इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।
डांट
मीरा और राहुल समय को भूल गए में घुस चुके थे। समीर के कॉल और टेक्ट का दोंनो जवाब नहीं दे रहे थे। चिढ़कर समीर ने अधीर को उनके पीछे भेजा।
वृषाली की गर्दन पर प्लेनटड चिप के माध्यम से उन्हें ट्रैक करने के बाद वो 'माया इंटरनेट कैफे' पर गया।
वहाँ वृषाली ने अधीर को अनदेखा कर राहुल के कंधे पर हाथ रख मग्न होकर खेल रही थी।
अधीर वहाँ खड़ा होकर सब देख रहा था। दोंनो खेल में मग्न थे।
अधीर ने खराश वाली खाँसी खासी।
दोंनो ने ध्यान नहीं दिया।
अधीर फिर खाँसा।
इस बार दोंनो ने ऊपर देखा।
"टाइम क्या हुआ?", राहुल ने डर को गटककर पूछा,
"पता नहीं?", उसने भी डर को गटक कर बोली,
"पर हम गए।", दोंनो ने डर को गटकते हुए बोला,
"सही कहा।", समीर ने दोंनो को डाँटते हुए कहा।
अधीर दोंनो को उठाकर अपने साथ बिजलानी निवास ले गया। दोंनो समीर के सामने सिर झुकाकर खड़े थे।
"वक्त क्या हो रहा है?", समीर ने दोंनो से पूछा,
"साढ़े दस।", राहुल ने धीरे से कहा,
"कितने?!", समीर ने अपनी आवाज़ थोड़ी ऊपर की,
"साढ़े दस! साढ़े दस अंकल साढ़े दस।", राहुल ने डरकर बोला,
"साढ़े दस? और मैंने वापस कब आने को बोला था?",
"स-सात बजे।"
"कितने?", जोर से,
"सात।",
"तुम दोनों बेवकूफ इतनी रात उस खतरनाक जगह में बेवकूफ नालायको की तरह खेल रहे थे जहाँ बच्चे भी हथियार लेकर चलते हैं और तुम अपनी बेकार गेम की दुनिया में बेसुध व्यस्त थे! मीरा का समझ आता है उसे कुछ याद नहीं, पर राहुल तुम, तुम इतने गैर-ज़िम्मेदार कबसे बन गए? मैंने कहा था कि उसकी सेहत ठीक नहीं है, उसे ध्यान से सही सलामत घर पहुँचा देना।
क्या तुमने खाना खाया?",
दोनों चुप थे।
"क्या उसने खाने के पहले खाने वाली दवाई खाई थी?",
राहुल चुप हो गया, फिर वह मीरा की ओर मुड़ा, "क्या तुमने दवा या खाना खाया? या पानी?",
उसने भी अपनी नज़र नीची कर ली।
"मुझे अनुमान लगाने दो? नहीं! जाहिर है! जवाब पूरी ईमानदारी से हाँ होगा। तुम दोनों ने पूरे दिन में मुझे एक बार भी फोन नहीं किया, जो उचित था, समझ आता है, लेकिन उस आत्मघाती क्षेत्र में? उस आत्मघाती क्षेत्र में देर तक बाहर रहना, ये बहुत ज़्यादा है! ...आह!", समीर ने गहरी साँस ली और बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया। मीरा और राहुल उसे अपराध भारी नज़रो से उसे जाते हुए देख रहे थे। जबकि वृषाली को आभास हो गया था कि वह कुछ करने की योजना बना रहा था।
अधीर के आदमी राहुल को बाहर ले गए जबकि अधीर उसे उसके कमरे में ले गया जहाँ उसकी नर्स ने उसे आवश्यकतानुसार दवाइयाँ दीं और उसकी स्थिति की जाँच की।
देर रात करीब एक बजे उसका फोन बज उठा। वह बाथरूम से बाहर भागी और फोन चेक किया। राहुल ने उसके फोन पर माफी और क्षमायाचनाओं की बौछार कर दी।
उसने कहा कि उसे खेद है और गेमिंग उसकी लत है और यह एकमात्र तरीका है जिससे वह अपने जीवन में आई सभी परेशानियों और अवसादों से बाहर निकल सकता हैं। वह उससे विनती पर विनती कर रहा था। हर संदेश को पढ़ते हुए वह कल्पना कर सकती थी कि वह कैसे रो रहा है, भीख माँग रहा है और फर्श पर घुटनों के बल बैठकर विनती कर रहा है।
वह थोड़ा हँसी और फिर टाइप किया, "मुझे आज बहुत आनंद आया। ...धन्यवाद। मैं हमारी अगली मुलाकात का इंतजार कर रही हूँ।",
वह शरमाई, "ऐं?", फिर दो सेकेंड के बाद उसे अहसास हुआ कि उसने क्या बिना सोचे-समझे भेजा। उसकी घबराहट बढ़ गई। उसने तुरंत मेसेज मिटाने कि कोशिश की पर राहुल ने उसे पढ़ लिया था। वो कमरे में इधर-उधर सिर पकड़कर खुद को कोसते हुए घूमने लगी। पाँच मिनट बीत गए राहुल से वापस जवाब नहीं आया।
कमरे में घूमते हुए उसने टाइप किया, "मेरा यह मतलब नहीं था!", उसने भेजा उसके हाथ काँपने लगे। वो जम गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? फ़ोन को हिलाते हुए वह खुद पर चिल्लाते हुए अपना सिर पीट रही थी। तभी उसे 'सेंड' की 'टिक!' आवाज़ सुनाई दी। उसने झट से अपना हाथ नीचे किया और फोन देखा।
वॉइस मेसेज था, "क्या लिख रही हो मीरा। राहुल तुम्हें एक सनकी समझेगा। मिली नहीं कि शुरू! माना लड़का बड़ा आदर्शवादी है और क्यूट भी है लेकिन ऐसे संदेश भेजना?! आरर्ग! पता नहीं वो क्या समझ रहा होगा? वो एक पागल को ले डेट पर गिया था! पागल नहीं सनकी!
मेरी बनाई हुई थोड़ी-बहुत इज़्ज़त भी गयी!
पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा?
जो भी हो बस वो मुझे गलत ना समझे।",
(मुझे उसे उस कंपनी में शामिल करने की ज़रूरत है।)
तभी उसे ध्वनि संदेश भेजे जाने की आवाज़ सुनाई दी थी।
उसने इसे मिटाने की कोशिश की लेकिन मिटा नहीं सकी। उसने कुछ ही सेकंड में एक ध्वनि संदेश भेजा। काँपते हाथ से उसने प्ले बटन दबाया।
आवाज़ अंधेरे कमरे में गूँजी, कमरे में केवल प्रकाश ही प्रवेश कर रहा था, जो कि खुले बाथरूम के दरवाज़े से आ रहा था।
उसके ऊपर नज़र रखने वाला आदमी भी उत्सुकता से उसकी बातें सुन रहा था। उसने आवाज़ बढ़ा दी। उसने संदेश चलाया, "मैं भी! क्या हम कल मिल सकते हैं? मैं अभी तुमसे मिलना चाहता हूँ लेकिन क्या हम कल मिल सकते हैं? प्लीज़?",
"ख़ुशी से।", उसने टाइप किया।
सामने से जवाब आया, "बोलती तो मज़ा आ जाता।",
"आज नहीं कल।
शुभ रात्री।", लिख उसने फोन रखा।
सामने से मेसेज आया, "शुभ रात्री मीरा।"
इसके बाद वह बाथरूम के अंदर गई और हाथ में एक किताब लेकर बाहर आई। वह पुस्तक को स्पष्ट रूप से नहीं देख सका। उसने इसकी सूचना अधीर को दी और फिर ज़ंजीर को।
अगले दिन का नाश्ता बहुत ही अजीब गया। वह अपनी सुबह की मीटिंग की तैयारियों में व्यस्त था। जब भी वह उससे बात करने की कोशिश करती, वह उसे अनदेखा कर देता। अंततः वह काम पर चला गया। वह नाश्ते के समय कुर्सी पर लेट गई और अपना शरीर ताना। अपने दिमाग में जो उसने देखा उसे घुमाने लगी। माल के कागजों का एक बंडल। उसने सोचने के लिए अपनी आँखें बँद कर ली थी, तभी उसे उसके पीछे कोई चल रहा है लगा।
वह सीधी बैठ गई।
यह राहुल था।
उसके हाथ में चॉकलेट और फूलों का गुलदस्ता था। एक ठेठ सज्जन।
उन्हें पिछली रात की असहजता महसूस हुई।
तब राहुल ने कहा, "क्या अंकल ने तुमसे बात की?",
उसने इनकार में अपना सिर हिलाया, "उन्होंने नाश्ते के दौरान मेरी तरफ बिल्कुल भी नहीं देखा। ...यह थोड़ा दिल तोड़ने वाला है। उन्होंने मेरे लिए इतना कुछ किया और मैंने उन्हें निराश किया....",
राहुल ने सहमति जताते हुए कहा, "किया तो बहुत कुछ है। मेरा मतलब, उन्होंने हमारे परिवार के लिए भी बहुत कुछ किया है। हमें उन्हें अब और निराश नहीं करना चाहिए।",
"हमें क्या करना चाहिए? उन्हें क्या पसंद है?", मीरा ने पूछा,
"तुम्हें नही पता?", राहुल ने हैरानी दिखाई,
"नहीं! आधे साल के ऊपर हो गया है पर समीर की ज़रा सी पसंद-नापसंद पहचान ना पाई।", उसने उदास होकर कहा,
राहुल सब यादकर, "उन्हें घर का बना खाना पसंद है।",
"पर समीर तो रात को आएंगे। कहीं देर ना हो जाए?", उसने चिंता दिखाई,
राहुल सोचकर, "तो उनके ऑफिस चले? मैं काम के बहाने उनसे मिल लूँगा।",
"पर कैसे?",
उन्होंने कहा, "उस बड़ी कंपनी में मुख्य सहायक कंपनी का कार्यालय भी स्थित है। मतलब मेरी।",
"देसी या विदेशी?", उसने पूछा,
"क्या तुम खाना बना सकती हो?", उसने आश्चर्य से पूछा,
"बेशक!", उसने आत्मविश्वास से कहा फिर उसे याद आया, "हो सकता है? पुरानी मीरा ने खुद के लिए कभी ना कभी खाना बनाया ही होगा और तुम भी मेरी मदद कर रहे हो!", कह राहुल को तानकर वो अपने साथ किचन में ले गई और वहाँ के शेफ को सब बताया।
शेफ ने सारी बात ध्यान से सुनी और बताया कि उसे मिठाई बहुत पसंद है, इसलिए उन्होंने बेसन के लड्डू और मावा बर्फी बनाने का फैसला किया।
"क्या तुम बना लोगी?", राहुल ने शक्की निगाह से पूछा,
उसने फोन निकाल, "कितना मुश्किल है? बस डालना और पकाना ही तो है।",
मीरा उत्साहित थीं जबकि राहुल सशंकित था, शेफ भी सशंकित थे।
बेसन, घी, चीनी को तौलने के बाद, बेसन को सुगंधित होने तक भूनकर, चीनी डालकर गोले बनाकर, धीरे-धीरे बेसन के लड्डू तैयार हो गया। राहुल प्रभावित तो हुआ लेकिन सशंकित भी। इस बीच बर्फी भी कटने और परोसने के लिए तैयार थी। पाँच स्टार शेफ जो अपनी आँखों पर विश्वास कर सकता था उसे चखा। यह बिल्कुल वैसा ही था जैसा आप चाहते हैं, हर निवाला चिल्ला रहा था कि वे प्यार से बनाए गए थे।
शेफ की आँखों में आँसू आ गए। राहुल ने भी इसे अपनाया और इसे बहुत पसंद किया। मीरा ने शेफ से इसे खूबसूरती से पैक करने का अनुरोध किया। शेफ ने खुशी से सहमति जताई। शेफ को धन्यवाद कर और थोड़ा मीठा दे मीरा कपड़े बदलने के लिए ऊपर चली गई। उसने हरे रंग का सलवार पहना और राहुल के साथ बिजलानी ऑफिस में चली गई। दोंनो को उम्मीद थी कि समीर उनकी माफी स्वीकार कर लेगा।
इस बीच शेफ ने अधीर को फोन किया और सारी बात बताई, जो बाद में समीर को बताई गई। समीर ने उसे उसके कमरे की छानबीन करने को कहा, जबकि वह उनके संरक्षक देवदूत के रूप में उनका इंतजार करने लगा।
वह अपने कार्यालय में आयोजित बैठक में था। दो घंटे की ड्राइव के बाद, वह अंततः वहाँ पहुँची। काँपते हाथों से उन्होंने अपना माफ़ीनामा पकड़ा और अंदर चले गए।
मीरा राहुल के पीछे चली गई। उसने उसके हाथ कसकर पकड़ लिए और उसे बिजलानी कॉर्पोरेशन के मुख्य मुख्यालय में ले गया। सबकी नज़रें उन पर थीं। सबसे पहले, उन्हें याद था कि वह समीर के बहुत करीब थी, दूसरी, वे सार्वजनिक जगह से एक-दूसरे का हाथ थामे हुए थे। यह स्वाभाविक था कि उन्होंने ध्यान आकर्षित किया।
वहाँ पहुँचकर उनकी मुलाकात समीर की सेक्रेटरी तान्या जी से हुई। उसने उनका स्वागत किया और उन्हें प्रतीक्षा कक्ष में बैठा दिया, जब तक वे प्रतीक्षा कर रहे थे वे एक दूसरे से कुछ भी कहे बिना बैठे रहे। वे लगभग तीस मिनट तक वहीं बैठे रहे, जब समीर अंदर आया और ठंडे व्यवहार से उनका स्वागत किया,"तुम दोनों यहाँ क्या कर रहे हो?",
आहत और दोषी महसूस करते हुए उसने अपनी घर की बनी मिठाई आगे बढ़ाई। समीर ने उनकी ओर ऐसे देखा जैसे वह यह नहीं चाहता था।
"ये क्या है?", समीर ने रूखे स्वर में पूछा,
"ह-हम अपनी कल की गलती के लिए माफी माँगना चाहते है। हम जानते है कि हम लापरवाह थे और आप हमारे लिए ही हमसे नाराज़ है पर ये नाराज़गी अब बहुत और सहन नहीं होता।", उसकी आँखों में आँसू भर आये,
"इस दुनिया में आपके अलावा मेरा कोई नहीं है... इस पूरी दुनिया में आप ही एकमात्र व्यक्ति हो जिसे मैं जानती हूँ और आपने मुझसे अपना मुँह मोड़ लिया, ऐसा लगता है जैसे...", वह उसका एहसान वापस पाने की कोशिश में बेकाबू होकर रोने लगी।
उसे रोता देख समीर के चेहरे पर कुछ नरमी आई, फिर राहुल बोला, "अंकल, हमें माफ कर दो अगर आप चाहें तो मैं फिर कभी आपके घर नहीं आऊँगा। बस उसे माफ कर दो।",
समीर हार गया। उसकी अभिव्यक्ति नरम हो गई, उसने उसकी बनाई मिठाई का निवाला लिया, "ठीक वैसे ही जैसे मुझे पसंद, कम चीनी और अधिक प्यार से भरा।"
उसने उसकी ओर देखा। उसने उन्हें प्यार से गले लगाया और कहा, "अपने बड़ों को कभी दुखी मत करो।", वो सहमत हुआ। मीरा को उसने गले लगाते हुए कहा।
संतुष्ट होकर कि उसने उन्हें और अधिक समय तक घूमने दिया।
उसके बाद से वह राहुल के साथ समय बिताने लगी और यहाँ तक कि उसके कार्यालय में भी जाने लगी तथा उसके कार्यालय के काम में उसकी मदद करने लगी। वह समीर के साथ ऑफिस जाती और पूरे दिन राहुल के साथ घूमती रहती और शाम को समीर के साथ जाती। ऑफिस में भी सब उसे जानने लगे। यहाँ तक कि वह उसकी नई परियोजनाओं से संबंधित व्यावसायिक बैठकों में भी उसकी मदद करने लगी।