Soul Searching - Beyond the Third Eye - 4 in Hindi Spiritual Stories by Puneet Katariya books and stories PDF | आत्मा की खोज - तीसरी आँख से परे - 4

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आत्मा की खोज - तीसरी आँख से परे - 4

अध्याय चार: अवचेतन मन की शक्ति

       सुबह की शांति में गूंजती गुरुदेव की आवाज, किसी गहरे सरोवर पर गिरती बूँद जैसी थी—धीरे, पर प्रभावशाली।

    गुफा में आग की धीमी आँच और बाहर की सफेद दुनिया के बीच बैठा आरव, अब एक साधक बन चुका था—जिसका हृदय जानना चाहता था, और आत्मा बदलने को तत्पर थी।

 गुरुदेव ने उसकी ओर देखा और बोले, "आज हम बात करेंगे उस शक्ति की, जो तुम्हारे भीतर है, पर तुमने उसे पहचाना नहीं—अवचेतन मन की शक्ति।"

आरव ने ध्यानपूर्वक सिर झुकाया। गुरुदेव बोले, "तुम्हारा मन दो भागों में कार्य करता है—चेतन और अवचेतन। चेतन मन सोचता है, तर्क करता है, निर्णय करता है। पर जो तुम्हारी आदतें बनाता है, भावनाओं को संचालित करता है, शरीर की प्रत्येक क्रिया को चलाता है—वह है अवचेतन मन।"

गुरुदेव ने मिट्टी से बने पात्र में से जल पीया और फिर बोले, "अवचेतन मन को तुम जो भी निर्देश देते हो, वह उसे स्वीकार करता है—बिना सवाल, बिना तर्क।"

उन्होंने पास रखे बीजों को उठाया और मिट्टी पर फेंका, "जैसे मिट्टी अच्छे-बुरे सभी बीजों को उगाती है, वैसे ही अवचेतन मन हर विचार को स्वीकार करता है, चाहे वह प्रेम का हो या भय का, विश्वास का हो या संदेह का। यही कारण है कि 'The Power of Your Subconscious Mind' में डॉ. जोसेफ मर्फी कहते हैं, 'Every thought is a cause, and every condition is an effect.'"

 

         आरव अब पूरी तरह ध्यान में था। वह प्रश्न पूछे बिना नहीं रह सका, "गुरुदेव, यदि हमारा अवचेतन मन इतना शक्तिशाली है, तो हम दुखी क्यों रहते हैं?"

गुरुदेव मुस्कराए, "क्योंकि तुमने अपने चेतन मन से अपने अवचेतन को नकारात्मक विचारों से भर दिया है—'मैं असफल हूँ', 'मुझे डर लगता है', 'मेरे पास पर्याप्त नहीं है'—ये विचार जैसे बीज हैं, जो तुम्हारे जीवन में दुःख के वृक्ष बन जाते हैं।"

उन्होंने आगे समझाया, "आरव, अवचेतन मन एक उपजाऊ बगीचे की तरह है और हमारे विचार उस बगीचे में बोए जाने वाले बीज हैं। तुम जैसे बीज बोओगे, वैसे ही फल पाओगे। यदि तुम कांटों का बीज बोओगे, तो उस पर अंगूर का फल नहीं उगेगा। उसी प्रकार, यदि तुम द्वेष, भय, ईर्ष्या या निराशा के विचार अपने भीतर बोओगे, तो उनसे प्रेम, सुख और शांति की फसल नहीं काट सकते।"

"इसलिए," उन्होंने गंभीर स्वर में जोड़ा, "अपने अवचेतन में वही विचार भरो, जो तुम्हें प्रकाश की ओर ले जाएँ—नकारात्मकता नहीं, सकारात्मकता; भय नहीं, विश्वास।"

उन्होंने आगे कहा, "—'Your subconscious mind is like a fertile garden, your thoughts are the seeds.' तुम्हें यह जानना होगा कि क्या बो रहे हो—क्योंकि वही तुम्हारा भविष्य बनेगा।"

आरव अब भीतर उतर चुका था। उसने पूछा, "तो गुरुदेव, मैं अपने अवचेतन को कैसे शुद्ध कर सकता हूँ?"

गुरुदेव बोले, "दो रास्ते हैं—आत्म-प्रस्ताव (Autosuggestion) और गहन ध्यान। तुम्हें अपने भीतर बार-बार सकारात्मक विचारों का संचार करना होगा—जैसे 'मैं शांति हूँ', 'मैं प्रेम हूँ', 'मैं समृद्ध हूँ'। यह विचार धीरे-धीरे तुम्हारे अवचेतन में उतरेंगे और एक दिन तुम्हारा संपूर्ण स्वरूप बदल देंगे।"

उन्होंने एक कहानी सुनाई—"एक वृद्ध महिला थी जो हर समय कहती थी, 'मेरी याददाश्त कमजोर हो रही है।' उसका अवचेतन इस आदेश को मानता गया। लेकिन जब उसने कहना शुरू किया, 'मेरी स्मरण शक्ति हर दिन बेहतर हो रही है', तो कुछ हफ्तों में उसकी याददाश्त लौट आई।"

आरव को यह चमत्कारिक लगा, लेकिन अब वह चमत्कारों में विश्वास करने लगा था।

गुरुदेव बोले, "यह कोई जादू नहीं है, यह मन के विज्ञान का नियम है। जैसा तुम सोचते हो, वैसा ही तुम बनते हो। और तुम्हारे विचार तुम्हारा भाग्य बनाते हैं।"

फिर उन्होंने गहराई से जोड़ते हुए कहा, "आरव, जिस प्रकार तुम्हारा अतीत तुम्हारे वर्तमान का परिणाम है, और तुम्हारा भविष्य तुम्हारे वर्तमान के कर्मों की प्रतिछाया है, उसी प्रकार तुम्हारा वर्तमान भी तुम्हारे अवचेतन मन में वर्षों से बोए गए विचारों की छवि है। यह जीवन कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सतत निर्माण है—जो तुम्हारे ही विचारों से रचा गया है।"

"यदि तुमने डर, चिंता और आत्म-संदेह को पोषित किया है, तो वही तुम्हारे चारों ओर की दुनिया में रूप ले लेगा। लेकिन यदि तुम प्रेम, विश्वास और साहस को अपने भीतर बिठाओगे, तो वही तुम्हारे जीवन की दिशा बनेंगे।"

थोड़ी देर मौन रहकर आरव ने पूछा, "गुरुदेव, पर यह कैसे संभव है? क्या केवल सोचने भर से हमारा अवचेतन मन कार्य कर सकता है?"

गुरुदेव की आँखों में गहराई झलकने लगी। उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ आरव, यही तो उसकी सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली प्रकृति है। जब तुम किसी विचार को बार-बार सोचते हो, या जब कोई इच्छा तीव्र होती है, तो वह विचार तुम्हारे अवचेतन में उतर जाता है। और एक बार जब वह वहाँ स्थापित हो जाता है, तो अवचेतन मन तुम्हारे आस-पास ऐसी परिस्थितियाँ और घटनाएँ निर्मित करने लगता है जो तुम्हें उस लक्ष्य की ओर ले जाएँ।"

"उदाहरण के लिए," गुरुदेव बोले, "यदि तुम्हारे भीतर यह इच्छा है कि तुम अध्यात्म के मार्ग पर चलना चाहते हो, तो तुम्हारा अवचेतन मन और यह ब्रह्मांड मिलकर ऐसे अवसरों को तुम्हारे जीवन में लाएंगे—तुम्हारी भेंट उन लोगों से होगी जो पहले से इस मार्ग पर हैं, तुम्हारे हाथ वे पुस्तकें लगेंगी जो तुम्हें मार्गदर्शन देंगी। तुम्हारे विचार ही तुम्हारे अनुभवों को जन्म देते हैं।"

गुरुदेव ने मुस्कराते हुए जोड़ा, "इसलिए अपने विचारों को समझो, उन्हें प्रेम से गढ़ो, और फिर देखो कि ब्रह्मांड कैसे तुम्हारे साथ चलता है। यही कारण है कि अतीत से ही यह बात कही जाती रही है—'संगत और विचार, दोनों को सोच समझकर चुनो।' जैसे संगत तुम्हारे व्यवहार को ढालती है, वैसे ही विचार तुम्हारे भाग्य को गढ़ते हैं। जो तुम साथ रखते हो और जो तुम सोचते हो, वही तुम बनते हो।""

गुफा के भीतर अब केवल मौन था, पर वह मौन शून्य नहीं था—वह एक संदेश से भरा था। आरव की आँखें बंद थीं, लेकिन भीतर कोई नवचेतना जाग रही थी।

कुछ सोचकर आरव बोला, "तो गुरुदेव, मेरा तो अब तक का जीवन ईर्ष्या, क्रोध और लालच से भरा हुआ रहा है। और यदि यही मेरे अवचेतन में है, तो क्या मुझे भी इन्हीं के अनुसार परिणाम मिलने वाला है?" उसके स्वर में गहरा दुख था।

गुरुदेव ने सहानुभूति से उसकी ओर देखा और बोले, "हाँ आरव, अब तक का तुम्हारा जीवन राग-द्वेष से भरा था, और तुम्हारा अवचेतन उन्हीं बीजों से प्रभावित हुआ है। लेकिन इन राग-द्वेष से भरे बीजों को निकालने और अवचेतन को शुद्ध करने का उपाय है—ध्यान। ध्यान ही वह साधन है जिससे तुम इन विचारों से मुक्ति पा सकते हो। यह तुम्हें अपने मन के भीतर झाँकने और उसकी सफाई करने का अवसर देता है।"

गुरुदेव के शब्दों में गूँजती आश्वस्ति से आरव के चेहरे पर एक हल्की शांति झलकी।

गुरुदेव ने आगे कहा, "कल से हम ध्यान की शुरुआत करेंगे। लेकिन आज से ही एक अभ्यास शुरू करो—अपने विचारों को देखना। यह जानने की कोशिश करो कि वे किस प्रकार के हैं—क्या वे भय से उपजे हैं या प्रेम से? क्रोध से या करुणा से? कल मैं तुम्हें ध्यान की पहली विधि सिखाऊँगा, लेकिन उसकी तैयारी आज से ही शुरू होती है।"

उसने धीमे से कहा, "गुरुदेव, मैं अपने विचारों को बदलना चाहता हूँ… मैं वह बनना चाहता हूँ जो वास्तव में मैं हूँ—एक प्रकाश।"

गुरुदेव ने मुस्कराकर कहा, "तो तैयार हो जाओ, आरव। अब तुम्हारी साधना का पहला चरण शुरू होता है—अपने भीतर बोए गए हर विचार को देखना, पहचानना और नया बीज बोना। कल से हम अभ्यास शुरू करेंगे—मन को दिशा देने का "

बाहर की बर्फ पिघल रही थी… और भीतर एक नया बीज अंकुरित हो रहा था—ज्ञान का, आत्मा की ओर बढ़ते एक नए जीवन का।