राहुल एक सीधा-सादा लड़का था, जो हाल ही में नौकरी के सिलसिले में शहर आया था। नया मकान, नई कॉलोनी — सब कुछ नया था उसके लिए। लेकिन जो सबसे अलग और खास था, वो थी सामने वाले फ्लैट की नीतु भाभी।
हर सुबह वो तुलसी के पास पानी डालतीं, माथे पर सिंदूर, आँखों में कुछ अनकहा सा। राहुल बालकनी में चाय का कप लिए खड़ा होता और बस उन्हें देखता रहता। कुछ कहे बिना ही दिल कुछ महसूस करता।
नीतु भाभी खूबसूरत थीं, पर औरतों की तरह सज-धज में नहीं, बल्कि एक सादगी में। उनकी मुस्कान में जैसे कोई दर्द छुपा था। एक दिन राहुल ने हिम्मत जुटाई और सीढ़ियों में सामना होते ही कहा,
"नमस्ते भाभी जी!"
वो मुस्कुरा दीं।
"नमस्ते राहुल जी, नए आए हैं ना?"
"हाँ... और अब तो आपको देखकर लग रहा है, आना ठीक ही किया..."
नीतु भाभी ने हल्की हँसी में बात टाल दी, लेकिन उस दिन से एक रिश्ता सा बनने लगा। कभी सीढ़ियों पर मुलाकात, कभी बालकनी से मुस्कान का आदान-प्रदान।
धीरे-धीरे राहुल को लगने लगा कि ये सिर्फ़ आकर्षण नहीं... शायद प्यार था।
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राहुल को अब नीती भाभी से रोज़ की मुलाकात की आदत सी हो गई थी। वो हर सुबह ठीक नौ बजे बालकनी में होता, जैसे कोई अनदेखा वादा हो उनके बीच। भाभी भी अब मुस्कुराकर नज़रें मिला लेतीं — थोड़ी देर ठहरकर, कुछ कहती नहीं लेकिन सब कह जातीं।
एक दिन शाम को बारिश हो रही थी। लाइट चली गई थी। राहुल छत पर खड़ा था, अकेला… तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी —
"अकेले बारिश में क्या सोच रहे हो?"
मुड़कर देखा — नीती भाभी थीं, हल्के भीगे बाल, साड़ी भी थोड़ी सी भीगी हुई, और हाथ में एक कप कॉफी। राहुल को जैसे शब्द ही नहीं मिले।
"आप... छत पर?"
"कभी-कभी अकेलापन भीड़ में नहीं, दिल में होता है…" भाभी ने गहरी नज़र से देखा।
राहुल ने धीमे से कहा,
"आप बहुत कुछ कहती हैं, बिना कुछ कहे…"
भाभी पास आईं, राहुल के काफी करीब। उनके कपड़ों से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी — कुछ अजीब, कुछ मदहोश कर देने वाला।
"और तुम बहुत कुछ समझते हो, बिना पूछे…"
कुछ सेकेंड्स के लिए एक अजीब सी खामोशी छा गई। बारिश की आवाज़, दिल की धड़कनों से मिल गई।
फिर अचानक भाभी ने धीरे से कहा,
"क्या तुम्हें लगता है कि जो दिल कहता है, वो सही होता है?"
राहुल ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया,
"अगर वो दिल आपकी तरफ खिंचता है… तो हाँ, बिल्कुल।"
रात की बारिश के बाद...
रात गहराती जा रही थी। राहुल अब तक नींद की कोशिश कर रहा था, लेकिन दिल और दिमाग दोनों छत पर बिताए उन कुछ पलों में उलझे हुए थे। तभी दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई।
"टॉक… टॉक…"
राहुल चौंका। इतनी रात को कौन?
दरवाज़ा खोला तो सामने वही चेहरा — नीती भाभी। हल्की सी मुस्कान, एक गीली सी उदासी आंखों में, और होंठों पर सन्नाटा।
"मैं... सो नहीं पा रही थी," भाभी ने कहा।
राहुल ने खुद को संभालते हुए पूछा,
"क्या बात है? सब ठीक है?"
भाभी कुछ पल चुप रहीं, फिर बोलीं,
"कभी-कभी इंसान जो चाहता है, वो गलत नहीं होता… बस वक्त गलत होता है।"
राहुल की सांसें तेज़ थीं, लेकिन उसने खुद को शांत रखते हुए कहा,
"अगर आप चाहें तो कुछ देर यहीं बैठ सकते हैं।"
भाभी अंदर आ गईं। लाइट धीमी थी, कमरे में हल्की सी खुशबू थी — न जाने कॉफी की या उनके बदन की। उन्होंने राहुल की तरफ देखा — अब वो और पास थीं।
"तुम मुझसे डरते हो क्या?"
"नहीं... लेकिन खो जाने से डरता हूँ..."
फिर वो लम्हा आया — जब न शब्द बोले गए, न वादे हुए। बस नज़दीकियां थी, साँसों की गर्माहट थी, और दिल की हसरतें जो ज़ुबां बनने लगी थीं।
वो रात एक हद से आगे निकल गई — नीयत नहीं, लेकिन मोहब्बत में उलझा एक जज़्बा, जो रोकना अब मुमकिन नहीं था।
अगली सुबह…
राहुल की आँखें खुलीं तो कमरे में एक अजीब सी खामोशी थी। वो उठकर देखा — भाभी जा चुकी थीं। लेकिन तकिए पर उनकी खुशबू अब भी बाकी थी।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो कल रात हुआ, वो हकीकत था या कोई ख्वाब…
पर तभी…
दरवाज़े की घंटी बजी।
राहुल ने जल्दी से दरवाज़ा खोला — सामने वही पड़ोस वाली कामवाली बाई खड़ी थी।
"भैया, सुना है भाभी जी के पति वापस आ गए हैं... रात की ट्रेन से!"
राहुल का चेहरा उतर गया।
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दूसरी ओर, नीती भाभी अपने घर में…
पति की अचानक वापसी ने उन्हें हिला दिया था। मन में सवालों की बाढ़ आ गई —
"क्या जो हुआ, वो एक भूल थी?
या कोई ऐसा रिश्ता, जो कहीं दिल के कोने में पहले से ज़िंदा था?"
पति की आँखों में शक नहीं था, लेकिन उनकी बेरुख़ी वही पुरानी थी।
उधर राहुल हर रोज़ भाभी की एक झलक के लिए तरसने लगा था। लेकिन अब वो बालकनी में नहीं आती थीं।
एक दिन उसने हिम्मत करके एक चिट्ठी भेजी — बस एक लाइन लिखी थी:
"क्या वो रात सिर्फ मेरी थी…?"
शाम होते ही जवाब आया —
भाभी की लिखावट में सिर्फ़ एक शब्द था:
"नहीं।"