"दोस्ती में नो थैंक्स
और उस दिन पहली बार संजना बोली थी।
संजना किसी से घुली मिली नही थी।वह अपनी साथी महिला कर्मियों से भी दूरी बनाए रहती।यश से भी बात नही होती थी।लेकिन यश अपनी तरफ से उससे हाय, हलो करने लगा था कभी कभी पूछ लेता
संजना कैसी हो
उसका जवाब बड़ा नपा तुला होता"ठीक हूँ।"
एक दिन किसी काम से यश को संजना की सीट पर जाना पड़ा था।काम की वात करने के बाद यश बोला,"तुम्हे चाय ज्यादा पसन्द है या कॉफी?"
"क्यो?"
"क्या नही पूछ सकता?"
"कॉफी।"यश को उसने जवाब दिया था।
"तो आज शाम को ऑफिस के बाद मेरे साथ कॉफी पीना पसन्द करोगी।"
यश की बात सुनकर पहले तो वह हिचकी और सोचा मना कर दे लेकिन मना नही कर पाई और उसने स्वीकृति मे गर्दन हिला दी थी।
शाम को छ बजते ही एक एक करके लोग ऑफिस से जाने लगे थे।यश ने अपने कागज समेटे और संजना की सीट के पास पहुंचा था।संजना काम मे व्यस्त थी।यश बोला,"काम रह गया है क्या?""हां।अभी दस मिनट और लगेंगे।"
"मैं मदद करू।"
"थैंक्स।मैं कर लूंगी
और यश बैठकर उसका इन तजार करने लगा।और आखिर में वह खड़ी हुई थी।वह यश के साथ ऑफिस से बाहर आई थी।यश बोला,"चलो
यश उसे लेकर कॉफी कैफे में पहुंचा था
"यहा की कॉफी बहुत अच्छी है।"
वेटर आया।यश उससे बोला,"दो कॉफी
रेस्तरां में अच्छी खासी भीड़ थी।वेटर दो कॉफी रखकर चला गया था।
"तुम चुप क्यो रहती हो?"
"वैसे ही।"
"क्या कोई बात है जिसे लेकर तुम परेशान रहती हो
"नही"
"फिर बोलती क्यो नही हो।"
"मेरी आदत नही है।"
यश ने काफी बाते उससे जाननी चाही पर वह ज्यादा कुछ नही बोली थी।यह क्या कम था कि संजना जो किसी से घुलती मिलती नही थी।उसके साथ आ गयी थी।कॉफी पीने के बाद वह बाहर आ गए थे।
"तुम रहती कहा हो?,
"मीरा रोड
और वह चली गयी थी।यश जुहू में रहता था।उसने बस पकड़ ली थी।
और दिन यू ही गुजर रहे थे।एक दिन यश ऑफिस से बाहर निकला तो संजना नीचे खड़ी थी।असल मे बरसात शुरू हो गयी थी।आज यश छाता लेकर आया था।वह संजना को छात्रा देते हुए बोला,लो।"
"मैं बरसात बन्द होगी तब चली जाऊंगी।"
",क्या पता कितनी देर में बंद हो।तुम निकल जाओ।"
"और तुम
"मैं मैनेज कर लूंगा
और संजना आभार भरी नजरों से उसे देखते हुए चली गयी थी
अगले दिन संजना उसे छतरी वापस करते हुए बोली,"थैंक्स
"नो थैंक्स
बॉस की बेटी की शादी थी।सब ही स्टाफ को बुलाया गया था।शादी का कार्यक्रम अंधेरी में एक होटल में था।यश बोला,"कल तो बOबॉस की बेटी की शादी में जाना है।"
"मुझे कंही आना जाना पसंद नही है
"बॉस सब पर नजर रखते हैं नही गयी तो
"मैं अकेली
"चिंता मत करो।यहा आ जाना मैं ले चलूंगी"
'"ठीक है"।और संजना चली गई थी अगले दिन शाम को संजना आ गयी थी।
"चलो "
यश ने उसे रास्ते मे समझाया था कि कम्पनी के बॉस पर ही अपनी नौकरी निर्भर है।इंक्रीमेंट और प्रमोशन भी बॉस के रिमार्क पर ही होता है।संजना, यश की बात को बड़े ध्यान से सुनती रही थी।
और वे होटल पहुंच गए थे। स्टाफ के लोग पहले से ही मौजूद थे सब सोच रहे थे संजना नही आएगी।सब हंस रहे थे मस्ती कर रहे थे।लेकिन संजना जैसे ऑफिस में रहती, वैसे ही पार्टी में भी ज्यादा नही बोली थी