प्रयाग यात्रा -4 पौराणिक और प्राचीन महत्व (।।) का शेष -
श्रृंगवेरपुर का उल्लेख हिंदू महाकाव्य रामायण में निषादराज के शाही राज्य की राजधानी या 'मछुआरों के राजा' के रूप में मिलता है।
प्रयाग के सुंदर स्थान पर स्थित प्रयागराज शहर से लगभग 40 किमी दूर स्थित श्रृंगवेरपुर का अनोखा गांव है।
पौराणिक कथा के अनुसार, इस श्रृंगवेरपुर गांव का नाम श्रृंगी ऋषि के नाम पर पड़ा था। कहा जाता है कि यह वही स्थान है, जहां से भगवान राम, देवी सीता और भगवान लक्ष्मण ने रात्रि विश्राम के बाद, वनवास जाने के लिए गंगा नदी को पार किया था।स्थानीय मान्यता के अनुसार नाव वालों ने भगवान राम, लक्ष्मण और सीता को नदी पार कराने से मना कर दिया था। स्थिति को हल करने के लिए निषादराज खुद मौके पर पहुंचे और नदी पार कराने की एवज में भगवान राम के सामने एक शर्त रखी। निषादराज ने कहा कि यदि वह उनसे अपने अपने पैर धुलवा लेते हैं तो वह उन्हें नदी पार करवा देगा। भगवान राम ने यह शर्त स्वीकार कर ली। निषादराज ने उनके पैर धोए और उन्हें अपनी नाव में बैठाकर नदी पार करवा दिया। प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर से भगवान राम ने दिया था विश्व बंधुत्व का संदेश - :इसी जगह भगवान राम ने निषादराज का आतिथ्य स्वीकार करते हुए उन्हें गले लगाकर छुआछूत व भेदभाव मिटाकर सामाजिक एकता और वसुधैव कुटुम्बकं का संदेश भी दिया था। जिस स्थान पर राजा निषादराज ने ऐसा करने के लिए कहा था, उसका नाम रामचूरा रखा गया और वहां एक चबूतरे का निर्माण किया गया। यह आज भी मौजूद है। वाल्मीकि रामायण और अन्य ग्रंथों के मुताबिक दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए श्रृंगी ऋषि के आचार्यत्व में ही पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। तब प्रभु राम समेत चार पुत्रों की उन्हें प्राप्ति हुई थी। बहुत कम लोगों को इस तथ्य की जानकारी है कि राजा दशरथ की एक पुत्री और प्रभु राम की एक बहन भी थी जिनका नाम शांता था। यज्ञोंपरांत महराज दशरथ ने श्रृंगी ऋषि से ही अपनी पुत्री शांता का विवाह भी किया था।गंगा तट पर स्थित यह तीर्थ श्रृंगी ऋषि और माता शांता की साधनास्थली के रूप में भी जाना जाता है। प्रयाग की प्राचीन पौराणिक प्रमाणिकता को दर्शाता एक साक्ष्य भी प्राप्त हुआ इस लेख को लिखने के लिए शोधन करते समय जिसे साझा करना चाहूँगा।श्रृंगवेरापुरा - 2000 साल पहले भारतीय हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी उपलब्ध है प्राचीन प्रयागराज (इलाहाबाद) का इतिहास मे। गांव सिंगरौर के पास प्राचीन स्थल की पहचान प्राचीन 'श्रृंगवेरापुरा' से की गई है, जिसका उल्लेख रामायण में मिलता है। श्रृंगवेरापुरा प्रयागराज से 35-40 किलोमीटर ऊपर गंगा नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि यहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम भी मौजूद था। कई प्रसंगों से इसने (इस स्थल ने) महत्व प्राप्त किया, क्योंकि यहीं पर स्थानीय सरदार निषाद राजा ने राम को उनके वनवास के दौरान गंगा नदी पार करने में मदद की थी। एएसआई (भारतीय पुरातत्व विभाग) द्वारा "रामायण स्थलों का पुरातत्व" परियोजना के तहत 1977 और 1985 के बीच बड़े पैमाने पर इस स्थल की खुदाई की गई थी। खुदाई से एक बड़े आयताकार ईंट टैंक के अवशेष सामने आए हैं जो 2000 साल पहले भारतीय हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का एक अनूठा उदाहरण है। इंजीनियरों (अभियन्ताओं) ने इस उद्देश्य के लिए विशेष रूप से खोदी गई एक फीडिंग चैनल के माध्यम से टैंक (टंकी) में लाने वाले गंगा के पानी का दोहन किया। इसके बाद, पानी एक सिल्टिंग चैंबर और एक प्रारंभिक टैंक से होकर गुजरा जो कि गाद को बसाने के लिए बनाया गया था। यह शुद्ध पानी ओवरफ्लो (अतिरिक्त बहाव) हो गया और मुख्य टैंक में प्रवेश किया जहां इसे रखा गया था। परिसर के दूसरे छोर पर एक गोलाकार टैंक भी है, जिसका उपयोग शायद अनुष्ठान के लिए किया जाता था। अंत में अतिरिक्त पानी को स्पिल-चैनल के माध्यम से पूर्व की ओर गंगा नदी में वापस बहा दिया गया था। इस स्थल पर आवास क्षेत्र में उत्खनन से देश के पूर्वी भाग में गेरू रंग के बर्तनों के होने का प्रमाण मिलता है।11वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर हाल के समय तक का सांस्कृतिक क्रम भी जारी है। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व- अर्थात पहली शताब्दी ईस्वी में, यह अपने चरम पर पहुंच गई, जैसा कि उस अवधि के व्यापक अवशेषों और एक लंबे हाइड्रोलिक ईंट टैंक से संकेत मिलता है।(क्रमशः)प्रयाग यात्रा -5 पौराणिक और प्राचीन महत्व (।।।)इसमे आपके साथ महर्षि भारद्वाज के आश्रम की प्राचीनता के माध्यम से प्रयाग के पौराणिक महात्म्य के बारे मे विस्तार से चर्चा होगी। 🔸🔸🔸अब अगले भाग मे मैं आपको पौराणिक और प्राचीन महत्व के बारे मे बताऊँगा। आपको यह लेख कैसा लगा कृपया समीक्षा अवश्य करें। जल्द ही पुनः आपके सम्मुख उपस्थित होऊँगा नए भाग प्रयाग यात्रा - 5 पौराणिक और प्राचीन महत्व (।।।) मे...... ✍🏻संदीप सिंह (ईशू) (क्रमशः)