समय मंजिले कहानी सगरहे की सर्वकोटी कहानी हैं।
जो बताताती हैं सत्य की परिभाषा....मोहन दास के पोता हुआ, तो वो खूब ढोलक पे नाचा। उम्र उसकी होंगी अस्सी के करीब... पर डील डोल उसका मजदूर का एक नंबर था। कभी उसने आराम भी नहीं किया था।कयो किस्मत मे नहीं था। छोटा सा घर इलाहबाद मे कराये से आपना बनाया। फिर मछली पकड़ के मंडी मे सस्ते कभी महगें वेचा.. फिर नल और गटर भी साफ किये.। काम को पूजा समझने वाला मोहन दास कभी निठला नहीं बना। साथी थे उसके जो अक्सर एक दो देहाड़ी लगा कर जुआ खेल लेते थे। मोहन दास के बच्चे जो उसने आपनी हैसियत मे पढाये थे। वो थे बस दो लड़कियां तीन लडके। अब सबके छोटे के पुत्र हुआ था जिसका नामकरण भी हो चूका था... एक भरा पूरा परिवार था।इतना हैं कि उसकी जो पत्नी निर्मला थी सत्य हैं किसी सहेली की जान बचाती तीसरी मंजिल से नीचे गिर गयी थी। ये खबर सब को निस्टबद कर गयी थी... सोच थी, ये कया हो हैं। मोहन दास टूट सा गया था। एक आध देसी का गिलास लगा लेता था, ये चुप थी, किसकी मोहन दास और परिवार की। हर समय वो हर काम को पहल देता था। सब परिवार वाले उससे बात करते झिजकते थे, फिर भी ज़ब वो बोलता था उसका तजुर्बा होता था। कितना कोई चलता हैं आखिर तो चद लोग खटिया पकड़ लेते हैं। पर मोहन दास समय के अनुसार चलता गया। उसके बड़े लडके की गहनो की दुकान थी, सोना चादी कम बनावटी जयादा थी। दूसरा लड़का हेयरकट का बहुत बड़ा केची का खिलाड़ी था, वो अच्छी दिहाड़ी पा लेता था, जो तीसरा था, वो सुस्त था नाम परवेश था, दुकान थी मोटर सयकल के स्पेयर पार्ट और मकेनिक की। दो बहने खुश थी आपने घर मे, पिता मोहन दास बड़े लडके के जहाँ रहता था। बस जयादा चुप ही था। उसकी बहु उसे जयादा अच्छा नहीं समझती थी। वो समय के मुताबिक ढलने वाली औरत थी। " बूढ़े को कब मौत आएगी, पता नहीं कब तक इसकी सेवा और करनी पड़ेगी। " बड़ी बहु के आंतरिक मन मे एक जंग चलती हुई कब जुबा पर आ गयी वो खुद नहीं जानती थी। तभी बड़ा लडके ने कहा, " एक सरदार मिला था आज, वो बाऊ जी के बारे मे पूछ रहा था, मैंने कहा, " बताओ " कोई बात हैं तो.... " फिर चुप। थोड़ी देर मे बाऊ जी आ गए थे। बड़ा लड़का चुप हो गया। बड़ी बहु बोली " किसी से कोई उधार तो नहीं ले रखे, जो हमें चुकाने पड़े। " उसने इस तरा से बात की, जैसे दोनों वो ही हो, और कोई कमरे मे नहीं। बड़े लडके ने इस नफ़रमानी के लिए जोर से झिडका... " वो मेरा बाप हैं, उसे इस तरा से कहने का मतलब रिश्तों मे विगाड़ उतपन्न होगा, समझी तुम। " बाऊ जी सुन लिया था, एकाएक हस पड़े। सुनो बेटा, उसने बहु को बोला ----" आज पोता छोटे का पांच दिन का हो गया हैं, मैंने उधार किसी से लिया नहीं... आजतक। सब को आज रात यही एक छत के नीचे इकठा करो। फिर खूब हसेंगे सब हम.... ये कह के मोहन दास एक कमरे मे चला गया। बड़ा लड़का भी उसके साथ ही चला गया। रात का वक़्त.... समय कोई नौ या साढ़े नौ का होगा। सब बाऊ जी के इर्ध गिर्द बैठ गए।बात उत्साह पूर्ण थी। पिता मोहन दास ने कहा... " बेटा समय की बात हैं, लक्ष्मी के बिना कोई नहीं पूछता... ये सच हैं " सब चुप थे।लुधियाना से मैंने एक लाटरी खरीदी थी। आज सरदार निरजन सिंह जी आये थे जो मेंजर थे लाटरी स्टाल के, धन्यवाद देने। " बड़ा लड़का बोला " हाँ पिता जी वही जो आपके बारे पूछते थे। " एक करोड़ की लाटरी से हमें कट कटा कर असी हजार तो मिल ही जायेगा.. मैंने वो लेकर डाकघर मे जमा करा दिया था... अब वो एक करोड़ के भी ऊपर हो चूका हैं... उसके भाग हम पांच ही नहीं छे करेंगे।मेरा भाग जो हैं वो मेरे छोटे लडके को ही मिल जाना चाइये। मेरी बेनती हैं बेटों... छोटा मेरी आँखो का तारा हैं, बहने इस घर की आदिति सुंदरता हैं, किसी का भाग भी मारना बेटा नर्क होता हैं.... कल डाक घर से सब ले आना, मैंने सिग्नेचर कागजो मे कर दिए हैं।...... कल मैं एक लम्मी यात्रा के लिए सदा के लिए निकल जाऊगा... परिवार कुशल मगल रहे। बस........ये सुन कर सब खुश थे, बड़े की आखें बदल गयी थी, छोटे की आँखो मे धारा थी पिता जी के प्यार के बारे मे... सब चुप और जमा तकसीम मे सब पड़ गए थे।-----------*--------- (चलदा ) नीरज शर्मा शहकोट, जलधर ( 144702)