dreamscape in Hindi Fiction Stories by Heera Singh books and stories PDF | सपनों का मंजर

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सपनों का मंजर

रामू एक साधारण मध्यमवर्गीय व्यक्ति था, जो अपने परिवार के साथ एक छोटे से गांव में रहता था। उसकी जिंदगी में ज्यादा सुख-सुविधाएं तो नहीं थीं, लेकिन अपने पत्नी और दो बच्चों के साथ वह मेहनत-मजदूरी करके गुजारा कर लेता था। उसका एक सपना था कि वह अपने परिवार के लिए एक पक्का घर बनाए, ताकि बारिश में छत न टपके और सर्दियों में ठंड से बच्चे न कांपें। जब उसे पता चला कि सरकार की एक योजना है, जिसमें गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों को पक्का घर बनाने के लिए आर्थिक मदद दी जाती है, तो उसके मन में उम्मीद जगी। उसने सोचा कि शायद अब उसका सपना पूरा हो सकेगा। लेकिन उसे क्या पता था कि यह उम्मीद उसकी जिंदगी को तबाह कर देगी।रामू ने अपने गांव के सरपंच से बात की। सरपंच ने कहा, "अरे रामू, ये तो बहुत अच्छी बात है। तू अर्जी डाल दे, मैं तुझे ब्लॉक ऑफिस भेजता हूं। वहां के बाबू से मिलना, वो तेरी मदद करेगा।" रामू खुश हो गया। उसने अपनी पत्नी से कहा, "सुनती हो, अब हमारे बच्चों को पक्की छत मिलेगी। बस थोड़ा इंतजार करना होगा।" उसकी पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, "भगवान करे, सब ठीक हो जाए।" लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी।रामू ब्लॉक ऑफिस पहुंचा। वहां एक बाबू बैठा था, जो फाइलों में उलझा हुआ चाय पी रहा था। रामू ने अपनी अर्जी दी और हाथ जोड़कर बोला, "साहब, मेरे पास कुछ नहीं है। बस ये घर बन जाए, मेरे बच्चे खुश रहें।" बाबू ने उसकी तरफ देखा और हंसते हुए कहा, "अर्जी तो ठीक है, लेकिन पहले 5000 रुपये का इंतजाम कर। बिना इसके फाइल आगे नहीं बढ़ेगी।" रामू के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके पास इतने पैसे कहां थे? उसने अपने खेत का कुछ अनाज बेचा, पत्नी के पुराने चांदी के कंगन गिरवी रखे और किसी तरह 5000 रुपये जमा किए। बाबू ने पैसे ले लिए और कहा, "अब तहसीलदार साहब से मिलो, वो आगे का काम करेंगे।"रामू तहसील ऑफिस गया। वहां तहसीलदार ने उसकी फाइल देखी और बोला, "ये तो अभी अधूरी है। पहले पटवारी से जमीन का नक्शा बनवाओ, फिर 10,000 रुपये का खर्चा होगा।" रामू का दिल बैठ गया। उसने सोचा, "जितने पैसे सरकार से मिलने हैं, उससे ज्यादा तो ये लोग खा रहे हैं।" फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने गांव के साहूकार से उधार लिया, अपनी बकरी बेच दी और पैसे जमा किए। पटवारी ने नक्शा बनाया, तहसीलदार ने फाइल आगे बढ़ाई, लेकिन हर कदम पर कोई न कोई नया बहाना आता। कभी कोई कागज गायब हो जाता, कभी कोई फीस मांगता। रामू रोज सुबह घर से निकलता, धूप में पैदल चलता, ऑफिस के बाहर घंटों खड़ा रहता, लेकिन हर बार उसे सिर्फ आश्वासन मिलता- "हो जाएगा, थोड़ा इंतजार करो।"इस चक्कर में महीने बीत गए। घर में अनाज खत्म हो गया। बच्चे भूखे सोने लगे। पत्नी बीमार पड़ गई, लेकिन दवाई के लिए पैसे नहीं थे। रामू ने अपने खेत का एक टुकड़ा बेच दिया। उसने सोचा, "शायद अब पैसा मिल जाए, तो सब ठीक हो जाएगा।" लेकिन पैसा नहीं आया। उसका धैर्य जवाब देने लगा। वह रोते हुए घर लौटता और अपनी पत्नी से कहता, "मैंने क्या गुनाह किया कि ये सब हो रहा है? मैं तो बस अपने बच्चों के लिए छत चाहता था।" उसकी पत्नी उसे चुप कराती, लेकिन उसकी आंखों में भी आंसू थे।आखिरकार, रामू ने फैसला किया कि वह कोर्ट जाएगा। उसने एक वकील से बात की। वकील ने कहा, "केस तो बन सकता है, लेकिन इसमें वक्त लगेगा। पहले 20,000 रुपये दो।" रामू के पास अब कुछ नहीं बचा था। उसने अपनी जमीन गिरवी रखी और केस दायर किया। कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई, लेकिन वहां भी वही हाल था। तारीख पर तारीख। हर बार कोई न कोई बहाना। जज बदलते रहे, फाइलें गायब होती रहीं। सालों तक रामू कोर्ट के चक्कर काटता रहा। इस बीच उसका घर बिक गया। पत्नी की बीमारी बढ़ गई और एक दिन वह चल बसी। बच्चे भूख और गरीबी से कमजोर हो गए। रामू टूट चुका था। बीस साल तक केस चला, लेकिन न पैसा मिला, न न्याय।एक दिन रामू के सब्र का बांध टूट गया। उसने सुना कि जिले का बड़ा अधिकारी, जिसके पास उसकी फाइल सालों से अटकी थी, अपनी बेटी के साथ शहर जा रहा था। रामू के दिमाग में एक खतरनाक विचार आया। उसने सोचा, "अगर इन्हें दर्द नहीं समझेगा, तो ये मेरी सुनवाई कैसे करेंगे?" उसने उस अधिकारी की बेटी का अपहरण कर लिया। वह उसे एक सुनसान जगह ले गया और अधिकारी को फोन किया। उसकी आवाज में गुस्सा और दर्द था। उसने कहा, "तुम कोर्ट में कबूल करो कि तुमने मेरे पैसे खाए, मुझे मेरा हक नहीं दिया। वरना मैं तुम्हारी बेटी को छोड़ूंगा नहीं।"अधिकारी ने पुलिस को खबर की। दो घंटे के अंदर रामू पकड़ा गया। पुलिस ने उसे इतना मारा कि वह चल भी नहीं सकता था। उसकी कोई दलील नहीं सुनी गई। कोर्ट में उसका पक्ष रखने वाला कोई नहीं था। उसे सीधे जेल में डाल दिया गया। जेल की सलाखों के पीछे बैठा रामू सोचता था, "मैंने अपने बच्चों के लिए घर मांगा था। आज न घर है, न बच्चे, न कुछ। ये सिस्टम गरीब को जीने ही नहीं देता।"रामू की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। जेल में उसकी सांसें चल रही थीं, लेकिन उसकी आत्मा मर चुकी थी। बाहर उसके बच्चे सड़कों पर भीख मांग रहे थे। गांव वाले उसकी बात करते, लेकिन कोई मदद नहीं करता। भ्रष्टाचार की आग में एक और परिवार जल गया। रामू की आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन अब इनके कोई मायने नहीं थे।….