PRAYAG YATRA - 4 in Hindi Mythological Stories by संदीप सिंह (ईशू) books and stories PDF | प्रयाग यात्रा - 5 पौराणिक और प्राचीन महत्व (4)

Featured Books
Categories
Share

प्रयाग यात्रा - 5 पौराणिक और प्राचीन महत्व (4)

प्रयाग यात्रा - 5 पौराणिक और प्राचीन महत्व (lll)

वाल्मीकि रामायण में प्रयाग का का उल्लेख महर्षि भारद्वाज के आश्रम के सम्बन्ध में है, और इस स्थान पर घोर वन की स्थिति बताई गई है… 

यत्र भागीरथी गंगा यमुना-भिप्रवर्तते। 
जगमुश्तं देशमुद्दिश्य विगाह्वा सुमहद्वनम।। 

अर्थात 

"जहां भागीरथी गंगा यमुना से मिलती हैं, उस स्थान पर जाने के लिए महान (सघन) वन के भीतर से होकर (गुजर कर) यात्रा करने लगे। " 

प्रयाग में रामायण की कथा के समय घोर जंगल तथा मुनियों के आश्रम थे, कोई जनसंकुल बस्ती नहीं थी।

यहाँ सिद्ध, देवता तथा ऋषियों का आवास है। 
भारद्वाज ऋषि का आश्रम यहाँ पर था, जिसके कुछ चिह्न अभी तक वर्तमान में हैं। 

कहते है लंका विजय के पश्चात वायुमार्ग से पुष्पक विमान द्वारा  लौटते समय प्रभु राम  महर्षि भरद्वाज के आश्रम के विषय मे वर्णन करते हुए कहते हैं-

" प्रयागमभित: पष्य सौमित्रे धूममुत्तमम्। 
अग्नेर्भगवतः केतुं मन्ये संनिहितो मुनि।। "

अर्थात 

सुमित्रानन्दन (लक्ष्मण जी) ! वह देखो प्रयाग के पास भगवान् अग्निदेव की ध्वजा रूप धूम उठ रहा है। 
मालूम होता है, मुनिवर भरद्वाज यहीं हैं।


भारद्वाज मुनि और प्रयाग की धरती का सदियों पुराना नाता है। प्रयाग को यज्ञ की धरती इसलिए भी कहा जाता है कि महर्षि भरद्वाज का आश्रम संगम की धार्मिक नगरी में जहां गंगा यमुना का संगम होता है, यहीं पर स्थापित है ।

एक समय यह आश्रम गंगा किनारे था। अकबर ने नदी पर बाँध बांधा तथा गंगा को आश्रम से दूर ले गया। किन्तु भक्तगण आश्रम को नहीं भूले। 

जब भी दर्शनार्थी प्रयाग तीर्थ अथवा प्रयाग संगम के दर्शनार्थ यहाँ आते हैं, वे भारद्वाज आश्रम के दर्शन अवश्य करते हैं।

आज भी महर्षि भारद्वाज आश्रम में उनके द्वारा स्थापित भरद्वाजेश्वर शिवलिंग  स्थापित है, जो अत्यंत ही आकर्षक है, और प्रयागराज में रहने वाले विद्यार्थियों एवं जनमानस, पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। 

प्रयाग वासियों के कई वर्षों की लगातार मांग पर विगत वर्ष 17 जनवरी 2019 दिन गुरुवार को भारत के वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम श्री रामनाथ कोविंद जी के कर कमलों द्वारा दो करोड़ की लागत और मात्र 30 दिवस मे बनी महर्षि भारद्वाज की प्रतिमा का अनावरण किया। 

(आप सभी को महर्षि भारद्वाज के दर्शन प्राप्त हो इस लिए भारद्वाज आश्रम स्थित भारद्वाज पार्क मे महामहिम कोविंद द्वारा अनावरित प्रतिमा की छवि संलग्न की है। किंतु मातृ भारती पर चित्र संलग्न करने की सुविधा उपलब्ध नहीं है अतः क्षमाप्रार्थी हूँ ) 

मान्यता के अनुसार, भरद्वाज मुनि के आश्रम में गुरुकुल परंपरा थी जिसमें महर्षि द्वारा अपने शिष्यों को शिक्षा दीक्षा दी थी। यहीं से इस नगर में शिक्षा की अलख प्रज्वलित हुई।

🔸🔹🔸 
रामायण में उल्लेखित प्रयाग महात्म्य 

वाल्मीकि रामायण के अनुसार भारद्वाज महर्षि वाल्मीकि के शिष्य थे और तमसा-तट पर क्रौंचवध के समय भारद्वाज  महर्षि वाल्मीकि के साथ थे। 

महर्षि वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि वनवास प्रस्थान के पश्चात भगवान श्री राम राम लक्ष्मण और भार्या माँ सीता के साथ प्रथम पड़ाव महर्षि भारद्वाज के इसी प्रयाग स्थिति आश्रम मे किया था। 

भगवान राम 14 वर्ष वनवास का पूरा करने के बाद पंचमी तिथि को भारद्वाज के आश्रम प्रयाग (जो तीर्थराज प्रयाग में संगम से थोड़ी दूर स्थित था और आज भी है) में पहुंच कर अपने मन को वश में रखने के लिए भगवान ने महर्षि को प्रणाम किया ,यह ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था। 

रामायण के अनुसार यहाँ के जल से प्राचीन काल में राजाओं का अभिषेक होता था। 

त्रेतायुग के कालखंड के अंतर्गत रामायण के अनुसार उल्लिखित कि, यहाँ के जल से प्राचीन काल में राजाओं का अभिषेक होता था।

हम इसे इस प्रकार समझ सकते है कि इक्ष्वांकु वंश के पूर्वज नृपो, सम्राटों और समकालीन के अन्य कुल वंश के राजाओं का राज्याभिषेक के समय प्रयाग की पावन भूमि पर सदियों से सतत प्रवाह के साथ विराजित पतित पावनी माँ गंगा के निर्मल जल से अभिषेक किया जाता था।

रामायण के उक्त तथ्य से विदित है कि प्रयाग का महत्व चक्रवर्ती सम्राट महराज दशरथ के कई सदियों पूर्व से ही प्रयाग का महात्म्य यथार्थ मे था। 

प्रभु राम और प्रयाग का उल्लेख तो प्रत्येक भारतीय जनमानस को ज्ञात है कि भारद्वाज मुनि के इसी आश्रम से होते हुए भगवान राम अयोध्या से वनवास गये थे। 

इतना ही नहीं राम जी ने यहां रूककर जाने का रास्ता भी पूछा था। वन जाते समय श्रीरामचंद्र यहाँ प्रवास किया और फिर वनवास मार्ग पर यहां से आगे बढ़ते हुए गए थे।

लंका पर विजय हासिल करने के बाद जब भगवान राम लौटे तो महर्षि भारद्वाज से आशीर्वाद लिया था।
इससे यह प्रमाण मिलता है कि प्रयाग का अस्तित्व काफी प्राचीन है। 

क्रमशः 
प्रयाग यात्रा - पौराणिक और प्राचीन महत्व (lV)

इस आगामी खण्ड मे प्रयाग यात्रा के अंतर्गत प्रयाग के प्रथम नागरिक महर्षि भारद्वाज के विषय मे प्रकाश डालने का प्रयास है। 


🔸🔸🔸

अब अगले भाग मे मैं आपको पौराणिक और 
प्राचीन महत्व के बारे मे बताऊँगा। 
आपको यह लेख कैसा लगा कृपया समीक्षा 
अवश्य करें। 

जल्द ही पुनः आपके सम्मुख उपस्थित होऊँगा नए भाग प्रयाग यात्रा - पौराणिक और प्राचीन महत्व (lV) मे...... 

✍🏻 संदीप सिंह (ईशू) 

(क्रमशः)