अध्याय दो: अजनबी से मुलाक़ात
बर्फ़ की चादर ओढ़े वह वीरान घाटी जैसे समय से परे किसी दूसरी ही दुनिया में थी। हवा इतनी ठंडी थी कि साँसें भी जमने लगतीं। शरीर थक चुका था, पर मन अभी भी संघर्ष कर रहा था—शायद जीने की उम्मीद अब भी बाकी थी। आरव उस चट्टान के सहारे बैठा रहा, कभी आकाश की ओर देखता, कभी अपनी कंपकंपाती उंगलियाँ सहलाता। उसके भीतर चल रहा था—धड़कनों और सोच का एक तूफान पर भावशून्य जिसमे विचार नहीं थे ।
कुछ समय बाद, जब थककर उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह बेहोसी की चादर ओड़ने वाला था , तभी दूर से कुछ हलचल की आवाज़ आई। उसने ध्यान से सुना—किसी के कदमों की आहट… बर्फ़ पर भारी पगचाप जैसे कोई बहुत धीमे-धीमे उसकी ओर बढ़ रहा हो।
वह चौंका, घबराया… फिर भी भीतर एक अजीब-सी शांति भी थी—जैसे यह क्षण पूर्व-निर्धारित था।
आवाज़ धीरे-धीरे पास आती गई आरव को साथ ही हल्का डर भी लग रहा था की काही यह कोई जंगली जानवर तो नही और फिर एक आकृति सामने उभरी। बर्फीली धुंध के बीच एक वृद्ध पुरुष खड़ा था। उनकी उम्र का अंदाज़ा लगाना कठिन था—मानो उनके चेहरे पर समय ने थमकर विश्राम किया हो। लंबी सफ़ेद दाढ़ी, शांत और गहराई लिए आँखें, और एक सूती कम्बल ओढ़े साधारण परंतु गरिमामयी उपस्थिति।
आरव को थोड़ी शांति और आशा की किरण जागी ।
“तुम जीवित हो…” उन्होंने नरम किन्तु दृढ़ स्वर में कहा, “मतलब अभी तुम्हारी यात्रा पूरी नहीं हुई है।”
आरव ने उस आवाज़ में कोई तसल्ली महसूस की—जैसे किसी ने उसकी अदृश्य पीड़ा को छू लिया हो।
“आप… कौन हैं?” उसने कठिनाई से शब्द निकाले।
वृद्ध ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, “वह, जिसे तुम्हारी आत्मा ने बुलाया है। चलो, यहाँ से दूर चलें, तुम्हें गर्मी और विश्राम की आवश्यकता है।”
आरव हिचकिचाया उसे कुछ समझ नही आया , पर फिर उस हाथ को थाम लिया जो उसकी ओर बढ़ा था। वह हाथ बुज़ुर्ग था, लेकिन स्थिर… और उसमें ऐसा विश्वास था जिसे शब्द नहीं बाँध सकते।
वे दोनों एक पतली पगडंडी से होकर चलते गए—बर्फ में बनी छोटी पगचापें उनके पीछे छूटती रहीं। कुछ दूरी पर एक पहाड़ी के अंदर बनी गुफा थी—छोटी पर अजीब ढंग से सुरक्षित और गर्म।
गुफा के भीतर प्रवेश करते ही एक सुखद ताप का अनुभव हुआ। वहाँ लकड़ियों की छोटी आग जल रही थी, कुछ गीली जड़ी-बूटियाँ धीमी आंच पर सूख रही थीं, और मिट्टी के बर्तन किसी आश्रम जैसी व्यवस्था में सजे थे। ....... (शायद बूढ़े व्यक्ति हो इस घटना का पूर्वानुमान था की इस कुछ होने वाला है और वह आरव का ही इंतजार कर रहा हाइओ ।)
आरव चुपचाप बैठ गया। उसकी थकावट अब बाहर आ रही थी—तन, मन और आत्मा सब थक चुके थे।
वृद्ध ने उसके सामने एक गर्म पेय रखा—किसी जड़ी-बूटी से बना काढ़ा।
“इसे पी लो। यह तुम्हारे शरीर को सुकून देगा… और धीरे-धीरे मन को भी।”
आरव ने धीरे से कप उठाया, और फिर पूछा,
“आप यहाँ रहते हैं… अकेले? इस वीराने में?”
वृद्ध ने आँखें बंद कीं और शांति से उत्तर दिया,
“मैं अकेला नहीं हूँ , आरव । मेरे साथ है यह प्रकृति… यह शून्य… और वह चेतना जो सबमें विद्यमान है। असली अकेलापन तो शहरों की भीड़ में होता है, जहाँ आत्माएँ एक-दूसरे से कट चुकी होती हैं।”
आरव ने उनकी बात सुनी, और कुछ भीतर काँप गया।
“आपको मेरा नाम कैसे पता?”
वृद्ध ने धीमे स्वर में कहा,
“जब चेतना जागृत होती है, तो नाम, चेहरा, इतिहास… सब स्पष्ट दिखने लगता है। तुम आरव हो—बाहर से बहुत बड़ा, लेकिन भीतर से बिखरा हुआ। अब समय है भीतर की यात्रा का।”
आरव की आँखों में आँसू भर आए।
“मुझे नहीं पता मैं क्या चाहता हूँ… लेकिन अब मैं पहले जैसा जीवन नहीं जी सकता। उस बर्फ के ढेर मे माना देखा की मैंने खुद को खोकर पेसे पाए जो की एक क्षण मे चले गए , शायद ये जीवन इसके लिए तो नहीं मिल ...... मुझे जवाब चाहिए… शायद खुद से… शायद ईश्वर से।”
वृद्ध मुस्कराए, “उत्तर तभी मिलते हैं जब प्रश्न सच्चे हों। लेकिन उत्तर बाहर नहीं, भीतर छिपे होते हैं। ”
भीतर ?
हा भीतर ....और भीतर जाने का मार्ग है—ध्यान।
कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद वृद्ध ने कहा,
“पर ध्यान तक पहुँचने से पहले तुम्हें अपने मन की धूल साफ़ करनी होगी—डर, क्रोध, लालच, पछतावे… इन सबको देखना और समझना होगा। ध्यान केवल एक क्रिया नहीं है, यह आत्मा से साक्षात्कार का द्वार है।”
ध्यान के हर चरण मे तुम्हें पीड़ा होगी , मानसिक पीड़ा। तुम्हारा पूरा जीवन फिर से तुम्हारी आँखों से गुजरेगा , तुम्हारा अवचेतन मन मे फिर से डर, क्रोध, लालच, पछतावे के विचार प्रकट होंगे बस अंतर यह होगा की यह विचार नये नहीं होंगे बल्कि तुम्हारे अवचेतन मन की गहरायों मे छिपे विचार ही होंगे जो अब धीरे धीरे समाप्त होंगे ।
आरव ने सिर झुका दिया।
“मैं तैयार हूँ… सीखने के लिए, समझने के लिए… और खुद से मिलने के लिए।”
वृद्ध ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोले,
“तो चलो, अब से हर दिन एक परत हटेगी। और हर परत के पीछे छिपा होगा—तुम्हारा असली स्वरूप। याद रखो, यह सफर बाहर से भीतर की ओर है… और इस यात्रा की पहली मुलाक़ात तुम्हारी आत्मा से होगी।”
गुफा के बाहर बर्फ़ धीरे-धीरे गिर रही थी। लेकिन आरव के भीतर अब एक नई आग जल रही थी—आत्मा की खोज की आग।