससे मिलना नहीं चाहता था तो उसने उससे मिलने की पेशकश क्यों की?
उसने मैन्यू में देख 'बिना चीज़ वाला स्कार्पेरिलो पास्ता' का ऑर्डर दिया।
वह हँसे, "वजन बढ़ने से डरती हो?",
"नहीं, बस डेयरी खाने के बाद लोगों की नाक खराब होने का डर है।", उसने भी मुस्कुराकर ताना मारा,
उनका खाना शीघ्र ही आ गया। वृषाली का स्कार्पेरिलो पास्ता और बिनॉय का अल्फ्रेडो पास्ता आ गया। वे बिना बोले खाना खा रहे थे। बीच में बिनॉय ने उसे रेड वाइन ऑफर की जिसे उसने धीरे से अस्वीकार कर दिया।
आश्चर्यचकित होकर उसने कहा, "तुमने छोड़ दिया? बच्चे?",
उसने भ्रम में अपनी भौंह उठाई, "आपका मतलब क्या है?",
"कोई बात नहीं। इस तरह की चीजें बुरी आदतों को बद देती हैं।", उसने टिप्पणी की,
डरते हुए उसने पूछा, "आप क्या बात कर रहे हैं?", उसका सिर घूमने लगा।
वृषाली के हाथ से फोर्क गिर गया।
"क्या हुआ?", बिनॉय ने पूछा,
"बस...", उसने अपना सिर पकड़ा,
"माफ कीजिएगा।", उसने अगल-बगल के लोगो से कहा और उसने उसका हाथ पकड़ा और उसे उस कमरे में ले गया जो उसने पहले से बुक किया था, जिसके बारे में वह नहीं जानती थी। उसने विरोध किया लेकिन उसकी कलाई पर उसकी पकड़ मज़बूत थी और उसने उसे एक ही बार में अपने कमरे में खींच लिया। कमरा बड़ा था और मखमली लाल कमरे में मंद पीली रोशनी फैल रही थी। वह घबरा गई, वह भागने के लिए दरवाज़े के हैंडल तक पहुँची, उसे लगा जैसे दरवाज़े का हैंडल खिसक गया हो। उसने फिर से कुंडी घुमाकर दरवाज़ा खोलने कि कोशिश की, लेकिन दरवाज़ा उसके सामने नाचता हुआ दिखाई दिया।
उसने उसकी कलाई फिर पकड़ी और उसे बिस्तर पर पटक दिया। उसके बाएँ पैर के वेजेस ज़मीन पर गिर गईं, जबकि दायाँ पैर अभी भी उसके पैर पर झूल रहा था और वह खुद को उससे छुड़ाने कि कोशिश में अपने हाथ-पैर मार रही थी। उसे कोई मौका दिए बिना, उसने अपने बाएँ घुटने से उसके पैरों को जकड़ लिया और उस पर झपट पड़ा। वह मदद के लिए चिल्ला रही थी, उसका दिल बेलगाम धड़क रहा था, दिमाग अस्त व्यस्त था, आँखो से आँसू गिर रहा था।
उसके पास्ता में मिलाई गई दवाओं ने उस पर नियंत्रण कर लिया था, वह पसीने से तरबतर हो गई थी, उसकी साँसें भारी हो गईं थी और उसने खुद पर से नियंत्रण खो बैठी थी।
बिनॉय ने उसकी कमर को अपनी लालची हाथों से छुआ जो उसके द्वारा भेजी गई हरी साड़ी से ढकी हुई थी। उसने उसकी कमर को काटा, उसे नोचा, फिर उसके साड़ी के पल्लू को अपने हाथों से खींचकर ताना। उसके नीचे का ब्लाउज दिखने लगा। उसने उसके गर्दन में अपना हाथ फेरा जिससे दर्द से उसका शरीर जल उठा। वह चेतना से जगी हुई थी पर उसका शरीर सोया हुआ जो बिनॉय के हल्के छुअन से डर से सिहर जाता। खौफ, डर, भय, लाचारी, सदमा सब कुछ उसपर हावी होने लगे। अचानक उसका शरीर काँपने लगा जैसे उसे झटके लग रहे हो। वह पीछे हट गया। उसने उसकी ओर देखा नहीं, बस उसके पर्स में कुछ कागज ठूँस दिया और उसकी नाड़ी जाँचने लगा। बिनॉय के शरीर, खासकर नीचे के भाग में उत्तेजना साफ दिखी लेकिन उसने खुद को सँभाला और अचानक उसके सामने दरवाज़ा टूट गया। उसने मौका पाकर वहाँ से भाग निकला। अधीर अंदर घुसा और तुरंत उसे अस्पताल ले गया तथा अपने आदमियों को बिनॉय का पीछा करने का आदेश दिया।
उसकी हालत कागज़ पर स्थिर थी, केवल गर्दन पर छोटा सा कट था और अगली शाम उसे छुट्टी दे दी गई। जैसे ही वह बिजलानी के घर में दाखिल हुई और समीर को देख वृषाली का शरीर की जगह वो अंदर से उबल पड़ी जिससे उसकी आँखें लाल हो गईं और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, उसने अपना चेहरा उससे दूर कर लिया। समीर उसके पास आया तो वह चौंक गई। जैसे ही वह उसके पास पहुँचा, वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसने उसे गले लगाया और उसे दिलासा दिया। वृषाली को समीर को बेनकाब करने की अपनी क्षमता पर संदेह होने लगा। वह खुद पर कमज़ोर होने के कारण हताश होकर रो रही थी। समीर ने उसे समझाया कि यह उसकी गलती नहीं थी।
मीरा की तरह अभिनय करने की कोशिश करते हुए रोना, "क्या यह मेरी गलती नहीं है?", उसके चेहरे पर आँसू बह रहे थे,
उसने उसके सिर पर थपथपाया, "हाँ, शांत हो जाओ। तुम जिस आदमी से मिली वह बिनॉय नहीं था।",
वह चौंककर प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी ओर देखने लगी।
"मैं समझाऊँगा। पहले बैठो, आराम करो और रोना बँद करो।",
वह सोफे पर बैठी, गर्म पानी पिया। पानी पीते समय उसने देखा कि एक आदमी अंदर आया। वह असमंजस में उनकी ओर देखने लगी।
समीर ने परिचय दिया, "वह असली बिनॉय है जिससे तुम्हें मिलना था।",
वह उसे हैरान होकर देखने लगी। वह उस आदमी के बराबर ही ऊँचाई का था, लेकिन हल्का गेहुआ रंग और उसकी आँखें नींद से भरी थीं।
"सर सही कह रहे हैं मिस मीरा। यह मैं हूँ जिसे आपको होटल में मिलना था।",
"क्या?!", उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ,
असली बिनॉय उसके सामने सोफे पर बैठ गया। वह उससे बहुत प्रभावित थी। उसने मेज़ के पार अपना बिजनेस कार्ड उसकी ओर सरकाया।
"कल तुम मुझसे मिलने वाली थी।", उसने कहा,
"क्यों?", उसने पूछा,
"मैं तुम्हारे मेडिकल इतिहास का अध्ययन कर रहा था और पाया कि तुम्हारे शरीर में जमा हुआ ज़हर, जो तुम्हारे शरीर से बाहर नहीं निकल पाया, धीरे-धीरे तुम्हें मार रहा है।", उसने कहा,
उसके हाव-भाव नहीं बदले, "लेकिन मैं ठीक हूँ और अभी भी ठीक हो रही हूँ। मिस्टर बिजलानी के मार्गदर्शन में मुझे अच्छी देखभाल मिल रही है।", उसने कहा,
"मुझे पता है कि यह समझना तुम्हारे लिए आसान नहीं है, लेकिन तुम्हारे लिए-", उसने उसे बीच वाक्य में ही रोक दिया,
"मुझे खेद है, लेकिन कल की रात मेरे लिए काफी भारी थी, क्योंकि कोई अपने काम में व्यस्त था और किसी को किसी बलात्कारी के हाथों में छोड़ दिया था। नमस्ते।",
उसने उसे उसकी बात पूरी नहीं करने दी। वह बिना कुछ महसूस किए ऊपर चली गई।
यह उसके लिए कठिन था। इस समय वह वृषाली के रूप में फटने से कुछ ही दूर थी। जैसे ही वह कमरे में दाखिल हुई, उसके हैंडबैग, कपड़े और सामान कमरे के दूसरी तरफ उसकी कॉफी टेबल पर पंक्तिबद्ध रखे हुए थे। वह पूरे घर के साथ कपड़े, जूते सबकुछ जला देना चाहती थी। उसने फोन की तलाश में अपना पर्स खोला। जब वह अपना फोन खोज रही थी तो उसे पर्स की गुप्त चेन के अंदर कुछ महसूस हुआ। उसने चेन खोला और उसमें एक कागज़ मुड़ा हुआ था। उसने उसे खोलकर देखा बिल रसीद की तरह, 'हलदर फार्मास्युटिकल- खतरा', लिखा था।
वह यह हिसाब लगा रही थी कि यह असली है या नकली।
उसने नोट को उलट-पलट कर देखा, छिपे हुए संदेशों को देखा, प्रकाश के माध्यम से देखा। यह सामान्य था। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि इसमें मोनिका के बुटीक का बिल था, जो कुछ सप्ताह पहले का था जब उसने वहाँ खरीदारी की थी। उसने उसे कूड़ेदान में फेंक दिया।
उसने दरवाज़े पर दस्तक सुनी। उसने ऊपर नहीं देखा बस कहा, "मुझे आराम की ज़रूरत है।", उसने कहा, आवाज़ काँप रही थी,
"पहले ऊपर देखो मीरा। क्या हम बात कर सकते हैं?", समीर ने कहा,
"मुझे घृणा महसूस हो रही है। यह अतीत की मीरा के लिए सामान्य होगा, वर्तमान के लिए नहीं। मुझे खुद पर घृणा महसूस हो रही है, इसलिए मुझे अकेले में रोने दो?", उसने दरवाज़ा बँद करने कि कोशिश की और समीर अंदर आ गया।
वह उसके सोफे पर बैठ गया, "अपने आप से घृणा करो मैं यहाँ रहूँगा।",
यह सुनकर उसे वृषा और उसकी जिद्दीपन की याद आती थी जब वह दुखी या आहत होती थी। अपहरण के बाद पहली बार उनकी बातचीत इसी तरह हुई थी। उसे अपने दिल में एक जकड़न महसूस हुई।
"तुम मुस्कुरा रही हो और शर्मा रही हो?", समीर ने पूछा,
तभी उसे एहसास हुआ कि वह अनजाने में मुस्कुरा रही थी। फिर उसने अपना एहसास खत्म किया। समीर ने पूछा, "तुम्हें फैशन पसंद है?", वह उन किताबों की ओर इशारा कर रहा था जिन्हें उसने अपनी ड्रेसिंग टेबल के ठीक बगल में रखी शेल्फ पर छोड़ दिया था। वह घबरा गई और उसे पसीना आने लगा।
"क्या?", मुस्कुराते हुए उसने पूछा, "नहीं। यह स्टोर से एक उपहार था जब उन्होंने मुझसे फैशन के बारे में मेरी राय के बारे में पूछा था। मैं उनके पैमाने पर नकारात्मक थी।", उसने समझाया,
"ठीक है।", फिर वह खड़ा हुआ और बाहर जाने लगा। जाते हुए उसने कहा, "मेरा भरोसा कभी मत तोड़ना।",
यह एक चेतावनी की तरह थी।
तब से वह जानती थी कि उसे सब कुछ तेज़ी से करना है, रोने का समय नहीं था।
"क्या किया मैंने जो अपना मुझसे भरोसा टूट जाए?", उसने पूछा,
समीर कमरे से बाहर जाते हुए रूक गया और वृषाली की तरफ भ्रमित होकर मुड़कर देखा।
"मैंने अपनी भावना आपके लिए त्याग दी और दूसरे के साथ आपकी खुशी के लिए जी रही हूँ... कोशिश चल रही है।",
समीर ने कुछ नहीं कहा बस उसे ऊपर से नीचे देख वहाँ से निकल गया।
इस सब के बाद उसे इतनी थकान महसूस हुई कि वह बिस्तर पर ही पलटी हो गई।
रात को वह भारीपन, पसीने और बीमारपन महसूस करते हुए जाग उठी। उसने दाहिनी ओर करवट बदली, लेकिन उसकी गर्दन पर तेज़ दर्द ने मारा, जिससे उसका निचला हिस्सा लगभग लकवाग्रस्त हो गया। उसका शरीर जल रहा था और दर्द उसे जकड़ रहा था। वह किसी तरह आपातकालीन बटन दबाने में कामयाब रही जिसे अधीर ने उसे आपात स्थिति में दबाने के लिए कहा था और इंतजार किया।
अधीर उसकी नर्स के साथ कमरे में घुसा और देखा कि वह दर्द से काँप रही थी।
नर्स ने तुरंत उसकी जाँच की और बताया, "उसकी गर्दन का घाव सेप्टिक है जो शायद स्पाइन तक पहुँच गया हो। उसे तत्काल हॉस्पिटल ले जाने की आवश्यकता है। हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है।",
उसके पास कोई विकल्प ना होने के कारण उसने उसे उठाया और जितनी जल्दी हो सके अस्पताल ले गया। वहाँ आपातकालीन डॉक्टर उसका इलाज कर रहे थे। इस बीच अधीर ने समीर को कई फोन किये और कई बार उसे संदेश भेजा लेकिन वह संपर्क में नहीं था इसलिए अधीर को उसकी सारी जिम्मेदारियाँ अपने ऊपर लेनी पड़ी और उसकी ओर से कागज़ात पर हस्ताक्षर करने पड़े।

समीर वास्तव में अनुपलब्ध नहीं था, बस उसके बेटे ने उसके मानव तस्करी अड्डे पर छापा मारा था तो वो वहाँ वृषा की जान लेने में व्यस्त था, जबकि उसका फोन ज़ंजीर के हाथ में था जब उसने गलती से उसे अपनी कार में भूल गया था। पुलिस से लड़ते और उसे मारते समय ज़ंजीर ने जानबूझकर सभी कॉल और संदेश डिलीट कर दिए। तभी उसे एक बच्चे के रोने की आवाज़ मिली।

मीरा दर्द से करहा रही थी।
इस बीच, राहुल, जो व्यवसायिक यात्रा के कारण बाहर गया हुआ था, मीरा से मिलने की माँग करते हुए अस्पताल में घुस आया। अधीर ने बस कोशिश करना बँद कर दिया और घबराए हुए राहुल को नियंत्रित किया। डॉक्टर, वही डॉक्टर जिसने उसकी गर्दन पर चिप लगाई थी, उसका इलाज करने आया। उन्होंने अधीर को एक तरफ खींचा, "मैंने पहले ही समीर सर को चेतावनी दी थी कि इस चिप को पेशेवर द्वारा निगरानी में रखने की आवश्यकता होगी ताकि यह सेप्टिक न हो जाए। अगर उसकी रीढ़ प्रभावित हुई तो यह जान के लिए खतरा हो सकता है। हमें इस चिप को जल्द से जल्द हटाने की ज़रूरत है।",
"हमारे पास कितना समय है?", उन्होंने अभी भी अपने बॉस से संपर्क करने की कोशिश करते हुए पूछा।,
"एक मिनट।", उसकी आँखों में मृत भाव था,
वह एक सेकंड के लिए रुक गया। वह जानता था कि उसे समीर की अनुमति लेनी चाहिए लेकिन उसकी हालत हर निकलते पल के साथ बिगड़ती जा रही थी। उसका मरना उसकी लिए मौत का फरमान था। अंत में उसने डॉक्टर बिनॉय को बुलाया गया और सारी कहानी बताई। वह दस मिनट बाद आया और ऑपरेशन शुरू हुआ। ऑपरेशन जटिल था। उसका खून सामान्य से पतला था। ऑपरेशन के दौरान उसका बहुत खून बह गया। अस्पताल में 'ओ पॉजिटिव' खून खोजने की दौड़ थी।
उसका घाव अंदर ही अंदर सड़ रहा था। सड़ा हुआ माँस, पस और बदबू ने पूरे कमरे को उस बू से भर दिया था। डॉक्टर को चिप को निकालने और आगे की क्षति को रोकने में काफी कठिनाई हुई। सर्जरी पूरी पाँच घंटे चली। सुबह हो चुकी थी। बाहर पक्षियाँ चहक रहे थे, अंदर अधीर बेचैन बैठा था। डॉक्टर बाहर आया और बताया कि उसकी हालत स्थिर है, लेकिन उसे चौबीस घंटे की गहन निगरानी में रखनी होगी। इस बीच अधीर ने समीर को स्थिति के बारे में अपडेट किया, जिसे हर बार की तरह ज़ंजीर द्वारा हटा दिया गया।