Jungle - 34 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 34

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जंगल - भाग 34

                      (   34 ) किश्त 

शिमले की वही सकरी गली मे निज़ाम उनको ले आया था। अजनबी के नाम से बात नहीं चले गी, अजनबी जय चंद एक मिलटरी रिटायर अफसर था... जो भेजा था अतुल ने हेडक्वाटर से, वो घुटनो तक बूट पहनने से वैसे जजमेंट मे था। कितना तकलीफ दे रहा होगा सफर, वास्तव के लिए...

                 किसी को भी कानो कान खबर नहीं थी, कि कोई फौजी आया हैं... वो भी रिटायर। " निज़ाम ने अगली सकरी गली  से रुकने के लिए एकाएक कहा।

"----कया हुआ " वास्तव ने पूछा। गाड़ी एकाएक रुकी।

" एक मेरे साथ तो चले, पर प्रश्न चिन्ह लगा कर नहीं। " 

निज़ाम ने हसते हुए कहा। " कुछ समान उठा ले। " तभी फौजी बोला," नहीं, निज़ाम उतरना नहीं... पलटन मे जो उतरते हैं,  या तो वो गदार होते हैं, या कुछ भी क़र सकते हैं। हम यकीन नहीं करते, इस उतरने चढ़ने मे " निज़ाम मनमुटाब सा करता बैठ गया। गाड़ी अब जानकर बदल लीं गयी थी। सामने मोड़ पर एक वीलर था दूध लिजाने वाला... अब गाड़ी चलाने के पहले जिस से गाड़ी लीं थी... वो भी सिपाही था फौज मे, " "अंदर से टिप टॉप हैं। "   अजनबी ने पूछा। 

"बिलकुल सर। " निज़ाम सोच रहा था, "वीलर मे कयो, फौजी खिसक गया लगे " सोच रहा था।  

तभी जय चंद गिड़गिड़ा के बोला... " वीलर हैं कभी टेंक भी बन जाता हैं.... दूध इकठा करे तो कैसा रहे। " 

" कपड़े चेंज करो। " राहुल ने हसते हुए कहा।  फिर वो कहने लगा चेहरा रूहासा था "-- अगर वास्तव वो न मिले मेरे बच्चे... उसने एकाएक तीर छोड़ा। अजनबी बोला, " तो निज़ाम की खैर नहीं... " उसने निज़ाम को कहा, " सच हैं भाई। " राहुल ने पूछा। 

                      " मैं वो क्वाटर... घोड़ो का तेबेला की जगह भी पता हैं जनाब..."  निज़ाम ने ठंड मे सिकुड़ते हुए कहा।

जल्दी करो। 

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                         वीलर पर बैठे, वो एक वीरान सी सड़क को निकल गए। यहाँ से निज़ाम ने देखा था, दूरबीन से,  बहुत ही सावधान तरीके से.... बंद किंवाड़.. छत पे बॉडीगार्ड भी खूब थे। सब गंभीर चुप थे।  

तभी निज़ाम ने कहा, यही से देखा था.... उन को... दूरबीन राहुल ने  आँखो से लगा के कहा " यहां तो कुछ  नजर आया हैं, एक बाड़ी गार्ड सिर्फ एक.. राहुल ने अजनबी को दूरबीन देते कहा... " आप देखे। " 

                    -------------------*----------------

      माया ने A. S i से अपॉइंटमेंट लीं थी... सुबह... अंदर थी कमरे मे, 

" आप के मित्र हैं, आप को बता कर गए होंगे। " 

    " नहीं मैडम " चुप थे साहब।

" आप को मेरा कैसे पता, कि मै उनका मित्र हू। " 

नहीं..। नहीं.... हाँ... हाँ  राहुल जी ने बताया था।' 

" आप ने मान लिया। " 

माया ने सॉरी फील किया। और कुर्सी से उठने लगी। 

" आप को जाने के लिए तो मै बोला ही नहीं.... चाये पी कर जाईये। " वो चुप सी हो गयी थी।

चाये टेबल पर थी। दो घुट ही भरे ही थे।  " बता दू अगर तुम कया खेल खेलोगी उसके साथ। " वो ये सुन कर और चक्र मे पड़ गयी। बोली इतना ही बस " मै समझी नहीं। " 

(चलदा )           --------------- नीरज शर्मा 

                           शकोत्त, जालंफर।

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