"वो जो किताबों में लिखा था" – भाग 7
(अंतिम रहस्य का अनावरण और आत्मा का आह्वान)
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किताब का अंतिम पृष्ठ खुलते ही जैसे समय की गति थम गई। हर ओर एक दिव्य प्रकाश फैल गया — न स्वर्णिम, न चांदनी जैसा, बल्कि वह जिसे केवल आत्मा महसूस कर सकती थी।
आरव और नायरा अब किसी भौतिक स्थान में नहीं थे। वे एक ऐसे लोक में खड़े थे जहाँ शब्द नहीं, भावनाएँ बोलती थीं। हवा में तैरते अक्षर खुद-ब-खुद एक वृत्त में घूमने लगे और एक नई आकृति बनने लगी — एक दरवाज़ा, लेकिन प्रकाश से बना हुआ।
किताब की आवाज गूंजी, "यह है अंतिम द्वार — ज्ञान और बलिदान का द्वार। इसके पार वही जा सकता है जो स्वयं को त्यागने को तैयार हो।"
नायरा ने आरव का हाथ थामा। "यह वो क्षण है जहाँ तुम्हारा अतीत, वर्तमान और भविष्य एक हो जाएगा।"
आरव ने गहरी सांस ली और आगे बढ़ गया।
जैसे ही उसने दरवाज़े की ओर कदम रखा, किताब का एक पृष्ठ अलग हो गया और आरव के सीने से जा लगा — जैसे वह अब उसका हिस्सा बन गया हो।
अंदर प्रवेश करते ही उसे एक विशाल सभागार दिखाई दिया, जहाँ सैकड़ों आत्माएँ बैठी थीं — ज्ञानी, योद्धा, कवि, और वे जिन्होंने अपने जीवन में रहस्य को छू लिया था।
"तुम्हें क्यों चुना गया?" एक गंभीर स्वर गूंजा।
आरव ने बिना झिझक के कहा, "क्योंकि मैं टूट चुका था… और सिर्फ वही टूटे लोग, नई दुनिया की नींव रख सकते हैं।"
एक गूंजती हुई सराहना हुई। लेकिन तभी हवा ठंडी हो गई। प्रकाश धुंधला पड़ने लगा। और किताब ने कांपती आवाज़ में कहा —
> "पर एक अंतिम सत्य अभी भी छिपा है, आरव।
वो जो तुम्हारे जन्म से पहले लिखा गया था।
वो… जो नायरा जानती है।"
आरव ने चौंककर नायरा की ओर देखा।
"क्या मतलब?" उसने धीरे से पूछा।
नायरा की आँखें भर आईं। "मैंने जो सच छुपाया… वो अब सामने आएगा। लेकिन तुम्हें वादा करना होगा कि जो भी जानोगे, तुम पलटोगे नहीं।"
"वादा।"
नायरा आगे बढ़ी, और किताब के एक पुराने कोने को छुआ।
अचानक पूरा हॉल हिल गया। दीवारों से शब्द निकलने लगे — और उन शब्दों ने एक नाम रचा…
> "नायरा, अंतिम रक्षक — और श्राप की मूल वाहक।"
आरव का मन सन्न रह गया। नायरा की आँखों में अब कोई पर्दा नहीं था — सिर्फ सच्चाई की गहराई थी।
"तुमने मुझसे सब कुछ क्यों छिपाया?" उसकी आवाज़ कांप रही थी।
नायरा ने सिर झुकाया। "क्योंकि किताबों में जो लिखा था, वो सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं… मेरे लिए भी था। मैं तुम्हें तैयार होते देखना चाहती थी — बिना पूर्वाग्रह, बिना डर।"
"तुम्हारा क्या संबंध है उस श्राप से?"
नायरा ने किताब का वह पृष्ठ खोला जो आज तक किसी ने नहीं देखा था — किताब का 'शून्य अध्याय'। उसमें लिखा था:
“जब अंधकार पहली बार धरती पर फैला, एक आत्मा ने उसे आत्मसात कर लिया — ताकि दूसरों को बचाया जा सके। वो आत्मा अब दो हिस्सों में बँट चुकी है — एक प्रकाश, एक अंधकार। जब वे दोनों मिलेंगे, निर्णय होगा — जीवन या विनाश।”
आरव समझ चुका था।
"तुम ही वह आत्मा हो?"
नायरा ने आँखें बंद कीं, और जब उसने दोबारा देखा — उसकी आंखों में नीले रंग की जगह अब दो रंग थे — एक स्वर्णिम और एक गहरा काला।
"हाँ। और अब हमें उस अंतिम परीक्षा का सामना करना होगा, जिसमें मैं तुम्हारे विरुद्ध भी हो सकती हूँ। क्योंकि…"
वो रुकी।
"मैं प्रकाश की रक्षक तो हूँ, पर अंधकार का बीज भी मुझमें ही है।"
आरव ने नायरा का हाथ थाम लिया।
"तो चलो, चलें उस द्वार की ओर… जहाँ सच और भाग्य हमारा इंतज़ार कर रहे हैं।"
और वे दोनों उस प्रकाश के मार्ग में आगे बढ़ गए — उस ओर जहाँ नियति ने एक आखिरी फैसला उनके लिए लिखा था।
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Dear readers "वो जो किताबों में लिखा था" कहानी padhte rahiye सिर्फ matru bharti aap par ...........
[भाग 8 में जारी…]