Satya Willa ka Antim Rahashy - 2 in Hindi Thriller by Narayan Menariya books and stories PDF | सत्य विला का अंतिम रहस्य - भाग 2

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सत्य विला का अंतिम रहस्य - भाग 2

पिछले भाग में:

"सत्य विला का अंतिम रहस्य - भाग 1: अंधेरे में दफन राज़" एक ऐसी कहानी है जो एक रहस्यमयी हवेली, सत्य विला, और उसके खतरनाक राज़ के इर्द-गिर्द घूमती है। दीया, एक युवा महिला, अपने गुमशुदा भाई विक्रम के रहस्य को सुलझाने के लिए इस हवेली में प्रवेश करती है। उसे धीरे-धीरे पता चलता है कि विक्रम को उसके परिवार ने एक खतरनाक साजिश के तहत ग़ायब कर दिया था। लेकिन जैसे-जैसे दीया आगे बढ़ती है, उसे यह समझ में आता है कि वह भी अब उसी खतरनाक खेल का हिस्सा बन चुकी है। विक्रम के असल राज़, हवेली की विरासत, और एक शापित परिवार की कहानी खुलती है।

कहानी के अंत में, दीया को एक दस्तावेज़ मिलता है, जिसमें उसे चेतावनी दी जाती है कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है—और एक और रहस्य उसके इंतजार में है। अब सवाल यह है कि क्या दीया इस रहस्य से बच पाएगी, या वह भी इस हवेली की भूतिया क़िस्सों का हिस्सा बन जाएगी?

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अध्याय 1: रात का पहला डर

रात के 2 बजे।

सत्य विला में सन्नाटा था।

दीया अपने कमरे में लेटी थी, लेकिन नींद नहीं आ रही थी। हवेली की पुरानी लकड़ी की दीवारों से हल्की-हल्की खड़खड़ाहट सुनाई दे रही थी—जैसे कोई अंदर से सरक रहा हो।

वह उठी, पानी पीने के लिए। लेकिन जैसे ही उसने पानी का गिलास उठाया, उसकी नजर आईने पर पड़ी।

आईने में उसे अपनी परछाई दिखी।

पर… वह अकेली नहीं थी।

पीछे एक और परछाई थी—धुंधली, मगर खड़ी हुई।

दीया ने घबराकर पलटकर देखा।

कोई नहीं था।

लेकिन आईने में परछाई अब भी मौजूद थी।

और फिर… परछाई ने धीरे से मुस्कुराया।


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अध्याय 2: हवेली का नया मेहमान

अगली सुबह, दीया ने फैसला किया कि वह सत्य विला में अकेली नहीं रह सकती।

उसने अपने बचपन के दोस्त अर्जुन को फोन किया, जो एक पत्रकार था।

"अर्जुन, मुझे मदद चाहिए।"

"क्या हुआ?"

"यह हवेली… यह मुझे नहीं छोड़ रही।"

अर्जुन तुरंत सत्य विला पहुँच गया।

लेकिन जैसे ही उसने हवेली में कदम रखा, उसके माथे पर शिकन आ गई।

"दीया… यहाँ कुछ अजीब है।"

उसने दीवारों को छुआ।

"क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह जगह… साँस ले रही है?"


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अध्याय 3: विक्रम का पत्र

रात होते ही, दीया को अपने कमरे में एक पुराना लिफाफा मिला।

यह विक्रम का पत्र था।

"दीया,
अगर तुम यह पढ़ रही हो, तो इसका मतलब है कि मैं हार चुका हूँ। लेकिन यह मत समझना कि यह सब सिर्फ हवेली की साज़िश थी। सच इससे भी गहरा है।

अगर तुम बचना चाहती हो, तो सत्य विला छोड़ दो… अभी। लेकिन अगर तुम रुकी, तो तुम्हें वही देखना पड़ेगा जो मैंने देखा था। और उस दिन, भागने का कोई रास्ता नहीं बचेगा।

- विक्रम"

दीया के हाथ काँपने लगे।

वह जानती थी कि यह खत पुराना था। लेकिन… यह लिफाफा अभी यहाँ कैसे आया?

तभी, कमरे की बत्तियाँ झपकने लगीं।

और एक गहरी फुसफुसाहट गूँजने लगी—

"तुमने लौटने की गलती कर दी, दीया..."

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अध्याय 4: हवेली के पुराने मेहमान

रात के तीन बजे।

दीया को नींद नहीं आ रही थी।

अर्जुन गेस्ट रूम में सो रहा था, लेकिन हवेली में कुछ तो था जो अब भी जिंदा लग रहा था।

तभी… सीढ़ियों पर किसी के चलने की आवाज़ आई।

धीरे-धीरे, ठक… ठक… ठक…

कोई ऊपर आ रहा था।

दीया का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने धीरे से दरवाज़ा खोला और बाहर झाँका।

सीढ़ियों पर कोई दिख नहीं रहा था। लेकिन कदमों की आवाज़ अब भी जारी थी।

और फिर—कमरे के अंदर से दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद हो गया।


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अध्याय 5: सुरंग का दूसरा सिरा

अर्जुन की नींद अचानक टूट गई।

उसने महसूस किया कि कोई उसके कमरे में था।

"दीया?" उसने धीरे से कहा।

कोई जवाब नहीं आया।

अर्जुन ने टेबल लैंप ऑन किया। कमरे में कोई नहीं था। लेकिन…

मेज़ पर एक पुरानी चाबी रखी हुई थी।

वह चाबी धूल से ढकी थी, जैसे कई सालों से इस्तेमाल नहीं हुई हो।

अर्जुन ने चाबी उठाई और गौर से देखा। इस पर कुछ उकेरा हुआ था—

"एस.वी. सुरंग"

सत्य विला में एक और सुरंग थी?


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अध्याय 6: गुमशुदा लोगों की सूची

अगले दिन, दीया और अर्जुन ने मिलकर हवेली की पुरानी फ़ाइलें देखनी शुरू कीं।

एक पीली पड़ी हुई फाइल में उन्हें 1982 के गुमशुदा लोगों की सूची मिली।

नाम: विक्रम शर्मा (गायब, 2001)
नाम: अनिरुद्ध ठाकुर (गायब, 1982)
नाम: रोहित मेहरा (गायब, 1976)


सूची बहुत लंबी थी।

"ये सारे लोग कहाँ गए?" अर्जुन ने पूछा।

दीया के पास कोई जवाब नहीं था।

पर तभी उसने एक नाम देखा, जिससे उसकी रूह काँप गई—

नाम: दीया शर्मा (गायब, 1997)

"ये… ये कैसे हो सकता है?"

दीया कभी ग़ायब नहीं हुई थी।

तो फिर… इस सूची में उसका नाम क्यों था?


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अध्याय 7: दीवारों में छिपी चीखें

रात होते ही, दीया और अर्जुन ने चुपचाप हवेली की जाँच करने का फैसला किया।

अर्जुन ने वह चाबी निकाली, जिस पर "एस.वी. सुरंग" लिखा था।

उन्होंने ड्राइंग रूम के पुराने फ़र्श पर ध्यान दिया। वहाँ लकड़ी के फ़र्श पर एक छोटा निशान बना था—जैसे कोई गुप्त दरवाज़ा हो।

अर्जुन ने चाबी घुमाई।

टक।

दरवाज़ा खुल गया।

अंदर एक संकरी सीढ़ी थी, जो गहरे अंधेरे में जा रही थी।

"हम अंदर जा रहे हैं?" अर्जुन ने पूछा।

दीया ने उसकी ओर देखा।

"अगर हमें जवाब चाहिए, तो और कोई रास्ता नहीं है।"


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अध्याय 8: नीचे दबी लाशें

सीढ़ियों से उतरते ही, एक भारी बदबू आई।

दीवारों पर पुरानी खरोंचों के निशान थे—जैसे किसी ने बचने की कोशिश की हो।

अर्जुन ने मोबाइल टॉर्च ऑन की।

नीचे एक बड़ा हॉल था।

और वहाँ… पुरानी हड्डियाँ बिखरी हुई थीं।

सड़े-गले कपड़े।

जंजीरें।

और दीवार पर लिखा था—

"जो इस हवेली में आता है, वह कभी वापस नहीं जाता।"

दीया की साँसें रुक गईं।

क्या ये सभी गुमशुदा लोग यहीं दफन थे?


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अध्याय 9: विक्रम की कब्र

हॉल के बीचों-बीच एक पत्थर रखा था।

उस पर कुछ लिखा था—

"विक्रम शर्मा, 1985-2001"

दीया ने घबराकर अर्जुन की तरफ देखा।

"विक्रम तो 2001 में गायब हुआ था… लेकिन यहाँ उसकी कब्र पहले से बनी हुई है?"

अर्जुन ने धूल हटाई।

कब्र के नीचे कुछ और लिखा था—

"मुझे कभी मरने का मौका नहीं मिला।"

तभी, हवा में फुसफुसाहट गूँजी।

"तुमने मेरी कब्र देख ली, दीदी... अब तुम्हारी बारी है।"


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अध्याय 10: जीवित परछाई

अर्जुन ने झटके से दीया का हाथ पकड़ा।

"हमें यहाँ से निकलना होगा। अभी!"

वे दोनों तेज़ी से भागे, लेकिन सीढ़ियों की ओर पहुँचते ही…

सीढ़ियों का रास्ता बंद हो गया।

चारों ओर अंधेरा।

और फिर—एक परछाई हिलने लगी।

वह दीवार से अलग हुई, और… एक इंसानी आकृति में बदल गई।

"तुम दोनों को यहाँ नहीं होना चाहिए था।"

दीया ने उसे देखा।

उसका चेहरा विक्रम जैसा था।

पर उसकी आँखें खाली थीं।

"अब, तुम भी हवेली का हिस्सा बनोगी, दीदी…"


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("सत्य विला का अंतिम रहस्य - भाग 3: अंतिम बलि" :- क्या दीया और अर्जुन इस रहस्य से बच पाएंगे? या सत्य विला की विरासत उन्हें भी निगल जाएगी? अगला भाग जल्द आ रहा है!)