इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।
दोपहर बारह बजे डॉक्टर ने अधीर को उससे मिलने की इज़ाज़त दी। राहुल उनके साथ था लेकिन उनसे दो कदम दूर था। डॉक्टर बिनॉय वहाँ आया और उन्हें संक्रमित चिप दिखाई। चिप पर सड़ा हुआ माँस चिपका हुआ था। अधीर ने राहुल को घूर कर देखा, राहुल ने तुरंत उसके सामने अपना सिर थोड़ा झुकाकर और दायां हाथ से अपनी टाई को ठीक कर बाहर चलने लगा। उसकी नज़र वहाँ रहे काले फूलदान पर जयी। उसचे हाथ में स्टिकर जैसी कुछ चीज़ थी। उसने जानते हुए जानबूझकर वहाँ रखे काले फूलदान से टकराया और उसे ठीक करने का दिखावा कर स्टिकर को उस पर सफलतापूर्वक चिपका दिया। अधीर उसे नीची नज़रो से देख रहा था।
अंदर, "यही कारण है कि उसकी हालिया स्वास्थ्य रिपोर्ट से पता चला कि वह मर रही थी। लेकिन अब वह ठीक-ठाक है।",
"ठीक-ठाक से तुम्हारा मतलब क्या है?",
"सर, आपका क्या मतलब है? आपने पहले ही उसके शरीर को इन दो सालों में अंदर से नष्ट कर दिया है। उसे पीड़ा दिखाने के लिए आपने उसके साथ जो अमानवीय चीजें कीं यह सब अंश मात्र हे। उसके शरीर की एक भी हड्डी स्वस्थ नहीं है। हर हड्डी तोड़ी गई है वो भी बार-बार। विशेष रूप से उसके पैर, तोड़ना, जुड़ना, तोड़ना, जुड़ना, तोड़ना, जुड़ना, इसी क्रम में उसकी हड्डियाँ थी और बाकि डॉक्टरों की गंदी नज़र...", वह अंदर से गुस्से से उबल रहा था पर बाहर से शांत था, "मे!री! सलाह के विरुद्ध आप सभी उसे दर्जनों अनधिकृत, अवैध दवाइयाँ देते आ रहे। यही मुख्य कारण था कि उसका शरीर समय पर प्रतिक्रिया नहीं कर पाया। यह एक चमत्कार है कि वह आपातकालीन बटन दबाने में सक्षम थी, अन्यथा वह बच नहीं पाती। लेकिन कुछ ठीक नहीं है... वह आमतौर पर जल्दी ठीक हो जाती थी लेकिन इस बार... वो बदकिस्मत दिख रही है।",
"ज़बान देना आता है तो काटना भी आता है।", अधीर ने उसके कंधे में हाथ रखकर कहा,
"क्षमा।", बिनॉय ने धीरे से कहा।
बिनॉय वहाँ से बाहर निकल गया। बाहर दोंनो ने एक दूसरे को हारकर देखा।
अंदर अधीर ने समीर को सारी बातें बताने के लिए कई बार फोन करना चाहा। वह उपलब्ध नहीं था। अनिच्छा से उसने ज़ंजीर को फोन किया जिसका फोन अभी भी बँद था, उसने उसे तत्काल कॉल करने के लिए संदेश छोड़ा। तभी अधीर का एक आदमी हड़बड़ाते हुए अंदर आया,
"सर, एक बड़ी मुसीबत आ गयी है। सरयू ने समीर सर को अपने कब्ज़े में ले लिया है।",
उसी समय समीर की अनुपस्थिति में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को निपटाने के लिए अधीर को कंपनी में बुलाया गया था। ना चाहते हुए भी वृषाली को राहुल के भरोसे अपने दो आदमियों के साथ छोड़कर उसे जाना पड़ा।
दोंनो आदमी बाहर थे जबकि राहुल उसके साथ अंदर था। लगभग नौ बज चुके थे, बेहोश वृषाली का चेहरा को उसने प्यार से छुआ। वो उसके बगल थककर बैठ गया। आधे घंटे के बाद अचानक उसके अंग थोड़े फड़कने लगे फिर वो तड़पने लगी फिर शांत हुई। राहुल उसके साथ अकेला था। राहुल ने तुरंत डॉक्टरों को बुलाया। उन्होंने उसकी महत्वपूर्ण जाँच की। उसकी धड़कन सामान्य थी, साँसे स्थिर थी। दस मिनट के बाद उसने आखिरकार अपनी आँखें खोलीं। वह हतप्रभ होकर सब कुछ समझने कि कोशिश कर रही थी। कुछ मिनट बाद वह फिर से सो गयी। राहुल घबरा गया। उसने बिनॉय से पूछा, "क्या हुआ? अचानक उसने ऐसा क्यों किया...", वह बुरी तरह से डर गया था,
"वह ठीक है। वह स्थिर है। बस उसपर नज़र बनाए रखना होगा।", बिनॉय ने उसे आश्वासन दिया।
सुबह वह असहनीय दर्द से तड़पते हुए जागी। वह उससे छुटकारा पाने के लिए दर्द से चिल्ला रही थी। बिनॉय और अन्य डॉक्टर पूरे दिन उसे दर्द निवारक दवाएँ देते रहे। हर रचना, हर ब्रांड और उच्च खुराक जो बहुत खतरनाक थी, उन्होंने सब कुछ करने कि कोशिश की, दर्द असहनीय था। वह पूरे दिन झटपटाते हुए रोती रही। एकमात्र समय जब उसे आराम मिला, वह तब था जब उसे नींद के इंजेक्शन देकर सुलाया गया। राहुल अधीर को हर पल की जानकारी देने बाहर गया।
दवाईयाँ बेकार थी। यह एक अच्छी मदद नहीं थी। यह उसकी स्थिति को और दयनीय बना रहा था।
दूसरी ओर, वृषा ने एक महीने के भीतर समीर के मानव तस्करी के एक और अन्य मुख्य अड्डे को नष्ट कर दिया, यह उसका तीसरा हमला था। इस बार इस जंग का नेतृत्व सरयू कर रहा था। जंजीर वृषा के आदमियों से लड़ रहा था और समीर सरयू से।
सरयू का समीर पर पूरा नियंत्रण था। जीवन ने उसे व्यक्तिगत रूप से इसी के लिए प्रशिक्षित किया था। जीवन, समीर के हर युद्धक कदम को पहले से ही जानता था और सरयू को उसी हिसाब से बच्चपन से तैयार करता गया। सरयू ने समीर की गर्दन में कसकर एक मारी जिससे वो वही बेहोश हो गया और उसे इसी शहर के व्यस्त इलाके में छिप दिया, जहाँ उनका आसानी से पता ना चल सके। जंजीर ने समीर को हर जगह ढूँढा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वह पुलिस विभाग या पुलिस को नहीं बुला सकता था। समीर की नाक का सवाल था।
अधीर भी समीर की खोजबीन में व्यस्त था। वह हर रात उसे देखने आता था पर एक दिन अधीर की जगह, आधी रात को दूसरी कदमों ने वृषाली के कमरे में दस्तक दी। अधीर के आदमी कमरे के बाहर रखी बेंच पर बेसुध सोए पड़े थे। उस कदमों का मालिक बेझिझक अंदर घुसा। उसकी नज़र कुर्सी पर बैठे राहुल पर गयी। दोंनो ने एक दूसरे को बिना बोले आँख से अभिव्यक्त दिया और वहाँ से चुपचाप निकल गया।
उसने कमरे में जलती नाइट लैंप को बुझा दिया। कमरा पूर्ण अंधकार से ढक गया। उस आदमी का लॉकेट लाल रोशनी से चमक रहा था। कमरे में वही एक रोशनी का साधन था। वह धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा। यह वृषा था, उसका कवच। उसकी अभिव्यक्ति ना तो तटस्थ थी और ना ही अभिव्यक्त करने वाली। उसने ध्यान से उसके पैरों को छुआ, फिर उसके टखनों और पैरों को। उसके हाथ काँप रहे थे क्योंकि वह उसके साथ घटित हर क्रूर घटना को अपने समक्ष देख रहा था। उसने अपने घायल हाथों से उसके आँसू और पसीने को पोंछा, कुछ घाव ताज़े थे, कुछ पुराने थे और कुछ अभी ठीक हो रहे थे।
हाथ लगते ही वह दर्द से कराह उठी। वह अपने आँसू रोकने कि कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी आँखें झूठ बोलते बोलते थक चुकी थीं। वे सच्ची भावनाओं से फूट पड़े, उसके आँसुओं से भीगे गाल इस मज़बूत आदमी के टूटने के बिंदु के गवाह बने। जिस किसे से भी वह प्यार करता था, उनका यही हश्र होता था।
उसकी दादी की मृत्यु ज़हर के कारण हुई, शिवम ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया जबकि राज ने अपने पिता को खोया, जैसे ही सरयू ने मुझे अपने साथ खेलने के लिए कहा, उसका जीवन मौर से घिर गया। आर्य जो उसका बहुत करीब था, अब उनकी पत्नी और अजन्मे बच्चे को खतरा था जहाँ पुलिस और न्याय भी अपने हाथ खड़े कर चुकी थी। और यह, सबसे क्रूर चीज़ उसके सामने दर्द में पड़ी हुई थी। उसने जल्दी से उसके गालों से आँसू पोंछे, उसे डर था कि कहीं इससे कोई और संक्रमण ना हो जाए। वह तेज़ बुखार से तप रही थी।
"चिंता मत करो, बच्चे। मैं तुम्हें जल्दी ही यहाँ से ले जाऊँगा।", उसने अपनी काँपती आवाज़ से कहा,
उसकी आवाज़ सुन वृषाली ने धीरे से आँखे खोली।
"वृषा...", उसकी आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी, "मैं हमेशा आपको रोते हुए देखना चाहती थी लेकिन इस तरह नहीं।", उसने मुस्कुराते हुए कहा।
"क्या अब भी मुझ पर उपहास करने की शक्ति है?", उसने उसके चेहरे की ओर बढ़ते हुए पूछा,
उसने ध्यान से उसके पसीने और आँसुओं से मिश्रित सूखी त्वचा को छुआ और उसके गालों को चूमा। वृषाली नींद की गोलियों के नशे में थी।
उसने उसे सावधानी से गले लगाया ताकि उसकी गर्दन पर फिर से चोट ना लगे। उसकी दवाइयों के पास चाकू रखा था। उसने उसे उठाया और चाकू से अपनी हथेली पर वार किया, खून ज़ोर-ज़ोर से टपकने लगा।
"इस बार यह खून बेकार बहने की बजाय असल में कुछ करेगा।", उसने सावधानी से पट्टियाँ हटाईं और उसे गले लगाते हुए अपनी खून से सनी हथेली उसकी गर्दन पर रगड़ी।
पिछली बार जब उसने उसे देखा था, तब की तुलना में वह अधिक छोटी महसूस कर रही थी।
"मुझे पता है कि जब तुम सो रही हो तो ऐसा कहना गलत है, लेकिन मुझे नहीं पता कि तुम मेरे बारे में कैसा महसूस करती हो पर... मैं तुमसे प्यार करता हूँ।", उसकी आवाज़ एक ही समय में काँप रही थी और स्थिर भी थी, "आज दो साल हो गए है उस बात को जब मैंने पहली बार तुम्हें अपना माना। उसी दिन मुझे तुम्हें कही सुरक्षित छिपा देना चाहिए था पर तुम्हारी दृढ़ता और साहस देख मैं भी चुप रह गया। मुझे सोचना चाहिए था कि वो तुम्हारे साथ क्या करना चाहता था। पर अब कुछ दिन की बात बस अब यह कुछ ही दिनों की बात है। सबके बाद मैं तुम्हारे माता-पिता से तुम्हारा हाथ मांगूंगा। स्वस्थ रहना वृषा... हैप्पी बर्थ-डे वृषाली। छब्बीसवी जन्मदिन की शुभकामनाएँ।",
उसने उसे गले लगाया, चूमा और सारी रात उसे दुलारता रहा। वह उसकी बाहों में शांति से सोई रही। उसने उसके हाथों को कसकर पकड़ रखा था जैसे वह नहीं चाहती थी कि वह उससे अलग हो लेकिन... हर मुलाकात के साथ एक विदाई भी आती है। इस बार भी उन्हें अलग होना पड़ा।
उसने वादा किया कि वह बहुत देर होने से पहले उसकी रक्षा करेगा और फिर से मिलेंगे तथा कभी एक दूसरे से अलग नहीं होगे। उसने उसके गालों, हाथों और पैरों को खूब चूमा, मानो वह उसे अपना मान रहा हो। वह भोर में उसे छोड़कर चला गया।
अगली सुबह जब वह होश में उठी तो उसे सहनीय दर्द हो रहा था। राहुल उससे पहले मिला। उसने डॉक्टरों को बुलाया। उसकी आँखें नम थीं।
डॉक्टर बिनॉय ने उसकी जाँच की, "कोई भयंकर दर्द है?",
"नहीं...", उसने धीमी आवाज़ में कहा,
"अच्छा। थोड़ी देर आराम करो, बाद में देखूँगा।", वह उन्हें साथ छोड़कर कमरे से बाहर चला गया,
मीरा ने राहुल की ओर देखा, "क्या हुआ?", वह कमज़ोर सी बोली,
"अचानक तीन दिन पहले तुम्हें अधीर जी ने आपातकालीन में भर्ती कराया था। तुम्हारी गर्दन सड़ रही थी। इतनी बदबू आ रही थी कि डॉक्टर भी उस भयानक गंध को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। तुमने इतना क्यों सहन किया?”,
"तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा।", वह सहजता से मुस्कुराई,
वह हैरान था, लेकिन उसने अपना मुँह बँद रखा। तीन दिनों के बाद अधीर अंततः उसे देखने के लिए वापस आया। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी उम्र दोगुनी हो गई हो, लेकिन उसकी अशिष्टता अभी भी बरकरार थी।
वार्ड के अंदर, "समीर कहाँ है? वह एक बार भी नहीं आया। क्या वह सचमुच इस बात पर नाराज़ हो गया?", उसने चिंतित होकर पूछा,
"क्या?", राहुल ने पूछा,
"मुझे लगता है कि समीर मुझे बोझ समझता है या फिर वह मुझसे नफरत करता है या फिर मुझे नापसंद करता है।", उसकी गर्दन तेज़ी से ठीक हो रही थी।
"तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है?", राहुल कम्बल तह कर रहा था,
"वह मुझसे मिलने नहीं आया।", वह परेशान थी, राहुल उसे सांत्वना देने आया।
अधीर दूर से उन्हें देख रहा था।
उसने उसकी सभी रिपोर्टों की समीक्षा की। वह एक सप्ताह में जाने के लिए तैयार थी।
एक सप्ताह बीत गया कोई भी उसे लेने नहीं आया तो राहुल उसे अपने साथ ले गया। जाते समय उन्हें पुलिस और डॉक्टर से एक नया आश्चर्य मिला, जिसके बाद वे उसे अपने साथ घर ले गए। वह एक बच्चा था। आठ महीने का बच्चा।