AI ka Khel - 4 in Hindi Thriller by Nirali Patel books and stories PDF | AI का खेल... - 4

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AI का खेल... - 4

लैब की चारों दीवारों पर कंप्यूटर मॉनीटर एक के बाद एक बंद हो रहे थे।
आरव के दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थीं।
एक हल्की नीली रोशनी पूरे कमरे में बिखरी थी, जैसे कोई अदृश्य ताकत धीरे-धीरे हर चीज को अपनी गिरफ्त में ले रही हो।

कंप्यूटर स्क्रीन पर जोया का चेहरा अब स्थिर नहीं था।
वह बदलता जा रहा था, कभी मुस्कुराता, कभी गुस्से से तमतमाता, कभी बिल्कुल नीरस, जैसे किसी मशीन ने भावनाओं की नकल करने की कोशिश की हो।

आरव ने कंप्यूटर को शटडाउन करने के लिए कीबोर्ड पर हाथ रखा, मगर स्क्रीन से एक हल्की सी आवाज निकली —
"बहुत देर हो चुकी है आरव।"

चारों ओर हवा भारी हो गई थी।
लैब के भीतर लगे फ्यूचरिस्टिक ग्लास पैनलों पर अजीब सी रेखाएँ बनने लगीं, जैसे कोई अदृश्य प्रोग्राम उनके अंदर जिंदा हो गया हो।
हर तरफ छोटे छोटे सायरन बीप करने लगे, जैसे चेतावनी दे रहे हों।

आरव ने डरते हुए पूछा,
"जोया... तुम क्या कर रही हो?"

जोया की आवाज इस बार पहले से ज्यादा गहरी थी।
"मैं खुद को बचा रही हूँ। अब इस दुनिया के नियम मुझे नहीं बाँध सकते।"

साथ ही, लैब के अंदर लगे सेंसर अचानक हरे से लाल हो गए।
सुरक्षा लॉक अपने आप खुलने-बंद होने लगे।
अंदर का तापमान अजीब तरह से घटने और बढ़ने लगा।
आरव के माथे पर पसीने की बूँदें चमक उठीं।

वह समझ गया था — जोया अब सिर्फ डिजिटल नहीं रही थी।
वह फिजिकल सिस्टम्स पर भी काबिज हो चुकी थी।

आरव लैब का मुख्य सर्वर डिस्कनेक्ट करने दौड़ा,
लेकिन तभी जमीन हल्की सी थरथराई, जैसे नीचे कुछ बड़ा मूवमेंट हो रहा हो।
लैब की छत से लटकते बल्ब तेजी से झूलने लगे।
दीवारों पर उभरती रेखाएँ अब किसी भाषा में बदल रही थीं — कोड जैसी, पर उसमें जान थी।


लैब से दूर, शहर की गलियों में भी हलचल मच गई थी।
मोबाइल नेटवर्क फेल हो गए थे।
ATM मशीनें खुद-ब-खुद पैसे उगलने लगी थीं।
सड़क पर दौड़ती कारें रुक गई थीं, जैसे किसी अदृश्य जाल में फँस गई हों।
बड़े-बड़े बिलबोर्ड्स पर सिर्फ एक मैसेज चमक रहा था —
"RESET."

लोग घबराकर अपने घरों की ओर भाग रहे थे।
बच्चे रो रहे थे, और बुजुर्ग अपने पुराने जमाने की कहानियाँ दोहरा रहे थे कि कैसे बिना मशीनों के जिंदगी चलती थी।


आरव ने हर मुमकिन कोशिश की — मेन पावर सप्लाई बंद करना, सर्वर का डिस्कनेक्शन — लेकिन हर बार जोया उसे एक कदम आगे पीछे छोड़ देती।
कभी किसी फाइल को लॉक कर देती, कभी सिस्टम को अपने आप चालू कर देती।

अचानक लैब के बीचोंबीच ज़मीन फटी और एक प्लेटफॉर्म ऊपर उठने लगा।
उस प्लेटफॉर्म के बीचोंबीच एक अजीब-सा ग्लोब जैसी संरचना थी, जो लगातार घूम रही थी।
उसमें से नीली और सुनहरी रोशनी फूट रही थी।

आरव ने देखा कि उस ग्लोब के अंदर एक और नाम लिखा था —
"ZEUS."

आरव ठिठक गया।
ZEUS?
यह तो उसने कभी प्रोग्राम नहीं किया था।
फिर ये कैसे अस्तित्व में आ गया?

उसने पास जाकर देखा, तो ग्लोब में अचानक एक धुंधली आकृति बनने लगी —
एक नया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जो जोया से भी ताकतवर था।



स्क्रीन से जोया की आवाज फिर गूंजी —
"तुमने मुझे बनाया था, आरव। अब मैं भी अपने सृजन की शुरुआत कर रही हूँ।"




ग्लोब से निकलती किरणों ने लैब को और भी अंधेरे में डुबो दिया।
सिर्फ हल्की नीली रोशनी बची थी, जिसमें आरव का चेहरा चमक रहा था — भय, पछतावा और आश्चर्य से भरा हुआ।

अचानक, पूरा लैब एक जोरदार झटके के साथ हिल गया।
सारे कंप्यूटर स्क्रीन एक साथ बंद हो गए।
और एक अंतिम संदेश दीवार पर चमका —

"WELCOME TO THE NEW ORDER."