प्रिय डायरी " अंतर्मन "
बड़े दिनों बाद फिर तुमसे मन की बातेँ साझा करने आया हूँ, व्यस्तता है, लिखने के लिए मन भी उद्वेलित होता है किन्तु काम के कारण समय नहीं दे पा रहा हूँ ।
आज मन मे कुछ है इस लिए चुभा।
मैं बैठे बैठे आम का अचार उठा कर टेस्ट कर रहा था।
वाह क्या स्वाद है... । ये जाना पहचाना स्वाद कई वर्षों के बाद आज इस बार बने घर के अचार मे।
दो चार दिन पहले मेरे मित्र घर से आ रहे थे तो उनके साथ घर से आम का अचार भी आया था।
मुझे याद है कि, मैं अचार काफी कम मात्रा मे खाता हूँ, हाँ पर नीबू, करौंदा, आमकस खट्टा मीठा, मूली, मिर्च, आंवला, आदि भी खाता हूँ पर मात्रा सीमित है। फिर भी ये स्वाद बड़े वर्षो बाद जिह्वा ने महसूस किया था।
ये मम्मी के हाथों बने अचार का स्वाद है.... हमारे होने वाले बच्चों की अम्मा के हाथ का स्वाद भिन्न है। नहीं मैं बुराई नहीं कर रहा 🤐😀
मम्मी के हाथ का खाना क्या कहने गुरु, वो मेरी माँ है इस लिए कसीदे नहीं पढ़ रहा, वो बनाती ही ऐसा है.. अभी भी कभी कभी। जब से हमारे फेरे पड़े तब से हमारी अर्धांगिनी जी ने रसोई थाम ली, मम्मी खाना नहीं बनाती।
बात अचार की थी, इस स्वाद से बचपन याद आ गया, मम्मी के हाथो बने पराठें (कई सारे प्रकार), अचार, दम आलू, आलू गोभी.... क्या क्या कहूँ सब बेहतरीन है।
घर के भोजन को बहुत मिस करते है, अक्सर जब हम घर से दूर चार पैसे कमाने शहर को आते है दूसरे प्रदेश मे ।
तो भोजन का मतलब समझ मे आता है कि स्वाद कहां से लाओगे, मोबाइल स्क्रॉल करते हुए समाचार पढ़ रहा था कि..
अचानक नजर एक न्यूज /लेख पर पड़ी
पिता का समाज व पुत्रों के नाम पत्र
लखनऊ के एक उच्चवर्गीय बूढ़े पिता ने अपने पुत्रों के नाम एक चिट्ठी लिखकर खुद को गोली मार ली।
चिट्टी क्यों लिखी और क्या लिखा। यह जानने से पहले संक्षेप में चिट्टी लिखने की पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है।
पिता सेना में कर्नल के पद से रिटार्यड हुए । वे लखनऊ के एक पॉश कॉलोनी में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। उनके दो बेटे थे। जो सुदूर अमेरिका में रहते थे। यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि माता-पिता ने अपने लाड़लों को पालने में कोई कोर कसर नहीं रखी।
बच्चे सफलता की सीढ़िंया चढते गए। पढ़-लिखकर इतने योग्य हो गए कि दुनिया की सबसे नामी-गिरामी कार्पोरेट कंपनी में उनको नौकरी मिल गई। संयोग से दोनों भाई एक ही देश में,लेकिन अलग-अलग अपने परिवार के साथ रहते थे।
एक दिन अचानक पिता ने रूंआसे गले से बेटों को खबर दी। बेटे! तुम्हारी मां अब इस दुनिया में नहीं रही । पिता अपनी पत्नी की मिट्टी के साथ बेटों के आने का इंतजार करते रहे। एक दिन बाद छोटा बेटा आया, जिसका घर का नाम चिंटू था।
पिता ने पूछा चिंटू! मुन्ना क्यों नहीं आया। मुन्ना यानी बड़ा बेटा।पिता ने कहा कि उसे फोन मिला, पहली उडान से आये।
धर्मानुसार बडे बेटे का आना सोच वृद्व फौजी ने जिद सी पकड़ ली।
छोटे बेटे के मुंह से एक सच निकल पड़ा। उसने पिता से कहा कि मुन्ना भईया ने कहा कि, "मां की मौत में तुम चले जाओ। पिता जी मरेंगे, तो मैं चला जाऊंगा।"
कर्नल साहब (पिता) कमरे के अंदर गए। खुद को कई बार संभाला फिर उन्होंने चंद पंक्तियो का एक पत्र लिखा। जो इस प्रकार था-
प्रिय बेटो
मैंने और तुम्हारी मां ने बहुत सारे अरमानों के साथ तुम लोगों को पाला-पोसा। दुनिया के सारे सुख दिए। देश-दुनिया के बेहतरीन जगहों पर शिक्षा दी। जब तुम्हारी मां अंतिम सांस ले रही थी, तो मैं उसके पास था।वह मरते समय तुम दोनों का चेहरा एक बार देखना चाहती थी और तुम दोनों को बाहों में भर कर चूमना चाहती थी।
तुम लोग उसके लिए वही मासूम मुन्ना और चिंटू थे। उसकी मौत के बात उसकी लाश के पास तुम लोगों का इंतजार करने लिए मैं था। मेरा मन कर रहा था कि काश तुम लोग मुझे ढांढस बधाने के लिए मेरे पास होते।
मेरी मौत के बाद मेरी लाश के पास तुम लोगों का इंतजार करने के लिए कोई नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह कि मैं नहीं चाहता कि मेरी लाश निपटाने के लिए तुम्हारे बड़े भाई को आना पड़े। इसलिए सबसे अच्छा यह है कि अपनी मां के साथ मुझे भी निपटाकर ही जाओ। मुझे जीने का कोई हक नहीं क्योंकि जिस समाज ने मुझे जीवन भर धन के साथ सम्मान भी दिया, मैंने समाज को असभ्य नागरिक दिये। हाँ अच्छा रहा कि हम अमरीका जाकर नहीं बसे, सच्चाई दब जाती।
मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरे मैडल तथा फोटो बटालियन को लौटाए जाए तथा घर का पैसा नौकरों में बाटा जाऐ। जमापूँजी आधी वृद्ध सेवा केन्द्र में तथा आधी सैनिक कल्याण में दी जाऐ।
तुम्हारा पिता
कमरे से ठांय की आवाज आई। कर्नल साहब ने खुद को गोली मार ली।
यह क्यों हुआ, किस कारण हुआ? कोई दोषी है या नहीं। मुझे इसके बारे में कुछ नहीं कहना।
हाँ यह काल्पनिक कहानी नहीं। होगी भी तो समाज के गाल पर करारा तमाचा है।
समाज मे संततियों का दर्द और ये पीड़ा तेजी से बढ़ती जा रही है। कारण कई हो सकते है, किंतु वेदना लगभग सम ही होगी।
हम विकास की ओर बढ़ रहे है... विकसित हो गए है, इतने कि बूढे़ माँ बाप का आदर ही भूल गए।
आप सभी की भी कुछ राय /विचार हो तो साझा करियेगा भी लगे तो भी अपनी राय समीक्षा के माध्यम से प्रेषित करें।
आज बस इतना सा 🙏🏻