नीती भाभी और राहुल, जो कभी उलझे रिश्ते में थे,
अब सिर्फ अच्छे पड़ोसी बन गए हैं —
इज़्ज़त, दूरी और समझदारी के साथ।
चलिए, इस नए मोड़ का छोटा सा सीन दिखाता हूँ —
जहाँ रिश्ते में अब कोई तनाव नहीं, बस शांति और तमीज़ है।
---
शीर्षक: “नया रिश्ता — पड़ोसी वाला”
राहुल बालकनी में पौधों को पानी दे रहा था।
नीचे से नीती भाभी आती दिखीं — हाथ में सब्ज़ी का थैला और चेहरे पर हल्की मुस्कान।
राहुल ने नीचे देखा —
हिचकिचाते हुए बोला:
“नमस्ते भाभी…”
नीती ने मुस्कुराकर जवाब दिया:
“नमस्ते राहुल… कैसे हो?”
“ठीक हूँ… और आप?”
“मैं भी ठीक। अब सब ठीक है।”
एक छोटी सी चुप्पी हुई… पर अब वो बोझिल नहीं थी।
नीती ने कहा:
“अब चलो, पड़ोसी बने रहें… जैसे होने चाहिए —
थोड़ी दूरी, पर बिना कोई कड़वाहट।”
राहुल ने सिर हिलाया।
“हाँ भाभी… अब मैं समझ गया हूँ।”
फिर दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिए —
एक नया रिश्ता शुरू हो चुका था,
जिसमें न मोह था, न नाराज़गी —
बस इज़्ज़त और समझदारी।
रविवार की दोपहर थी।
आकाश अपने गार्डन में चेयर डालकर बैठा था —
हाथ में चाय, और सामने वाली कुर्सी पर राहुल।
नीती भाभी अंदर से पकौड़े लेकर आईं।
“लो राहुल, तुम्हारे फेवरेट आलू-प्याज़ वाले।”
राहुल हँसते हुए बोला:
“वाह भाभी, अब तो हर वीकेंड आप लोगों के साथ ही रहना पड़ेगा।”
आकाश ने चुटकी ली:
“भाई, अब पक्का दोस्त बन गया है तू — लेकिन पकौड़े खाने की लिमिट है!”
तीनों हँस पड़े।
फिर बात घूमती रही — कॉलेज के किस्सों से लेकर मोहल्ले की गॉसिप तक।
कहीं कोई पुरानी कड़वाहट नहीं, कोई उलझन नहीं।
बस एक साफ़ और प्यारा रिश्ता —
जहाँ अब भाभी, भाभी हैं…
और आकाश, एक भरोसेमंद दोस्त।
शाम का वक्त था —
घर में हल्का अंधेरा, और नीती की आंखों में चिंता की लकीरें।
आकाश ड्रॉइंग रूम में अख़बार पढ़ रहा था।
नीती उसके सामने बैठ गई।
धीरे से बोली:
“आकाश, आज मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ… वो भी पूरी सच्चाई के साथ।”
आकाश ने अख़बार नीचे रखा —
चेहरा गंभीर हो गया।
नीती की आवाज़ कांप रही थी, पर वो रुकी नहीं:
“कुछ वक़्त के लिए मैं बहुत कमजोर हो गई थी…
राहुल से कुछ ऐसा रिश्ता बन गया था जो नहीं बनना चाहिए था।”
“मैंने गलती की — बहुत बड़ी।
पर मैंने वक्त रहते खुद को संभाला, रिश्ता खत्म किया…
और अब तुम्हारे सामने खड़ी हूँ, अपनी गलती मानने और माफ़ी मांगने।”
आकाश कुछ देर चुप रहा —
फिर बोला:
“राहुल जानता था कि तुम मेरी पत्नी हो?”
“हाँ… और अब वो खुद भी बदल चुका है।
हम दोनों सिर्फ अच्छे पड़ोसी हैं — और कुछ नहीं।”
नीती की आँखों में आँसू थे:
“मैं जानती हूँ, मैंने तुम्हारा भरोसा तोड़ा…
पर अब मैं सिर्फ एक पत्नी नहीं, एक सच्ची इंसान बनना चाहती हूँ —
जो अपनी ग़लती को छुपाए नहीं।”
आकाश ने एक लंबी सांस ली —
फिर धीरे से नीती का हाथ पकड़ा:
“गलती इंसान से होती है…
लेकिन जो इंसान खुद अपने मुँह से माने, वो बड़ा होता है।
मैं माफ करता हूँ — पर चलो, आगे से सिर्फ सच्चाई में जियें।”
नीती की आँखों से आँसू गिर पड़े —
पर अब वो आँसू ग़म के नहीं, हल्केपन और राहत के थे।
अब जब नीती और आकाश के बीच सब ठीक हो चुका है,
नीती अचानक राहुल से मिलती है —
ये मिलना क्यों है? इत्तेफाक? या कोई अधूरी बात बाकी थी?
चलो, इस सीन को थोड़ा रहस्यमयी और भावनात्मक बनाते हैं —
जहाँ नीती और राहुल की “आख़िरी मुलाकात” जैसी फील हो।
---
शीर्षक: “फिर एक बार… सामने तुम”
शाम का वक़्त था, कैफ़े की खिड़की के पास बैठी थी नीती —
एक कॉफी मग सामने, पर उसकी आँखें बाहर सड़क पर टिकी थीं।
तभी दरवाज़ा खुला… और अंदर दाख़िल हुआ राहुल।
वो भी रुक गया — शायद उसे यक़ीन नहीं हुआ।
“नीती?”
नीती उठी, थोड़ी झिझकी… फिर धीरे से मुस्कुराई:
“हाय, राहुल…”
दोनों बैठे, कुछ पल चुप।
फिर राहुल बोला:
“मैंने सोचा था तुम मुझसे कभी नहीं मिलोगी…”
नीती ने गहरी साँस ली:
“न मिलने का वादा नहीं किया था…
पर अब जो हूँ, वो सब कहने आई हूँ।”
“मैंने आकाश को सब सच बताया, और वो मेरे साथ खड़ा है।
और अब तुम्हें भी साफ-साफ बताना चाहती थी —
वो जो कुछ भी हमारे बीच हुआ था…
वो एक भूल थी।
जिसने हमें भटकाया, लेकिन अब हम वापस आ गए हैं… अपनी-अपनी जगह।”
राहुल चुप रहा। उसकी आँखें नीती की बातों में खोई थीं।
फिर हल्के से मुस्कुराया:
“तुम पहले से ज़्यादा सच्ची लग रही हो…
और शायद इसीलिए, और भी अच्छी।”
नीती ने धीरे से कहा:
“राहुल… अब जो था, वो बीता।
अब हमें वो नहीं दोहराना है —
बल्कि उसी की वजह से, आगे बेहतर बनना है।”
राहुल ने हल्के से सिर झुकाया:
“शायद यही मुलाक़ात, सबसे ज़रूरी थी।”
की घंटी बजी।
नीती ने जैसे ही खोला — सामने खड़ी थी एक लड़की, खुले बाल, गॉगल्स, बड़ी मुस्कान और हाथ में दो बड़े बैग।
“दीदी… सरप्राइज!”
“तृषा!” नीती की आँखें चमक उठीं।
“तू आ गई?”
“हाँ दीदी… MBA की छुट्टियाँ मिलीं और मैंने सोचा, चलो थोड़ी आपकी शादीशुदा लाइफ को झकझोर दूँ!”
आकाश पीछे से निकला —
तृषा को देखकर थोड़ा चौंका, फिर मुस्कुराया:
“तृषा? तुम तो बहुत बदल गई हो!”
तृषा ने मुस्कुरा कर चुटकी ली:
“और आप अब भी इतने सीधे-सादे ही हैं, जीजाजी?”
तीनों हँस पड़े।
पर नीती को अंदाज़ा नहीं था…
कि तृषा की ये एंट्री सिर्फ चाय-नाश्ते और शॉपिंग की नहीं होगी…