सत्य विला – भाग 3: "अंतिम बलि"
(अब तक की कहानी: दीया और अर्जुन ने सत्य विला के नीचे गुप्त सुरंग में कई पुरानी लाशें और खौफनाक निशान खोजे। उन्हें विक्रम की पहले से बनी कब्र मिली, और एक अजीब परछाई उनके सामने आ गई। हवेली ने उन्हें बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिया, और अब यह श्राप अपनी "अंतिम बलि" माँग रहा है।)
अब यह कहानी अपने सबसे खतरनाक, गहरे और डरावने मोड़ पर पहुँच चुकी है…
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अध्याय 1: आखिरी दरवाज़ा
"अब तुम भी हवेली का हिस्सा बनोगी, दीदी…"
दीया के कानों में गूँजती यह आवाज़ ठंडी और खौफनाक थी। सामने जो परछाई खड़ी थी, उसका चेहरा विक्रम से मिलता-जुलता था।
अर्जुन ने दीया का हाथ पकड़कर खींचा। "हमें यहाँ से निकलना होगा!"
लेकिन जैसे ही वे पलटे, एक भारी लकड़ी का दरवाज़ा उनके पीछे बंद हो गया।
अब वे हवेली की गहरी भूलभुलैया में फँस चुके थे।
अंधेरे में किसी के धीमे-धीमे हँसने की आवाज़ आई…
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अध्याय 2: अतीत का सबसे बड़ा झूठ
दीया की धड़कन तेज हो गई।
"विक्रम, अगर तुम हो, तो बताओ हमें… यह सब क्या है?"
परछाई ने धीरे-धीरे सिर झुकाया।
"तुमने कभी सोचा… अगर मैं विक्रम नहीं हूँ, तो कौन हूँ?"
अर्जुन ने दीया की ओर देखा।
"इस हवेली में सिर्फ़ विक्रम ही नहीं मरा था, दीया…"
"यहाँ सैकड़ों लोग मारे गए थे!"
दीया ने लिस्ट को याद किया जो उन्हें मिली थी। गायब हुए लोगों की सूची।
क्या ये सब सत्य विला के ही शिकार थे?
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अध्याय 3: सत्य विला का श्राप
अचानक, दीवारों पर खून से कुछ लिखा उभरने लगा।
"जिसने हवेली के राज़ खोले, उसे इसकी सजा भुगतनी होगी।"
दीया के सामने पुरानी घटनाएँ चमकने लगीं।
1976: एक आदमी को जिंदा दीवार में चुन दिया गया।
1982: एक लड़की को हवेली में कैद कर दिया गया, और वह कभी नहीं लौटी।
2001: विक्रम ने कुछ खोजा था… और फिर वह गायब हो गया।
अब 2025 था… और दीया और अर्जुन यहाँ थे।
क्या वे भी अगले शिकार बनेंगे?
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अध्याय 4: गूंजती चीखें
चारों ओर सन्नाटा था।
तभी, तेज हवा चली, और दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया।
"भागो!" अर्जुन चिल्लाया।
वे दौड़े… लेकिन जिस सुरंग से वे आए थे, वह अब बंद हो चुकी थी।
तभी दीया को सामने एक पुराना शीशा दिखा। उसमें उसका ही प्रतिबिंब नहीं था!
उसने शीशे के अंदर देखा… वहाँ खड़े थे सभी गुमशुदा लोग।
विक्रम… अनिरुद्ध… रोहित… और सैकड़ों अन्य।
और उन्होंने एक साथ कहा—
"तुम हमारी जगह लेने आई हो।"
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अध्याय 5: अंतिम बलि
अर्जुन ने दीया को खींचा। "हमें इसे खत्म करना होगा!"
उसने जेब से वो पुरानी चाबी निकाली, जिस पर "एस.वी. सुरंग" लिखा था।
अर्जुन ने हवेली के सबसे पुराने दरवाज़े में चाबी लगाई।
टक!
दरवाज़ा खुला, और अंदर एक पुराना पूजा स्थल था।
एक अधजली किताब… एक टूटी मूरत… और बीच में एक खून से सना खंजर।
दीया को याद आया—
"जो हवेली के श्राप से बचेगा, उसे इसकी अंतिम बलि देनी होगी।"
"लेकिन बलि कौन देगा?" अर्जुन ने पूछा।
"हवेली ही तय करेगी…"
तभी… दीया को लगा कि कुछ उसे पीछे खींच रहा है!
अर्जुन ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन…
अंधेरा घना हो गया… और दीया गायब हो गई।
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अध्याय 6: आखिरी दरवाजा
अर्जुन चिल्लाया, "दीया!"
लेकिन अब वहाँ सिर्फ़ खालीपन था।
हवेली शांत थी।
और फिर… अचानक एक औरत की हँसी गूँजी।
शीशे में अर्जुन ने देखा—
अब दीया भी उन गुमशुदा लोगों के बीच खड़ी थी।
और फिर… सबकुछ शांत हो गया।
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अध्याय 7: सत्य विला का नया मेहमान
दो महीने बाद…
सत्य विला फिर से खाली थी।
लेकिन एक दिन, वहाँ एक नया परिवार रहने आया।
छोटा बच्चा घर में घुसते ही हँसने लगा।
"मम्मी, देखो! दीदी खेल रही है!"
माँ ने पलटकर देखा…
वहाँ कोई नहीं था।
पर शीशे में… दीया खड़ी थी।
अब हवेली को अपना नया शिकार मिल चुका था…
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अंत (?)
(क्या यह सच में अंत है? या सत्य विला की कहानी अभी बाकी है…? )