SAYA - 4 in Hindi Horror Stories by ekshayra books and stories PDF | साया - 4

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साया - 4

सुबह की पहली किरण खिड़की से झाँकी तो अर्जुन अब भी वैसे ही ज़मीन पर बैठा था—थका, उलझा और उलझनों से टूटा हुआ। पिछली रात उसके लिए किसी बुरे सपने जैसी नहीं थी… वो हकीकत थी। और अब उसे यकीन हो चला था कि जो कुछ उसके साथ हो रहा है, उसका सीधा रिश्ता उसके अतीत से है।


“क्या मैंने वाकई कुछ भुला दिया है?” वो बड़बड़ाया।


कुछ जवाब चाहिए थे। और उसके लिए वो गया… उस पुराने स्टोर रूम में, जहाँ बचपन की चीज़ें रखी थीं। ये वही कमरा था जहाँ उसकी मां पुराने खिलौने, किताबें और सामान रख देती थीं।


दरवाज़ा खुला… धूल की परतें, बंद खिड़कियाँ, और एक अजीब-सी सीलन की गंध। अर्जुन ने टॉर्च ऑन की और सामान खंगालना शुरू किया। कुछ देर बाद, एक लकड़ी का डिब्बा मिला—बहुत पुराना, जंग लगा हुआ ताला। लेकिन डिब्बे पर कुछ खुदा हुआ था—

“A & R”

उसके हाथ रुक गए।

A मतलब अर्जुन… R?

कौन था R?

उसने ताले को तोड़ने की कोशिश की, और कुछ मिनटों बाद डिब्बा खुल गया। अंदर कुछ चिट्ठियाँ थीं… और एक पुरानी फोटो। फोटो देखकर अर्जुन का दिल धड़क उठा।


उसमें एक छोटी सी लड़की थी… करीब 8–9 साल की, झूले पर बैठी, मुस्कुराती हुई। और पास में खड़ा था… अर्जुन खुद।


“ये… मैं हूं?” उसने हैरानी से खुद से कहा।

फोटो के पीछे लिखा था—“रूपा और अर्जुन, 2009”

रूपा

अर्जुन के दिमाग में जैसे बिजली सी चमकी।


रूपा… ये नाम तो उसने सालों से सुना तक नहीं था। पर अब उसका चेहरा, आवाज़, वो हँसी… सब धीरे-धीरे याद आने लगा। वो उसकी बचपन की दोस्त थी। लेकिन फिर… अचानक सब कैसे भूल गया?


वो चिट्ठियाँ उठाईं। किसी मासूम हाथों से लिखी गई थीं—कच्ची हिंदी, टूटी फूटी लाइनों में—

“अर्जुन, तुम झूला मत छोड़ना।
जब मैं आँखें बंद करूं, तुम मेरी आवाज़ सुन लेना।
मुझे डर लगता है अंधेरे से…
तुम ना जाओ…”


हर लाइन उसके अंदर कुछ तोड़ रही थी।


अर्जुन को समझ नहीं आ रहा था—क्या वो लड़की… वही रूपा है? क्या वही अब "साया" बनकर लौटी है? और क्यों?


तभी अचानक स्टोर रूम की बत्ती झपकने लगी। टॉर्च भी बंद हो गई। एक फुसफुसाहट फिर से उसके कानों तक पहुँची—

“मैं गई नहीं अर्जुन…
तुमने मुझे छोड़ा था…”


अर्जुन सुबह होते ही सबसे पहले उस स्टोर रूम में गया। अब वहाँ सब कुछ शांत था, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसने हिम्मत जुटाकर हर कोना खंगाल डाला—पुराने बक्से, किताबें, लकड़ी की अलमारी… लेकिन वो चिट्ठियाँ? कहीं नहीं थीं।



"क्या सच में देखा था मैंने?" उसने खुद से पूछा।

लेकिन फिर… अलमारी के पीछे उसे एक पुराना खिलौना मिला—लाल रंग की गुड़िया, जिसका चेहरा जला हुआ था और एक आँख गायब थी। उसने जैसे ही उसे उठाया, पीछे एक और चिट्ठी गिरी—

"क्या तुम मुझे फिर से पहचानोगे, अर्जुन?"


अब वो डर नहीं रहा था… वो उलझ चुका था। कौन थी ये? क्या वो जानता था उसे?


अर्जुन दिनभर उस गुड़िया को घूरता रहा। रात होते-होते उसने एक सपना देखा—एक छोटी लड़की, झूला झूल रही थी, बालों में लाल रिबन, और उसकी आंखें अर्जुन को सीधा देख रही थीं।


अर्जुन चीखकर उठ गया। पर इस बार डर से नहीं… पहचान की बेचैनी से। उस चेहरे में कुछ जाना-पहचाना था। जैसे कोई बहुत अपना… कोई जिसे वो भूल चुका था।


“ये सब कुछ… मुझसे ही जुड़ा है।”