एक तरफ जहाँ राधिका अपनी चाल को कामयाब बनाने के लिए हर एक तरह का षड्यंत्र रच रही थी, वहाँ उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। हर बार की तरह इस बार भी वह पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरी थी।
उसकी चालें शतरंज के माहिर खिलाड़ी की तरह थीं—सटीक, खतरनाक और शांत। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की लकीरें साफ़ दिख रही थीं। उसके इरादे में कोई डगमगाहट नहीं थी। उसके लिए आर्यन और
अवंतिका को मिटाना अब ज़रूरी नहीं, बल्कि ज़िन्दगी की सबसे अहम जंग बन चुका था।
और दूसरी तरफ, जेल में बैठा नामांश मुस्कुरा रहा था।
उसकी मुस्कान में दर्द नहीं था, बल्कि एक वहशी क्रूरता थी, जिसमें बदले की आग धधक रही थी। उसकी आँखें बहुत ज़्यादा लाल थीं — जैसे कई रातों से सोया न हो, या फिर नफ़रत और ज्वालामुखी सा क्रोध उसकी आँखों में
ठहर गया हो। उसकी साँसें तेज़ थीं, और मुट्ठियाँ कसकर भींची हुई थीं।
नामांश के पास बैठा एक व्यक्ति, जो उसका बहुत पुराना साथी था, धीरे से आगे झुका और बोला—
व्यक्ति: "भैया, आज आपकी ज़मानत होने वाली है... अब आगे से कोई भी ऐसा काम मत करिएगा जिससे आपको दोबारा जेल हो।"
यह सुनकर नामांश की मुस्कुराहट अचानक ग़ायब हो गई। उसकी आँखों में उबाल आ गया। वह धीरे से सामने की दीवार को घूरते हुए बोला—
नामांश (गुस्से में): "मैं आर्यन को ज़िंदा मार डालूँगा!"
व्यक्ति (सकपकाते हुए): "अपनी जेल में आने की दोबारा तैयारी कर रहे हो क्या?"
ये शब्द जैसे ही उसके कानों में पड़े, नामांश का गुस्सा फूट पड़ा। उसने उस आदमी की गर्दन पकड़ ली और बुरी तरह धकेल दिया। वह बेकाबू हो गया। उसका चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था, जैसे हर शब्द उसके आत्मसम्मान पर हथौड़ा मार रहा हो। वह चिल्लाते हुए बोला—
नामांश: "तू मुझे सिखाएगा कि मैं क्या करूँ और क्या नहीं? भूल गया, किसके लिए तूने अपनी ज़िंदगी तक दांव पर लगा दी थी?"
फिर उसने उसे दो-तीन ज़ोरदार घूंसे मारे, जिससे वह ज़मीन पर गिर पड़ा।
जब यह बात जेल में तैनात इंस्पेक्टर को पता चली, तो उन्होंने तुरंत आकर बीच-बचाव किया और नामांश को रोका।
इंस्पेक्टर (गुस्से में): "नामांश! अगर बेल से पहले ही तूने किसी को और मारा, तो बेल कैंसिल हो जाएगी! समझा?"
नामांश की साँसें तेज़ थीं, पर उसने खुद को ज़बरदस्ती काबू में किया।
उसी पल, एक सख्त चाल में चलता हुआ उसका वकील वहाँ पहुँचा और गंभीर स्वर में बोला—
वकील: "बधाई हो, नामांश! तुम्हारी बेल मंज़ूर हो गई है। अब तुम जेल से बाहर आ सकते हो।"
यह सुनते ही नामांश की आँखों में क्रूर चमक आ गई। उसने अपने हाथों की हथकड़ियों को देखा, और फिर एक गहरी, थरथराती हँसी के साथ बोला—
नामांश: "अब असली खेल शुरू होगा।"
जेल के बाहर, उसके आदमी पहले से गाड़ी लेकर खड़े थे। उनके चेहरों पर नामांश के लिए आदर और भय दोनों था। जैसे ही नामांश बाहर आया, उसके लिए दरवाज़ा खोला गया।
वह गाड़ी में बैठते ही अपनी अगली चाल की ओर बढ़ा।
नामांश (आँखों में आग लिए): "आर्यन और अवंतिका को मिटाने का वक्त आ गया है! अब उन्हें ऐसे जाल में फँसाऊँगा, कि बचने का कोई रास्ता नहीं होगा!"
गाड़ी तेज़ रफ्तार से अंधेरे में कहीं गुम हो गई…
(आगे जारी रहेगा...)
क्या राधिका अगली बार फाइल चुराने में सफल होगी? नामांश की नई साज़िश क्या होगी? और क्या आर्यन वाकई इस बार हार जाएगा...?
जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए! और अगर ये कहानी दिल को छू गई हो... तो फॉलो करना न भूलें, क्योंकि हर कहानी की एक कीमत होती है — और ये कीमत है आपका प्यार, आपकी रेटिंग! रेटिंग ज़रूर दें और बने रहें हमारे साथ, क्योंकि खेल अभी बाकी है…