manzile - 26 in Hindi Motivational Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 26

Featured Books
  • जयकिशन

    जयकिशनलेखक राज फुलवरेप्रस्तावनाएक शांत और सुंदर गाँव था—निरभ...

  • महाभारत की कहानी - भाग 162

    महाभारत की कहानी - भाग-१६२ अष्टादश दिन के युद्ध में शल्य, उल...

  • सर्जा राजा - भाग 2

    सर्जा राजा – भाग 2(नया घर, नया परिवार, पहली आरती और पहला भरो...

  • दूसरा चेहरा

    दूसरा चेहरालेखक: विजय शर्मा एरीशहर की चकाचौंध भरी शामें हमेश...

  • The Book of the Secrets of Enoch.... - 3

    अध्याय 11, XI1 उन पुरूषों ने मुझे पकड़ लिया, और चौथे स्वर्ग...

Categories
Share

मंजिले - भाग 26

सुंदर पक्ति से जुडी कहानी... काफाला....घंटी और आरती की आवज़ ने गली की सुनसमानता को तोड़ दिया था, सेठ दूनी मल ने पिछला दरवाज़ा खोला ही था, कि चुनी लाल ने आरती करते करते चुप रहने का सकेत दिया... और आपने पास बुलाने लगा, इशारे से ही, थोड़ी देर बाद एक परिदा नुकड़ से धीरे से उड़ा... और उसके पखो की आवाज़ कितनी देर हवा मे गुज़ती रही थी। कहने को जो मर्ज़ी हु... चुनी लाल का भी धयान बिलकुल भी श्री लख्मी प्रिये के चरणों मे नहीं, बल्कि मायाजाल के चक्र मे घुसे हुए था।                              एक चुप थी। आरती की घंटी वजनी बंद हु चुकी थी। मोटे होठो से मंत्र करते करते दूनी मल की और इशारा किया, " मेरे प्यारे सिकदर आज इधर कैसे भूल के आ गए हो। "दूनी मल ने चेचक के दानो से भरे चहरे को आगे करते हुए उच्ची स्वर से बोला, " भुला नहीं हूँ, चुनी लाल जी, आपका सूद ही इतना हैं, कि सोने कब देत हैं। " पक्के दागो वाला चेहरा दूनी मल ने पीछे किया ही था, कि ऊपर से गट.. गट करता पंखा नीचे छत से गिर पड़ा। चुनी लाल ने कहा.. " खर्च पे खर्च आ रहा हैं, ये हवा बाज़ पखा शुक्र हैं मेरे ऊपर नहीं गिर गया... " दूनी मल ने भगवान का शुक्र किया, उसके मुँह के ऊपर तो पक्का ही गिरना था।                  "काम पे काम ---- " खरेती नौकर को आवाज़ दी चुनी लाल ने। वो भागा हुआ आया। " इतनी आवाज़ यहाँ से आयी.. कमबख्त पखा गिरा या बम्ब... " खुद ही हसते हुए उसने कहा। " देख कया रहे हो, इसे उठा के मिस्त्री के पास ले के जाओ... "  चुनी लाल ने बाइखाता खोलते हुए कहा।                      ------------*-----------               1940 का साल था, कुछ कुड़ते पजामे मे लडके लोग इंकलाब जिंदाबाद करते उसकी दुकान के आगे से निकल चुके थे। अंग्रेजो का शाशन भारत मे फैला हुआ था... तरंगे झंडे मे जान फुक रहे थे, इंकलाबी... तभी अग्रेज अफसरों ने आ कर लाठी चार्ज किया.. इतना विरोध हुआ कि अग्नि जल उठी... बजार आधे से जयादा जल रहा था। उस मे चुनीलाल कि दुकान भी आती थी... जो जलने को बस तैयार ही थी... चुनीलाल चिल्ला रहा था.. " भाये.. मेरा सूद जल जायेगा... मर जाऊगा... कया करू... तभी.. आग के गोले ने चुनी लाल की दुकान भी राख़ कर दी थी... चुनी लाल रो रहा था.. " कमबख्तो ने मेरी दुकान भी जला डाली... " उच्ची उच्ची रोने लगा... " जिन्दे जी मर गया हूँ। " दूनी मल अब आगे से जयादा खुश था... कह रहा था उच्ची उच्ची " देश आज़ाद होगा तो फिर सूद खोरी खत्म हो जाएगी.. इंकलाब जिंदाबाद। " आज़ाद मुल्क 15 अगस्त 1947 को हुआ... तब हम सब पर एक ख़ुशी की लहर थी... कितना सकून था...बेश्क़ आजादी चरखे से नहीं मिली तो अंगारो पे चल कर हैं, कौन कहता हैं.. एक गाल और आगे करो.. भूल कर भी कभी ये भूल मत करना... "कोई तुम्हे गिरे हुए को हॉस्पिटल भी छोड़ कर नही आएगा.."( चलदा )                       ------- नीरज शर्मा...