Matsya Kanya - 9 in Hindi Fiction Stories by Pooja Singh books and stories PDF | मत्स्य कन्या - 9

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मत्स्य कन्या - 9

त्रिश्का जैसे ही पानी में कदम रखती है...उसे बैचैनी होने लगती है... त्रिश्का हैरान रह जाती है आखिर ऐसा क्यूं हो रहा है, पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ..?

..... अब आगे......

त्रिश्का अपनी बैचेनी भूलकर बस लोगों को बचाने की ओर ध्यान देना चाहती थी, धीरे धीरे उसके कदम डगमगा रहे थे,.. जैसे तैसे करके त्रिश्का चक्र में फंसे लोगो तक पहुंच चुकी थी.... उन्हें वो धीरे धीरे किनारे पहुंचा देती है लेकिन खुद वही गिर जाती,, अपना होश खोने की वजह से वो समुद्र की लहरो में खोने लगी थी...त्रिश्का को ऐसे देख जो लोग किनारे थे उसे बचाने के लिए चिल्लाते है...सबकी इस तरह चिल्लाने की आवाज सुनकर सिद्धार्थ  जोकि सबको बिच से बाहर भेज रहा था, उन्हें छोड़कर जल्दी से किनारे की तरफ भागता है.... सब लोगो सुरक्षित देख सिद्धार्थ राहत भरी सांस लेकर उन्हें जाने के लिए कहता है... लेकिन त्रिश्का को आसपास न देखकर परेशान सा पूछता है... " आपकी वाटर रेंजर कहाँ है... " 

एक औरत उसके पास आकर उदासी से कहती है... " वो त्रिश्का जी.... अचानक लहरों में गुम हो.. गई... "

सिद्धार्थ उसकी बात सुनकर परेशान सा लहरों की तरफ देखते हुए कहता है.... " ऐसा नहीं हो सकता.. तृषा लहरो में नहीं खो सकती... नही नही.... " सिद्धार्थ त्रिश्का को ढूंढ हीं रहा था की तभी किसी की चीख सुनाई देती है और मौसम बदल जाता है जो लहरें अभी तक कम तेज़ थी वो और भयानक हो जाती है .... इससे सब का ध्यान उस और जाता है.... पायल घबरा कर कहती है.... " ये तो तृषा की आवाज थी... उसे क्या हो गया.. वो क्यू चिल्लाई.... " सब वहां पहुंचते है..सिद्धार्थ त्रिश्का को बचाने की कोशिश कर रहा था लेकिन सब बेकार हो रही थी, वो जितना लहरों की तरफ बढता लहरे उतना ही उसे पीछे धकेल देती...सब हैरान परेशान बस एक टक लगाऐ उस शापित चक्र को ही देख रहे थे.... उधर त्रिश्का बेहोश होकर समुद्र की गहराई में दाखिल हो रही थी... किसे पता था जो सबकी जान बचाती है आज वो खुद की ही मदद नही कर पा रही है.... सबकी कोशिश निराशा में बदल रही थी,,सिद्धार्थ हार मानने के लिए तैयार नहीं था लेकिन सबने उसे और गहराई में जाने से रोक लिया.........

आज त्रिश्का नही बचेगी... ऐसा सोचने से पहले ही उनकी ये उम्मीद वापस जागते हुए दिखने लगी अचानक ऐसा लगा जैसे किसी ने पानी में अभी अभी छलांग लगाई हो... सबकी नजर समुद्री चक्र पर थी जहाँ से लौटना मुश्किल होता था.. एक ब्लैक कैप पहने जिसने अपना फेस तक को ढक रखा था... उसकी परछाई पानी पर दिखने लगी थी जिसने अपने हाथो में त्रिश्का को थाम रखा था...पायल और सिद्धार्थ तृषा को देख अपने आसूं पोछकर उसकी तरफ बढते है..... वो व्यक्ति त्रिश्का को पानी से बाहर ला चुका, उसके आते मौसम ने फिर एक बार करवट बदली.. भयानक लहरे शांत हो गई.. आसमान साफ हो गया.. लेकिन किसीको इस बात पर कोई गौर नही था.. वो तो बस अपनी तृषा को देखकर खुश थे.....

देवांश रेस्ट चेयर पर त्रिश्का को लेटाने के लिए कहता है.. वो व्यक्ति उसे वहां लेटाकर उसके हाथ में बंधे बाजूबंध को निकालकर फैकते हुए कहता है... " दोबारा इसे मत बांधना...इसके बिना हीं ये ठीक रह सकती है... "इतना कहकर वो वहां से जाने लगता है... पायल उसे सवालिया नजरो से देखकर उससे पूछने के लिए जाती है तभी तृषा की बड़बड़ाने की आवाज सुनकर रुक जाती है.....

....." तुम फिर आगये... मुझसे दूर रहो.... कौन हो तुम...?....

...... To be continued......