रात का सन्नाटा था। नीती भाभी अकेली अपने कमरे में बैठी थीं। सामने दो तस्वीरें — एक में आकाश, उनके पति, जिसके साथ जीवन की शुरुआत हुई थी। और दूसरी में राहुल, जिसकी आँखों में उन्होंने फिर से जीने की चाह देखी थी।
उनका दिल फटा जा रहा था।
"क्या प्यार सिर्फ एक इंसान से ही हो सकता है?"
"क्या अगर मैं दोनों से सच्चा रिश्ता रखूं, तो मैं ग़लत हूं?"
उनके लिए राहुल एक नयी सांस था, एक एहसास, जिसने उन्हें फिर से जीना सिखाया।
और आकाश — वो उनका अतीत नहीं, आज भी एक हिस्सा था। उसके साथ बिताए पल झूठ नहीं थे।
अगले दिन, नीती ने दोनों को एक जगह बुलाया।
"आज मैं तुम्हें कोई सफाई नहीं दूंगी। सिर्फ सच सुनाओंगी," उन्होंने कहा।
"आकाश, मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, लेकिन तुम्हारी दुनिया में मैं कब शामिल थी? कितनी बार तुमने मेरी आँखों को पढ़ा?"
आकाश चुप था।
"राहुल… तुमने मुझे महसूस किया। बिना मांगे प्यार दिया, लेकिन अब तुम्हारा प्यार मुझे बांधने लगा है।"
दोनों परेशान हुए।
"मैं तुम दोनों से प्यार करती हूँ। अलग-अलग वजहों से, अलग-अलग तरह से। मैं अब किसी को छोड़कर अधूरी नहीं रह सकती।"
फिर वो आगे बोलीं —
"मैं किसी से छुपकर नहीं जीना चाहती। न धोखा देना चाहती हूँ। अगर तुम दोनों मेरा प्यार नहीं समझ सकते — तो मैं दोनों से दूर हो जाऊंगी।
लेकिन अगर तुम दिल से देख सको… तो शायद हम तीनों एक नयी परिभाषा लिख सकते हैं रिश्ते की।"
राहुल के लिए भाभी सिर्फ एक ख्वाब नहीं थीं, वो उसकी दुनिया बन गई थीं।
हर वो पल, जब भाभी मुस्कुराकर उसे देखतीं, उसके लिए किसी इश्क़ से कम नहीं होता। उसे लगता था, भाभी का दिल अब सिर्फ उसी के लिए धड़कता है। वो ये नहीं जानता था कि भाभी का एक और रिश्ता, उतनी ही गहराई से उसके साथ चलता आ रहा था — उनका पति, आकाश।
भाभी दो दुनियाओं में बँटी हुई थीं —
राहुल से उन्हें वो अपनापन मिलता था जो आकाश से कभी नहीं मिला…
और आकाश से उन्हें वो वादा, वो बंधन जो वक़्त ने बाँधा था।
लेकिन वो राहुल को ये नहीं बताना चाहती थीं —
**क
नीती भाभी रोज़ की तरह अपने घर के कामों में लगी थीं। आकाश ऑफिस चला गया था। हर रोज़ की तरह... वही खामोशी, वही दूरी।
उधर राहुल छत पर इंतज़ार कर रहा था।
हर दोपहर जब भाभी कपड़े सुखाने आतीं, वो उनका चेहरा पढ़ने की कोशिश करता — और भाभी की एक हल्की मुस्कान उसे पूरे दिन के लिए काफी लगती।
उन दोनों का रिश्ता अब धीरे-धीरे आदत बनता जा रहा था।
कभी वो बाहर किसी पार्क में मिलते, कभी बाजार के कोने में। बातों में छुपा प्यार, नजरों में बसी तलब —
पर एक वादा था: "आकाश को कुछ नहीं पता चलना चाहिए।"
राहुल कई बार पूछता,
"कब तक यूँ ही छुपकर...?"
नीती धीरे से कहती,
"जब तक तुम मुझे समझते रहो, मुझे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है।"
राहुल को अब कई दिन हो गए थे —
ना भाभी की वो बालकनी वाली मुस्कान दिखी,
ना किसी गली में अचानक हुई मुलाकात।
उसका दिल बेचैन था।
फोन पर मैसेज भेजा — कोई जवाब नहीं।
एक बार उसके दरवाज़े तक गया — लेकिन लौटा बिना कुछ कहे।
नीती भाभी अब खुद को दूर रख रही थीं।
ना वो राहुल से नज़रें मिलातीं,
ना इशारों में कोई बात कहतीं।
राहुल ने आखिरी बार एक चिट्ठी छोड़ी —
"अगर मैंने कुछ ग़लत किया, तो माफ़ कर देना।
अगर ये तुम्हारा फ़ैसला है, तो मैं उसे समझने की कोशिश करूंगा…
लेकिन बस इतना जानना चाहता हूँ — क्या वो जो हमारे बीच था, सच था?"
चिट्ठी का कोई जवाब नहीं आया।
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छत पर ठंडी हवा चल रही थी।
शाम का सूरज धीरे-धीरे नीचे उतर रहा था — जैसे वक़्त रुक-रुक कर कुछ कहने की कोशिश कर रहा हो।
राहुल खड़ा था, वही पुराना कुर्ता पहने…
नीती भाभी आईं — सफेद सूती साड़ी में, सादगी और सच्चाई से भरी हुई।
राहुल मुस्कुराया, पर मुस्कान थमी हुई थी:
“काफी दिन हो गए…”
भाभी ने नज़रे नहीं मिलाईं।
धीरे से बोलीं:
“कुछ रिश्ते ज़्यादा दिन नहीं चलते, राहुल… जितना भी चला, उतना बहुत था।”
राहुल के होंठ सूखे थे, लेकिन आवाज़ में एक टूटापन था:
“मत जाओ भाभी… एक बार सोच लो। हम बदल सकते हैं, सब ठीक कर सकते हैं…”
नीती ने पहली बार उसकी आंखों में देखा —
वो नफ़रत नहीं थी, प्यार भी नहीं… बस थकान थी, और एक गहरी सच्चाई।
“प्यार वो होता है जिसमें हम खुद से नज़रें मिला पाएं…
और मैं अब खुद से नहीं मिल पा रही।”
एक लंबी चुप्पी हुई।
फिर भाभी धीरे से आगे बढ़ीं,
राहुल का हाथ थामा…
और उतने ही धीरे से उसे छोड़ दिया।
“तुम्हें भूलना मुश्किल होगा…
पर तुम्हारे साथ रहना नामुमकिन है।”
राहुल ने कुछ नहीं कहा —
उसकी आंखों से एक आंसू टपका,
और भाभी…
बिना पीछे देखे चली गईं।