Jungle - 33 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 33

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जंगल - भाग 33

     (   देश के दुश्मन )

                                 जंगल की कड़ी से जुड़ा मेरा 14 वी किश्त का सिरजना ही मुख्तलिफ हो रहे हैं। ये एक बेबस बाप का प्यार माँ के बिन की मुहबत की पुकार कैसी होती हैं, अच्छे आदमी थोड़े दिन ही कयो जीते हैं....  सब कुदरत के आधीन जो उसे अच्छा लगे कर लेता हैं, आपने पास ले जाता हैं।

                         माया का सिर पक गया था, जानी वो समझ से बाहर हो गयी थी। राहुल कहा पर हैं, किस तरा ढूढ़ लू...न टविट पर हैं, न कही दिख रहा हैं, हाँ... याद आया टकले और माया की शादी हो गुज़री थी। 19 दिन बाद ही फसाद था... इसलिए वो पकक चुकी थी। ढूंढ रही थी राहुल, दुःख को साझा करने को, पर आखिर उसने पूरा महीना ही फोन कयो नहीं किया था... कयो ...? किधर हैं अक्सर वो ?  कयो उसने याद ही नहीं किया, शादी मे भी नहीं,  कयो....? जानना चाहती थी, बात तो अक्सर वो जानती थी, किस चक्र मे वो डूबा हुआ हैं.... अक्सर कंधे से कंधा मिला कर चलने वाला शक्श कब गुम गया बड़े बजार मे.... हाँ राहुल के गिरने और उठने तक सब याद किया था।

         माया ने जज्बाती हो कर आपनी खमोश आँखो से आंसू पी लिए थे। अक्सर कयो वो उसे चाहती होकर भी... आज तक सामने नहीं आयी थी। माधुरी उसकी ही बहन थी, सगी नहीं पर दिल के हमेशा करीब। एक रीना थी जिसे वो हद से चाहती थी। हाँ कयो नहीं, वो एक दफा कयो उसके साथ एक घिनोने रिश्ते मे फ़स गयी थी.. समलेगिक... ओह नो... कैसे संबाला था राहुल ने उसे, चिटे से भी भरपूर थी... राहुल डलोहजी मे उसे बारा दिन ले गया था, बस कैसे धीरे धीरे उसके प्यार मे वो एक दिन सब छोड़ गयी सब कुछ.... पर वो उसके लिए डायमंड हो गया था, एक नयी शक्ति डालने वाला.....

                             रीना ने बहुत आपत्ति जतायी थी, उनका इतना पास होना... उसे काटा चुबता था... जैसे कोई पनघट पे तिलक गया हो। तुलसी आँगन मे मुरझा गयी हो। संख गुजा ही ना हो, घंटी मंदिर की वजी ही ना हो.... रीना इतनी कमजोर कयो थी, नेगटिव। राहुल को वो भी उसकी काबिलयत से चाहती थी । कितना आपना पन था।

                  उसका हर फोन बंद था, जा लग नहीं रहा था। कयो????????

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                                वो कसौली मे एक शॉप पे वास्तव को भेज कुछ समान खरीद रहे थे।  राहुल ने कहा,  " निज़ाम घूमना बहुत हुआ, लेकिन मैंने कुछ खाये पिए बिना पहाड़ी सफर जयादा किया हैं। " वो टहल रहे थे, और बाते एक दूसरे से कर रहे थे, कितना यकीन बनाये रखना चाहता था राहुल निज़ाम पे, निज़ाम राहुल पे आपनी ही पार्टी समझे हुए था, तभी अजनबी ने कहा, " आओ भी, हम आज शपथ खाये, रब की, अल्ला की, कराईस की, किसी का साथ नहीं मरते दम तक छोड़े गे, न ही धोखेबाज़ी करेंगे। " 

सब ने शपथ खायी थी, वास्तव बोला "--- जिन्दे जी रोटी ब्रेड जैम सब्जी मछली सब जरुरी हैं। "   सब उसकी इस बात से सब हस पड़े। कोई कया दबा रहा था, कोई कया सोच रहा था, निज़ाम कया सोच रहा था, अजनबी कया नया सोच रहा था। सब चुप थे।

(चलदा ) ----------------------------- नीरज शर्मा