रात के दो बजे थे। अर्जुन अपने कमरे में लेटा हुआ था, लेकिन नींद उससे कोसों दूर थी। खिड़की से आती चाँदनी अब उसके लिए सुकून नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी एहसास बन गई थी। हर परछाईं, हर आवाज़, अब उसे अजनबी लगने लगी थी। ऐसा लग रहा था जैसे दीवारों में भी कोई उसकी धड़कनें गिन रहा हो।
पिछली रात हवेली में जो कुछ हुआ था, वो उसके दिमाग से जा ही नहीं रहा था। वो सिसकियों की आवाज़, वो अपने-आप खुलता दरवाज़ा… और वो शब्द—“मैं अब भी यहीं हूँ…”—उसके ज़हन में गूंज रहे थे।
उसी सोच में डूबा था कि अचानक कमरे की बत्तियाँ हल्की-हल्की टिमटिमाने लगीं। पंखा धीमा हुआ, और एक ठंडी हवा की लहर कमरे में फैल गई। अर्जुन ने धीरे से उठकर कमरे के कोने में देखा…
वो फिर वही लड़की खड़ी थी।
सफेद साड़ी, बिखरे बाल, झुका चेहरा… लेकिन इस बार उसके चेहरे पर थोड़ा-सा उजाला था। धुंधले चेहरे में अब आंखें साफ़ दिख रही थीं—गहरी, उदास, और कुछ कहती हुईं।
अर्जुन की रूह कांप गई।
उसकी जुबान से खुद-ब-खुद निकला, “क… कौन हो तुम?”
लड़की ने सिर उठाया और बहुत धीमी आवाज़ में कहा
“तुम मुझे जानते हो, अर्जुन… बस भूल गए हो।”
अर्जुन ने सर झटकते हुए कहा, “मैंने तुम्हें कभी देखा तक नहीं…”
“नहीं… तुमने देखा है। बहुत करीब से देखा है,” लड़की की आवाज़ अब और गूंजने लगी थी।
“वो झूला… वो चूड़ियाँ… वो सिसकियाँ… तुम्हारी ही यादें हैं। मेरे साथ जुड़ी हुईं।”
अर्जुन को लगा जैसे उसका सिर फट जाएगा। वो याद करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कुछ भी साफ़ नहीं दिख रहा था। सब धुंधला था… जैसे किसी ने उसके बचपन के कुछ हिस्सों को मिटा दिया हो।
तभी लड़की ने धीरे से कहा—
“तुमने वादा किया था, अर्जुन… कि तुम कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ोगे।”
अर्जुन की सांसें तेज़ हो गईं। वो अब चीख पड़ना चाहता था, पर आवाज़ नहीं निकल रही थी।
लड़की ने एक आखिरी बार उसकी आंखों में देखा और बोली—
“मैं लौट आई हूं, अर्जुन…
अपना वादा याद दिलाने।”
इतना कहकर वो धुएं की तरह गायब हो गई।
कमरा फिर से वैसा ही था। पर अर्जुन अब वैसा नहीं रहा। वो चुपचाप अपने घुटनों के बल ज़मीन पर बैठ गया। माथा पकड़ लिया और आँखें भींच लीं।
अब वो सिर्फ डर नहीं रहा था… अब उसे खुद पर शक होने लगा था।
क्या वो किसी को वाकई भूल चुका है?
या फिर कोई ऐसा रिश्ता था, जो कभी पूरा नहीं हो पाया?
सुबह तक अर्जुन बैठा रहा। उसकी आंखों में नींद नहीं, सवाल थे। कमरे की खामोशी अब सिर्फ सन्नाटा नहीं, गवाह थी—उस साए की वापसी की, जिसे अर्जुन ने कभी अपनाया था… या शायद ठुकराया था।
अर्जुन की हालत अब सामान्य नहीं रही थी। उसके रोंगटे खड़े थे, गला सूख गया था और दिल ऐसे धड़क रहा था जैसे अभी छाती फाड़ देगा। उसने कई बार खुद को समझाने की कोशिश की—"कुछ नहीं है, ये बस वहम है..." पर उसकी आंखें बार-बार कमरे के कोनों में घूमती रहीं।
वो बत्ती जलाकर बैठा रहा… पूरी रात। नींद तो जैसे उससे रूठ गई थी। हर हल्की सी आवाज़ पर वो चौंक उठता।
उस रात, अर्जुन ने पहली बार किसी अनजाने डर के आगे खुद को बेबस महसूस किया।