प्रथम भाग के अंदर आप प्रयागराज के बारे मे संक्षिप्त परिचय से अवगत हुए जो इस प्रयाग यात्रा पर चलने से पहले जानना बेहद आवश्यक है।
प्रयागराज में भगवान श्री विष्णु के बारह स्वरूप विध्यमान है, जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है।
हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है।
यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती हैं, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहाॅं प्रत्येक बारह वर्ष में कुम्भ मेला लगता है।
प्रयाग का वर्णन तुलसीदास की रामचरित मानस और बाल्मिकी की रामायण मे भी है, यही नहीं सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक पुराण मत्स्य पुराण के 102 अध्याय से लेकर 107 अध्याय तक में इस तीर्थ के महात्म्य का वर्णन है।
प्रयाग की प्राचीनता और महत्व के बारे मे आप अब तक काफी परिचित होंगे एक मुख्य बिंदु और बताता चलूं आगे बढ़ने से पूर्व...
आज से करीब 444 सालों पहले संगम नगरी इलाहाबाद का नाम प्रयागराज था, मुगल सम्राट अकबर ने सन 1583 ई. में प्रयागराज का नाम बदल कर इलाहाबाद रख दिया था, जो कि अरबी और फारसी के दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें अरबी शब्द इलाह था (अकबर द्वारा चलाये गए नये धर्म दीन-ए-इलाही के सन्दर्भ से, अल्लाह के लिए) और फारसी से आबाद (अर्थात बसाया हुआ) शब्द लिया गया था जिसका अर्थ था ’ईश्वर द्वारा बसाया गया’, या ’ईश्वर का शहर’।
इस विषय पर विस्तार से अगले खण्डों मे लिखूँगा फ़िलहाल.........
यहां से वास्तविक प्रयाग यात्रा आरंभ हो रही है, तो आइये सर्वप्रथम यहाँ कि भौगोलिक स्थिति से अवगत होते है।
भाग - 2
🔸भौगोलिक स्थिति
भारत के राजनैतिक सत्ता, प्राप्ति अहम भूमिका निभाने वाले सबसे ज्यादा प्रभावशाली उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 201 किलोमीटर स्थित प्रयाग राज की भौगोलिक स्थिति के बारे मे जानना भी बेहद महत्वपूर्ण है। अतः इस भाग मे प्रयागराज की भौगोलिक स्थिति के बारे मे परिचय कराना अति आवश्यक है।
प्रयागराज जिला 24 ° 47 ' उत्तर से 25 ° उत्तर अक्षांश के बीच और 81 ° 19 ' और 82 ° 21 ' पूर्व देशांतरों के बीच स्थित है । इसमें 5,482 किमी² (वर्ग किलोमीटर) का क्षेत्र शामिल है ।
यह जिला राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है, जो भारत के विंध्य पठार के समीप और गंगा के समतल मे है । प्रयागराज मुख्यालय और मंडल दोनों है।
प्रयागराज मे 2 लोकसभा क्षेत्र है, - (1) प्रयागराज (2) फूलपुर
जनगणना 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या 59,54,391 थी। (वर्तमान मे अधिक हो चुकी है किन्तु डाटा उपलब्ध नहीं)
यहां लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 978 महिला हैं। यहां की साक्षरता दर 86.50 % है, जो देश की साक्षरता दर 74% से अधिक है । जनसंख्या के आधार पर पुरुष साक्षरता दर 90.21 % और महिला साक्षरता दर 82.17 % है।
प्रयागराज जिला पूर्व मे भदोही और मिर्जापुर द्वारा घिरा हुआ है , पश्चिम में कौशाम्बी तथा बांदा द्वारा तथा उत्तर में प्रतापगढ तथा जौनपुर द्वारा और दक्षिण मे बांदा तथा रीवा (मध्य प्रदेश) द्वारा दक्षिण मे घिरा है ।
जिला मे गंगा और यमुना नदी बहती हैं । मध्य प्रदेश से आती टोंस नदी प्रयागराज के मेजा तहसील से गुजरते हुए सिरसा मे गंगा मे समाहित हो जाती है।
जनपद प्रयागराज में आठ तहसील शामिल हैं, जिनका विवरण निम्नांकित है -
🔸1. तहसील - करछना
विकास खंड - चाका, करछना, कौंधियारा
कुल ग्राम - 356
🔸2. तहसील - कोरांव
विकास खंड - कोरांव
कुल ग्राम - 278
🔸3. तहसील - फूलपुर
विकास खंड - बहरिया, फूलपुर, बहादुरपुर, सहसों
कुल ग्राम - 567
🔸4. तहसील - बारा
विकास खंड - जसरा, शंकरगढ़
कुल ग्राम - 326
🔸5. तहसील - मेजा
विकास खंड - मेजा, उरुवा, मांडा
कुल ग्राम - 395
🔸6. तहसील - सदर
विकास खंड - –
कुल ग्राम - 175
🔸7. तहसील - सोरांव
विकास खंड - कौड़ीहार, होलागढ़, मऊआइमा, सोरांव, भगवतपुर, शृंग्वेरपुर धाम
कुल ग्राम - 452
🔸8. तहसील - हंडिया
विकास खंड - प्रतापपुर, सैदाबाद, धनुपुर, हंडिया
कुल ग्राम - 629
प्रयागराज जिले में मेजा तहसील क्षेत्रफल के अनुसार सबसे बड़ी आबादी वाली तहसील है।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी पी सिंह) का जन्मस्थान है और यहां उनका शासन था, मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं स्वयं मेजा तहसील के सिंहपुर ग्राम का निवासी हूँ।
मेजा के बरसैता गांव मे टोंस नदी के किनारे एक प्राचीन किला विद्यमान है, वर्तमान मे यह प्रशासनिक अनदेखी की वज़ह से क्षीण और जर्जर हो चुका है।
इस किले का कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिला है किन्तु मैं प्रयासरत हूँ यदि सत्यापित तथ्य मिलते है तो मैं अवश्य उल्लेख करूंगा। अकबर के बनाए किले के बारे मे मैं आगे के खण्डों मे चर्चा करूंगा।
जनश्रुति और कहानियों के अनुसार इस किले का निर्माण संगम स्थित अकबर के किले के साथ बताया जाता है, किंतु यह किला काफी प्राचीन है, इसमे जो सामाग्री इस्तेमाल की गई है वह अकबर के बनाए किले से पूर्व काल की है।
सदर तहसील जिले की सबसे बड़ी तहसील है ।
प्रयागराज जिले मे 20 विकास खंड , 2715 गांव जिन्हें आप ऊपर पढ़ चुके है, और 10 कस्बे हैं।
कस्बों (नगर निकाय /नगर पंचायत) के बारे मे विवरण निम्न है -
🔹1- प्रयागराज (नगर निगम)
🔹2 - सिरसा (नगर पंचायत) - साथ ही यह एक प्राचीन बाजार भी था, और आज भी है। यहां भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा संपन्न हुई थी।
🔹3- लाल गोपाल गंज (नगर पंचायत)
🔹4 - झूंसी (नगर पंचायत)
🔹5 - फूलपुर (नगर पंचायत)
🔹6 - शंकरगढ़ (नगर पंचायत)
🔹7 - कोंराव (नगर पंचायत)
🔹8 - हण्डिया (नगर पंचायत)
🔹9 - भारतगंज (नगर पंचायत)
🔹10 - मऊ आईमा (नगर पंचायत)
प्रयाग से प्रयागराज तक, प्राचीन समय से ही यह प्राचीन शहर रहने की वजह से आसपास के क्षेत्र और जिलों के लिए यह एक समृद्ध बाजार केंद्र रहा है।
उद्योग की दृष्टि से फूलपुर और उपनगर नैनी क्षेत्र स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से ही औद्योगिक क्षेत्र रहा है। प्रयागराज को शिक्षा के क्षेत्र मे उत्तर भारत की राजधानी कहा जाता है।
" इलाहाबाद यूनिवर्सिटी "भारत का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय है, इसकी स्थापना सन 1872 ई. मे हुआ था तब इसे म्योर सेन्ट्रल कालेज के नाम से जाना जाता था, हालांकि सन 1887 ई. मे इसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय बना दिया गया था। यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।
यहाँ राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त और भी शैक्षणिक संस्थान है जिनमे प्रमुख नाम
ट्रिपल आई टी IIIT-A,
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज,
राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय,
हरीशचन्द्र शोध संस्थान,
गोविन्द वल्लभ पन्त सामाजिक विज्ञान संस्थान,
आई ई आर यूइंग क्रिश्चियन कालेज इत्यादी है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय
भारत में स्थापित सबसे पुराने उच्च न्यायालयों में से एक है। यह सन 1869 ई. से कार्य कर रहा है।
ब्रिटिश कालीन भारत मे भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के अंतर्गत 17 मार्च 1866 मे सर्वप्रथम इसे आगरा मे स्थापित किया गया था।
उत्तरी-पश्चिमी प्रान्तों के लिए स्थापित इस न्यायाधिकरण के पहले मुख्य न्यायाधीश थे सर वाल्टर मॉर्गन।
सन् 1869 में इसे आगरा से इलाहाबाद स्थानान्तरित किया गया। 11 मार्च 1919 को इसका नाम बदल कर 'इलाहाबाद उच्च न्यायालय' रख दिया गया।
2 नवम्बर 1925 को अवध न्यायिक आयुक्त ने अवध सिविल न्यायालय अधिनियम 1925 की गवर्नर जनरल से पूर्व स्वीकृति लेकर संयुक्त प्रान्त विधानमण्डल द्वारा अधिनियमित करवा कर इस न्यायालय को अवध चीफ कोर्ट के नाम से लखनऊ में प्रतिस्थापित कर दिया।
काकोरी काण्ड का ऐतिहासिक मुकद्दमें का निर्णय अवध चीफ कोर्ट लखनऊ में ही दिया गया था।
25 फरवरी 1948 को, उत्तर प्रदेश विधान सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल द्वारा गवर्नर जनरल को यह अनुरोध किया गया कि अवध चीफ कोर्ट लखनऊ और प्रयागराज हाई कोर्ट को मिलाकर एक कर दिया जाये। इसका परिणाम यह हुआ कि लखनऊ और इलाहाबाद के दोनों (प्रमुख व उच्च) न्यायालयों को 'इलाहाबाद उच्च न्यायालय' नाम से जाना जाने लगा तथा इसका सारा कामकाज प्रयागराज से चलने लगा, किंतु हाई कोर्ट की एक स्थाई बेंच लखनऊ में बनी रहने दी गयी जिससे सरकारी काम में व्यवधान न हो।
जब उत्तर प्रदेश से तेरह जिलों को अलग कर सन 2000 ई. मे उत्तरांचल (उत्तराखंड) राज्य बनाया गया, तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से इन तेरह जिलों को निकाल कर नैनीताल मे स्थापित उत्तराखंड उच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र मे शामिल कर दिया गया।
यहां तक आपने भौगोलिक स्थिति के साथ साथ कई मुख्य बिंदुओं के बारे मे जाना।
अब अगले भाग मे मैं आपको
पौराणिक और प्राचीन महत्व
के बारे मे बताऊँगा।
आपको यह लेख कैसा लगा कृपया समीक्षा अवश्य करें।
जल्द ही पुनः आपके सम्मुख उपस्थित होऊँगा नए भाग प्रयाग यात्रा - 3 पौराणिक और प्राचीन महत्व मे......
✍🏻संदीप सिंह (ईशू)
(क्रमशः)