"यात्रियो से अनुरोध है।अपने मोबाइल सेट को फ्लाइट मोड़ में सेट कर ले
और यात्री अपने अपने मोबाइल को सेट करने लगे।कुछ देर बाद फिर एयर होस्टेस की आवाज आई थी
"प्लेन उड़ने के लिय तैयार है।सभी यात्री अपनी अपनी सीट बेल्ट बांध लें
यश ने अपनी सीट बेल्ट बांध ली फिर उसने संजना की बेल्ट बांधने में सहायता की थी।प्लेन का इंजन स्टार्ट हो गया और फिर प्लेन रनवे पर चलने लगा।यश पास बैठी संजना से बोला,"मैं कुछ कहूँ।"
संजना बोली कुछ नही, प्रश्नसूचक नजरो से यश की तरफ देखने लगी।
"मैं तुम्हारा अतीत जानना नही चाहता था, लेकिन तुंमने अतीत बताया,"यश बोला,"तुम एक नई जिंदगी की शुरुआत करने जा रही हो.।अपने अतीत को यही छोड़कर चलो।"
यश छोटे से शहर ब्यावर का रहने वाला था।उसका जन्म वही हुआ और वही बड़ा हुआ था।लेकिन जॉब लगी थी,मुम्बई की एक कम्पनी में।उसके माता पिता दोनों नही रहे थे।कहा छोटा सा शहर और कहां देश का महानगर।भीड़ भरा शहर जहाँ सिर्फ भागम भाग है।
यश मिलनसार स्वभाव का युवक था।सब से घुलमिल जाना उसकी आदत थी।उसकी कम्पनी में कुछ लड़कियां भी काम करती थी।कम्पनी जॉइन करते ही उसने सब से जान पहचान कर ली थी।तीन लडकिया भी थी जो इसी महानगर की थी।उनसे भी यश की बात होती रहती थी।
एक दिन एक लड़की ऑफिस में आयी।वह सीधी सी ई ओ के कमरे में चली गयी।बाद में पता चला वह कम्पनी में नई आयी थी।उसका नाम संजना था।
संजना मझले कद की सुंदर लड़की थी।कम्पनी में जो तीन लडकिया पहले से थी वे वाचाल थी।बाते करती।हंसी मजाक करती थी।लेकिन संजना उन तीनों से बिल्कुल अलग थी।
वह हर समय खामोश रहती या कहे चुप्पी ओढ़े रहती।टाइम पर ऑफिस आती और टाइम पर ही चली जाती। ऑफिस में चुपचाप अपना काम करती रहती।वह ऑफिस में काम कि ही बात करती थी।वह मर्दो से तो बात करती ही नही थी साथ काम करने वाली लड़कियों से भी बहुत कम बोलती थी।
एक दिन यश उससे बोला,"हाय संजना
यश की बात सुनकर वह हल्की सी मुस्करा दी थी।उसकी चुप्पी देखकर वह आगे कुछ बोला नही।लेकिन उस दिन के बाद वह संजना से कुछ ने कुछ कहता।अक्सर वह उसकी बात सुनकर चुप रहती।संजना चाहे उससे न बोले लेकिन यश उससे रोज हैय्य हलो करना न भूलता।कभी कभी वह पूछ लेता,"कैसी हो?"
उ उसका जवाब बड़ा ही नपा तुला होता,"ठीक हूं।"
एक दिन वह ऑफिस से निकला तो बारिश हो रही थी।संजना उससे पहले निकली और बारिश की वजह से नीचे खड़ी रह गयी थी।यश जैसे ही लिफ्ट से निकलकर बाहर आया उसकी नजर संजना पर पड़ी थी।यश छाता लेकर आया था।उसे देखते ही बोला,"यह लो।"
यश ने छाता उसकी तरफ बढ़ाया था।संजना बोली,"रहने दो मैं चली जाऊंगी।"
"कब/"
""बरसात बन्द होने पर।"
"अगर वरसात बन्द नही होगी तो क्या पूरी रात यही खड़ी रहोगी,"यश बोला,"लो।""
"तुम।"यश के हाथ से छाता लेते हुए वह बोली थी।
"डोंट वारी।मैं मैनेज कर लूंगा,"यश बोला,"तुम निकल जाओ।
और संजना छाता लेकर चली गयी थी।यश काफी देर तक खड़ा रहा और जैसे ही बरसात हल्की हुई वह चल दिया था।
अगले दिन संजना ऑफिस में आते ही सबसे पहले यश की सीट पर गयी थी।वह छाता यश को लौटाते हुए बोली"थैंक यू।"