Ek Ladki sabke saath wo Sab Karti - 1 in Hindi Women Focused by Rakesh books and stories PDF | एक लड़की सबके साथ वो सब करती - 1

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एक लड़की सबके साथ वो सब करती - 1

एक लड़की की, जो सबकी नज़रों में कुछ और थी... लेकिन खुद के लिए कुछ और।

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दिल्ली की तंग गलियों के बीच, जहां लोग दूसरों की ज़िंदगी को अपने खाली वक्त का मज़ा समझते हैं, वहीं रहती थी नैना।

नैना के बारे में लोगों की जुबान पर एक ही बात थी —  
"वो लड़की सबके साथ वो सब करती है।"

हर कोने पर, हर चाय की दुकान पर, हर आंख में उसके लिए एक तय फैसला था।  
कोई उसे "बदचलन" कहता, तो कोई "बेशर्म"।  
लेकिन किसी ने कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि वो ऐसा क्यों करती है।

नैना की उम्र बस 24 साल थी। खूबसूरत, आत्मविश्वासी, और सबसे ज़्यादा — स्वतंत्र।

वो खुले बालों में चलती, किसी लड़के से डरती नहीं थी, और अपनी मर्जी से रिश्ते बनाती, तोड़ती।  
उसका कहना था —  
"जिस्म मेरा है, फैसले भी मेरे होंगे।"

कभी-कभी वो सच में एक साथ कई लड़कों के साथ घूमती दिख जाती।  
कभी वो किसी शादीशुदा आदमी को कॉफी पर बुला लेती, तो कभी किसी लड़के के साथ रात बिताने से भी नहीं हिचकिचाती।

पर क्या बस इतना ही था नैना?

नहीं।

जब किसी ने उसके पास जाकर धीरे से पूछा —  
"तू ये सब क्यों करती है? पैसा चाहिए?"

तो वो सिर्फ मुस्करा दी और कहा —  
"कभी मां को किसी के लिए रोते देखा है?  
कभी बहन को किसी के हाथों टूटते देखा है?  
कभी खुद को आइने में देखते वक्त आंखों में पानी देखा है?  
मैं वो सब रोकने निकली हूं।  
किसी लड़की को अगर ये दिखाना है कि मर्दों का 'पॉवर' कुछ नहीं,  
तो मुझे ही बुराई बनना पड़ेगा।"

नैना के जीवन की शुरुआत किसी आम लड़की जैसी नहीं थी।  
14 की उम्र में अपने चाचा के हाथों दरिंदगी झेली थी।  
17 की उम्र में प्यार में धोखा खाया था।  
19 की उम्र में जब कॉलेज में अपनी सहेली को गैंगरेप का शिकार होते देखा, और कोई कुछ नहीं बोला —  
तब से उसने ठान लिया था कि डर कर नहीं, लड़ कर जिऊंगी।

उसे फर्क नहीं पड़ता था कि लोग क्या कहते हैं।

उसके लिए हर वो लड़का जो उसे सिर्फ "जिस्म" समझता था — वो खुद एक सबक बन जाता था।

एक बार एक बड़ा पॉलिटिशियन उसके पास आया —  
"साथ चलो, पैसे दूंगा, गाड़ी दूंगा।"  
नैना हँसी —  
"मैं वो नहीं बेचती जो तुम खरीदना चाहते हो।  
मैं सिर्फ तुम्हें आईना दिखाने आई हूं।"

धीरे-धीरे लोगों को समझ आने लगा कि नैना, जो दिखती है, वो है नहीं।

उसके पास हर आदमी की कमज़ोरी थी।  
हर नेता का राज़, हर पुलिसवाले का गुनाह, हर व्यापारी का चेहरा।

और वो हर चीज़ का इस्तेमाल करती थी — लड़कियों की ज़िंदगी बदलने के लिए।

एक दिन एक रिपोर्टर ने उससे पूछा —  
"तुम्हारी छवि तो बेहद खराब है। लोग तुम्हें अच्छा नहीं मानते। तुम इससे परेशान नहीं होती?"

नैना ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया, फिर धीरे से बोली —  
"भगवान बनने से पहले रावण बनना पड़ता है।  
और हां, मैं वो लड़की हूं जो सबके साथ वो सब करती है...  
लेकिन सिर्फ इसलिए, ताकि हर लड़की को फिर वो सब न सहना पड़े।"

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अब नैना की दुनिया को और गहराई, अंधेरे और खतरनाक सच के साथ खोलते हैं — एक ऐसी कहानी, जो न सिर्फ रुलाएगी, बल्कि दिल दहला देगी।

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"मैं वो लड़की हूं जो सबके साथ वो सब करती है,  
क्योंकि जब मेरे साथ सबने वो सब किया —  
तब कोई नहीं था जो मुझे बचा पाता।"

नैना की यह लाइन, वो नहीं कहती थी।  
वो लिखती थी — हर रात, अपनी डायरी में, खून से।

नैना अब 24 की है, लेकिन उसकी रूह शायद 70 की हो चुकी है —  
क्योंकि हर साल उसके अंदर एक टुकड़ा मर गया।

14 साल की उम्र में जब चाचा ने पहली बार उसके शरीर पर हाथ फेरा था, तो वो चीखी नहीं थी —  
वो बस मर गई थी अंदर से।