रात के ठीक 12 बजे थे। अर्जुन की खिड़की से चाँद की हल्की रोशनी उसके कमरे में बिखरी पड़ी थी। सब कुछ शांत था, पर उस शांति में भी एक अजीब सी घुटन थी। हवा चल रही थी, मगर पत्तों की सरसराहट कुछ ज़्यादा ही डरावनी लग रही थी।
अर्जुन अपनी किताबों के बीच सो गया था, पर उसकी नींद टूट गई—बिना किसी वजह के।उसने करवट बदली और आंखें मलते हुए उठ बैठा। कुछ अजीब था, बहुत ही अजीब। जैसे कमरे में कोई और भी मौजूद हो। उसने इधर-उधर देखा, सब वैसा ही था—कमरा, किताबें, टेबल लैम्प… लेकिन हवा में एक जानी-पहचानी सी ठंडक थी।
अर्जुन धीरे से बिस्तर से उतरा और खिड़की तक गया। बाहर देखा, वही पुराना रास्ता, वही सूनी गली… पर एक चीज़ बदली थी।
हवेली के बाहर—दरिया विला—एक लड़की खड़ी थी।
सफेद साड़ी, खुले बाल, और चेहरा… चेहरा इतना साफ़ नहीं दिखा, पर उसकी आंखें… वो बहुत दूर खड़ी होकर भी अर्जुन को घूर रही थीं। जैसे बस उसी को देख रही हो। अर्जुन की सांसे तेज़ हो गईं। उसने आंखें मलीं, फिर से देखा… कोई नहीं था।“क्या सच में कोई खड़ा था, या मेरा वहम था?” उसने खुद से सवाल किया। पर उसका दिल कह रहा था—वो कोई थी।
अगली सुबह अर्जुन थोड़ा चुप-चुप था। कॉलेज में दोस्तों ने पूछा तो मुस्कुरा दिया, लेकिन मन कहीं और था। उसकी आंखों में अब हवेली की परछाइयाँ उतरने लगी थीं। लंच टाइम में जब सब दोस्त कैंटीन में थे, वो अकेले ही पीछे वाले रास्ते से निकल गया—सीधा दरिया विला की ओर।
हवेली के पास पहुँचकर उसने गहरी सांस ली। दरवाज़ा टूटा हुआ था, काई लगी दीवारें, और अंदर से आती ठंडी हवा… जैसे वक़्त यहां रुक गया हो। मगर कुछ उसे अंदर खींच रहा था। एक अजीब सा आकर्षण, एक खिंचाव।
अर्जुन ने कदम आगे बढ़ाया, लेकिन तभी…“तुम्हें डर नहीं लगता?”पीछे से किसी लड़की की धीमी, ठंडी आवाज़ आई।अर्जुन पलटा—कोई नहीं था।उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।
एक बार फिर उसने खुद को समझाया, “शायद कोई पीछे से गुज़रा हो… या फिर… मेरा दिमाग…”लेकिन वो नहीं जानता था कि ये सिर्फ़ शुरुआत थी।कोई था।जो उसकी हर हरकत पर नज़र रख रहा था।कोई… जो उसके पीछे-पीछे चल रहा था… साया
अर्जुन जैसे ही हवेली की सीढ़ियों के पास पहुँचा, एक ठंडी हवा की लहर उसके चेहरे से टकराई। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसके गाल को छुआ हो। वो चौंक कर पीछे पलटा—कोई नहीं था। लेकिन उस एक पल के लिए… उसे लगा जैसे किसी ने उसका नाम फुसफुसाया हो।
“अर्जुन…”
उसकी सांसें रुक गईं। उसने गले को साफ़ किया और खुद से कहा, "नहीं… ये सब मेरे दिमाग का खेल है।"
पर दिल कुछ और कह रहा था।
हवेली के टूटे दरवाज़े से अंदर झाँकते ही उसे एक अजीब सी जानी-पहचानी गंध आई—गुलाब की परछाईं जैसी। अर्जुन का सिर अचानक भारी होने लगा। उसे लगा जैसे किसी ने उसकी यादों के बक्से को हिलाकर रख दिया हो।
दीवार पर जले पुराने दीपक के निशान, फर्श पर टूटी चूड़ियों के टुकड़े… और कोने में एक पुराना झूला—जो बिना हवा के हल्का-सा हिल रहा था।
अर्जुन का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वो आगे बढ़ा ही था कि उसकी नजर एक दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा बंद था, लेकिन अंदर से कुछ आहटें आ रही थीं—जैसे कोई धीमी-धीमी सिसकियों में रो रहा हो।
वो कुछ कदम आगे बढ़ा, हाथ दरवाज़े की ओर बढ़ाया… और जैसे ही उसने कुंडी को छूआ—
दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया।
भीतर अंधेरा था, लेकिन सिसकियाँ अब साफ़ सुनाई दे रही थीं। और फिर… उस सिसकती आवाज़ ने कुछ कहा—
“मैं अब भी यहीं हूँ…”
अर्जुन पीछे हट गया। वो डर के मारे कांप रहा था। उसके होंठ सूख गए थे और हाथ ठंडे पड़ गए थे। वो बिना कुछ देखे पीछे भागा, हवेली से बाहर निकला और सीधा घर की ओर दौड़ा।
उस रात अर्जुन ने किसी से कुछ नहीं कहा।
लेकिन अब उसे यकीन हो चुका था—
उसके पीछे कोई है।
कोई जो मर कर भी मरा नहीं…
कोई जो उसे याद दिलाना चाहता है
कुछ ऐसा… जिसे वो भूल चुका है।